2017 के विधानसभा चुनाव में प्रवेश करते हुए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का स्मार्ट सिटी के रूप में बदलने के लिए चयनित होना सुनने में तो अच्छा लगता है, पर आप गौर करें तो स्मार्ट सिटी के शोर में राजनीतिक-मंशा का शातिराना मौन भी उतना ही गुंजायमान हो रहा है. विकास के बूते चुनाव लड़ने का खम ठोक रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के दावे पर केंद्र की स्मार्ट सिटी योजना की बौछार समानान्तर असर ढा रही है. उत्तर प्रदेश के एक दर्जन से अधिक शहर अभी स्मार्ट सिटी होने की लाइन में हैं, संभव है कि चुनाव आते-आते यूपी के कई अन्य शहर भी स्मार्ट सिटी के शिगूफे में कस जाएं और सत्ताधारी दल उसमें कसमसा कर रह जाए. बिहार के दो शहर, झारखंड का एक शहर और उत्तर प्रदेश के 13 शहर स्मार्ट सिटी के लिए चुने जाते हैं, इसके पीछे यूपी की अधिक आबादी नहीं बल्कि यूपी का अधिक वोटर है और यहां चुनाव होना अभी बाकी है. स्मार्ट सिटी के मापदंडों से लखनऊ कितनी दूर है, यहां के नागरिक इसे भलीभांति जानते हैं और भोगते हैं. फिर वाराणसी, मेरठ, सहारनपुर, गाजियाबाद, आगरा, झांसी, बरेली, मुरादाबाद, रामपुर, अलीगढ़, कानपुर, इलाहाबाद और रायबरेली जैसे शहर स्मार्ट सिटी कैसे बनेंगे, भगवान ही मालिक है. जो इन शहरों को जानते हैं या इन शहरों में रहते हैं, वे इन जगहों पर खुदा के सहारे ही रहते हैं. लिहाजा, अगर ये शहर (लखनऊ समेत) वाकई स्मार्ट सिटी बन जाएं तो यह साबित हो जाएगा कि अल्लाह मेहरबान है.
स्मार्ट सिटी की दूसरी खेप की फेहरिस्त जारी करते हुए केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने इस पर जोर देकर कहा कि स्मार्ट सिटी एक मिशन है, राजनीति नहीं है. लेकिन ऐसा कह कर नायडू ने राजनीतिक बहस-मुबाहिसे को शक्ल तो दे ही दी. लखनऊ के स्मार्ट सिटी के रूप में घोषित करने की भाजपा की तरफ से मुनादी पीटे जाने पर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव फौरन ही बोल पड़े कि सपा तो लखनऊ को पहले ही स्मार्ट सिटी बना चुकी है, फिर इसमें राजनीति छोड़ कर नया क्या है. लखनऊ में मेट्रो से लेकर गोमती के सौंदर्यीकरण व कई अन्य स्मार्ट योजनाओं का हवाला देते हुए शिवपाल ने कहा कि ये योजनाएं अब लखनऊ में ठोस शक्ल ले चुकी हैं और लोगों को विकास के ये काम सामने दिख रहे हैं, ऐसे में प्रदेश की जनता को भाजपा की राजनीति भी समझ में आ रही है. शिवपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नसीहत दी कि वे अपने संसदीय क्षेत्र के शहर वाराणसी की बदहाली देखें और उसे स्मार्ट सिटी बनाएं. हालांकि भाजपा पर प्रहार करते समय शिवपाल यह भूल गए कि उनके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद ही यह बोल चुके हैं कि भाजपा वाले बड़े स्मार्ट हैं तो 73 सांसदों के बावजूद यूपी में एक भी स्मार्ट सिटी क्यों नहीं बनी!
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बहरहाल, लखनऊ के स्मार्ट सिटी बनने की कतार में शामिल होने पर इसका श्रेय लेने और उसका राजनीतिक फायदा उठाने की मंशा साफ-साफ समझ में आ रही है. लेकिन प्रदेश के लोगों को उम्मीद है कि इसी बहाने कबाड़ होते इन शहरों का कुछ भला हो जाए. हालांकि केंद्र की स्मार्ट सिटी योजना पर राज्य सरकारों को ही आधा खर्च करना है. यह भी स्पष्ट है कि चुनाव का माहौल गरमाने पर विकास के एजेंडे पर चुनाव लड़ने की बात कह कर भाजपा स्मार्ट सिटी का मुद्दा जरूर उठाएगी. राजनीतिक विश्लेषक भी यह मानते हैं कि स्मार्ट सिटी के चयन की प्रक्रिया के पहले चरण में लखनऊ का बाहर हो जाना और फिर फास्ट ट्रैक प्रक्रिया के जरिए दोबारा चयनित हो जाना सियासी इरादे का ही नतीजा है. इसी के जरिए भाजपा ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि प्रदेश की सत्ता का उपभोग करने वाली पार्टियों ने डेढ़ दशक में गांव तो दूर लखनऊ जैसे महानगर तक के विकास के लिए कुछ नहीं किया. इसके साथ ही भाजपानीत केंद्र सरकार ने यह भी जताने की कोशिश की है कि वह उत्तर प्रदेश के विकास को लेकर इतनी चिंतित है कि राजधानी लखनऊ को स्मार्ट सिटी में चयनित कराने के लिए उसने पुरानी प्रक्रिया बदल कर फास्ट ट्रैक की नई प्रक्रिया इंट्रोड्यूस की. चुनाव सामने है तो लखनऊ को स्मार्ट सिटी बनाने के प्रस्ताव पर मुहर लगाने के पीछे भाजपा के अपने राजनीतिक निहितार्थ तो रहे ही होंगे. लखनऊ देश के गृहमंत्री और मोदी कैबिनेट में नंबर दो का रुतबा रखने वाले राजनाथ सिंह का संसदीय क्षेत्र भी है. लखनऊ नगर निगम पर भाजपा का पिछले लगभग 20 सालों से कब्जा है. लखनऊ भाजपा के शीर्ष नेता व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी संसदीय क्षेत्र रहा है.
मेरठ और रायबरेली को स्मार्ट सिटी बनाए जाने के मामले में भी भाजपा की राजनीति साफ-साफ दिखती है. केंद्र ने मेरठ और रायबरेली दोनों को ही स्मार्ट सिटी की दौड़ में शामिल कर यह संदेश दिया है विकास की कसौटी और लोगों की सुविधा के नाम पर केंद्र सरकार कोई सियासत नहीं करना चाहती. रायबरेली भले ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र क्यों न हो. केंद्र ने स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 13 शहर मांगे थे लेकिन सपा सरकार ने 14 शहरों के नाम भेज कर राजनीति चाल चली थी. लेकिन केंद्र ने 14वें शहर को भी शामिल कर सपाई चाल को धराशाई कर दिया. केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन के लिए शहरों के मूल्यांकन के लिए 15 मापदंड तय किए थे. इसके आधार पर क्षेत्रीय नगर एवं पर्यावरण अध्ययन केंद्र(आरसीयूईएस) ने एक लाख से अधिक जनसंख्या वाले यूपी के 60 शहरों का आकलन कराया था. इसमें कुल 13 शहर ही स्मार्ट सिटी बनने लायक पाए गए थे. रायबरेली व मेरठ को समान अंक मिला था. इस वजह से इन दोनों शहरों के बीच टाई हो गया था. हालांकि केंद्र ने राज्य सरकार से दोनों में से किसी एक शहर का नाम भेजने को कहा था लेकिन राज्य सरकार ने दोनों के नाम भेज दिए थे. केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने रायबरेली और मेरठ को भी स्मार्ट सिटी में शामिल होने लायक शहर मानते हुए प्रस्ताव भेजने की स्वीकृति दे दी. लिहाजा अब यूपी के 14 शहर स्मार्ट सिटी की दौड़ में शामिल हो गए हैं. हालांकि, अंतिम चयन दूसरे चरण के मूल्यांकन के बाद ही होगा. राज्य सरकार के नगर विकास विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि केंद्र के निर्णय के बाद रायबरेली और मेरठ के लिए भी स्मार्ट सिटी का प्रस्ताव तैयार करने के लिए सम्बन्धित निकायों से कह दिया गया है. अन्य 11 शहरों के साथ ही इन दोनों शहरों का प्रस्ताव भी 30 जून तक तैयार कर केंद्र को भेज दिया जाएगा.
कितने स्मार्ट हैं हम!
लखनऊ के स्मार्ट सिटी बनने के लिए चयनित होने के साथ ही आम लोगों में भी यह सवाल पैठ करने लगा है कि हम स्मार्ट सिटी के लायक हैं कि नहीं. हम स्मार्ट सिटी में रहने की काबिलियत रखने वाले स्मार्ट नागरिकों में शरीक हैं कि नहीं. इस सवाल के समेकित उत्तर में न की ध्वनि ही सुनाई पड़ती है. शासन और प्रसासन की अपनी मुश्किलें हैं और उनके अपने दायित्व हैं. इसमें ट्रैफिक जाम का मसला हो सीवर जाम का. बिजली ठप्प होने का मसला हो या पानी सप्लाई ठप्प होने का. वगैरह-वगैरह. इन्फ्रास्ट्रक्चरल मैनेजमेंट तो हो जाएगा, लेकिन पब्लिक मैनेजमेंट कैसे हो इसके लिए तो नागरिकों को ही समझदार होना होगा और स्मार्टनेस से काम लेना होगा. सड़कों के किनारे फुटपाथ घेरे दुकानदारों, सड़कों पर यत्र-तत्र-सर्वत्र थूकते-मूतते गंदगी फैलाते लोगों, कहीं भी गाड़ी खड़ी कर तफरीह करते नागरिकों, कहीं भी कटिया लगा कर मुफ्त की बिजली जलाते लोगों और कहीं भी अतिक्रमण करके खुश हो रहे लोगों को आखिर कैसे मैनेज किया जाए और क्या इसके बगैर लखनऊ या कोई भी शहर स्मार्ट रह पाएगा? इन सवालों का एक पंक्ति में जवाब देते हैं लखनऊ शहर के महापौर व वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ. दिनेश शर्मा. शर्मा कहते हैं कि हर काम शासन और नगर निगम नहीं कर सकता, जब तक जनता का सहयोग न हो.