मेरे सार्वजनिक जीवन के पितृतुल्ल एस एम जोशी जी के 117 वी जयंती के अवसर पर विनम्र अभिवादन ! मै अपनी बारह-तेरह साल की उम्र से राष्ट्र सेवा दल में शामिल होने के कारण एस एम जोशी जी का नाम से परिचित था ! कि वह 4 जून 1941 के दिन राष्ट्र सेवा दल के स्थापना के पहले दल प्रमुख थे ! और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के पुल देशपांडे जी की भाषा में दिलीप कुमार,राजकपूर जैसे हीरो थे ! और वर्तमान महाराष्ट्र राज्य के शिलपकारो में से एक थे ! मै 1953 दिसंबर में पैदा हुआ ! तब वह 49 साल की उम्र के थे ! राष्ट्र सेवा दल में शामिल होने के कारण उन्हें समय-समय पर शिबिरो में सुनता था ! और 1970 के दशक में भोपाल में रविंद्र सदन के प्रांगण में सविता वाजपेयी जी के सहयोग से राष्ट्र सेवा दल की शाखा चलाता था ! तो एक दिन अचानक एक एंबेसेंडर कार हमारे शाखा के मैदान में आकर रुकी ! और देखां कि एक लंबे दुबले पतले छरहरे बदन वाले खद्दर के सफेद पजामा कुर्ता पहने हुए व्यक्ति जो की एस एम जोशी जी थे ! उतर कर सीधे हमारे झंडे को आकर प्रणाम किया ! यह प्रसंग मेरे लिए स्वप्नवत था ! उस समय वह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे ! और भोपाल अपने पार्टी के कार्यक्रम के लिए आए थे ! और उन्होंने रास्ते में कार से ही देखा कि राष्ट्र सेवा दल का झंडा फहराया हुआ है ! और कुछ बच्चे-बच्चीया खेल कूद कर रहे हैं ! तो ड्राइवर को बोलकर गाडी हमारे शाखा के मैदान में आकर रुकी !
सविता वाजपेयी जी उस समय प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की कार्यकर्ता थी ! जिसके अध्यक्ष पुणे के ही राष्ट्र सेवा दल के दुसरे संस्थापकों में से एक थे श्री एन जी गोरे ! सविता वाजपेयी जी पहले तो बहुत हैरान हुईं की ! एस एम जोशी जी सीधे हमारे शाखा के मैदान में आकर पहुंचे ! तो सविता वाजपेयी जी ने उनका विधिवत स्वागत किया ! और खेल-कूद करने वाले सभी बच्चों को इकट्ठा कर के सामने बैठाया और एस एम जोशी जी को दो शब्द बोलने के लिए आग्रह किया ! उन्होंने बहुत ही संक्षेप में अपनी बात रखी की बच्चों मै भी राष्ट्र सेवा दल का सैनिक हूँ ! और भोपाल अपने पार्टी के कार्यक्रम के लिए आया हूँ ! लेकिन महाराष्ट्र के बाहर राष्ट्र सेवा दल की शाखा वह भी भोपाल में चलते हुए देखकर मुझसे रहा नहीं गया ! और मै झंडे को आकर प्रणाम किया हूँ ! मुझे बहुत अच्छा लगा कि भारत के अन्य राज्यों में भी राष्ट्र सेवा दल गति पकड़ रहा है ! और सविता वाजपेयी जी का विशेष आभार व्यक्त करता हूँ कि हमारे सुरेश को लेकर वह जो भी कुछ कर रही हैं बहुत ही काबिले-तारीफ है ! यह मौका मै कभी भी भूल नहीं सकता ! क्योंकि एस एम जोशी जी जैसे संस्थापकों में से एक नेता हमारी शाखा में खुद चलकर आता है ! शायद मेरे जैसे सत्रह-अठारह साल के लडके को तो जिंदगी भर के लिए कितना बड़ा आत्मविश्वास मिला होगा ! आज भी सोच कर रोमांचित हो रहा हूँ !
असल में मेरा श्री एस एम जोशी जी का नजदीकी संबंध आपातकाल में आया ! जिस समय वह सत्तर साल पार कर चुके थे और पता नहीं इंदिरा गाँधी ने इतनें सारे नेताओको जेलो में डालकर रखा था ! लेकिन एस एम जोशी जी और नाना साहब गोरे दोनों समाजवादी नेताओ को क्यों बाहर रखा था ? यह पहेली मुझे आज भी अनबुझी लगती है ! लेकिन यह दोनों ने बाहर रहने का पूरा-पूरा फायदा उठाया है ! लगभग दोनों ही सत्तर के उम्र में होते हुए जनतंत्र,तथा नागरिकों के अधिकारो को लेकर लगातार महाराष्ट्र में और अन्य इलाकों में भी अपनी बात बोलते हुए घुमे है ! और मेरा सौभाग्य है कि मुझे इन दोनों के साथ मुख्य रूप से विदर्भ विभाग मे साथ देने के लिए आयोजन समिति ने रखा था ! उस समय मै 22-23 साल की उम्र का था ! तो इनके सोहबत में चौबीसों घंटे रहने के कारण देश-दुनिया और कई-कई मुद्दों पर बहुत बातचीत करने का अवसर मिला है ! और विनोबाजी से लेकर अन्य बाहर रहे बाबा आमटे, आर के पाटील, दादा धर्माधिकारी, दादा साहब बारलिंगे, अण्णा साहब सहस्रबुद्धे, मामा क्षिरसागर तथा जयप्रकाश नारायण जैसे लोगों के साथ की बैठकों में शामिल होने के कारण काफी महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है !
और एस एम जोशी जी की एक आदत थी की, उनकी पत्नी ताराबाई जोशी जी को हर एक दो दिन में चिठ्ठी लिखने की आदत थी ! और वह पत्र पोस्ट करने के पहले मुझे कहते थे कि तुम पढो और मुझे बतलाओगे की मैंने क्या सही-ग़लत लिखा है ! मैंने कहा कि इस तरह पति -पत्नी के पत्राचार को देखना असभ्यता है ! तो उन्होंने मुझे डाटकर कहा कि अब इस उम्र में एक पति अपनी पत्नी को क्या लिखता होगा ? यही तुम पढो ! तो वह लगभग रिपोर्टर के जैसा हर शख्स के साथ की मुलाकात और बातचीत का विस्तृत वर्णन लिखकर भेजते थे ! और उपरसे मुझे पुछते थे कि ठीक है ना ? इतना निष्कपट आदमी मुझे मेरे जीवन में किसी भी उम्र का अभितक दुसरा मिला नहीं है ! वह मेरे पिताजी से भी उम्र में बडे थे कम-से-कम सत्रह साल ! लेकिन कहीं भी उन्होंने अपनी उम्र अपने राजनीतिक जीवन की इतनी बड़ी उपलब्धियों का मेरे साथ के व्यवहार में मेरे ऊपर हावी नहीं होने दिया ! क्रिकेट से लेकर सिनेमा, नाटकों तक हमारे बातचीत के विषय होते थे ! कपिलदेव के बहुत बडे फैन थे ! अगर उस समय कोई मैंच चल रही है तो पडोसी के घर के रेडियो कामेंटरी सुनने का प्रयत्न करते हुए देखा है ! और बच्चे की तरह उस विषयपर गपशप करते हुए ! बिल्कुल एक मित्र की तरह !
उम्र के चालीस साल के थे ! तब से एक ही समय खाना खाने की आदत थी ! लेकिन हमारे जजमान के यहां पहुंचने पर साफ साफ बोलते थे कि मैं भला एक समय खाना खाता हूँ ! लेकिन मेरा तरुण मित्र दोनों समय खाना खायेगा ! और आप लोग मेरी खातिरदारी उसिको खिलाकर किया ऐसा मानकर चलिए ! मुझे अपने साथ के प्रवास में कभी भी याद नहीं आ रहा की ! उन्होंने कोई हुकुम चलाया हो ! एक वरिष्ठ मित्र के जैसा हर बार व्यवहार किया है ! और कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने के पहले मुझे पुछते थे कि ठीक है ? आचार्य विनोबा भावे ने अचानक गोहत्या बंदी की बात चला दिया ! तो एस एम जोशी जी भी उनके प्रभाव में आकर मुझे बोले कि अब हम लोग अपने साथ एक गाय लेकर प्रवास करेंगे तो मैंने कहा कि विनोबाजी ने मरणासन्न माता को आश्वासन दिया था कि मैं भारत में गोहत्या बंदी कर के रहूंगा ! वह उनका शुद्ध पारिवारिक और खाजगी मामला है ! उसे सार्वजनिक और वह भी गाय जैसे संवेदनशील विषयपर ? हमारे देश में सबसे बड़ी संख्या में गरीब लोग प्रोटीन के लिए गोमांस खाना पसंद करते हैं ! और उसमें भी गरीब-गुर्बा ! जो महंगाई के कारण चिकन, बकरे आदि के मांस नहीं खरीद सकते हैं !
हमारे देश में गाय सिर्फ मुसलमान ही खाते हैं ऐसा नहीं है ! यह संघ परिवार का अजेंडा हम लोग क्यों चलाऐ ? और वैसे भी आपातकाल के साथ गाय का क्या संबंध है ? मुझे लगता है कि हमारे प्रचार में गोहत्या बंदी करने की बात एकदम बेसिरपैर की लगती है ! लेकिन आपको गाय को लेकर चलना है तो जरूर चलिए ! लेकिन मै आपको साथ नहीं देने वाला इसलिए आप मुझे माफ करना ! एस एम जोशी जी का बडप्पन देखिए ! मुझे कहने लगे कि आचार्य विनोबा भावे मेरे आदरणीय मित्र जरूर है लेकिन तुम्हारे जैसे तरुण मित्र को खोने की किमत इतने नहीं है ! गाय के बारे में तुम्हारे तर्क काफी वैज्ञानिक और आर्थिक रूप से मुझे पसंद आये हैं ! तो मै गाय के बगैर ही आपातकाल के खिलाफ चल रहे अभियान को लेकर हम मिलकर काम करेंगे ! और सबसे महत्वपूर्ण बात उन्होंने बहुत ही जल्दी से पुणे के गोखले संस्था में गोहत्या को लेकर एक सेमिनार का आयोजन किया था और उसमें डॉ वी एम दांडेकर जैसे अर्थशास्त्री, प्रोफेसर ए बी शहा जैसे समाजशास्री जैसे दिग्गज लोगों को बुलाया गया था और कॅटल इकाॅनामी ऑफ इंडिया के नाम से बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज छ्पा है !
जिसके लिए मेरे जैसे बीस-बाईस साल की उम्र के लडके को विशेष रूप से बुलाया था और उन्होंने बाकायदा बैठक मे अपनी बात रखते हुए कहा कि सुरेश के कारण मुझे इस विषयपर बैठक बुलाने की इच्छा हुई ! इसी तरह जनता पार्टी के गठन के पहले देशभर के महत्वपूर्ण लोगों से मिलकर बातचीत करने का काम वह कर रहे थे ! तो मुझे भी इस विषय पर पुछा तो मैंने कहा कि जनसंघ के साथ चुनावी तालमेल तक ठीक है ! लेकिन एक पार्टी बनाने की कल्पना सर्वथा गलत है ! क्योंकि सबसे बड़ी बात वह संघ की राजनीतिक इकाई है ! और हिंदुत्व यह ऊनका कोअर सबजेक्ट या सबसे पहला लक्ष है ! और समाजवाद के खिलाफ पुंजीपती, राजाओं, जमिनदारो की, व्यापारीयो की उच्च जाति के घोर सांप्रदायिक लोगों के दल के साथ समाजवादी पार्टी के लोगों का एकत्रीकरण एकदम ही बेतुकी और राजनीतिक रूप से सर्वथा गलत होगा ! इसलिए मैं तो जनसंघ के साथ चुनावी तालमेल के अलावा एक पार्टी बनाने की कल्पना के विरुद्ध हूँ ! तो उन्होंने मुझे कहा कि सुरेश मै अभी-अभी तिहाड जेल से जार्ज फर्नांडीज को मिलकर आ रहा हूं ! (उस समय सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे !) और जार्ज ने मुझे लगभग तुम जो भी कुछ बोल रहे हो यही तर्क उसने भी कहा है !और जनसंघ के साथ एक दल बनाने की कल्पना सर्वथा गलत है यही कहा है ! ( इतिहास की विदारकता देखिए कल परसों ही लैला कबीर ने जार्ज फर्नांडीज को मरणोपरांत पद्मविभूषण पुरस्कार को राष्ट्रपति भवन में महामहिम राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकार करते हुए देखकर कैसा लगा आपको ? क्यों वर्तमान सरकार ने उन्हें यह पुरस्कार दिया होगा?)
तो मैंने कहा कि अगर मेरे पिताजी के उम्र के जार्ज फर्नांडीज को भी मेंरे जैसा ही लगता है ! तो मुझे बहुत खुशी हो रही है! कि मै और जार्ज फर्नांडीज के विचार जनसंघ के बारे एक ही है ! ( लेकिन इतिहास की विदारकता देखिए जार्ज फर्नांडीज के जीवन का आखिरी पड़ाव कहा समाप्त हुआ ? मै तो उसे उनकी राजनीतिक आत्महत्या की संज्ञा दी है ! )
एस एम जोशी जी ने कहा कि जयप्रकाश नारायण ने मुझे साफ-साफ कहा है कि ! जब तक आप लोग कांग्रेस के खिलाफ चुनाव के पहले सभी विरोधी दलों की एक पार्टी नहीं बनाओ गे तबतक मैं चुनाव प्रचार में नहीं उतरने वाला ! तो तुम बोलों अब करे तो क्या करे ? मै तो बहुत बडे धर्मसंकट में फस गया हूँ ! जनता पार्टी बनी उन्नीस महीने में टूट-फूट कर वर्तमान बीजेपी सिर्फ नया नाम लेकिन जनसंघ के पुराने अजेंडा के साथ निकल कर आज भारत के जनतंत्र का माखौल उडाते हुए खुलकर समाजवाद के खिलाफ पुंजीपतीओ के पक्षमे गत साडे सात साल से 135 करोड़ आबादी के छाती पर मुंग दल रही है !
अच्छा हुआ यह पतनशीलता का दौर देखने के लिए एस एम जोशी जी जीवित नहीं है ! अन्यथा उन्हें बहुत ही दुख हुआ होता ! आज उनकीं 117 वी जयंती के अवसर पर उन्हें सच्चा सम्मान देना है तो वर्तमान घोर सांप्रदायिक राजनीति और पूंजीवाद की समर्थक पार्टी को जनतंत्र के माध्यम से हटाने का संकल्प करना यही सही सम्मान देना होगा ! और राष्ट्र सेवा दल के स्थापना के 80 वर्ष होने के बावजूद कुछ लोग जोर-जबरदस्ती से 2023 में राष्ट्र सेवा दल की शताब्दी मनाने का आग्रह कर रहे हैं ! यह एस एम जोशी जी के जैसे संस्थापकों का भी अपमान है ! जबकि कांग्रेस से सोशलिस्ट पार्टी अलग हुई है वैसे ही कांग्रेस सेवा दल के रहते हुए 4 जून 1941 को राष्ट्र सेवा दल की स्थापना हुई है और आज उसके पहले संस्थापक अध्यक्ष की 117 वीं जयंती के अवसर पर मेरी विनम्र प्रार्थना है कि कृपया राष्ट्र सेवा दल के इतिहास के साथ खिलवाड़ मत कीजिए 2023 में राष्ट्र सेवा दल 82 साल की उम्र का होगा नहीं सौ साल का ! तो कमसे कम एस एम जोशी जी की स्मृति को याद करते हुए इस तरह की गलती करना यानी उनका अपमान करना होगा !