भारतीय सेना में ‘मुस्लिम रेजीमेंट’ खत्म करने को लेकर सोशल मीडिया में जो फेक न्यूज चलाई गई, वह सेना के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बदनाम करने वाली तो थी ही, साथ में खतरनाक ढंग से शरारतपूर्ण भी थी। ये फर्जी खबर किसने और क्यों चलाई, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन देश के पूर्व नौसेना प्रमुख सहित 120 पूर्व सेनाधिकारियों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर ऐसी घटिया और दुर्भावनापूर्ण खबरों पर लगाम लगाने कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। राष्ट्रपति ने इस पर क्या कार्रवाई यह साफ नहीं है, लेकिन ऐसी खबर चलवाने के पीछे मानसिकता देश के साथ सेना को भी धर्म के आधार पर विभाजित करने की है, उस भारतीय सेना के, जिस पर हर भारतीय को गर्व है और हर भारतीय को भरोसा भी है। यह हरकत देश में अमूमन चलने वाले ‘हेट कैम्पेन’ से कहीं ज्यादा गंभीर और खतरनाक है। क्योंकि राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक कारणों से ऐसे नफरती अभियान तो हम आए दिन देखते हैं, लेकिन सेना को प्राय: इससे दूर रखा जाता है, क्योंकि सेना समूचे और एक भारत का प्रतीक है।
ये कैम्पेन इसलिए भी हैरान करने वाला है, क्योंकि भारतीय सेना में ‘मुस्लिम रेजीमेंट’ नाम की कोई चीज तब भी नहीं थी, जब देश पर मुसलमानों का शासन था। उस वक्त भी सेना को शासकों या नस्ली नाम से पहचाना जाता था, जैसे मुगल सेना, अफगान सेना, पठान सेना या फिर गैर मुस्लिम शासकों में जैसे मराठा सेना, राजपूत सेना, जाट सेना आदि। बाद में अंग्रेजों ने जरूर एक-दो रेजिमेंट ऐसी बनाईं थीं, जो वीरता की परंपरा के साथ-साथ किसी धर्म विशेष को भी चिह्नित करती थीं। इनमें प्रमुख है सिख रेजीमेंट। लेकिन सिख रेजीमेंट भी इसलिए कायम है, क्योंकि उसकी वीरता और राष्ट्र निष्ठा के ऊंचे पैमाने हैं। इसके अलावा धर्म पर आधारित कोई रेजीमेंट या पलटन भारतीय सेना में नहीं है और होने की संभावना भी नहीं है। अलबत्ता क्षेत्रीय आधार पर बिहार रेजीमेंट, कुमाऊं रेजीमेंट, बंगाल रेजीमेंट, लद्दाख स्काउट्स, असम राइफल्स आदि हैं। कुछ जातीय या नस्ली आधार पर भी हैं,जैसे महार रेजीमेंट, नागा रेजीमेंट, गोरखा रेजीमेंट, मद्रास रेजीमेंट आदि। ये भी ज्यादातर आजादी के पहले गठित हुई हैं। ऐसी करीब 31 रेजीमेंट हैं। स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना का स्वरूप पूरी तरह मिला-जुला है। अब नई रेजीमेंटें जातीय या नस्ली नामो के आधार पर गठित नहीं होतीं। हालांकि बीच-बीच में ऐसी मांग उठती रहती है और इसके पक्ष में कुछ विशिष्ट जातियों अथवा नस्लों की असाधारण वीरता के इतिहास का हवाला दिया जाता है। गौरतलब है कि भारतीय सेना की जिस नवीनतम रेजीमेंट का गठन दो साल पहले हुआ, उसका नाम भी ‘ ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स’ है न कि किसी क्षेत्र, जाति या धर्म के आधार पर।
भारतीय (थल) सेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी और बहादुरी का इतिहास संजोने वाली सेना है। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक भारतीय सेना में वर्तमान में 14 लाख 40 हजार सक्रिय सैनिक, 2.1 लाख रिजर्व सैनिक हैं। पूरी सेना आर्मर्ड, इंफेन्ट्री रेजीमेंट और आर्टिलरी में विभाजित है। आर्टिलरी विभाग में 861 आर्म्ड रेजीमेंट, 11 फील्ड रेजीमेंट़,170 मीडियम रेजीमेंट तथा 11 पैराशूट रेजीमेंट हैं। इसी तरह आर्मर्ड विभाग में 93 फील्ड रेजीमेंटे बताई जाती हैं।
कहने का आशय ये कि भारतीय सेना की संरचना किसी धर्म विशेष पर आधारित नहीं है। वह सर्व समावेशी है। उसका हर सैनिक केवल भारतीय है और देश की सीमाओं की सुरक्षा उसका परम ध्येय है। तिरंगे के मान रखना उसका धर्म है। ऐसे में उस कथित रेजीमेंट को भंग करने की फर्जी खबर चलाना, जो कभी वजूद में ही नहीं थी, किसी गहरी चाल का हिस्सा लगती है। आश्चर्य की बात यह कि इस फेक न्यूज पर भी लोगों ने अपने व्यूज देना शुरू कर दिए, बिना यह जाने कि इसमें तिल मात्र भी सत्यता नहीं है।
जिस गंभीरता के साथ देश के राष्ट्रपति और भारतीय सेना के सर्वोच्च कमांडर के सामने यह मुद्दा उठाया गया है, उससे स्पष्ट है कि इस फेक न्यूज के पीछे अब सेना को भी हिंदू-मुस्लिम में बांटने की चाल है। जबकि उसमें हर जाति, धर्म और प्रांत के लोग हैं। पूर्व सेनाधिकारियों द्वारा राष्ट्रपति को लिखी गई चिट्ठी में कहा गया है कि ‘सार्वजनिक क्षेत्र में ‘मुसलिम रेजिमेंट’ जैसी सोशल मीडिया पोस्ट हमारे सशस्त्र बलों के मनोबल पर एक घातक हमला है। यह जनता के मन में संदेह पैदा करता है कि अगर मुसलिम सैनिकों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है तो अन्य मुसलमान भी अलग नहीं हैं। यह समुदायों के बीच अविश्वास और घृणा को बढ़ाता है। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। ऐसे देशद्रोहपूर्ण संदेशों पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए।‘
यहां सवाल ये है कि ये खबर चली कैसे, किसने और क्यों चलाई? ऐसा करके साबित क्या किया जा रहा है? अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक फेक न्यूज का सोर्स स्पष्ट नहीं है। राष्ट्रपति को लिखे पत्र में पूर्व सैनिकों ने लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सैयद अता हसनैन द्वारा हाल में लिखे एक लेख का ज़िक्र किया है। इस लेख में ले. जन. हसनैन के आशंका जताई है कि ग़लत सूचना फैलाने का अभियान संभवतः पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस विंग के ‘psy op’ का हिस्सा था। राष्ट्रपति को लिखी इस चिट्ठी में ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जिक्र भी है। ब्रिगेडियर उस्मान पहले बलूच रेजीमेंट में थे। लेकिन देश के धर्म के आधार पर विभाजन के बाद बलूच रेजीमेंट पाकिस्तान के हिस्से में चली गई। लेकिन ब्रिगेडियर उस्मान ने भारत में रहना ही मंजूर किया, जबकि मोहम्मद अली जिन्ना उन्हें पाकिस्तान बुला रहे थे। ब्रिगेडियर उस्मान ने आजादी के तुरंत बाद हुए पहले कश्मीर युद्ध में 1948 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ी और शहीद हुए। उन्हें असाधारण वीरता के लिए महावीर चक्र से नवाजा गया।
समझना मुश्किल है कि ऐसे फर्जी और नफरत भरे कैम्पेन से हासिल क्या होना है? क्या ऐसी पोस्ट डालने वाले पूरी भारतीय सेना को टुकड़ों में बांटना चाहते हैं? दुर्भाग्य से सेना का अगर इस तरह बंटवारा शुरू हुआ तो वह कहां जाकर थमेगा, कोई नहीं कह सकता। वह धर्म से प्रांत तक प्रांत से जाति तक और जाति से परिवार तक भी जा सकता है। ऐसी पोस्ट डालकर क्या हम देश को उस युग में लौटाना चाहते हैं,जहां तमाम राजा-महाराजा, नवाब-अमीर अपनी सेनाएं लेकर एक दूसरे की जमीन हथियाने के लिए लड़ा करते थे और नतीजा यह हुआ कि बाहर से आए अंगरेजों ने हमारे ही देश पर कब्जा कर लिया।
जाहिर है कि ऐसी पोस्ट केवल बांटने वाली ही नहीं है, यह किसी गहरी साजिश की और भी संकेत करती हैं। जो इसका समर्थन कर रहे हैं, वो अपना तो ठीक,देश का भी बुरा सोच रहे हैं। मानकर चलिए कि जब तक सेना इस जहर से बची है, तब तक देश भी बचा है, अगर उसे भी इसने अपनी चपेट में ले लिया तो किसी के मन की भड़ास भले निकल जाए, देश का भट्टा बैठने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। पूर्व सैनिकों की चिट्ठी को किसी राजनीतिक चश्मे से देखने की हिमाकत नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि हर सैनिक चाहे वह रिटायर्ड ही क्यों न हो, सेना के बारे में गलत न तो सुन सकता है और न ही सोच सकता है। यह अडिग निष्ठा ही भारतीय सेना का ताकत और प्रेरणा स्रोत है। इस निष्ठा की नींव हिलाने की किसी भी कोशिश को सख्ती से कुचला जाना चाहिए। सेना के मूल चरित्र को बदलने की कोई भी चाल पूरे देश के लिए आत्मघाती होगी, इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए।
अजय बोकिल
वरिष्ठ संपादक
‘राइट क्लिक’
( ‘सुबह सवेरे’ में दि. 17 अक्टूबर 2020 को प्रकाशित)