‘किलडोनन केसल’ नामक जहाज पर सागर के बीच ‘हिंद स्वराज्य’ का जन्म हुआ ! इस प्रवास की अवधि में गांधीजी ने बेहद काम किया ! जहाज पर से ही मगनलाल गांधी को लिखे पत्र में वे लिखते हैं ‘इस बार स्टीमर पर मैंने जो काम किया उसकी कोई हद नहीं’ जहाज पर ही गांधीजी ने संपूर्ण’ हिंद स्वराज्य’ पुस्तक लिखी ! टालस्टाय के पत्र’ एक हिंदू के नाम पत्र ‘का गुजराती अनुवाद किया उसकी अंग्रेजी और गुजराती में प्रस्तावना लिखीं और कुछ पत्र भी लिखे! दाहिने हाथ से लिखते – लिखते थक जाते तो बांये हाथ से लिखने लगते ! गांधीजी के हस्ताक्षरों में एक ‘हिंद स्वराज्य ‘की प्रति प्रकाशित हुई है, उसमें भी कई स्थानों पर उन्होंने बांये हाथ से लिखा हुआ है ! दाहिने हाथ से लिखा हुआ अगर देखते हैं तो अंदाज आता है कि वह कितनी तिव्र गति से लिखा गया होगा !
‘हिंद स्वराज्य’ 13 से 22 नवंबर, 1909 के बीच के एकमात्र दस दिन की अवधि में ही लिखा गया ! 22 नवंबर को अंत में गांधीजी ने उसकी प्रस्तावना लिख डाली ! दक्षिण अफ्रीका पहुंचकर ‘इंडियन ओपिनियन’ के 11 दिसंबर के अंक में पहले बारह अध्याय तथा 18 दिसंबर के अंक में शेष 8 अध्याय लेखमाला के रूप में प्रकाशित किया हुए! यह लेखमाला पाठकों को बहुत पसंद आई, अतः तुरंत ही 1910 के जनवरी में इसे पुस्तकाकार प्रकाशित किया गया ! उसे भारत भी भेजा गया ! मार्च 1910 में मुंबई सरकारने इस पुस्तक को जप्त किया !
‘हिंद स्वराज्य’ के विचार शीघ्रताशीघ्र सर्वत्र फैले इसके लिए गांधीजी बहुत उत्सुक थे ! मुल पुस्तक तो गुजराती में थी ! अतः अपने जर्मन मित्र पोलाक के लिए उसका अंग्रेजी अनुवाद थोड़ा – थोड़ा समय बचाकर उन्होंने लिखवाया और श्री पोलाक ने उसे लिख लिया ! मुंबई सरकारने’ हिंद स्वराज्य’ जप्त की है ऐसे समाचार मिलते ही ‘एक क्षण की देर किए बगैर’ गांधीजी ने 20 मार्च को अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित भी करवा दिया ! गांधीजी ने लिखा ‘मेरे अंग्रेज मित्रों को इस पुस्तक में व्यक्त विचारों से अवगत कराना यह मेरा उनके प्रति कर्तव्य है !’
4 अप्रैल को ‘एक नम्र अनुयायी ‘के तौर पर गांधीजी ने इस पुस्तक की प्रति टालस्टाय को भेजी और साथ में पत्र लिखा ! उसके जवाब में 9 मई को टालस्टाय ने लिखा ” मै आपकी पुस्तक रसपूर्वक पढ गया ! क्योंकि मैं मानता हूं कि उसमें चर्चित विषय – सत्याग्रह, यह हिंदुस्तान के लिए ही नहीं, परंतु संपूर्ण मनुष्य जाति के लिए सबसे महत्व का है ! मैं आपकी पुस्तक को बहुत मुल्यवान मानता हूँ !
गुजराती ‘हिंद स्वराज्य’ की दूसरी आवृत्ति भी दक्षिण अफ्रीका में मई 1914 में प्रकाशित हुई ! उसकी प्रस्तावना में गांधीजी ने लिखा, “इन विचारों को प्रकट हुए करीब पांच वर्ष हुए ! इस अवधि में इस पुस्तक के विचारों के बारे में मेरे साथ अनेक लोगों ने चर्चा की है ! अंग्रेज और भारतीय व्यक्तियों ने मेरे साथ पत्र – व्यवहार किया है ! अनेकों ने मतभेद बताये हैं ! इस सबके बावजूद मैंने जो विचार इसमें रखे हैं, वे परीणामस्वरुप और अधिक दृढ बने हैं ! मुझे अगर समय मिले तो मै वे ही विचार और अधिक उदाहरणों एवं तर्कों के साथ अधिक विस्तार से लिख सकता हूँ ! उन विचारों में कोई बदल करने का मुझे नहीं लगता !
वास्तव में देखे तो यह मनुष्य ए की मनुष्यता का ही अपमान था, उसकी निलामी थी !यह तो ऐसा ही था जैसे नमक ही अपना खारापन खो बैठे ! मनुष्य जैसा बुद्धिमान और जागृत प्राणी अगर नीति- अनीती का विचार नहीं करेगा, तो कौन करेगा ? मनुष्य की असली मनुष्यता इसीमें तो है ! – महात्मा गाँधी, हिंद स्वराज्य
गांधी जी को आधुनिक सभ्यता स्विकार नही थी, क्योंकि यह उनके मूल दर्शन से बिल्कुल विपरीत है ! वे इसे जड – मूल से बदलना चाहते है ! इस दृष्टि से गांधीजी की क्रांति की दृष्टि एकदम अनुठी है ! पश्चिम के एक कवि – साहित्यकार फासोटे ने इस बात की तरफ ध्यान खींचा है :
” यदि जीवन का रचनात्मक उद्देश्य सिध्द करना हो तो हम सबके भितर एक सच्चि बुनियादी क्रांति की श्रेष्ठ आधुनिक मार्गदर्शिकाओ में से एक है !”
यही बात जोराल्ड हर्ड ने अधिक स्पष्ट रूप से बताईं है , ” कुछ पुस्तकें मात्र पुस्तक ही नही होती , परंतु महान कुदरती घटनाओं जैसी होती है ! ” हिंद स्वराज्य ऐसी ही एक पुस्तक है !ऐसी पुस्तके जो बात कहती है, वह तो महत्व की होती ही है, परंतु उससे ज्यादा महत्व का वे जो करती है, वह है रुसो की ‘सोशल कॉन्ट्रॅक्ट’ ऐसी ही ऐसी ही एक पुस्तक थी! ऐसी ही दुसरी पुस्तक थी ‘कार्ल मार्क्स की ‘ दास कॅपिटल ‘! इतने पर भी’ हिंद स्वराज्य’ इन दोनों से बढकर है ! उपर की दो पुस्तके यूरोप के क्रांतिकारी जमाने में राजकीय एवं आर्थिक दृष्टि से प्रेरणादायी बनी !’ हिंद स्वराज्य इस दृष्टि से विशेष है कि वह एक युग के अंत की सूचक ही नहीं परंतु एक नये युग की, एक नयी व्यवस्था की आरंभ – स्वरूप पुस्तक है ! उपर की दो पुस्तकें पश्चिम के मनुष्य के विकसित होते जा रहे आत्म – बोध की प्रतीक थी ! वहां का मानव सभी बंधनों से मुक्ति चार चाहता था उस मुक्ति को प्राप्त करने के लिए हिंसा का ही सहारा लिया ! जिस हिंसा के द्वारा उसे बंधन में डाला गया था, उसी हिंसा का सहारा लेकर उसने अपने बंधन तोड़कर, अन्य को बंधन में डाल दियाय! परिणामस्वरूप, ऐसी क्रांतियों में से अनिवार्य रूप से प्रतिक्रांतिया पैदा हुई हर एक क्रांतिकारी को सबसे पहला पाठ ग्रहण करना है वह है – ‘तत त्त्वं असि ‘! पश्चिम के क्रांतिकारियों ने इस सत्य की उपेक्षा की ! परिणामस्वरूप, इतने अधिक कष्ट सहन करने के पश्चात राजगद्दी पर दुसरे अत्याचारी शासक बैठ गये ! इस सत्य को आत्मसात करके गांधी एक नई दिशा बतलाता है ! शुद्ध साधनों से ही शुद्ध साध्य प्राप्त हो सकेगा ! अशुद्ध साधनों से अनिष्ट परिणाम ही आयेगा – – – अहिंसा हमारे समक्ष एक नई राह दिखाती रही है! उसे अगर हम साकार कर सके तो दुनिया इस नये युग के पथ-प्रदर्शक के रूप में गांधी को हमेशा याद करेगी! – – – गांधी के प्रयोग में सारी दुनिया को रुचि है और उसका महत्व युग – युग तक कायम रहने वाला है !
इस तरह, ‘हिंद स्वराज्य’ एक युगप्रवर्तक पुस्तक है ! नये युग की उद्घोषणा करने वाली पुस्तक है ! इसमें एक नया जीवन दर्शन है ! वह व्यक्ति और समाज के जीवन में एक अमुलाग्र क्रांति लाना चाहती है ! यह पुस्तक जब लिखी गई तब नई औद्योगिक सभ्यता का सर्वत्र बोलबाला था ! भौतिक विज्ञान की नित नई खोजो ने मनुष्य को चकाचौंध कर दिया है, तथा प्रगति की जोर – जोर से होने वाली घोषणाओं से उसके कान बहरे हो गए हैं ! भौतिकवादी सभ्यता का घोड़ा सर्वत्र दिग्विजयी हो रहा था ! परंतु गांधीजी ने इस तडखभडक एवं शोरगुल के अंतर को समझ सके थे ! यह भौतिकवादी औद्योगिक सभ्यता मनुष्य जाति को समाप्त कर रही है, तथा उसका बेहिसाब नुकसान कर रही है, ऐसा एक आर्ष दर्शन गांधीजी का था और वही पूरी ताकत से ‘हिंद स्वराज्य’ में प्रकट हुआ है !
मार्क्स ने भी इस सभ्यता की मार्मिक समीक्षा की है ! इस सभ्यता के कारण बढती जा रही अमानवीयता ( डी – ह्युमेनाईजेशन ) तथा परायेपन ( एलिनिएशन ) का बहुत सटीक विश्लेषण भी किया है ! इतना होने पर भी इस सभ्यता के रोग की जड वह नहीं पकड़ पाए ! तत्कालीन भौतिकवादी सिद्धांतों से मार्क्स अपने को मुक्त नही कर पाए ! उसने पुंजीवाद एवं साम्राज्यवाद की जोरदार आलोचना अवश्य की, परंतु नई औद्योगिक सभ्यता को वह समाज का सर्वोन्नत स्वरूप ही मानता रहा ! उसके विचार में आधुनिक औद्योगिक सभ्यता मनुष्य जाति की प्रगति की प्रतिक थी ! औद्योगिक सभ्यता से मनुष्य – जाती भौतिक, बौद्धिक, नैतिक पूर्णता हासिल करेगी और उसमे मशीने तथा यंत्रविज्ञान का विशेष योगदान होगा ऐसी मार्क्स की श्रध्दा थी !
आज इतने वर्षों के पश्चात मार्क्स की श्रद्धा कितनी उल्टी थी यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है ! गांधीजी इस सभ्यता के रोग के मूल को पकड सके थे और उसकी जड में रही हुईं भौतिकवादी विचारधारा को उन्होंने चुनौती दी ! ‘हिंद स्वराज्य’ इस सभ्यता के समक्ष एक बुलंद चुनौती की पुस्तक है, और है एक आमुलाग्र क्रांती द्वारा नये युग का निर्माण करने का आवाहन !