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उत्तर प्रदेश सरकार के विमान और हेलीकॉप्टरों की शाहंशाहाना उड़ानों, मेला-महोत्सवों में टैक्सी की तरह अतिथियों को ढोने और विमानों को बेवकूफाना तरीके से उड़ा कर क्षतिग्रस्त करने की तमाम खबरें-शिकायतें आपने सुनी होंगी. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के विमानों का इस्तेमाल अपने ही देश के खिलाफ जासूसी के लिए होता हो, सरकारी विमानों से संदेहास्पद महिलाओं का आना-जाना होता हो, विदेशी महिलाओं को हेलीकॉप्टर से सीमा पार कराया जाता हो और इन घटनाओं को लेकर सरकार आधिकारिक तौर पर झूठी सूचना दर्ज कराती हो, यह आम तौर पर नहीं सुना जाता. लेकिन आप सुन लें, यह उत्तर प्रदेश की सरकारी-वैमानिकी की असलियत है.

अदालत में जाने के पहले उत्तर प्रदेश सरकार और नागरिक उड्‌डयन महानिदेशालय के समक्ष जो गंभीर शिकायत आई थी, सरकार ने उसका संज्ञान नहीं लिया, फिर अदालत ने भी संज्ञान नहीं लिया. हम उसका संज्ञान लेते चलें. शिकायत थी कि सरकारी विमान से कानपुर के संवेदनशील सैन्य क्षेत्र की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई.

इस वीडियो रिकॉर्डिंग के पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम करने वाले तत्व शरीक थे. उड्‌डयन निदेशालय के फोन से लगातार पाकिस्तान कॉल्स होते रहे और बातें होती रहीं. पाकिस्तान के टेलीफोन नम्बर्स भी दिए गए थे, जहां-जहां उड्‌डयन निदेशालय के दफ्तर से कॉल्स किए जाते थे. लॉग बुक में औपचारिक इंट्री किए बगैर संदेहास्पद महिलाओं को विमान द्वारा लखनऊ लाया गया और दिल्ली ले जाया गया. बाद में लॉग बुक फर्जी तरीके से भर दिया गया.

संदर्भित उड़ान वाले दिन की खाली लॉग बुक की प्रति और बाद में भरे हुए लॉग बुक की प्रतिलिपि भी विभाग को दी गई थी. डॉल्फिन हेलीकॉप्टर से एक अज्ञात विदेशी महिला को नेपाल सीमा तक पहुंचाया गया और विमानों की खरीद में विदेशी कम्पनी के साथ मिल कर खूब घोटाला किया गया. ये सारी बातें सरकार को और बाद में अदालत को बताई गई थीं.

इन शिकायतों के परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश सरकार ने बाकायदा यह कह दिया कि जांच कमेटी गठित हुई, जांच हुई और शिकायतें फर्जी पाई गईं. लेकिन सच यह है कि सरकार का यह बयान ही फर्जी है. सरकार अपना ही झूठ भूल गई और सच सरकार के जरिए ही उद्घाटित हो गया. उड्‌डयन निदेशालय से उड़ान से सम्बन्धित ‘ऑथोराइजेशन रजिस्टर’ मांगा गया तो विभाग ने पहले तो आनाकानी की फिर बाद में कह दिया कि रजिस्टर देवेंद्र कुमार दीक्षित ने गायब कर दिया. विभाग ने कहा कि इसपर दीक्षित के खिलाफ कानपुर के छावनी (कैंट) थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी. जबकि इस बारे में पूछने पर छावनी थाने का आधिकारिक जवाब आया है कि देवेंद्र कुमार दीक्षित के खिलाफ कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं है.

अब जबकि सरकार का झूठ खुद ब खुद सामने आ गया तो यह सवाल भी सामने आया कि इतनी गम्भीर शिकायतों को छिपाने या दबाने की प्रदेश सरकार ने कोशिश क्यों की? राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में कहीं बड़े नेता और बड़े नौकरशाह तो शामिल नहीं? जब शिकायतों की जांच ही नहीं हुई तो शिकायतें बेबुनियाद बता कर खारिज कैसे की जा सकती हैं? शिकायतों में दम है कि उत्तर प्रदेश सरकार के विमानों का बेजा इस्तेमाल होता रहा है. चाहे वे राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के लिए होता रहा हो या ऐशो-आराम के लिए. उत्तर प्रदेश सरकार ने औपचारिक रूप से कहा था कि इन शिकायतों की बाकायदा तीन सदस्यीय जांच समिति ने छानबीन की और उसे निराधार पाया. लेकिन कुछ ही अंतराल के बाद सरकार अपना ही जवाब भूल गई. जब दोबारा सरकार से उन शिकायतों का हवाला देते हुए जांच समिति गठित होने का ब्यौरा मांगा गया तो सरकार ने सीधे कहा कि इन शिकायतों की जांच के लिए कोई समिति गठित नहीं की गई थी. लिहाजा, सरकार के इस जवाब से वे सारे सवाल आधारहीन साबित हो गए कि किसके आदेश से जांच समिति गठित हुई,समिति के अध्यक्ष और सदस्य कौन थे और जांच की रिपोर्ट क्या है, वगैरह-वगैरह.

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