महाकाल की नगरी में वो दहाड़े, मार दूंगा, काट दूंगा, गाड़ दूंगा…! इधर राजधानी के पास मौजूद(जो कभी-कभार ही रहती हैं) विवाद एक्सपर्ट भी बोलीं, जिसको जो करना है, करने दो…! प्रदेश की कमर्शियल कैपीटल से बुजुर्ग मोहतरमा ने कहा कि हठधर्मिता से कुछ नहीं होगा, धैर्य रखा जाना चाहिए…! प्रदेश राजधानी में बैठे मठाधीशों ने भी कर्जों से दबे किसानों-भूमिहीनों को तसल्ली का डोज दिया है…!
मारने, काटने, कुचलने, गाड़ने, जमीन में धंसाने की बकलोली कब तक चलेगी सरकार…! सीधी में जो हुआ और पूरे सूबे में जो हो रहा है, उसकी तरफ सिर्फ शब्द उछाल देने से कुछ नहीं होगा…! धमकाना काम नहीं आ रहा है, जिसको जो करना है, वह वही कर रहा है…! न डर है, न खौफ और न किसी सजा से कोई भयभीत है…! बेटियां, बहनें असुरक्षित थीं, अब खौफजदा रहने लगी हैं…! बोलवचन से बाहर आकर कुछ जमीनी हो जाए, तो आपका बार-बार आना सार्थक हो, लोगों का आप पर विश्वास जताना जायज हो जाए…!
एक हत्यारे को आदर्श मानकर अपनी बात को आगे बढ़ाने वाली महोदया को अपनी ही पार्टी से तवज्जो है न उस शहर से जहां से उन्हें माननीय चुना गया है, पास-पड़ोस के गांवों में जाकर अपना परचम फहराते रहने से कुछ नहीं होने वाला है, जो गलत है, वह हमेशा गलत ही रहेगा, बोल वचन करके उसे दुरुस्त करार नहीं दिया जा सकता…! बुजुर्ग मोहतरमा की हठधर्मिता की सीख सिर्फ खेतिहर और धरती का सीना चीरने वालों के लिए ही क्यों…!
सलाह उनको भी दी जा सकती है, जो हठधर्मिता के तौर दो महीने के हो चले किसान आंदोलन को रोक पाने के लिए कुछ कदम आगे रखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं…! कर्जों से बचाने और साहूकारों के जुल्मों से बचाने वाले नियम बनाने वाले और दूर बैठे किसानों को यहां की खुशहाली दिखाने के प्रयास करने वालों ने कभी ये नहीं सोचा है कि जुल्म करने वाले महज साहूकार नहीं, बड़े सरकारी एजेंट भी हैं, जो लोगों को छोटी-छोटी रकम के लिए जान देने पर मजबूर कर देते हैं…! बोल वचन के ये कड़वे दिन अब खत्म हो जाएं और सुख-शांति के धरातल पर होने वाले काम सामने आ जाएं तो आपका रहना और हमारा बसे रहना सार्थक हो जाए…!
पुछल्ला
बचों को बचा पाना भी जरूरी है
बागियों को सजा सुनाई का दिन था। पुरानी सियासी पार्टी के लोग जुट भी बैठे। फिर कार्यवाही का प्रोग्राम फिट्टस। जिन्होंने दगा देकर बाहर जाना था चले गए। जो रुककर बेवफाई किए जा रहे हैं, उनकी जान बख्श दी गई। माफी की वजह शायद ये रही हो कि इनती गिनती के जो चंद लोग बचे हैं, उन्हें भी बाहर कर दिया तो अंदर बचेगा कौन?
खान अशु