santoshbhartiya-sirकुछ अखबार और कुछ लोग देश के खिलाफ साजिश करने वाली ताकतों के हाथों का खिलौना बने हुए हैं और उन्हें मदद भी कर रहे हैं. इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म का जिन्हें ‘ए’ भी नहीं आता, वो देश विरोधी ताकतों या हथियारों के दलालों से सूचनाएं लेकर अपने को खोजी पत्रकार कहला रहे हैं.

एक छोटा उदाहरण सामने है. जब जनरल वीके सिंह देश के सेनाध्यक्ष थे, तो उन्होंने एक गुप्त यूनिट बनाई थी, जिसका काम था सेना की प्रथम पंक्ति पर लड़ रहे जवानों के ऊपर होने वाले किसी भी प्रकार के प्रहार की अग्रिम जानकारी प्राप्त करना या सेना को देना. उस यूनिट में सेना के चुने हुए कमांडो और सेना के चुने हुए समझदार लोग थे. बहुत छोटी यूनिट थी, लेकिन वो संभवत: हर उस जगह जाती थी, जहां सेना पर हमला होने का अंदेशा या स्थिति बन रही हो. उसने कितना काम किया, कितना नहीं, यह एक अलग विषय है, लेकिन सेना पर होने वाले हमलों को रोकने में उसने बेहतर परिणाम दिया.

जब जनरल वीके सिंह सेनाध्यक्ष के पद से हट गए, तब वो ताकतें जो उनके सेनाध्यक्ष रहते हुए खामोश थीं या दबी हुई थीं, वो अचानक उभरकर ऊपर आ गईं और उन्होंने सबसे बड़ा काम ये किया कि टेक्निकल यूनिट की जानकारी सबसे पहले उजागर करने की कोशिश की. एक अखबार ने सारा इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म उस टेक्निकल सर्विसेज यूनिट में कौन-कौन लोग शामिल थे, इसे प्राप्त करने में लगा दी. इस काम में उसका साथ उन सारे लोगों ने दिया जो पाकिस्तान की आईएसआई के लिए जासूसी करते थे. इस यूनिट का सबसे बड़ा डर पाकिस्तान को था. पाकिस्तान ने, इसमें कौन-कौन लोग शामिल थे, की जानकारी प्राप्त करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया और हमारे इन महान पत्रकारों ने आईएसआई की मदद में खुलकर स्टोरीज और रिपोर्ट्स की.

इसके बाद उन अभियानों की जानकारी पाकिस्तान को देने के लिए ऐसी ताकतों में होड़ मच गई. एक ऐसा वातावरण निर्मित किया गया मानो देश की सत्ता के ऊपर कभी सेना कब्जा करने वाली थी. एक अखबार का संपादक, जो इस गैंग का मुखिया था, वो प्रथम दिन से इसकी सच्चाई जानता था. उसने मुझसे कहा कि इस प्रकार की टीम के मुखिया से उसका बहुत नजदीकी रिश्ता रहा है. उसने इस सारे झूठ को इस तरह से पेश किया मानो वो सच हो और उस टीम के मुखिया को जानकारी मुहैया कराने में बहुत बड़ा रोल अदा किया.

हथियारों के दलाल अभी इस बात से चौकन्ने हैं कि उस समय के सेनाध्यक्ष मौजूदा प्रधानमंत्री के सर्वाधिक विश्‍वासपात्रों में से एक हैं. हालांकि उनके पास रक्षा मंत्रालय से जुड़ा कोई विभाग नहीं है, लेकिन इन ताकतों को डर है कि कहीं जनरल वीके सिंह प्रधानमंत्री मोदी को उन सारे लोगों के नाम या वो सारी प्रक्रिया न बता दें, जो रक्षा मंत्रालय के भीतर हथियारों को खरीदने में अपनाई जाती है और जो भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा है. इसलिए जनरल वीके सिंह के चरित्र हनन की एक बड़ी साजिश हो रही है और इसकी शुरुआत नए सिरे से टेक्निकल सर्विसेज के लोगों के नाम जानने और उन्हें सार्वजनिक करने की कोशिश के रूप में हो रही है. विदेश राज्य मंत्री के रूप में जनरल वीके सिंह ने जिस तरह दक्षिणी सूडान, यमन और सऊदी अरब में जोखिम भरा कामयाब रेस्न्यू ऑपरेशन चलाया उससे जनरल वीके सिंह को दुनिया भर के देशों से प्रशंसा मिली. भारत में आईएसआई पोषित कुछ पत्रकारों ने जनरल सिंह के उस जोखिम भरे रेस्न्यू ऑपरेशन की प्रशंसा तो नहीं ही प्रकाशित-प्रसारित की, उल्टे उनके चरित्र हनन की साजिशें शुरू कर दी हैं.

जनरल वीके सिंह के बाद आए सेनाध्यक्ष की बहू पाकिस्तानी मूल की नागरिक है. जिसे सेनाध्यक्ष बनाया गया, उसका सीधा रिश्ता पाकिस्तान से है, रक्षा मंत्रालय का ये फैसला आज तक समझ में नहीं आया. इसका मतलब देशविरोधी ताकतों का हाथ इतना मजबूत है कि उन्होंने एक ऐसा सेनाध्यक्ष बनवा दिया, जिसके घर में पाकिस्तान से जुड़ा हुआ एक व्यक्ति 24 घंटे रहता था. उनकेसेनाध्यक्ष पद से हटने के बाद जो व्यक्ति सेनाध्यक्ष बने वो ईस्टर्न कोर के चीफ रहते हुए बहुत सारे विवादास्पद अभियानों के सर्वेसर्वा थे. उसे न केवल सेना की इंटेलिजेंस शाखा ने बल्किसीबीआई और पुलिस ने भी अपनी जांच में दोषी पाया था. पर तत्कालीन सेना ने उनके खिलाफ कार्रवाई करने से इंकार कर दिया था. आज उनके जरिए देशविरोधी ताकतें और खासकर वो जिनका पाकिस्तान से जुड़ाव है, तेजी के साथ अपने अधूरे अभियान को पूरा करने में जुट गई हैं. उन्हें लगता है कि कोई भी ऐसा नकली अवसर बनाओ और उसको इस तरह से प्रचारित करो ताकि वो ताकतें और उन ताकतों का मुखिया जो इन सारी प्रक्रिया के खिलाफ रहा है, उसे दंडित कराया जा सके, यानी वो ताकतें जो देशविरोधी शक्तियों के हाथों का खिलौना हैं और जिनका रिश्ता सीधे आईएसआई से है, वो ताकतें देश समर्थक व देशभक्त ताकतों की गर्दन मरोड़ना चाहते हैं. सबसे मजे की बात ये है कि इन सबके केंद्र में जिस व्यक्ति को सबसे ज्यादा जानकारी है, अरुण जेटली, वो खामोश हैं. अरुण जेटली अगर चाहेंे तो ऐसी ताकतों के ऊपर नियंत्रण लगाया जा सकता है लेकिन वे किन्हीं अज्ञात कारणों से इन ताकतों को नियंत्रित करने से अपने को दूर रखे हुए हैं. मुझे ये कहने में कोई भी संकोच नहीं है कि अरुण जेटली एक ऐसे शख्स हैं जो सेना के भ्रष्टाचार को न केवल समझते हैं, बल्कि कौन लोग भ्रष्टाचार कर रहे हैं, उसे जानते भी हैं. अरुण जेटली के सामने देश के प्रति अपना कर्तव्य निर्वाह करने की चुनौती है. वे प्रधानमंत्री मोदी के भी नजदीक हैं, वेे हथियारों के सौदागरों को भी जानते हैं, साथ ही वे उन्हें भी जानते हैं जो पत्रकारों के वेश में आईएसआई के लिए काम कर रहे हैं या आईएसआई का हित साध रहे हैं. क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपनी सात्विकता में देशविरोधी साजिश दिखाई नहीं देती?

ये घटना मैं इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि इनमें से एक-एक लिखी हुई बात पर हमने रिपोर्ट की है. हमें पत्रकारों के वेश में देशविरोधी ताकतों के हाथ का खिलौना बने कुछ पत्रकारों के बारे में पूरी जानकारी है. हम देश को ये बताना चाहते हैं कि ऐसे लोग बहुत ज्यादा ताकतवर हो चुके हैं. ये लोग सीधे आईएसआई और चीन को वो सारी सूचनाएं मुहैया कराने की कोशिश करते हैं, जो देश के हित में सबसे ज्यादा हैं, जो गुप्त हैं. देखते हैं, कौन जीतता है?

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