श्यामलि खस्तगीरका आज 23 जून को 85 वा जन्मदिवस है ! सुबह उनकी स्म्रतियों से ही मैं नींद से जाग उठा ! और सुबह सुबह कुछ यादो का सिलसिला शुरू हो गया ! 1983 के दिसंबर महीने में अंतिम सप्ताह में शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर ने शुरु किया हुआ बाऊल मेला के समय मैं वीणा आलासे जो विश्वभारती विश्वविद्यालय में मराठी भाषा की प्राध्यापक थी, उनका मेहमान था ! तो मेले में रातके बारा एक बजे होंगे हम लोग बाऊल गित सुनते हुए और उसके बाद मेले घूम रहे थे ! तो मेले में एक युध्द विरोधी स्टॉल का बोर्ड देखकर उसपर भी गये! तो वह स्टॉल लगाने वाली शख्सियत श्यामलिदीसे पहलीबार मुलाकात हुई !
भारत की वह पहली प्रतिनिधि थी, जिसने आंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका, कॅनडा में 60-70 के दशक में युद्ध विरोधी आंदोलन मे हिस्सेदारी की है ! और जेल भी गई है ! और युद्ध विरोधी इतनी की उसे सेना तथा तथाकथित देश की सुरक्षा के लिए तैनात किसी भी दल या संगठन से नफरत थी ! हम ईस्टर्न कमांड के मुख्यालय कलकत्ता में फोर्ट विलियम के किले में रहते थे ! श्यामलीदी हमारे घर में आकर इतनी आलोचना करती थी, कि हमारे साथ वाले लोगों को बहुत ही बुरा लगता था ! लेकिन मुझे उनके युद्ध विरोधी विचारधारा के लिए बहुत ही सम्मान था ! और मै उनकी बात को समझ सकता था ! पर अन्य लोगों की बहुत ही गलत फहमी होती थी ! लेकिन श्यामली दी को इस बात की बिल्कुल भी पर्वा नहीं होती थी ! वह अपने विचार बेबाकपन से बोलती थी ! इसलिये कुछ लोगों को उनसे डर भी लगता था !
नामके अनुसार श्यामल वर्ण की वीणाजीकि हमउम्र महिला, खदिकी साडी शरीर पर लपेटे हुई ! हा लपेटे हुए ही ! मुझे शायद ही उनको तर्तीब्से कपडे पहन कर देखनेका सौभाग्य ही कभी मिला होगा ! इस तरह से एक तरह से रहना यही ऊनके व्यक्तित्व का हिस्सा था ! और अपने शरीर पर ज्यादा ध्यान नहीं देना ! इसके लिए कौन क्या कहेंगे ? इसकी उन्हें रत्तीभर भी पर्वा नही थी ! एक तरह से जोगन जैसे मिजाज की महिला थी !
तो स्टॉल पर, प्राथमिक परिचय के बाद उन्होने कहा कि “मेरा घर नजदीक ही है, चलिये कुछ चाय-वाय पियेंगे ! तो रातके दो बजे के आसपास हम लोग उनके घर गए ! तो वहापर एक लंबे चौडे गोरे से शाल में लिपटे हुए एक सज्जन पहलेसे बैठे हुए थे ! तो उन्होंने कहा कि” यह मेरे एक्स हज्बेंड है, मीस्टर तान ! टिपिकल मंन्गोलियंन लुक, लेकिन उंचाई छ फिटके आसपास की होगी ! काफी प्रभावशाली व्यकित्व था ! इसलिए याद रह गये ! तो परिचय में कहा गया की आजकल यह कनाडा में रहते हैं ! और दूसरी बिविसे शादी की है ! हम सब ने चाय और कुछ नास्ते में खाया ! और वापस मेलेमे आ गये थे !
इस तरह श्यामलिदीसे पहली मुलाकात हुई, और फिर यह सिलसिला उनके मृत्यु 15 अगस्त 2011 तक जारी रहा ! वह भी भागलपुर के दंगेके बाद के काम में काफी बार आई थी ! तथा मेरे कलकत्ता के घर पर भी आती थी ! मेरे दोनो बेटों से विषेश लगाव हो गया था ! और वह भी, उनके शांतिनिकेतन के पहले प्रवासमे उनकेहि घर पर ठहरे थे ! मुख्यतः पपेट शो के द्वारा वह बहुत कुछ संदेशोंको देना उनका विषेश हुनर था ! इसलिये हमारे बच्चे उन्हें अक्सर याद करते थे !
श्यामलिदीके पिताजी सुधीर खस्तगीर देहरादून के दून स्कूल में आर्ट टीचर और पेन्टर थे ! उस गुणी कलाकार को देहरादून में देखकर उनकी चित्रकारी से रवींद्रनाथ टैगोर काफी प्रभावित हुए थे ! तो वो सुधीर खस्तगीर जी को शांतिनिकेतन कला भवन के लिये लेकर आये ! वहिके चीना भवन के प्रमुख चिनसे रवींद्रनाथ टैगोरने विषेश रुप से बुलाये गये श्रीमान तान श्यामलिदीके ससुर बने !
श्यामलिदीसे 1983 के बाऊल मेले की पहली मुलाकात के बाद, उनके मुर्त्यू पर्यन्त मै जब भी कभी शांतिनिकेतन गया उनकाही मेहमान रहा ! मैने अपने जीवन में इतने प्रकार के चाय होते हैं ! यह पहली बार उनके घर में देखा ! शायद चायनीज पतिसे ब्याह करने के कारण भी हो सकता है ! और खाने में इतने भिन्न-भिन्न प्रयोग भी उनकी क्रियेटिविटी सिर्फ चित्रकारी तक मर्यादित नही थी ! बहुत ही सुंदर गुड्डे-गुड़िया बनाकर उनके द्वारा युद्दविरोध से लेकर अंधश्रध्दा विरोध,पर्यावरण ,सामाजिक कुरीतियों के सवाल, ,जातिवाद,महिला एवं बाल शोषण जैसे मुद्दोपर अपनी पपेटस शो करती थी ! उनका ज्यादातर समय स्थानीय आदिवासियो संथालों के साथ ही जाता था !
उनका घर शांतिनिकेतन में एक मात्र मिटिंग पॉइन्ट बन गया था ! मेरी कितने सारी बैठके उनके आँगन या बरामदोमे हूई है ! और ऊपर से सबको टिपिकल बंगाली खिचड़ी का भोजन ! बहुत उदार दिल महिला थी ! उनके कारण मुझे शांतिनिकेतन के क्रीम से परिचित होने का अवसर मिला ! और उनके घर पर ठहरनेके कारण यह सब महानुभाव मुझे मिलने आते थे !
एक बार की मुलाकात में दो पंडित एक प्रोफेसर अम्लान दत्त और दूसरें प्रोफेसर शिवनारायण राय, लगभग आधा दिन स्री-पुरूष संबंधों से लेकर रेनेसां जैसे महत्वपुर्ण विषयपर ! जिसे मैं बौद्धिकभोज (Intellectual fist) कहता हूँ ! और हमारे चर्चा में कम्सेकम 5-6 बार विभिन्न प्रकार की चाय का प्रबंध श्यामलिदीकी तरफसे वह भेट अविस्मरणीय है !
वैसेही उनके घर पन्नालाल दासगुप्ता मशहूर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अक्सर मिलते ही थे ! उनके अंतिम दिनो में तो श्यामलिदीके घर में ही रहते थे ! वह बीरभूम जिलेमे टेगोर सोसायटी नामकी संस्था के माध्यम से सहकारिता और मनुष्य निर्मित बाढ और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य कर रहे थे ! और बांबु का चरखा संथाली तथा अन्य गरीब लोगों को रोजगार के पर्याय के रूप में बांटने का काम करते थे और उन चरखो मेसे ज्यादातर चरखे श्यामलीदी के बरामदे में रखें होते थे !
मुझे तो रवींद्रनाथ टैगोर की चेतना का संचार श्यामलिदीके अंदर महसूस होता था ! क्योंकि मेरी व्यक्तिगत राय या सोच है की शांतिनिकेतन हो या सेवाग्राम या ऋषि अरविंद की पॉडेचेरी या वर्तमान में भारत के किसी भी आश्रमोको देखकर लगता है, कि यह सिर्फ एक निर्जीव संग्रहालय या सीमेंट कॉक्रीट के जंगल जैसे स्थान बनकर रह गए हैं ! उनमेसे प्राण उन महात्माओ के साथ ही निकल गया है ! अब बचा है तो सिर्फ एक कलेवर ! श्यामलिदी जैसे लोग देखकर लगता था कि नहीं यह लोग उनकी संवेदनाओका वहन कर रहे हैं ! मैं तो उन्हे शांतिनिकेतन की आत्मा कहता था ! क्योंकि वहां कुछ भी कम ज्यादा होता था तो श्यामलिदी तुरंत विश्वभारती विश्वविद्यालय के कुलपति से मिलने वाली पहली व्यक्ति होती थी ! और उन्हेभी उनकी बात मानते हुए देखा है !
उनके देहांत के बाद भी मेरा शांतिनिकेतन आना जाना जारी है ! लेकिन लगता है कि अब यहाँ की चेतना गायब है ! बहुत ही औदासीभरा माहौल बना हुआ है ! अन्य डिग्रीया देनेवाले विश्वविद्यालय और इसमे कोई खास फर्क नहीं रहा है ! और सबसे भयंकर स्थिति 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, भारत के ज्यादातर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में चुन- चुन कर ऐसे-ऐसे नमूने महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किए थे ! उनमें से एक शांतिनिकेतन के विश्वभारती विश्वविद्यालय के विद्युत चक्रवर्ती नामके कुलपति के समय नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर अमर्त्य सेन के पारिवारिक घर को लेकर जिस तरह से चक्रवर्ती मोशाय ने चक्कर चलाएं ! उसका कोई हिसाब नहीं ! अंत में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद हस्तक्षेप करते हुए और स्थानीय अदालत के सहयोग से उस मामले को देखा है ! वैसे ही स्टाफ के साथ और सबसे भयंकर विद्यार्थियों के साथ शारीरिक रूप से हमला करने जैसे कारनामों से बंगाली अखबार भरे रहते थे ! ऐसे समय में मुझे श्यामलीदी की बरबस याद आती थी !
सबसे पीडादायक माहौल 2014 के बाद भारत की सत्ता पर काबिज किया हुआ संघ परिवार को तो वैश्विक स्तर पर सोचने समझने की नाही कोई इच्छा है ! और नहीं इस तरह के सोचने वाले लोगों के प्रति आदर सम्मान ! उन्हें भी काट-छांट कर अपने फ्रेम में बैठाने की कोशिश शुरू कर दी है ! राष्ट्र वाद के भारत के सबसे पहले और सबसे मशहूर रवींद्रनाथ टैगोर की वैचारिक धारा को सुविधाजनक रुपसे भूल कर उन्हें भी हिंदू राष्ट्रवाद के हिमायती होने का दावा मोहन भागवत 2015 में कर चुके है !
और प्रधानमंत्री का अगाध ज्ञान के कारण उनकी प्रतिभा की झलकियां नहीं लिखूं तो अच्छा है ! उनके नियुक्त किया गया व्हाईस चांसलर रही सही कसर भी पूरी तरह से करने पर तुले हुए हैं! सौ साल पहले के आंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयमें भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि मनाने का कार्यक्रम आयोजित किया गया ! उन्होंने अपने जीवन में शायद ही कभी विश्वभारती विश्वविद्यालय के लिए कुछ किया हो ! लेकिन आजकल शांतिनिकेतन के हर लैंप पोस्ट पर उनकी फोटो टंगी हुई है ! और ए बी वी पी को हर बात पर खुली छूट दे दी है ! और एक तरह से भारत की सभी सेंट्रल यूनिवर्सिटी का यही हाल है !
आज श्यामली दी का 85 वा जन्मदिन और कल यानी 22 जून को गौर किशोर घोष के 102 वे जन्मदिन और अम्लानदत्त के शताब्दी पूरी होने के बहाने, बंगाल के सांस्कृतिक पतनशीलता के दौरान यह सभी लोग बरबस याद आ रहे हैं !आज श्यामलिदी होती जो 85 साल की होती! लेकिन उन्हे अचानक सेलेब्रल स्ट्रोक आया, और वो अब अपने बीच नहीं रही ! और इसिलिए आज सुबह – सुबह मुझे उनकी यादोने घेर लिया ! जिसमेसे कुछ शेयर कर रहा हूँ ! मेरी तरफ से विनम्र अभिवादन