2019 में होने वाले लोकसभा और 2020 के विधानसभा चुनाव को लेकर सजने वाले राजनीतिक चौपाल में आमजनों के बीच केंद्र व राज्य सरकार के कार्यों पर गंभीर मंत्रणा जारी है. बिहार में हुए राजनीतिक उठापटक के साथ-साथ शराबबंदी, बाल विवाह पर रोक और दहेज प्रथा के खात्मे के लिए सरकार द्वारा कमर कसना भी चर्चा के केंद्र में है. भारत-नेपाल सीमा से सटे सीतामढ़ी जिले के कुल 8 विधानसभा सीटो में से 4 पर जदयू का कब्जा रहा है. लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव के समय बिहार में महागठबंधन की खातिर जदयू को महज दो ही सीटों पर संतोष करना पड़ा था. महागठबंधन की खातिर जदयू को रून्नीसैदपुर व सुरसंड विधानसभा सीटों की कुर्बानी देनी पड़ी थी. लेकिन वर्तमान हालात पर गौर करें, तो इन दोनों सीटों पर फिर से जदयू मजबूत स्थिति में दिख रही है. अगर एनडीए गठबंधन के साथ 2005 की तर्ज पर 2020 का विधानसभा चुनाव हुआ, तो जिले का सियासी समीकरण बदल सकता है.
जिले के 8 में से 4 विधानसभा सीटों रून्नीसैदपुर, बाजपट्टी, सुरसंड व बेलसंड पर नजर डालें, तो बहुत कुछ समझा जा सकता है. रून्नीसैदपुर विधानसभा सीट से 2005 में पहली बार जदयू की टिकट पर गुड्डी देवी निर्वाचित हुई थीं. 2010 में भी वे चुनी गईं.
लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की खातिर जदयू को यह सीट राजद के कोटे में देनी पड़ी और यहां से पूर्व विधायक स्व भोला राय की पुत्रवधू मंगीता देवी को चुनाव में उतारा गया. मंगीता देवी एनडीए के रालोसपा प्रत्याशी पंकज मिश्रा को हराकर विधानसभा पहुंचीं. टिकट कटने से आहत पूर्व विधायक गुड्डी देवी ने भी सपा से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें तीसरा स्थान मिल सका. हालांकि चर्चा इस बात की भी हुई थी कि गुड्डी देवी अगर निर्दलीय चुनाव लड़तीं, तो संभव था कि चुनाव परिणाम उनके पक्ष में होता. हालांकि आधा समय गुजरने के बाद महागठबंधन में आई दरार ने लोगों की तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया है और क्षेत्र की समस्या भी पूर्ववत ही है. बागमती तटबंध से विस्थापित परिवारों का मसला हो, अथवा कालाजर से निजात का, सरकार प्रायोजित योजनाओं के क्रियान्वयन की बात हो या फिर बाढ़ राहत की, आम लोग अब आगामी चुनाव के दिन गिनने में लग गए हैं. अब चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, क्षेत्र में संभावित प्रत्याशियों की चहल-पहल बढ़ गई है. राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चा पर यकीन करें, तो 2015 के विधानसभा चुनाव में बागी तेवर अख्तियार करने वाली पूर्व विधायक गुड्डी देवी ने फिर से जदयू का दामन थामने के संकेत दिए हैं. चर्चा यह भी है कि वे इसी साल दिसंबर महीने में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के समक्ष जदयू का झंडा थामेंगी.
बाजपट्टी विधानसभा सीट पर तो जदयू का कब्जा है, लेकिन रालोसपा की प्रत्याशी रही रेखा गुप्ता वर्तमान विधायक डॉ रंजूगीता को हराने के लिए अभी से जोर-आजमाइश में लग गई हैं. स्थानीय स्तर पर राजनीति का गुणा भाग करने वालों की मानें, तो आगामी चुनाव में अगर किसी नए चेहरे को टिकट नहीं दिया गया, तो जदयू को नुकसान हो सकता है. तर्क यह दिया जा रहा है कि अघवारा तटबंध निर्माण के दौरान क्षेत्र के सैकड़ों किसानों को लाखों का नुकसान उठाना पड़ा था, लेकिन स्थानीय विधायक की तरफ से उक्त मामले में संतोषजनक प्रयास नहीं किया गया.
सुरसंड विधानसभा क्षेत्र की बात करें, तो पूर्व मंत्री शाहिद अली खान के दलबदल की राजनीति के बाद महागठबंधन के तहत इस सीट को राजद के पाले में डालकर सैयद अबुदोजाना को मौका दिया गया था और उन्होंने जीत भी दर्ज की. लेकिन स्थानीय लोग इस क्षेत्र से नए उर्जावान जदयू प्रत्याशी की तलाश में हैं. इधर बेलसंड विधानसभा सीट से जदयू की टिकट पर सुनीता सिंह चौहान लगातार दूसरी बार जीत हासिल करने में सफल रही हैं. क्षेत्र में विकास कार्य की कमान उनके पति राणा रणधीर सिंह चौहान बतौर प्रतिनिधि संभाल रहे हैं. इस क्षेत्र को जल्दबाजी में बिहार का पहला खुले में शौच से मुक्त अनुमंडल घोषित कर दिया गया, लेकिन जमीनी हकीकत उससे अलग है. यहां सरकार प्रायोजित योजनाओं में घपलेबाजी भी थमने का नाम नहीं ले रही है. बताते चलें कि इस संबंध में ‘चौथी दुनिया’ ने ‘अधूरा है स्वच्छ बेलसंड का दावा’ शीर्षक से एक खबर भी प्रकाशित की थी, जिसमें कार्ययोजना के प्रति प्रशासनिक व पंचायत स्तर पर हो रही लापरवाही की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया गया था.
इधर एक साल के अंदर ही बेलसंड अनुमंडल क्षेत्र में शौचालय निर्माण में तकरीबन 25.80 लाख रुपए की फर्जी निकासी का एक मामला सामने आ गया. बेलसंड के पूर्व मुख्य पार्षद नागेंद्र झा ने इस मामले की जांच आलाधिकारियों से कराने की मांग की है. अब मामले की जांच मुकाम तक पहुंचती है अथवा नहीं कहा नहीं जा सकता. लेकिन इतना तो साफ है कि सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. लोगों का कहना है कि सरकार का तंत्र ही अगर जनभावना को आहत करता रहेगा, तो आखिर लोग जाएंगे कहां? सरकारी स्तर पर भी प्रशासनिक लापरवाही को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और वाजिब हकदारों को सरकार प्रायोजित योजना का लाभ दिलाने की दिशा में पहल की जानी चाहिए.प