मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में रोज नए खुलासे हो रहे हैं और सीबीआई के अधिकारी इस जघन्य अपराध की परत दर परत खोलने में रात दिन लगे हैं. लेकिन इससे इतर इस कांड को लेकर एक और भी मोर्चा खुला हुआ है और वह है राजनीति का मोर्चा. सरकार से अलग होने के बाद तेजस्वी यादव अपने मुंहबोले चाचा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरने के लिए एक ऐसे मुद्दे की तलाश में थे, जो सुशासन के इनके यूएसपी को तार-तार कर दे. सृजन को लेकर कुछ हवा बनाने की कोशिश की गई, पर वह रंग नहीं पकड़ पाई. अपराध और विकास को लेकर जो आरोप नीतीश कुमार पर लगाए गए, उसकी गंभीरता इतनी नहीं थी कि सरकार की छवि पर कोई गहरा दाग लग जाए. लेकिन जैसे ही मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड के मामले ने तूल पकड़ा तेजस्वी यादव ने इसे हाथों हाथ लपक लिया.
तेजस्वी अपने सहयोगी दल के नेताओं के साथ घटनास्थल पर गए और लौटे तो विधानसभा में इस मुद्दे को गूंजा दिया. तेजस्वी यादव का आरोप है कि इस कांड के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर का भाजपा और जदयू के कई बड़े नेताओं से रिश्ता रहा है. तेजस्वी यादव का आरोप है कि ब्रजेश समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के साथ ही साथ नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा का भी करीबी है और नीतीश सरकार अपने दोनों मंत्रियोें को बचाने की कोशिश कर रही है. तेजस्वी यादव का यह भी आरोप है कि जिस समय ब्रजेश ठाकुर को पकड़ा गया था, उस समय एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को एक पूर्व और एक वर्तमान केंद्रीय मंत्री ने फोन भी किया था. इसके अलावा, मुख्यमंत्री के करीबी कुछ राज्यमंत्रियों ने भी इस मामले में फोन कर दबाव बनाने की कोशिश की.
तेजस्वी यादव ने ब्रजेश ठाकुर के एक साल के फोन डिटेल की भी मांग की है. तेजस्वी यादव की टीम को लग रहा है कि इस कांड को न्याय के लिए आगे ले जाने से पार्टी को कई तरीके से फायदा हो सकता है. तेजस्वी के रणनीतिकार यह मान रहे हैं कि नीतीश कुमार का सुशासन का दावा इस कांड से तार-तार हो सकता है. मामला चूंकि मासूम लड़कियों से जुड़ा है, इसलिए लड़कियों और महिलाओं को लेकर नीतीश कुमार की संजीदगी पर इस कांड के विरोध से प्रश्न चिन्ह लगेगा. लड़कियों और महिलाओं को लगेगा कि नीतीश कुमार केवल इनकी हिफाजत के झूठे वादे करते हैं. इनकी नाक के नीचे सालों साल यह दुष्कर्म होते रहा और नीतीश सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठे रही. इतना ही नहीं, मामले की रिपोर्ट आ जाने के बाद भी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. सरकार पर जब मीडिया से लेकर विपक्षी दलोें का दबाव बना तब जाकर कार्रवाई शुरू हुई और काफी देर से मामले को सीबीआई को सौंपा गया. तेजस्वी यादव का यह भी आरोप है कि मामले को काफी देर से सीबीआई को सौंपा गया, ताकि सारे सबूत मिटाए जा सकें.
निशाने पर नीतीश
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि तेजस्वी यादव इस बार ऐसे मुद्दे को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, जिनसे इन्हें दूरगामी फायदा हो सकता है. यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे लेकर आम जनता खासकर महिलओं के बीच काफी चर्चा है. चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि मासमू बच्चियों पर अत्याचार हो रहा था और सरकार सालों साल सोई रही. महिलाएं अब धीरे-धीरे यह महसूस करने लगी हैं कि बिना सरकार के कुछ मंत्रियों की मिलीभगत के, यह कांड होना संभव ही नहीं था. तेजस्वी यादव महिलाओं की इसी भावना को अपने पक्ष में करना चाहते थे. दिल्ली तक इस मामले को लेकर जाने के पीछे भी तेजस्वी यादव की रणनीति यह है कि देशभर के लोगोंे का ध्यान इस ओर खींचा जाए. तेजस्वी यादव चाहते हैं कि राजद की महिला विरोधी छवि को तोड़ा जाए और देश दुनिया को यह बताया जाए कि राजद अब बदल चुकी है और महिलओं के हितों के लिए वह आर-पार की लड़ाई लड़ने को भी तैयार है. जानकारों का कहना है कि तेजस्वी इस मामले को लेकर इसलिए भी ज्यादा आक्रमक हैं कि इसमें राजद के किसी नेता की भागीदारी अभी तक सामने नहीं आई है. मामला पूरी तरह एनडीए के नेताओं और नीतीश सरकार से जुड़े मंत्रियों से पटा हुआ है. इसलिए तेजस्वी के आरोप के तीर काफी तीखे हैं. यह अलग बात है कि इसके लिए मंत्री सुरेश शर्मा तेजस्वी यादव को कोर्ट का नोटिस भी भेज चुके हैं. लेकिन तेजस्वी यह बात जानते हैं कि यह ऐसा मुद्दा है, जिसका राजनीतिक लाभ अब केवल और केवल राजद को मिलना है. नीतीश कुमार की सुशासन की छवि को जितना इस कांड से तार-तार किया जाएगा, महिलाओं की सहानुभूति उतनी ही राजद से होगी. राजद की अभी तक जो महिला विरोधी छवि थी, उससे निजात पाने का एक सुनहरा अवसर तेजस्वी यादव को मिला है और इस मौके को वे हाथ से गंवाना नहीं चाहते हैं. सीबीआई जांच जैसे जैसे आगे बढ़ेगी, तेजस्वी यादव को नए-नए हथियार मिलते रहेंगे.
मुख्यमंत्री को राज्यपाल की चिट्ठी
नीतीश कुमार को लिखी गई राज्यपाल की चिट्ठी ने भी बिहार की सियासत को गर्म कर दिया है. बताया जा रहा है कि महामहिम इस मामले को लेकर काफी दुखी हैं. राजद विधायक भाई विरेंद्र कहते हैं कि अब कहने को क्या रह गया है. हमारी बच्चियों का सौदा हो रहा है और नीतीश कुमार की तथाकथित सुशासन की सरकार इसमें शामिल नजर आ रही है. क्या इसे ही सुशासन कहते हैं. मासूम और लाचार बच्चियों के साथ मुजफ्फरपुर में जो कुछ हुआ, उससे पूरे बिहार का सिर शर्म से झुक गया. यह निर्लज्ज सरकार दोषियों को सजा देने के बजाय उन्हें बचाने में लगी है. लेकिन राजद एक-एक बच्चियों को न्याय दिलाकर रहेगा. वे आगे कहते हैं कि नीतीश कुमार की सुशासन की पोल खुल गई है और आने वाले चुनावों में महिलाएं इसका मुंहतोड़ जबाव देगी. दरअसल, राजद यह मानकर चल रहा है कि इस मामले की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी बहुत सारे नए तथ्य सामने आएंगे जो नीतीश सरकार को घेरने में सहायक होंगे. पार्टी चाहती है कि लोकसभा चुनाव में इस मसले को जोर शोर से उठाया जाए, ताकि आधी आबादी को अपने पक्ष में किया जा सके. तेजस्वी यादव कहते हैं कि हम बैठने वाले नहीं हैं. वे कहते हैं कि नीतीश कुमार कहते हैं कि इस घटना ने बिहार को शर्मशार किया है, तो आखिर इसकी जिम्मेदारी वे क्यों नहीं लेते. केवल कह देने से जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती. हमारी लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक इस कांड की एक एक पीड़िता बच्चियों को न्याय नहीं मिल जाता.
अदालतों की नज़र में बेपर्दा होंगे कई राज़
मुजफ्फरपुर कांड पर देश की सर्वोच्च अदालत ने भी कड़ी नजर गड़ा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए बिहार व केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. इसके साथ ही कोर्ट ने घटना की रिपोर्टिंग पर मीडिया को संयम बरतने को कहा है. कोर्ट ने इलेक्ट्रानिक मीडिया में इंटरव्यू पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पीड़िता के दर्द को बार-बार ताजा नहीं किया जाना चाहिए. कोर्ट ने मीडिया को पीड़ितों का इंटरव्यू लेने और यहां तक कि धुंधली फोटो भी दिखाने से मना किया है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर व न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने घटना के बारे में पटना से आए एक पत्र पर स्वयं संज्ञान लिया. वकील अपर्णा भट्ट को सुनवाई में कोर्ट की मदद करने के लिए न्यायमित्र नियुक्त किया गया है.
गौरतलब है कि मुजफ्फरपुर के बालिका गृह में नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म की घटना का रहस्योद्घाटन टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस मुंबई की ऑडिट रिपोर्ट से हुआ था, जिसे इंस्टीट्यूट ने राज्य समाज कल्याण विभाग को दिया था. इस बालिका गृह को बृजेश ठाकुर का एनजीओ चला रहा था. एनजीओ को सरकार से आर्थिक मदद मिलती थी. इन मामले में गत मई में बृजेश ठाकुर सहित 11 लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज हुई थी. बिहार सरकार ने फिलहाल मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी है और सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है.
मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड की जांच में समाज कल्याण विभाग की परतें भी खुलने लगी हैं. समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद ने स्वीकार किया है कि मामले की गंभीरता का अंदाजा उन्हें भी नहीं था. इस बीच, विभाग के निदेशक राजकुमार ने ब्रजेश के एनजीओ से संबंधित कागजात सीबीआई को उपलब्ध करा दिए हैं. सीबीआई अधिकारियों ने विभाग के निदेशक राजकुमार से करीब एक घंटे तक पूछताछ भी की. सीबीआई सूत्रों ने बताया कि विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों की पड़ताल शुरू कर दी गई है. ये वे दस्तावेज हैं, जिसमें ब्रजेश के एनजीओ संकल्प सेवा व विकास समिति के साथ विभाग ने बालिका गृह व स्वाधार गृह जैसे शेल्टर होम के संचालन को लेकर एकरारनामा किया था.
साथ ही सीबीआई को विभाग ने इन अधिकारियों व कर्मचारियों की सूची भी उपलब्ध कराई है, जिनके कंधों पर नाबालिग बच्चियों के रहने के लिए मुजफ्फरपुर बालिका गृह व महिलाओं के लिए संचालित स्वाधार गृह की मॉनीटरिग की जिम्मेदारी थी. सीबीआइ को दिए गए दस्तावेजों में पिछले पांच वर्षो के दौरान ब्रजेश के एनजीओ को उपलब्ध कराई गई धनराशि का ब्योरा भी है. विभाग ने सीबीआइ को वो दस्तावेज भी उपलब्ध कराए हैं, जिससे पता चलता है कि ब्रजेश के दोनों शेल्टर होम का कब-कब और किसने निरीक्षण किया है. इधर बिहार सरकार ने घोषणा की है कि इस कांड की सीबीआई जांच हाईकोर्ट की निगरानी में होगी.