मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल भर्ती मामले को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार बैकफुट पर नज़र आने लगी है. दिन-ब-दिन यह मामला बड़ा होता जा रहा है. व्यापमं मामले की वजह से विधानसभा के बजट सत्र को समय से एक महीने पहले ही सरकार को खत्म करना पड़ा. इस मामले की आंच राजभवन तक पहुंचने से यह बात तो साबित हो गई है कि इस घोटाले को ऊंचे स्तर पर निर्देशित किया गया है. जब प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था, तब उन्होंने कहा था कि मेरे ऊपर भी लोग हैं और उनकी तरफ से अनुशंसायें आईं थीं. अब इस मामले में प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है. उनपर आरोप है कि उन्होंने तीन उम्मीदवारों को फर्जी तरीके से वन रक्षक भर्ती परीक्षा में अपने पद का दुरुपयोग कर पास करवाया. हालांकि उन्होंने अपने खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को अदालत में इस आधार पर चुनौती दी है कि वह संवैधानिक पद पर हैं और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है, लेकिन इससे पहले राज्यपाल के ओएसडी और उनके बेटे शैलेश यादव का नाम इस घोटाले में आ चुका है. इस घोटाले के प्रमुख आरोपी पंकज त्रिवेदी डेढ़ साल में करीब छह बार राजभवन गया था. इस बात का खुलासा राजभवन की विजिटर्स लॉगबुक से हुआ है. इस लॉगबुक को एसटीएफ एफआईआर दर्ज करने से पहले ही जब्त कर चुकी है. यह राज्यपाल और उनके बेटे के खिलाफ सबसे अहम सबूत साबित हो सकता है.
न्यायालय में प्रस्तुत आरोप पत्र में मुख्य आरोपी पंकज त्रिवेदी ने बयान दिया था कि परीक्षा के पूर्व से समय-समय पर प्रभावशाली व्यक्तियों के दबाव आते रहे तथा पीएमटी 2012 में उन लोगों को चयनित कराने के लिए दबाव बनाया, जिनके अत्यधिक दबाव के कारण मैंने कंप्यूटर शाखा के प्रभारी नितिन महिंद्रा एवं चंद्रकांत मिश्रा से चर्चा करके अभ्यार्थियों को पास कराने के लिए योजना तैयार की. अन्य परीक्षाओं के संबंध में मुझे वरिष्ठ लोगों से, जिनमें अधिकारी नेता शामिल हैं, अलग अलग समय में लिस्ट दी थी. इसी तरह के घोटाले की वजह से हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला अपने बेटे के साथ सजा काट रहे हैं. शिवराज सिंह चौैहान पिछले साल विधानसभा में यह स्वीकार कर चुके हैं कि 1000 से ज्यादा अपात्र लोग इस घोटाले की वजह से प्रदेश में नौकरियां पा चुके हैं. कुल मिलाकर व्यापमं द्वारा आयोजित 13 परीक्षायें जांच के दायरे में आ चुकी हैं. 14 महीने की एसआईटी जांच के बाद लगभग 1500 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
यह मुद्दा केवल राजनीतिक नहीं रह गया है. यदि किसी मुख्यमंत्री को देश के ईमानदार नेताओं में से एक माना जाता है तो उसके 10 साल के शासन काल में लंबे समय तक इस तरह की धांधली हो तो यहां बात नैतिकता की आ जाती है. भले ही अभी सबूूत मुख्यमंत्री के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनके कार्यकाल में इतने बड़े स्तर पर घोटाले को अंजाम दिया गया, तो इसे सीधे-सीधे उनके कर्तव्य निर्वहन में उनकी विफलता माना जाएगा. यह शिवराज के राज में सबसे बड़ा दाग है. इससे न जाने कितने युवाओं का भविष्य खराब हो गया. इसकी सीधी-सीधी जिम्मेदारी प्रदेश के मुख्यमंत्री की है, क्योंकि इतना बड़ा घोटाला यदि किसी मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हो तो वह जवाबदेही से नहीं बच सकता है. इसी वजह से प्रदेश में विपक्ष आक्रामक है और प्रदेश की आम जनता के मन में राज्यपाल जैसे बड़े लोगों के इस मामले में फंसने से सवाल खड़े हो रहे हैं. इसलिए सरकार के लिए बेहतर होगा कि वह इस मामले से सभी लोगों के नाम सार्वजनिक करें और उन दस्तावेजों का खुलासा करें, जिस आधार पर मुख्यमंत्री ने प्रदेश में 1000 लोगों के फर्जी तरीके से भर्ती होने की बात स्वीकार की थी. यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो आमजन का प्रदेश सरकार से विश्वास उठ जाएगा.
हालांकि कांग्रेस पार्टी काफी पहले से इस मामले की जांच कई बार सीबीआई से कराने की मांग कर चुकी है. राज्यपाल का नाम मामले में आने के बाद कांग्रेस पार्टी एक बार फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस ने मामले की जांच कर रही एसआईटी को एक केंद्रीय मंत्री, राज्य सरकार के एक केंद्रीय मंत्री और राज्य के कुछ आला अधिकारियों के खिलाफ दस्तावेज सौंपे हैं और एसआईटी से मांग की है कि वह इन दस्तावेजों की जांच कर उन लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई करे.
दस्तावेज प्रस्तुत करते समय कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया और वकील केटीएस तुलसी मौजूद थे. इस दौरान उन्होंने आरोप लगाया कि व्यापमं घोटाले में शिवराज सिंह और उनका परिवार शामिल है. कांग्रेस ने जांच में मुख्यमंत्री और उनके परिवार को बचाने एवं एसटीएफ के सीएम के इशारे पर काम करने का भी आरोप लगाया है और कहा कि आरोपियों से सीज किए गए कंप्यूटर से प्राप्त दस्तावेजों से छेड़छाड़ की गई है. हालांकि कांग्रेस एक बार फिर इस मुद्दे के बल पर प्रदेश में अपनी खोई जमीन वापस पाना चाहती है.
व्यापमं घोटाला संघर्ष समिति के सदस्य मनीष काले ने बताया कि समिति ने 2 मार्च को दिल्ली के जंतर मंतर में प्रदर्शन किया था. वे लोगों से लगातार मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर उनसे अपने बच्चों के भविष्य के साथ हुए खिलवाड़ के लिए जिम्मेदार कौन, जैसे सवाल पूछ रहे हैं. लोग चाहते हैं कि इस घोटाले की जवाबदेही तय हो. वेटिंग लिस्ट के छात्रों को सभी आयामों में रिक्तस्थानों पर प्रवेश दिया जाए. सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पारदर्शी और निष्पक्ष व्यवस्था निर्मित की जाए. फिलहाल इस मामले की जांच हाई कोर्ट की देखरेख में हो रही है. इसलिए अपेक्षा की जानी चाहिए कि इस मामले में सारा सच सामने आएगा. बावजूद इसके, इस कांड ने राज्य की भाजपा सरकार को सवालों के घेरे में खड़ा किया है. इससे उसकी छवि प्रभावित हुई है. इसे लेकर विधानसभा में जो हंगामा हुआ है, उसके बाद शिवराज की दिल्ली यात्रा को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि व्यापमं मामले के संबंध में ही आलाकमान ने उन्हें दिल्ली बुलाया था, लेकिन सवाल यहां यह उठता है कि आखिरकार सरकार व्यापमं के मुद्दे पर इस तरह का रवैया क्यों अपना रही है. यदि प्रदेश सरकार को मालूूूम है कि एक हजार नियुक्तियां गलत तरीके से हुई हैं तो उन्हें अब तक उन्हें रद्द क्यों नहीं किया गया? उन रिक्तियों में भर्ती के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? ये सारे सवाल सरकार के लिए लगातार परेशानी का सबब बने हुए हैं. सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह इन सवालों के जवाब दे. अन्यथा शिवराज के राज को इतिहास में जंगलराज के नाम से जाना जाएगा.
जिस घोटाले को देश का अब तक का सबसे बड़ा शिक्षा घोटाला बताकर प्रचारित किया जा रहा हो, उसके बारे में उठ रही हर शंका का जवाब सरकार को प्रदेश की जनता को देना चाहिए था. सरकार के पास प्रदेश के 6 करोड़ लोगों के बीच अपनी बात रखने का विधानसभा से बड़ा कोई स्टेज नहीं हो सकता है. सरकार का व्यापमं मामले में विधानसभा सत्र को समय से पहले खत्म कर देने से यही जाहिर होता है कि सरकार बैकफुट पर है और अपने बचाव की राह तलाश रही है.
बैकफुट पर शिवराज सरकार
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