खासकर रामविलास पासवान की नजदीकियां इस दौरान नीतीश कुमार से काफी बढ़ गईं. इन्हीं नजदीकियों को देखकर कुछ लोगों ने अनुमान लगाना शुरू कर दिया कि नीतीश कुमार बिहार में गैर राजद और गैर भाजपा मोर्चा बनाने में लग गए हैं. अगर कांग्रेस ने हामी भर दी तो यह मोर्चा आकार ले लेगा.
राजनीति में बेहतर रणनीतिकार उसे माना जाता है, जो अपने विरोधी की चालों को समय रहते समझे और अपना मिशन पूरा करने के लिए ऐसा जाल बिछाए कि विरोधी खेमा बस देखता रह जाए. पिछले महीने भर से बिहार में दो तरह की चर्चा आम थी. पहला यह कि एनडीए टूट जाएगा. खासकर यह बात जदयू और रालोसपा को मिलने वाली लोकसभा सीटों को लेकर कही जा रही थी. दूसरी चर्चा यह थी कौन होगा बड़ा भाई. जदयू और भाजपा के कुछ बड़बोले प्रवक्ताओं के बयानों से इन चर्चाओं को और भी गरमी मिली.
एक दफा लगने लगा कि कहीं एक बार फिर बिहार सियासी संकट के जाल में तो नहीं फंसने जा रहा है. विरोधी राजद और कांग्रेस ने ऐसा माहौल बनाना शुरू किया कि बस अब एनडीए में महाभारत शुरू ही होने वाला है. चूंकि राजद और कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह अच्छी तरह पता है कि मौजूदा एनडीए में टूट ही इनकी जीत की बेहतर गारंटी है. कोई भी एक घटक एनडीए से बाहर आता है तो यह तय है कि महागठबंधन की राह आसान होगी. देश भर में यह संदेश जाएगा कि महागठबंधन के पक्ष में हवा है और एनडीए जल्द ही टूटकर पूरी तरह बिखरने वाला है.
जब तक रालोसपा और लोजपा की पैंतराबाजी चल रही थी तब तक तो भाजपा ने संयम बरता पर जब जदयू ने 25 सीट और बड़े भाई जैसे राग अलापना शुरू किया तो भाजपा को लगा कि अब कुछ करना ही होगा. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को 12 जुलाई को पटना आना था यह काफी पहले से ही तय था पर इसमें नीतीश कुमार के साथ नाश्ते और खाने का मेनू बाद में जोड़ा गया. भाजपा के दिल्ली नेतृत्व का पहले साफ मानना था कि सहयोगी दलों के साथ अभी सीट बंटवारे को लेकर कोई बात नहीं करनी है.
ऐसा इसलिए भी माना गया कि सूबे में सीटों का बंटवारा आसान नहीं है. भाजपा की 22 सीटिंग सीट है और इसमें वह एक-दो सीटों का इजाफा ही चाहती है. ऐसे में अभी से ही इस पर सहयोगी दलों से चर्चा करने में जोखिम ज्यादा है. भाजपा चाहती है कि चुनाव के दो से तीन महीना पहले ही सहयोगी दलों से सीट बंटवारे पर चर्चा हो और चट मंगनी पट विवाह वाले अंदाज में फैसला सुना दिया जाए. इसका लाभ यह होगा कि सहयोगी दल चाहकर भी बहुत पैंतराबाजी नहीं कर पाएंगे. इसके उलट भाजपा के सहयोगी दल जी जान से इस प्रयास में जुटें हैं कि सीटों पर जल्द से जल्द फैसला हो जाए, ताकि इन्हें तैयारी या फिर भावी रणनीति बनाने का पर्याप्त समय मिल जाए.
इसके लिए सहयोगी दलों ने भाजपा पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. अचानक नीतीश कुमार के निवास पर रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा का आना-जाना शुरू हो गया. खासकर रामविलास पासवान की नजदीकियां इस दौरान नीतीश कुमार से काफी बढ़ गई. इन्हीं नजदीकियों को देखकर कुछ लोगों ने अनुमान लगाना शुरू कर दिया कि नीतीश कुमार बिहार में गैर राजद और गैर भाजपा मोर्चा बनाने में लग गए हैं. अगर कांग्रेस ने हामी भर दी तो यह मोर्चा आकार ले लेगा. तर्क यह था कि कांग्रेस का साथ हो जाने से भाजपा से नाराज सवर्ण वर्ग के अलावा मुसलमानों का भी एक बड़ा तबका नीतीश कुमार के चेहरे पर साथ आ सकता है. रामविलास पासवान का साथ दलितों को लुभाएगा और उपेंद्र कुशवाहा के रहने से लव-कुश एकता को भारी बल मिलेगा.
यह परिकल्पना अभी मरी नहीं है, बस कांग्रेस की हरी झंडी न मिलने के कारण ठंडे बस्ते में चली गई है. अगर किसी वजह से कांग्रेस राजद से नाराज हो और भाजपा से जदयू की दूरी बढ़ जाए तो इस तीसरे मोर्चे की परिकल्पना को साकार होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी. लेकिन अभी इन बातों का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि अमित शाह ने अपने लगभग 30 घंटे के पटना प्रवास में सहयोगी दलोें के लिए ऐसा जाल बिछा दिया है कि इससे निकल पाना बहुत आसान नहीं होगा. बदले हालात में अमित शाह की टीम के सामने दो टॉस्क था. पहला यह कि यह चर्चा बंद करा दी जाए कि सीटों के बंटवारे को लेकर एनडीए में कोई दरार है. दूसरा टास्क यह था कि जदयू ने बड़े भाई वाला जो मिसाइल दागा है इसे निष्क्रिय कर दिया जाए. इन्हीं दो सवालों को ध्यान में रखते हुए अमित शाह के पटना दौरे का तानाबाना बुना गया.
गेस्ट हाउस में बैठक के मायने
अमित शाह के स्वागत के लिए ऐसी तैयारी की गई कि जैसे लगा कि पटना में भाजपा कोई बहुत बड़ा विजयोत्सव मना रही हो. पूरे शहर को बैनर व पोस्टरों से पाट दिया गया. शहर का कोई ऐसा कोना नहीं बचा जहां अमित शाह की तस्वीर नहीं लगी हो. प्रदेश भाजपा को यह काम सौंपा गया था कि वह नीतीश कुमार को इस बात के लिए तैयार कर ले कि इन्हें अमित शाह से मिलने राजकीय अतिथिशाला में आना होगा. इसके बाद ही अमित शाह डिनर के लिए नीतीश कुमार के आवास पर जाएंगे.
भाजपा के प्रदेश टीम के लिए यह काम आसान नहीं था पर अमित शाह की टीम इससे कम पर तैयार नहीं थी. बड़े भाई वाले मिसाइल को निष्क्रिय करने के लिए यह जरूरी था. लिहाजा प्रदेश की टीम ने इस काम के लिए जम कर पसीना बहाया और आखिरकार नीतीश कुमार इस बात के लिए राजी हो गए कि वह अमित शाह से मिलकर उन्हें खाने का न्योता देंगे. बताया जा रहा है कि अमित शाह की टीम नीतीश कुमार को राजकीय अतिथिशाला में बुलाकर यह संदेश बाहर देना चाहती थी कि जहां तक कद का सवाल है तो अमित शाह ही बीस हैं. नीतीश कुमार को जानने वाले कहते हैं कि इनका अमित शाह से मिलने राजकीय अतिथिशाला जाना बड़ी बात है. अमूनन नीतीश कुमार ऐसा करते नहीं हैं.
लेकिन कोई बड़ी सियासी मजबूरी इन्हें वहां तक ले गई. इस मुलाकात में अमित शाह मेजबान की भूमिका में भी रहे और नीतीश कुमार को छोड़ने बाहर तक आए. दोनों नेताओं की साथ में मुस्कुराती हुई तस्वीर यह बतलाने के लिए काफी थी कि एनडीए में अब सब कुछ ठीक-ठाक है. इसके साथ ही अमित शाह की टीम ने अपना पहला चरण पूरा कर लिया. अब बारी अमित शाह के बोलने की थी. अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधन में इन्होंने साफ कर दिया कि बिहार में एनडीए पूरी तरह एकजुट है और बिहार की सभी चालीस में से चालीस सीट एनडीए को जीतनी है.
विरोधियों पर कटाक्ष करते हुए अमित शाह ने कहा कि वे लार टपकाना बंद कर दें, क्योंकि नीतीश कुमार अब हमें छोड़कर कहीं जाने वाले नहीं हैं. अमित शाह ने दुविधा में फंसी अपनी पार्टी को यह साफ कर दिया कि सभी सहयोगी दलों को साथ में लेकर चुनाव में जाना है और सभी सीटों पर जीत दर्ज करनी है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बापू सभागार में अमित शाह के इस भाषण के बाद एनडीए में एकजुटता का संचार हुआ. एनडीए में टूट का जो माहौल बनाया जा रहा था वह खत्म हो गया. बचीखुची कसर रात में नीतीश कुमार के घर डिनर में पूरी कर ली गई. लगभग आधे घंटे तक अमित शाह और नीतीश कुमार के बीच वन टू वन बातचीत हुई.
वन टू वन बात होने से यह मैसेज चला गया कि सीटों के बंटवारे को लेकर दूसरे नेता क्या कहते हैं और क्या सोचते हैं, इसका कोई महत्व नहीं है, क्योंकि इस मामले में आगे भी अमित शाह और नीतीश कुमार के बीच वन टू वन ही बातचीत होगी. इस वन टू वन बातचीत का इतना असर हुआ कि अगले दिन से न तो कोई भाजपा का नेता और न ही जदयू का नेता गठबंधन और सीट बंटवारे को लेकर बोलने के लिए तैयार हो रहा है. अगले दिन सुबह अमित शाह दक्षिण भारत रवाना हो गए, पर अपने लगभग 30 घंटे के प्रवास में इन्होंने ऐसा जाल बुन दिया कि भाजपा के सहयोगी दलों के साथ ही साथ विरोधी राजद और कांग्रेस के नेता देखते रह गए.
फिलहाल यह चर्चा बंद है कि कौन कितने सीटों पर लड़ेगा और किसके चेहरे पर लड़ेगा. राजद और कांग्रेस के नेता अब एनडीए के जल्द से जल्द टूटने की भविष्यवाणी नहीं कर रहे हैं. अमित शाह के पटना दौरे की आगाज की भव्यता से ही यह लगने लगा था कि अंजाम बेहतर होगा. यह पूरा शो अमित शाह का था और पूरे दौरे में वह छाये रहे. अब लाख टके का सवाल यह रह गया कि आखिरकार बंद कमरे में अमित शाह और नीतीश कुमार के बीच क्या बातचीत हुई. अखबारों और चैनलों में इस वार्ता को लेकर अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं. पर हकीकत यह है कि शब्द दर शब्द इस बातचीत के बारे में केवल दो ही लोग जानते हैं. वे हैं अमित शाह और नीतीश कुमार. बाकी जो लोग जो भी कह रहे हैं वह महज अटकलबाजी ही है.
लेकिन हमारे सूत्र बताते हैं कि जब दोनों नेता बंद कमरे से निकले तो इनका बॉडी लैग्वेज बहुत ही सकारात्मक था और चेहरे पर एक दूसरे के प्रति भरोसे का भाव था. इसी आधार पर महज अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनों नेताओं के बीच सीट बंटवारे को लेकर मोटे तौर पर कुछ न कुछ जरूर तय हो गया होगा. भले ही वह संख्या के स्तर तक नहीं पहुंचा हो पर एक मोटा खाका जरूर खींच लिया गया है. कुल मिलाकर अमित शाह ने अपने दौरे में मुलाकात और बयानों से एनडीए को एकजुट कर दिया है. अब यह कब तक रहेगा यह कहना तो मुश्किल है, पर फिलहाल तो खतरा टल ही गया है.