समाजवादी पार्टी पर अमर सिंह का वर्चस्व फिर से कायम हो रहा है. उन्होंने अपने खास नौकरशाह दीपक सिंघल को उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव बनवाकर यह स्थापित किया है. प्रदेश के 10 अखंड भ्रष्टों में दीपक सिंघल का नाम शुमार रहा है. भ्रष्टाचार की डीलिंग से सम्बन्धित अमर सिंह और दीपक सिंघल के बीच हुई टेलीफोनिक वार्ताओं की रिकॉर्डिंग सुर्खियों में रही हैं. उस बातचीत के तीन टेप उपलब्ध हैं. ये टेप यू-ट्यूब पर भी अपलोडेड हैं. इसमें एक में दीपक सिंघल और अमर सिंह के बीच किसी शुगर डील के साथ-साथ स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड) के टेंडर डॉक्युमेंट और उसकी पॉलिसी और भूमि आवंटन में मनमाफिक बदलाव की खुली चर्चा हो रही है. दूसरे टेप में गैस की डील, आईएएस संजीव शरण के साथ नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हिस्सेदारी और किसी शासकीय मामले में मुख्य सचिव पर बाहरी दबाव डलवाने जैसी बातें हो रही हैं. तीसरे टेप में अमर सिंह दीपक सिंघल को आरडीए वाले देवेंद्र कुमार को 96.5 लाख रुपये पहुंचाने का निर्देश देते साफ-साफ सुने जा सकते हैं. मुख्य सचिव की नियुक्ति के बाद आम तौर पर लोग कहते मिलेंगे, सपा सरकार को सिंघम नहीं, सिंघल चाहिए.
उसी स्वनामधन्य नौकरशाह दीपक सिंघल को उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव नियुक्त किया गया है. अब आप याद करें, कौमी एकता दल के सपा में विलय को लेकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव के फैसलों के खिलाफ कितना माहौल बनाया था. अखिलेश ने माफिया मुख्तार अंसारी की पार्टी के सपा में विलय के विरोध का वितंडा खड़ा कर अपनी साफ छवि प्रस्तुत करने की कोशिश की. लेकिन यही साफ छवि का विचार भ्रष्ट नौकरशाह को मुख्य सचिव नियुक्त करते वक्त कहां विलुप्त हो गया था? सपा के सामान्य कार्यकर्ताओं के मन में मुलायम सिंह यादव के प्रति भी ऐसे ही सवाल गूंजते हैं. भ्रष्ट आचरण करने वाले नेताओं पर बरसने वाले मुलायम भ्रष्ट नौकरशाह को मुख्य सचिव बनाते वक्त क्यों नहीं बरसते, ऐसे मौकों पर क्यों चुप्पी साध जाते हैं? इन सवालों के जवाब लोग जानते हैं. अखिलेश यादव का छद्म और समाजवादी पार्टी की प्राथमिकताएं क्या हैं, जनता के सामने यह पूरी तरह उजागर हो चुकी हैं.
उत्तर प्रदेश के 18 वरिष्ठ आईएएस अफसरों की वरिष्ठता को लांघ (सुपरसीड) कर दीपक सिंघल को उत्तर प्रदेश का 48वां मुख्य सचिव बनाया गया है. इसके पहले आलोक रंजन मुख्य सचिव थे. आलोक रंजन को रिटायरमेंट के बाद एक्सटेंशन दिया गया. एक्सटेंशन की अवधि बीत जाने के बाद भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उन्हें छोड़ना नहीं चाहते थे. उनका वश चलता तो आलोक रंजन को फिर से एक्सटेंशन दे देते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो उन्हें अपना सलाहकार बना कर उन्हें लाल बत्ती दे दी और मंत्री का दर्जा दे दिया. इधर, दीपक सिंघल की भी विशेषता और विशेषज्ञता है कि वे अखिलेश, मुलायम, शिवपाल, अमर सबके प्रिय हैं. मुख्य सचिव बनने के पहले दीपक सिंघल शिवपाल के अधीन सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव थे. प्रदेश के 10 सबसे भ्रष्ट अफसरों में सिंघल का नाम शुमार रहा है. 10 महाभ्रष्टों में से तीन नौकरशाह अखंड प्रताप सिंह, नीरा यादव और दीपक सिंघल समाजवादी पार्टी के खास पसंद साबित हुए, जिन्हें सपा के विभिन्न कार्यकाल में प्रदेश का मुख्य सचिव बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.प
सिंघल की सुपरस्पीड 18 अफसर सुपरसीड
1982 बैच के आईएएस दीपक सिंघल को सुपरस्पीड तरक्की मिली. उन्होंने अपने से सीनियर 18 आईएएस अफसरों को सुपरसीड कर मुख्य सचिव की कुर्सी हासिल कर ली. सिंघल से सीनियर अफसरों में 1979 बैच के आईएएस अफसर राजस्व परिषद के चेयरमैन अनिल कुमार गुप्ता, 1980 बैच के आईएएस शैलेश कृष्ण, 1981 बैच के आईएएस कुंवर फतेह बहादुर और 1982 बैच के आईएएस कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी) प्रवीर कुमार शामिल हैं. दीपक सिंघल से सीनियर अन्य 14 आईएएस अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं.
कभी हुआं-हुआं करने वाले आज क्यों हैं धुआं-धुआं?
भ्रष्टाचार के मामलों में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव अखंड प्रताप सिंह, नीरा यादव और मौजूदा मुख्य सचिव दीपक सिंघल के साथ-साथ भारत की मुख्य धारा के कई और आईएएस भ्रष्ट आचरणों में बराबर के शरीक हैं. इनमें एनआरएचएम घोटाले के प्रमुख अभियुक्त प्रदीप शुक्ला जैसे वरिष्ठ नौकरशाह भी हैं, जो अभी हाल तक जेल में थे, समाजवादी सरकार की कृपा मिलने पर जेल से छूट कर आए हैं और आते ही तैनाती पाए हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश के पसंदीदा नौकरशाह रहे राजीव कुमार भी उसी भ्रष्ट-धारा के हैं. सीबीआई अदालत उन्हें तीन साल की सजा भी सुना चुकी है.
अखंड प्रताप सिंह, नीरा यादव और ब्रजेंद्र यादव को लेकर सारे नौकरशाहों ने इतना शोरगुल मचाया था कि जैसे वे तीन ही बेईमान थे और बाकी अफसर दूध के धुले हुए थे. असलियत यह थी कि सारे भ्रष्ट मिल कर तीन पर उंगली उठा रहे थे, जैसे सारे गीदड़ मिल कर हुआं-हुआं करते हैं. बाद के परिदृश्य में जब प्रदीप शुक्ला, राजीव कुमार जैसे अन्य भ्रष्ट नौकरशाहों की कलई खुलने लगी तो हुआं-हुआं करने वाले नौकरशाह चुप्पी साध गए. यह पूरी तरह से जाहिर हुआ कि नौकरशाहों की हुआं-हुआं भ्रष्टाचार को लेकर नहीं बल्कि कुछ खास अफसरों को दुनिया की नजरों से गिराने के षडयंत्र को लेकर हो रही थी.
तब आईएएस एसोसिएशन भी भ्रष्ट आईएएस चुनने और तीन अफसरों को बदनाम करने के षडयंत्र में लगा था. आज महाभ्रष्टों की कतार लगी हुई है, लेकिन आईएएस एसोसिएशन के मुंह पर पट्टर बंधा हुआ है. भ्रष्टाचार में नेताओं और नौकरशाहों की साठगांठ पक्की हो चुकी है और भ्रष्टाचार को मान्यता मिल चुकी है. तभी तो दीपक सिंघल जैसे लोग मुख्य सचिव बनाए जा रहे हैं! यादव सिंह जैसे महाभ्रष्टों पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी पार्टी का संरक्षण बुरी तरह उजागर हो चुका है. यादव सिंह को सीबीआई के चंगुल से बचाने के लिए अखिलेश ने क्या-क्या जतन नहीं किए. इस पर सुप्रीम कोर्ट तक को तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी. कोर्ट ने कहा, एक अधिकारी को बचाने के लिए राज्य सरकार इतनी उतावली और चिन्तित क्यों है? यहां तक कि यादव सिंह के ही चक्कर में पार्टी को बिहार के महागठबंधन से भी अलग होने का फैसला करना पड़ा, जिसका खामियाजा पार्टी भुगत रही है. आईएएस संजीव सरन और राकेश बहादुर के महा-भ्रष्टाचार पर भी हाईकोर्ट नकारात्मक टिप्पणी दे चुकी है. अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनते ही दोनों को क्रमशः नोएडा का अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) बना दिया था. मुख्यमंत्री सचिवालय के खास अधिकारी रहे आईएएस पंधारी यादव का नाम भ्रष्टों के चर्चा में न लें तो यह भ्रष्टाचार के साथ ही नाइंसाफी होगी. सोनभद्र का जिलाधिकारी रहते हुए पंधारी ने पूरा जिला खा लिया, उसके बाद वे जिस विभाग में जाते हैं, उसे ही भोज्य बनाने लगते हैं. उनके भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच हो रही है. लेकिन जांच भी सपाई रफ्तार में ही चल रही है. पंधारी यादव मनरेगा घोटाला मामले में प्रमुख आरोपी हैं. पंधारी पर मनरेगा के मद से जिलाधिकारी रहते हुए 98 करोड़ का नाश्ता करने जैसे कई आरोप हैं.
भ्रष्ट-प्रेमी समाजवादी सरकार में जो अधिकारी भ्रष्ट नहीं हैं, उन्हें ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. वरिष्ठ आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर अखिलेश सरकार की प्रताड़ना से इतने तंग आ चुके हैं कि उन्होंने यूपी कैडर बदल कर दूसरे किसी राज्य में जाने के लिए आवेदन भी डाल रखा है. जितने ईमानदार और कर्मठ आईएएस और आईपीएस अधिकारी हैं, वे सब केंद्र में अपनी प्रतिनियुक्ति करा कर बाहर चले गए या शंटिंग में हैं. सरकार की प्रताड़नाओं के कारण ईमानदार वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह भी सुर्खियों में रहे हैं.
फिर गरमाया अमर-सिंघल टेलीफोन टेपकांड
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने चीनी मिल घोटाले में सिंघल के खिलाफ जांच कराई थी. बरेली में तैनाती के दौरान दीपक सिंघल चीनी मिल घोटाले में फंसे थे. कल्याण सिंह के कार्यकाल में जांच शुरू हुई और सरकार बदली तो जांच खत्म हो गई. बसपा सरकार आई तो जांच दोबारा शुरू हुई लेकिन सिंघल की विशेषज्ञता के आगे वह जांच भी ढेर हो गई. फिर अमर सिंह से पैसे के लेन देन के तीन टेप लीक हुए और दीपक सिंघल फिर सुर्खियों में आ गए. सिंघल और अमर सिंह की बातचीत के पहले टेप (Https://www.youtube.com/watch?v=iehyzO-vTlg) में किसी शुगर डील, एसईजेड के टेंडर डॉक्युमेंट और उसकी पॉलिसी और लैंड अलॉटमेंट में मनमर्जी बदलाव की चर्चा है. दूसरे टेप (Https://www.youtube.com/watch?v=8y34DMYfBxk) में किसी गैस वाली डील, आईएएस संजीव शरण के साथ नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हिस्सेदारी और किसी शासकीय मामले में मुख्य सचिव पर बाहरी दबाव डलवाने की बातचीत है. तीसरे टेप में अमर सिंह सीधे तौर पर सिंघल को आरडीए वाले देवेंद्र कुमार को 96.5 लाख रुपये पहुंचाने का निर्देश देते सुने जा सकते हैं. दीपक सिंघल पर अपने रिश्तेदार की ब्लैक लिस्टेड कंपनी को काम देने का भी आरोप रहा है. सिंघल जब ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव थे, तब अपने रिश्तेदार की ब्लैक लिस्टेड कंपनी को बहाल कर काम देना शुरू कर दिया था. सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर अमर सिंह-दीपक सिंघल टेप प्रकरण की जांच की मांग अर्से से करती रही हैं. यहां तक कि इस मामले में नियुक्ति विभाग के उप सचिव अनिल कुमार सिंह ने नूतन ठाकुर से 13 नवम्बर 2014 को ही शपथ पत्र दाखिल करने को कहा था. 26 फरवरी को शपथपत्र दाखिल भी कर दिया गया था, लेकिन जांच का कुछ नहीं हुआ और सिंघल को तरक्की मिलती चली गई और आखिरकार वे प्रदेश के मुख्य सचिव भी बना दिए गए.
डॉ. नूतन ठाकुर ने मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए कहा था कि दीपक सिंघल सरकार की गोपनीय बातें एक निजी व्यक्ति (अमर सिंह) को बता रहे हैं, यह बहुत ही गंभीर मामला है. सिंघल एक निजी व्यक्ति से सरकारी कामकाज के लिए आदेश प्राप्त कर रहे हैं और लगातार सरकार की गोपनीयता भंग कर रहे हैं. लेकिन जांच की मांग अब तक लंबित पड़ी है. नूतन का कहना है कि दर्जनभर से अधिक वरिष्ठ अफसरों को सुपरसीड कर दीपक सिंघल की मुख्य सचिव के पद पर नियुक्ति भ्रष्टाचार के प्रति समाजवादी सरकार के उदासीन रवैये के साथ-साथ अखिलेश सरकार के भेदभावपूर्ण रवैये को भी उजागर करती है.