प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के आखिरी दिन बीदर में प्रचार करते हुए कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस के नेताओं के पास जेल में बंद भ्रष्ट नेताओं से मिलने का समय है लेकिन ‘जब भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, वीर सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी भारत की आजादी लड़ते हुए जेल में थे, तब क्या कोई कांग्रेसी नेता वहां उनसे मिलने गया था?’ पीएम ने यह बात राहुल गांधी की चारा घोटाले में सजायफ्ता लालू प्रसाद यादव से एम्स में मुलाकात पर तंज कसते हुए कही थी.
When Shaheed Bhagat Singh, Batukeshwar Dutt, Veer Savarkar, greats like them were jailed fighting for the country's independence, did any Congress leader went to meet them? But the Congress leaders go and meet the corrupt who have been jailed: PM @narendramodi
— narendramodi_in (@narendramodi_in) May 9, 2018
पीएम के इस बयान के बाद कई लोगों ने इस तथ्य को खोजने की कोशिश की क्या सचमुच में जब भगत सिंह और उनके साथी जेल में थे तो क्या सच मे कोई कांग्रेसी नेता उनसे मिलने नहीं गया. यह सही है कि भगत सिंह और उस वक्त गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस में वैचारिक विरोध था. लेकिन ऐसा नहीं है कि कोई भी कांग्रेसी नेता भगत सिंह से मिलने जेल में नहीं गया था.
12 जून, 1929 को असेंबली बम कांड में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. उसके बाद उन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में भेजा गया. जहां उन्होंने देखा कि कैदियों को बुनियादी सुविधाएं तक मुहैया नहीं हैं, इसके विरोध में उन्होंने भूख-हड़ताल शुरू कर दिया. इसके बाद भगत सिंह और उनके साथियों के ऊपर 10 जुलाई., 1929 को लाहौर षड्यंत्र केस का मुकदमा शुरू हुआ. 7 अक्टूबर, 1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को इस केस में फांसी की सजा सुनाई गई और इन तीनों को 31 मार्च, 1931 को फांसी दे दी गई.
इस नेता ने की थी भगत सिंह से मुलाकात?
भगत सिंह के जेल में किए गए भूख हड़ताल दौरान कांग्रेस नेता और बाद में भारत के पहले प्रधानमंत्री बने जवाहरलाल नेहरू ने उनसे मुलाकात की थी. भगत सिंह और उनके अन्य साथियों से नेहरू ने 9 अगस्त, 1929 को मुलाकात की थी, इसके बारे में 10 अगस्त, 1929 को द ट्रिब्यून में एक खबर भी छपी थी. जवाहरलाल नेहरू ने इस मुलाकात के बारे में खुद कहा है- ‘जब (जेल में भगत सिंह और जतीन्द्रनाथ दास की) भूख-हड़ताल एक महीने तक चल चुकी थी, उस दौरान मैं इत्तफाक से लाहौर पहुंचा. मुझे कुछ कैदियों से जेल में मिलने की इजाजत दे दी गई, और मैंने इसका फायदा उठाया. भगत सिंह से यह मेरी पहली मुलाकात थी. मैं जतीन्द्रनाथ दास वगैरह से भी मिला. भगत सिंह का चेहरा आकर्षक था और उससे बुद्धिमत्ता टपकती थी. वह निहायत गंभीर और शांत था. उसमें गुस्सा दिखाई नहीं देता था. उसकी दृष्टि और बातचीत में बड़ी मृदुलता थी. मगर मेरा खयाल है कि कोई भी शख्स जो एक महीने तक उपवास करेगा, आध्यात्मिक और मृदुल दिखाई देने लगेगा. …भगतसिंह की खास हसरत अपने चाचा सरदार अजित सिंह, जो 1907 में लाला लाजपतराय के साथ जिला-वतन कर दिए गए थे, से मिलना या कम से कम उनकी खबर पाना मालूम हुई.’ (मेरी कहानी, पंडित जवाहरलाल नेहरू की आत्मकथा, पृष्ठ- 338-339, सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली, 1938)’
नेहरू ने जेल प्रशासन से उनकी पैरवी भी की थी और बाद में जेल प्रशासन का रवैया संभवतः बदला भी था. यही नहीं वीर सावरकर के जेल में रहने के दौरान 1920 में कांग्रेस के नेता महात्मा गांधी, वल्लभभाई पटेल और बालगंगाधर तिलक ने उनकी बिना शर्त रिहाई की मांग भी की थी.