समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठमंत्री शिवपाल यादव ने अपने आईएएस दामाद अजय यादव का कैडर बदलवाने के लिए जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी और जिस तरह केंद्र सरकार ने सारे नियम-कानून ताक पर रख कर इस सिफारिश को मंजूरी दे दी, उससे यह साबित हुआ कि राजनीतिक दलों का बाहरी और अंदरूनी चेहरा दोनों एक-दूसरे के विपरीत है. सार्वजनिक मंचों पर भाजपा को कोसते रहने वाले शिवपाल यादव ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए भाजपा सरकार से सिफारिश करने में कोई संकोच नहीं किया और भाजपा सरकार ने भी कायदा-कानून तोड़ कर उन्हें उपकृत करने से संकोच नहीं किया. तमिलनाडु कैडर के आईएएस अफसर अजय यादव को उत्तर प्रदेश कैडर में बदलने की केंद्र सरकार की मंजूरी और राजनीतिक दलों का चरित्र उत्तर प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है.
सपा नेता और प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लिखित मदद मांगी थी और अपने दामाद अजय यादव के कैडर परिवर्तन के लिए उन्हें चिट्ठी लिखी थी. केंद्र सरकार की नियुक्ति कमेटी ने शिवपाल को उपकृत करने के लिए कार्मिक मंत्रालय की तीन-तीन आपत्तियों को ताक पर रखते हुए इस सिफारिश को मंजूरी दे दी. अजय यादव उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के जिलाधिकारी हैं. अजय 2010 बैच के आईएएस हैं. लेकिन उनका मूल कैडर तमिलनाडु है. पिछले साल 28 अक्टूबर में केंद्र सरकार ने अजय यादव को तीन साल के लिए उत्तर प्रदेश में प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) दी थी. इस तैनाती को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली अपॉइंटमेंट कमेटी ऑफ कैबिनेट (एसीसी) ने बाकायदा अपनी मंजूरी दी थी. नियम यह है कि ऐसी अर्जियां पहले कार्मिक मंत्रालय जाती हैं, वहां से हरी झंडी मिलने के बाद ही वह आखिरी मंजूरी के लिए एसीसी के पास जाती हैं. लेकिन शिवपाल के दामाद की अर्जी का प्रभाव यह था कि कार्मिक मंत्रालय द्वारा तीन-तीन बार खारिज कर दिए जाने के बावजूद उसे पास कर दिया गया. इस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल यादव को मदद देने के लिए अपने ही मंत्रालय की अनदेखी कर दी. तमिलनाडु कैडर के आईएएस अफसर अजय यादव ने बच्चे की बीमारी और मां की देखरेख की मजबूरी बता कर कैडर परिवर्तन की अर्जी दी थी, लेकिन कार्मिक मंत्रालय ने इसे वाजिब वजह नहीं माना था. मंत्रालय ने लिखा था कि प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) के लिए जो वजह बताई गई है वह अत्यंत साधारण है और निर्धारित नियमों और प्रावधानों के तहत इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती. कार्मिक मंत्रालय ने मई 2015 में ही इस अर्जी को नामंजूर कर दिया था. मंत्रालय का यह भी कहना था कि प्रतिनियुक्ति के लिए न्यूनतम नौ साल मूल कैडर में सेवा अनिवार्य है. अजय यादव इस शर्त को पूरा नहीं करते थे. कार्मिक मंत्रालय ने अजय यादव की दूसरी अर्जी को भी निर्धारित नियमावली की नत्थी लगा कर वापस कर दिया था. इसके बाद सारा तिकड़म खुल कर सामने आ गया. इस बार प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से ही एक चिट्ठी आई, जिसमें कहा गया कि समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव ने प्रधानमंत्री से सिफारिश की है. प्रधानमंत्री कार्यालय से आए पत्र में कार्मिक मंत्रालय को यह साफ-साफ कहा गया कि अगली बैठक में अजय यादव की प्रतिनियुक्ति का मामला विचार के लिए रख लिया जाए और बैठक जल्दी बुलाई जाए. इस बैठक में भी कार्मिक मंत्रालय ने अजय यादव की अर्जी को नियमों के खिलाफ माना और नियमों में किसी तरह की ढील देने से इंकार करते हुए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली नियुक्ति कमेटी एसीसी से इसकी मंजूरी नहीं देने की ताकीद की. लेकिन भारतीय लोकतंत्र में कानून का जोर कहां चलता है! कार्मिक मंत्रालय के कानूनी सुझाव को ठेंगा दिखा कर शिवपाल की सिफारिश को मंजूरी दे दी गई.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री दफ्तर के दोतरफा चरित्र पर उंगली भी उठाई और कहा कि एम्स के पूर्व सीवीओ और 2002 बैच के वन सेवा अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को ओएसडी बनाने के प्रस्ताव को इन्हीं नियमों का हवाला देकर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी ने खारिज कर दिया था, लेकिन शिवपाल यादव के दामाद के लिए उन्हीं नियमों को ताक पर रख दिया गया. बसपा नेता मायावती ने भी कहा कि इस कार्रवाई से यह साबित हुआ कि बाहर से राजनीतिक विरोधी दिखने वाली भाजपा और समाजवादी पार्टी अंदर ही अंदर मिली हुई है. सपा के वरिष्ठ नेता और सांसद रामगोपाल यादव ने सत्ता-दंभ और मोदी-प्रेम से प्रभावित बयान दिया. उन्होंने कहा कि इस प्रतिनियुक्ति में कुछ भी गलत नहीं है. डीओपीटी प्रधानमंत्री से ऊपर नहीं है. प्रधानमंत्री कुछ भी कर सकते हैं. वह नियमों में छूट देकर इस तरह पोस्टिंग दे सकते हैं.प