शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी सेकुलर मोर्चे ने उत्तर प्रदेश में विपक्षी राजनीति का समीकरण गड्डमड्ड कर दिया है. समाजवादी पार्टी का भविष्य देखते हुए बसपा नेता मायावती ने गठबंधन के भविष्य को ही अधर में रख दिया है. मायावती अब अकेले दम पर लोकसभा चुनाव में उतरने का मन बना रही हैं. हालांकि घबराए अखिलेश यादव बसपा का पिछलग्गू बनने को भी तैयार हैं. चुनावी समीकरण बिगाड़ने के लिए भीम सेना के प्रमुख चंद्रशेखर भी ‘मैदाने जंग’ में उतर आए हैं. अब चंद्रशेखर भी मायावती को बुआ कहने लगे हैं. चुनावी समीकरण में दो नेताओं की बुआ के रूप में मायावती फिट नहीं बैठ रहीं, इसे भांपते-समझते हुए मायावती ने साफ-साफ कह ही दिया कि राजनीति में उनका कोई भाई-भतीजा नहीं है और वे किसी की बुआ नहीं हैं. छत्तीसगढ़ में अजित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस के साथ ‘अप्रत्याशित’ गठबंधन करके और मध्य प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करके मायावती ने कांग्रेस को भविष्य का संदेश दे दिया है. यह संदेश यूपी में अखिलेश यादव के लिए भी है.
मायावती ने छत्तीसगढ़ ऐलान के पहले यूपी में गठबंधन को लेकर जो बयान दिया था उससे घबराए अखिलेश यादव ने फौरन ही यह कह कर बात संभालने की कोशिश की थी कि समाजवादी पार्टी गठबंधन के लिए दो कदम पीछे हटने के लिए भी तैयार है. छत्तीसगढ़ ‘डेवलपमेंट’ के बाद अब अखिलेश कितने कदम पीछे हटेंगे, इस बारे में उनका बयान आना अभी बाकी है. अखिलेश ने उस समय यह भी कहा था कि भाजपा जैसी साम्प्रदायिक पार्टी को हराने के लिए सभी दलों को एकसाथ आगे आना चाहिए. अखिलेश यादव यह बयान देकर फंस गए, क्योंकि फौरन ही शिवपाल ने कह दिया कि साम्प्रदायिक शक्तियों के खिलाफ लड़ाई तभी सच्ची मानी जा सकती है, जब गठबंधन में समाजवादी सेकुलर मोर्चे को भी शामिल किया जाए. सीटों को लेकर सपा बसपा और कांग्रेस में खींचतान चल ही रही थी कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक सीटें देने की राष्ट्रीय लोकदल की मांग शामिल हो गई. इसके बाद अब समाजवादी सेकुलर मोर्चे को भी गठबंधन में शामिल करने की सेकुलर-सैद्धांतिक-अनिवार्यता फांस बन गई है.
समाजवादी सेकुलर मोर्चा के नेता शिवपाल सिंह यादव ने गठबंधन-तार पर अपना कटिया-कनेक्शन यह कहते हुए फंसा दिया कि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस यदि असलियत में साम्प्रदायिक शक्तियों से लड़ना चाहती हैं, तो उन्हें समाजवादी पार्टी सेकुलर मोर्चे को भी गठबंधन में शामिल करना होगा. शिवपाल ने अखिलेश से भी कहा कि साम्प्रदायिक शक्तियों से उनकी लड़ाई प्रामाणिक तभी मानी जाएगी जब गठबंधन में मोर्चे को भी शामिल करने के लिए वे पहल करें. शिवपाल ने सपा और बसपा को चेतावनी भी दे डाली कि अगर समाजवादी सेकुलर मोर्चा को गठबंधन में शामिल नहीं किया गया तो मोर्चा अपने बूते पर चुनाव लड़ कर उन सीटों को तो जीत ही लेगा जो तालमेल में सपा द्वारा या बसपा द्वारा छोड़ी जाएंगी. गठबंधन में शामिल करने का प्रस्ताव उछालने वाले शिवपाल हालांकि पहले यह कह चुके हैं कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन उसूलों का भटकाव है. लेकिन अब शिवपाल कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में चाहे सपा-बसपा गठबंधन हो या कोई दूसरा गठबंधन, अब मोर्चा को दरकिनार कर या उसकी उपेक्षा कर कोई भी दल इस हैसियत में नहीं कि वह चुनाव लड़ सके और सरकार बना सके.
गठबंधन को ‘प्रेशर’ में लाने के लिए शिवपाल ने प्रदेशभर के छोटे-छोटे दलों से बातचीत करने और उन्हें मोर्चे की तरफ करने की कवायद तेज कर दी है. इसके लिए उन्होंने शरद यादव समेत कई वरिष्ठ नेताओं से बातचीत भी की और बामसेफ के सम्मेलन में हिस्सा लेने फैजाबाद भी गए. शिवपाल बसपा और कांग्रेस से भी बात करेंगे और गठबंधन में मोर्चा को शामिल करने की सेकुलर-सैद्धांतिक-अनिवार्यता बताएंगे. शिवपाल कहते हैं कि फिर भी अगर मोर्चे को गठबंधन में शामिल करने से वे परहेज करते हैं, तो वे नुकसान झेलने के लिए तैयार रहें. शिवपाल दावा करते हैं कि समाजवादी सेकुलर मोर्चा गठबंधन में शामिल नहीं हुआ तो गठबंधन को 40 से 50 सीटों पर सीधा नुकसान पहुंचेगा. शिवपाल राजधानी लखनऊ में शीघ्र ही मोर्चे का विशाल सम्मेलन आयोजित करने की तैयारी में हैं.
शिवपाल राजनीति में अपनी प्रभावशाली जमीन तैयार करने की जद्दोजहद में लगे हैं. उनकी दूरंदेशी है कि वे मुलायम सिंह यादव का चेहरा अपने साथ लेकर चल रहे हैं. शिवपाल समाज में यह संदेश दे रहे हैं कि पुत्र होते हुए अखिलेश ने मुख्यमंत्री बनते ही पिता मुलायम को हाशिए पर रख दिया, लेकिन वे भाई होते हुए मुलायम को अपना सिरमौर बना कर चलना चाहते हैं. इसी इरादे से शिवपाल ने समाजवादी मोर्चे का अध्यक्ष पद मुलायम सिंह यादव के लिए अक्षुण्ण रखा है. शिवपाल खुद को समाजवादी सेकुलर मोर्चे का संयोजक बताते हैं और साफ-साफ कहते हैं कि अध्यक्ष का पद नेता जी के लिए है. शिवपाल ने मुलायम सिंह यादव के समक्ष समाजवादी सेकुलर मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव रखा है.
शिवपाल का कहना है कि मोर्चे का गठन नेताजी से बातचीत करने और उनका आशीर्वाद लेने के बाद ही किया गया. राजनीतिक पंडितों का भी मानना है कि शिवपाल का यह कदम राजनीतिक दूरदृष्टि से भरा है, क्योंकि अगर मुलायम ने मोर्चे का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना स्वीकार कर लिया, तो खेल एकतरफा हो जाएगा. मुलायम के आते ही समाजवादी पार्टी में भगदड़ जैसी स्थिति हो जाएगी. शिवपाल भी कहते हैं कि नेता जी अगर मान गए, तो समाजवादी पार्टी में उपेक्षित नाराज नेता-कार्यकर्ता सब नेता जी की छाया में मोर्चे के साथ चले आएंगे. शिवपाल ने मुलायम सिंह यादव को मोर्चा के प्रत्याशी के रूप में मैनपुरी लोकसभा चुनाव में उतरने का भी प्रस्ताव दे रखा है. शिवपाल ने कहा कि नेता जी मैनपुरी से मोर्चे के प्रत्याशी होंगे.
साथ-साथ शिवपाल यह भी कहते हैं कि अगर वे समाजवादी पार्टी से भी चुनाव लड़ते हैं, तो मोर्चा उनका समर्थन करेगा और उनके खिलाफ कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा करेगा. यह राजनीतिक दूरदृष्टि ही है कि जहां समाजवादी पार्टी के पोस्टर-बैनरों से मुलायम सिंह का चेहरा हटता गया, वहीं समाजवादी सेकुलर मोर्चे के झंडों, बैनरों और पोस्टरों पर मुलायम की तस्वीर प्रमुखता से लगी है. शिवपाल ने पिछले दिनों अपनी नई राजनीतिक पार्टी समाजवादी सेकुलर मोर्चा का औपचारिक झंडा भी जारी किया. इस झंडे पर एक तरफ शिवपाल हैं, तो दूसरी तरफ मुलायम. शिवपाल और उनके समर्थकों की गाड़ियों पर अब समाजवादी सेकुलर मोर्चा का झंडा लग गया है. राजनीति के मैदान में शिवपाल की यह नई पारी तो है, लेकिन उन्होंने मुलायम के साथ रहकर राजनीति के दाव-पेंच सीखे हैं. अब शिवपाल के लिए उसे आजमाने और परखने का समय है.
थोड़ी बहुत सियासत समझने वाले लोग भी यह जानते हैं कि समाजवादी सेकुलर मोर्चे का जन्म किन वजहों से हुआ है. मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के साथ जैसा व्यवहार किया और जिस तरह उनका राजनीतिक भविष्य चौपट करने की कोशिश की, उससे इतना तो जाहिर ही है कि समाजवादी सेकुलर मोर्चा कोई समाजवादी पार्टी को मजबूत करने के लिए नहीं बना है. चुनावी गणितज्ञों का भी मानना है कि मोर्चा सीटें जीते न जीते, लेकिन समाजवादी पार्टी को नुकसान तो पहुंचाएगा ही.
अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी का स्वयंभू राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही जिस तरह मुलायम और शिवपाल समर्थकों को किनारे लगाया और बाहर का रास्ता दिखाया, वह नाराज और उपेक्षित जमात आज शिवपाल के साथ खड़ी है और निश्चित तौर पर वह जमात अपना बदला साधेगी. ऐसी ही उपेक्षा से आहत होकर मुलायम सिंह यादव ने भी लोकदल से अलग होकर समाजवादी पार्टी बनाई थी. उस समय भी मुलायम के राजनीतिक भविष्य पर लोग सवाल खड़े करने लगे थे और तमाम आशंकाएं जताने लगे थे, लेकिन मुलायम के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने राजनीतिक कामयाबियां पाईं और अपनी ठोस पहचान कायम की. मुलायम सिंह से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि आज शिवपाल ने भी मोर्चा बना कर मुलायम का ही अनुकरण किया है.
इस प्रशिक्षण का ही असर है कि समाजवादी सेकुलर मोर्चे के ऐलानिया मैदान में उतरने के बाद से समाजवादी पार्टी में सन्नाटा व्याप्त है. अखिलेश यह दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि मोर्चे से सपा की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन असलियत यही है कि सपा में बेचैनी है. यह ध्यान में रखना जरूरी है कि उत्तर प्रदेश में करीब आठ प्रतिशत यादव मतदाता हैं और पिछड़ी जाति में लगभग 20 फीसदी हिस्सेदारी यादवों की है. मायावती और अखिलेश की ‘बुआ-बबुआ पॉलिटिक्स’ यादव समुदाय को कभी भी रास नहीं आई और न पारम्परिक यादव समाज ने भतीजे के हाथों चाचा के अपमान को ही हजम किया.
मुलायम को अपदस्थ कर अखिलेश का अध्यक्ष बनना भी यादव समाज को गवारा नहीं हुआ. ऐसे में शिवपाल के उस बयान में दम है कि समाजवादी सेकुलर मोर्चे के सहयोग के बिना देश में अगली सरकार बनाना संभव नहीं होगा. शिवपाल ने कहा कि समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में उन्होंने भी बड़े कष्ट झेले हैं, बड़ी मेहनत और जद्दोजहद की है, लेकिन उन्हें ही लगातार अपमान झेलना पड़ा. 29 अगस्त 2018 को समाजवादी सेकुलर मोर्चे के गठन की औपचारिक घोषणा के बाद शिवपाल को मिलते भारी जन-समर्थन से अखिलेश यादव को अपनी सियासी जमीन हिलती महसूस हुई. अखिलेश ने समाजवादी सेकुलर मोर्चे के गठन को भारतीय जनता पार्टी की साजिश कहना शुरू कर दिया, लेकिन अखिलेश की ऐसी प्रतिक्रिया को कोई तरजीह नहीं मिली. राजनीतिक विश्लेषकों का भी यह कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में शिवपाल यादव के समाजवादी सेकुलर मोर्चे की अहम भूमिका रहेगी. समाजवादी पार्टी में शिवपाल की छवि जनप्रिय नेता की रही है.
समाजवादियों पर मुलायम के बाद शिवपाल की ही सबसे अच्छी पकड़ है. इसीलिए मोर्चे को विस्तार लेने में अधिक मुश्किलें पेश नहीं आ रही हैं. राजनीति के जानकार भी यह मानने लगे हैं कि समाजवादी सेकुलर मोर्चा आगामी चुनावों में हार-जीत के समीकरणों को बदलेगा और समाजवादी पार्टी का समानान्तर विकल्प बनेगा. मुलायम सिंह के नजदीक रहकर सियासी दावपेंच गहराई से सीख चुके शिवपाल ने सटीक मौके पर मोर्चे का ऐलान किया और मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ जोड़े रखने के लिए भाजपा में जाने का प्रस्ताव ठुकरा दिया. शिवपाल के इस कदम से सियासी जगत में यह संदेश भी गया कि समाजवादी सेकुलर मोर्चा मुलायम के सिखाए रास्ते पर चल पड़ा है और भविष्य में मुलायम खुद भी सेकुलर मोर्चा से जुड़ सकते हैं.
मोर्चे से बौखलाई सपा, सस्ते बयान पर उतरे अखिलेश के समर्थक
समाजवादी सेकुलर मोर्चे के अस्तित्व में आने से समाजवादी पार्टी इतनी बौखला गई कि अखिलेश यादव के समर्थक शिवपाल यादव पर सस्ते आरोपों पर उतर आए. अखिलेश के करीबी पूर्व मंत्री पवन पांडेय ने शिवपाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और तीखा प्रहार किया. मोर्चा ने इसके जवाब में कहा कि अखिलेश और पवन जैसे नेताओं के कारण ही समाजवादी पार्टी का यह हश्र हुआ है. मोर्चा के प्रवक्ता दीपक मिश्र और अभिषेक सिंह आशू ने कहा कि मोर्चा बनने से घबराई समाजवादी पार्टी शिवपाल सिंह यादव की छवि धूमिल करने की कोशिश कर रही है.
मोर्चा प्रवक्ता कहते हैं कि शिवपाल यादव के प्रयासों से ही राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को रोकने के लिए महागठबंधन बना था. इसमें पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, पूर्व सांसद शरद यादव, राजद नेता लालू यादव और रालोद नेता अजित सिंह जैसे नेताओं ने भी मुलायम सिंह यादव को अपना अध्यक्ष मान लिया था. इस महागठबंधन को अखिलेश यादव और उनके गुरु रामगोपाल यादव ने महज इसलिए तोड़ डाला, क्योंकि वे सब यादव सिंह के महा भ्रष्टाचार के कीचड़ में सने थे और उन्हें भाजपा से डर लग रहा था. अगर अखिलेश और रामगोपाल महागठबंधन को नहीं तोड़ते तो मुलायम प्रधानमंत्री पद के लिए सर्व-स्वीकार्य नेता होते. उसका श्रेय शिवपाल यादव को ही मिलता. पिता ने पुत्र को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन पुत्र ने उसी पिता को कहीं का नहीं छोड़ा.
समाजवादी पार्टी छोड़ कर समाजवादी सेकुलर मोर्चा में शामिल हुए सपा की राज्य कार्यकारिणी व समाजवादी युवजन सभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पूर्व सदस्य और लखीमपुर खीरी स्थित निघासन से जिला पंचायत सदस्य राजीव गुप्ता ने कहा कि समाजवादी पार्टी डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसे महापुरुषों के सिद्धांतों पर चलने वाली पार्टी रही है, लेकिन अखिलेश यादव में उस महान थाती को संभाल कर रख पाने की योग्यता नहीं थी.
जिस डाल पर वे बैठे थे उसे ही काट डाला और पूरी पार्टी को नष्ट कर डाला. रामगोपाल यादव की शह पर अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल सिंह यादव को अपमानित करने का अमर्यादित आचरण किया, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है. प्रदेश की जनता इस आचरण के लिए अखिलेश को कभी माफ नहीं करेगी. राजीव गुप्ता कहते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें निघासन विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए सपा का टिकट मिला था, लेकिन अखिलेश यादव ने उनका टिकट महज इसलिए काट दिया क्योंकि वे शिवपाल यादव के समर्थक थे. अखिलेश ने ईर्ष्या में निघासन की जीती हुई सीट भी गंवा दी. सेकुलर मोर्चा के आने से प्रदेश में परिपक्व राजनीति का नया अध्याय खुलेगा और समाज के सभी समुदाय के लोग शिवपाल यादव के नेतृत्व में एकजुट होंगे.
… और मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने को राज़ी नहीं ही हुए अखिलेश
आखिरी वक्त में मुलायम ने अखिलेश और शिवपाल में सुलह कराने की कोशिश की थी, लेकिन शिवपाल ने मुलायम का दाव मुलायम के ही हवाले कर दिया. शिवपाल ने सुलह की शर्त यह रखी थी कि मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए. लेकिन अखिलेश यादव ने यह शर्त नहीं मानी और सुलह वार्ता फेल हो गई.
मुलायम सिंह ने अपने आवास पर ही अखिलेश और शिवपाल की सुलह-बैठक बुलाई थी. पहले तो परिवार के सदस्य ही बैठक में शामिल थे, लेकिन थोड़ी देर बाद ही सपा नेता आजम खान और अखिलेशवादी समाजवादी पार्टी के कोषाध्यक्ष संजय सेठ भी वहां पहुंच गए. अखिलेश यादव शिवपाल यादव को सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए तैयार थे, लेकिन मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की शर्त उन्हें मंजूर नहीं हुई.
अखिलेश अपने पिता को दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के लिए कतई तैयार नहीं थे. नतीजतन सुलह-वार्ता बेनतीजा समाप्त हो गई. बाद में मुलायम ने यह कहते हुए बात संभाली कि वे खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए इच्छुक नहीं हैं. बैठक में अखिलेश ने शिवपाल को पार्टी से निकाले जाने की धमकी भी दी थी, लेकिन इस धमकी का कोई असर नहीं दिखा. शिवपाल ने नई पार्टी की घोषणा भी कर दी, लेकिन अखिलेश अब तक शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी से निष्कासित नहीं कर पाए हैं.
नौरत्नों के बाद शिवपाल ने जोड़े पांच पांडव
समाजवादी सेकुलर मोर्चा के संयोजक शिवपाल सिंह यादव ने मोर्चे का औपचारिक ऐलान करने के बाद ही अपने नौ प्रवक्ताओं के मनोनयन की सूची जारी कर दी थी. 20 सितम्बर को शिवपाल ने फिर पांच प्रवक्ताओं का मनोयन किया और 14 प्रवक्ताओं की फौज खड़ी कर ली.
मोर्चे के गठन के बाद शिवपाल ने पूर्व मंत्री शारदा प्रताप शुक्ल और पूर्व मंत्री शादाब फातिमा को मोर्चे का प्रवक्ता मनोनीत किया था. इनके अलावा दीपक मिश्र, नवाब अली अकबर, सुधीर सिंह, प्रो. दिलीप यादव, अभिषेक सिंह आशू, मोहम्मद फरहत रईस खान और अरविंद यादव भी मोर्चा के प्रवक्ता बनाए गए थे. प्रवक्ताओं की दूसरी लिस्ट में मोहम्मद शाहिद, अरविंद विद्रोही, देवेंद्र सिंह, राजेश यादव और इरफान मलिक के नाम शामिल हैं. अब समाजवादी सेकुलर मोर्चा के 14 प्रवक्ता हैं, जो आधिकारिक तौर पर मीडिया के समक्ष पार्टी का पक्ष रखेंगे. सपा से दो बार इटावा के सांसद रह चुके रघुराज सिंह शाक्य और पूर्व विधायक मलिक कमाल युसुफ जैसे वरिष्ठ नेता पहले ही मोर्चे में शामिल हो चुके हैं.
मुलायम मैनपुरी से लड़ेंगे, आज़मगढ़ शिफ्ट होंगे तेजू!
मैनपुरी के मौजूदा सांसद और लालू यादव के दामाद तेज प्रताप यादव अब मैनपुरी के बजाय आजमगढ़ से चुनाव लड़ सकते हैं. मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव खुद चुनाव लड़ेंगे. समाजवादी पार्टी के निर्णय-निर्माताओं में से एक के काफी अंतरंग सपा नेता ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने मुलायम को विश्राम की सलाह देकर मैनपुरी से तेज प्रताप यादव को ही लड़ाने का मन बना लिया था. लेकिन शिवपाल ने मुलायम को मोर्चा के टिकट पर मैनपुरी से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव देकर सपा के निर्णय-निर्माताओं को पैर पीछे खींचने पर विवश कर दिया. अब बदली हुई स्थितियों में तेज प्रताप यादव को आजमगढ़ शिफ्ट किया जा सकता है. तेज प्रताप ने आजमगढ़ का दौरा शुरू भी कर दिया है और उनकी बोली भी बदली हुई सामने आ रही है. अब तेज प्रताप खुलेआम यह बयान दे रहे हैं कि शिवपाल यादव के समाजवादी पार्टी से अलग होने से पार्टी को काफी नुकसान होगा. तेज प्रताप के इस बयान के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं.
सपाई ही कहते हैं कि तेज प्रताप के चुनाव लड़ने में सपा ने हीला-हवाली की तो वे समाजवादी सेकुलर मोर्चे में शामिल होकर चुनाव मैदान में उतर पड़ेंगे. मोर्चा कन्नौज में अखिलेश यादव के खिलाफ और बदायूं में धर्मेंद्र यादव के खिलाफ भी अपने प्रत्याशी उतारेगा. शिवपाल ने राजेश यादव को समाजवादी सेकुलर मोर्चे का कन्नौज लोकसभा का प्रभारी नियुक्त किया है. कन्नौज में अखिलेश यादव के खिलाफ सेकुलर मोर्चा ताकतवर मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारने की तैयारी कर रहा है. मोर्चा ने कन्नौज को प्राथमिकता पर रखा है और वहां जल्दी ही मोर्चे का जिलाध्यक्ष भी नियुक्त कर दिया जाएगा.
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के ज़रिए मायावती ने दिया अखिलेश-राहुल को संदेश
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को छोड़ कर अजित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस के साथ गठबंधन करके बसपा नेता मायावती ने उत्तर प्रदेश में गठबंधन की आस लगाए अखिलेश यादव और राहुल गांधी को 2019 का संकेत दे दिया है. मायावती ने यह भी कह दिया कि वे गठबंधन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन दूसरी पार्टियों को भी अपना दिल बड़ा करना होगा. मायावती ने मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का हाथ नहीं पकड़ा और अकेले दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. ये दोनों घोषणाएं खास तौर पर समाजवादी पार्टी के लिए करारा झटका हैं, क्योंकि अखिलेशवादी समाजवादी पार्टी में अपने बूते लोकसभा चुनाव में उतरने का दम नहीं है.
सपा को गठबंधन का सहारा चाहिए. यही वजह है कि अखिलेश यादव गठबंधन को लेकर कुछ अतिरिक्त ही सक्रिय और बेचैन नजर आ रहे हैं. अखिलेश लगातार यह बयान दे रहे हैं कि वे ‘गठबंधन के लिए दो कदम पीछे हटने को तैयार हैं.’ राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अखिलेश यादव की यह बेसब्री समाजवादी पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है और पार्टी को डुबा भी सकती है. अखिलेश के इस बचकानेपन का फायदा राजनीतिक परिपक्वता से भरी मायावती उठा ले जाएंगी और अखिलेश देखते ही रह जाएंगे.
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बसपा के फैसले से अखिलेश का वह दावा भी धूमिल हो गया कि उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस मिल कर गठबंधन बनाएंगे. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मायावती ने जिस तरह कांग्रेस को अपने से परे किया, उससे कांग्रेस बुरी तरह बिफरी हुई है. छत्तीसगढ़ के प्रभारी कांग्रेस नेता और यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के प्रमुख सचिव रहे पीएल पुनिया ने बसपा के ऐसे रवैये पर तीखी टिप्पणियां भी कर डालीं. लिहाजा, राजनीतिक प्रेक्षक भविष्य में बसपा और कांग्रेस के यूपी में हाथ मिलाने को लेकर आशंका जाहिर कर रहे हैं.
उनका मानना है कि अब अखिलेश और राहुल ही तालमेल की साइकिल चलाते नजर आएंगे, ऐसी ही संभावना है. आप याद करें राज्यसभा चुनाव के दरम्यान मायावती कह चुकी हैं, ‘अखिलेश यादव को राजनीति का कम अनुभव है. अगर मैं उनकी जगह होती तो अपने उम्मीदवार के बजाय बसपा उम्मीदार को जिताने की कोशिश करती.’ राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के विधायकों की क्रॉस वोटिंग के चलते बसपा प्रत्याशी नहीं जीत पाया था, जबकि सपा के समर्थन के बल पर ही बसपा ने अपना एक प्रत्याशी खड़ा किया था. लेकिन अखिलेश यादव ने अपना पूरा ध्यान जया बच्चन को जिताने पर लगा दिया था.