workshopप्रधानमंत्री ने कौशल विकास अभियान ‘स्किल इंडिया’ की शुरुआत करते हुए कहा था कि जिस तरह चीन वैश्विक विनिर्माण कारखाना बन गया है, वैसे ही भारत को दुनिया के ‘मानव संसाधन केंद्र’ के रूप में उभरना चाहिए. देश के युवाओं का कौशल विकास कर निकट भविष्य में अन्य देशों की जरूरतों को भी पूरा करना हमारा लक्ष्य है.

प्रशिक्षण देने की लक्ष्य प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) को काम पर लगाया गया. लेकिन विगत समय में जिस तरह से इस योजना के क्रियान्वयन में खामियां देखने को मिल रही हैं, उससे लगता है कि स्किल इंडिया मिशन का हाल भी अन्य कई दूसरी परियोजनाओं की तरह न हो जाए. ‘स्किल इंडिया’ अभियान से गरीबी के खिलाफ सरकार की लड़ाई का उद्घोष भी गरीबी हटाओ  और शाइनिंग इंडिया जैसा ही न साबित हो. योजना का जिस कुशलता से क्रियान्वयन किया जाना चाहिए था, वो हो नही पा रहा है. इसकी तस्दीक हाल में उत्पन्न स्थितियों से की जा सकती है.

योजना के तहत ऐसे केन्द्र को मान्यता दी जाती है, जो  निर्धारित मानदंडों पर स्थापित किए गए हों. इन केन्द्रों को तैयार करने में लाखों रुपयों की लागत आती है, लेकिन हाल में एनएसडीसी ने घोषणा की कि उनके नए नियमों के मुताबिक फ्रेंचाइजी सेंटर्स को काम नहीं मिलेगा. न ही अब इन फ्रेंचाइजी सेंटर्स को ट्रेनिंग के बदले पैसे दिए जाएंगे और न ही यहां ट्रेनिंग लेने वालों को प्रमाण पत्र मिलेगा. विरोध में उन लोगों ने प्रदर्शन किया, जिनके केन्द्रों को ट्रेनिंग देने के लिए एनएसडीसी ने मंज़ूरी दी थी.

लोगों ने अपने केन्द्रों पर का़फी पैसे खर्च कर ज़रूरी इंतज़ाम किए, लेकिन अब ट्रेनिंग देने का काम नहीं मिलने से ठगा महसूस कर रहे हैं. परेशान और कर्ज में डूबे सेन्टर मालिकों को समझ में नहीं आ रहा है कि करें तो करें क्या? ऐसे में कई सवाल हैं, जिनके जवाब तलाशे जाने जरूरी हैं, नहीं तो सरकार के आह्‌वान पर कोई भी विकास कार्य, स्वरोजगार या उद्यम शुरू करने वालों का विश्वास उठ जाएगा. इससे स्टार्ट-अप जैसी सोच और मिशन को भी धक्का लगेगा. भविष्य में कोई भी सरकार की बातों पर भरोसा कर किसी काम में पूंजी लगाने से पहले सौ बार सोचेगा.

जहां सरकारी एजेंसी द्वारा उच्च ग्रेड प्राप्त केन्द्रों को काम नहीं दिया गया, वहीं महज अंडरटेकिंग लेकर कई नामी-गिरामी संस्थाओं को काम दे दिया गया. जबकि नियम के तहत पहले ऑनलाइन ट्रेनिंग पार्टनर बनाए जाएंगे, फिर ट्रेनिंग पार्टनर के ज़रिए फ्रेंचाइज़ी ट्रेनिंग सेंटर्स खोले जाएंगे. लेकिन तमाम नियमों की अनदेखी कर महज अंडरटेकिंग लेकर काम दे दिया गया. स्थिति यह है कि अंडरटेकिंग देकर काम लेने वाली संस्थाओं ने अब तक कई सेन्टर्स शुरू भी नहीं किए हैं.

सरकार चाहती है कि रोजगार के अवसर बढ़े. यही कारण है कि कौशल विकास के साथ उद्यमशीलता पर भी जोर दिया गया है. लेकिन अपनी पूंजी लगाकर उद्यमशीलता की अलख जगाने वाले उद्यमी आज एनएसडीसी के नए नियमों के जाल में उलझकर रह गए हैं. गांव-गांव में स्वयं की पूंजी लगाकर खोले गए केन्द्रों को फ्रेन्चाइजी के नियम और पांच जॉब रोल का लक्ष्य पूरा होने की बात कह कर, इन केन्द्रों को अब काम नहीं देना, एनएसडीसी की कमियों को ही उजागर करता है.

सवाल यह है कि अगर लक्ष्य पूरा हो गया था तो नया केन्द्र बनाने क्यों दिया गया? उनका निरीक्षण कर उन्हें मान्यता क्यों दी गई? उनसे शुल्क क्यों लिया गया? समय-समय पर अपने पोर्टल पर टार्गेट की राज्यवार और जॉब रोल के हिसाब से विवरण क्यों नही दिया गया? बिना किसी पूर्व सूचना के टार्गेट देना बंद क्यों कर दिया गया? एनएसडीसी ने अगर इसका लगातार मूल्यांकन किया होता, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती.

रिपोर्ट के मुताबिक कई ऐसे भी सेंटर्स हैं, जिन्हें मंज़ूरी तो मिली, लेकिन असल में वो ग़ायब हैं या नियमों का उल्लंंघन कर रहे हैं, उन्हें घोस्ट सेंटर का नाम दे दिया गया. ऐसे घोस्ट सेंटर्स की कोई कमी नहीं है. सवाल यह है कि घोस्ट सेंटर पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? कैसे ये केन्द्र अब तक चलते रहे, जबकि इन केन्द्रों की मॉनिटरिंग के लिए शुल्क भी केन्द्र मालिकों से ही एनएसडीसी और स्किल सेक्टर काउंसिल लेते हैं.

लोगों को हुनरमंद बनाना बड़ी चुनौती है. अगर इस चुनौती से निपटना है तो गांव-गाव में खुल रहे केन्द्रों को और मजबूत करना होगा. देश के पिछड़े इलाकों की सामाजिक, आर्थिक और संरचनात्मक व्यवस्था ऐसी है कि वहां से युवाओं खास कर लड़कियों को शहर के केन्द्रों तक लाना आसान काम नहीं होगा.

ऐसे में अगर परियोजना का लाभ सुदूर ग्रामीण अंचलों तक पहुंचाना है, तो जमीनी स्तर पर काम कर रही संस्थाओं को भी साथ लाना होगा. हर जिले में आईटीआई और पॉलिटेक्निक संस्थान उपलब्ध हैं, उन्हें ही पीएमकेके के तौर पर स्थापित करने पर जोर देना चाहिए. एनएसडीसी को अपनी व्यवस्था और चुस्त-दुरुस्त करनी होगी, अगर ऐसा नहीं कर पाए, तो कौशल विकास की चुनौती से निबटने की असफलता का दाग उनके ही दामन पर लगेगा.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here