नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी अब अपने आप को भगवान भरोसे छोड़ दिए हैं. जो समृद्ध हैं वे बच्चों की पढ़ाई के नाम पर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. नक्सल हिंसा से सबसे ज्यादा त्रस्त है मगध क्षेत्र. कारण यह है कि मगध के गया, औरंगाबाद और नवादा जिले झारखंड की सीमा से लगे हैं. सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण दोनों राज्यों के नक्सली एक-दूसरे के क्षेत्र में घुसकर घटनाओं को अंजाम देने के बाद भाग जाते हैं. दोनो राज्यों की पुलिस में आपसी ताल-मेल का अभाव भी नक्सलियों के लिए राहत की बात होती है. अर्द्धसैनिक बलों को नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई में कई बार स्थानीय पुलिस का सकारात्मक सहयोग नहीं मिल पाता है.

naxaliबिहार में नक्सली हिंसा को रोकने के लिए प्रति महीने अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन बिहार के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली संगठन हिंसक घटनाओं को अंजाम देने में सफल होते जा रहे हैं. लेवी के लिए नक्सली विकास कार्यों को बाधित कर रहे हैं. यही कारण है कि नक्सलियों के प्रभाव वाले जिलों में तमाम प्रयासों के बाद भी विकास रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी अब अपने आप को भगवान भरोसे छोड़ दिए हैं. जो समृद्ध हैं वे बच्चों की पढ़ाई के नाम पर धीरे-धीरे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. नक्सल हिंसा से सबसे ज्यादा त्रस्त है मगध क्षेत्र. कारण यह है कि मगध के गया, औरंगाबाद और नवादा जैसे जिले झारखंड की सीमा से लगे हैं.

सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण दोनों राज्यों के नक्सली एक-दूसरे के क्षेत्र में घुसकर घटनाओं को अंजाम देने के बाद भाग जाते हैं. दोनो राज्यों की पुलिस में आपसी ताल-मेल का अभाव भी नक्सलियों के लिए राहत की बात होती है. अर्द्धसैनिक बलों को नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई में कई बार स्थानीय पुलिस का सकारात्मक सहयोग नहीं मिल पाता है. चूंकि स्थानीय पुलिस का गांव-गांव तक सम्पर्क होता है, हर गांव में चौकीदार होते हैं, जो पूरे क्षेत्र की जानकारी रखते हैं. अगर उनका पूरा सहयोग अर्द्धसैनिक बलों को मिले, तो नक्सलियों के विरूद्ध ऑपरेशन चलाने में बड़ी सफलता मिल सकती है.

बीते साल के नवम्बर और दिसम्बर महीनों में ही नक्सलियों ने मगध क्षेत्र में करीब दर्जन भर हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया. झारखंड की सीमा से लगे गया जिले के इमामगंज विधानसभा क्षेत्र के बांकेबाजार में पीएलएफआई ने 18 दिसम्बर 2017 को लेवी नहीं मिलने के कारण एक ईंट भट्‌ठे के ट्रैक्टर को फूंक दिया. जीटी रोड से लगे गया जिले के शेरघाटी अनुमंडल क्षेत्र से तो एक महीने के अंदर ही करीब आधा दर्जन नक्सली घटनाओं की खबर आई.

24 नवम्बर 2017 से लेकर 28 दिसम्बर 2017 तक नक्सलियों के विभिन्न संगठनों ने लेवी के रूप में करीब दो करोड़ रुपए की मांग की और नहीं मिलने पर हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया. जीटी रोड से लगे आमस थाना क्षेत्र के डुमरी नाला जंगल में नक्सलियों ने 27 आईडी बम लगा रखे थे, लेकिन समय रहते सुरक्षा बलों को उनकी भनक लग गई और सभी बरामद बमों को निष्क्रिय कर दिया गया. आमस थाना क्षेत्र के महुआवा गांव के समीप हल्दीया गैस पाईप लाईन बिछा रही गेल कम्पनी के बेस कैम्प पर 24 नवम्बर 2017 की रात्रि नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के हथियार बंद दस्ते ने लेवी की मांग को लेकर हमला किया.

इसी रात्रि नक्सली संगठन आरसीसी ने लेवी की मांग को लेकर रोशनगंज में नहर खुदाई में लगे एक फोकलेन को आग के हवाले कर दिया. इसी दिन इमामगंज थाना क्षेत्र की एक आरा मशीन भी नक्सल हिंसा की भेंट चढ़ गई. 25 दिसम्बर 2017 को बांकेबाजार थाना के डोगिला गांव के समीप पीएलएफआई के नक्सलियों ने लेवी की मांग को लेकर एक ईट भट्‌ठे पर धावा बोला और वहां काम कर रहे मजदूरों की पीटाई कर पास में खड़े एक ट्रैक्टर में आग लगा दी. ईंट भट्‌ठे के मालिक उमेश पासवान ने बताया कि नक्सलियों ने पांच लाख की लेवी मांगी थी.

इस घटना के 2 दिन बाद ही, इमामगंज प्रखंड के कोठी थाना क्षेत्र के बाहा-बघौता मोरहर नदी पर हो रहे पुल निर्माण कार्य को आरसीसी नक्सलियों ने बंद करा दिया. नक्सलियों ने वहां काम कर रहे मजदूरों को धमकी भी दी कि बिना हमारे आदेश के काम पर आए तो अंजाम बुरा होगा. इसी दिन टिकारी अनुमंडल क्षेत्र के मुडेरा गांव के किनारे नेरा नदी पर पुल निर्माण कार्य में लगी कम्पनी से नक्सलियों ने लेवी की मांग की और लेवी नहीं दिए जाने तक काम बंद रखने की बात कही.

मगध का औरंगाबाद जिला भी नक्सल हिंसा से भयाक्रांत है. औरंगाबाद के मदनुपर थाना क्षेत्र के तिलैया गांव के पास सड़क निर्माण कार्य में लगी एक जेसीबी और तीन ट्रैक्टरों को नक्सलियों ने आग के हवाले कर दिया. इसी तरह, नवाडीह गांव में नक्सलियों ने लेवी की मांग को लेकर सड़क निर्माण में लगी जेसीबी और ट्रैक्टर में आग लगा दी. लेवी की मांग को लेकर हुई नक्सल हिंसा के कारण मगध क्षेत्र में करीब दो दर्जन से अधिक छोटे-बड़े विकास कार्य बंद पड़े हैं. इन घटनाओं से ग्रामीणों में भी दहशत व्याप्त है.

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