यह शांतिनिकेतन के विश्वभारती विश्वविद्यालय के भीतर का रास्ता है ! हालांकि संपूर्ण केम्पस को जेल जैसा तारो के बाड बना कर घेर कर रखा है ! मुझे लगता है कि शांतिनिकेतन के महर्षि देवेन्द्रनाथ और उनके सुपुत्र रविंद्रनाथ के सपनों का शांतिनिकेतन इस जेल जैसे बनाये गये माहौल में दम तोड़ रहा हैं !


संघ परिवार से तैयार होकर निकले लोग, फिर युनिवर्सिटी के हो या प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल या किसी भी पदोपर चढे हुए, पदाधिकारी सिर्फ इस देश की उदार, सर्वसमावेशी संस्कृति को समाप्त करने के लिए ही गत साडेसात साल से कोशिशों में लगे हुए हैं !
क्योंकि संघ संपूर्ण भारत की विविधता को खत्म करके उसे तथाकथित हिंदु राष्ट्र का अमलीजामा पहनाना चाहता है ! एक राष्ट्र, एक विधान, एक निशाण यही उनका नारा है ! और उसमें ढालने की कोशिश बदस्तूर जारी है ! और भारत की सभी प्राइम इन्स्टिटय़ूटो में गत सात साल से अधिक समय से यह सांस्कृतिक हमले योजना बद्ध तरीके से जारी है !
२०१४ में सत्ता में आने के चंद दिनो के भीतर जे एन यू, जामिया मिलिया, अलिगढ और भारत की सभी संस्थाओं को कब्जे में लेकर, उन्हें संघ के संकीर्ण सोच के अंदर ढालने की कोशिश कर रहे हैं !


और एबीवीपी जैसे संगठनों को प्रश्रय देकर उनके द्वारा विद्यार्थियों के संगठन की आड़ में चाहे जैसे गुंडागर्दी और सबसे संगीन बात पुलिस के भेष में उन्होंने जे एन यू और अन्य संस्थाओं में जो कारनामे कीये है ! उन्हें देख सौ साल पहले के जर्मनी के स्टॉर्म स्टुपर्स की याद दिला रहे हैं !
और इन्हें सरकारों से लेकर विश्वविद्यालय के प्रशासनों की मदद मिलती है ! विश्वभारती शांतिनिकेतन की ताजा यात्रा की फोटो मैंने पोस्ट की है ! वह सब इस बंदिशाला से मुक्त होने की जद्दोजहद कर रहे हैं ! क्योंकि जिस जगह से भय मुक्ति के साहित्य, कला और अन्य विधीयो के निर्माण का इतिहास बहुत पुराना है ! और इसीलिए विश्वभारती के कर्ताधर्ताओं की करतुते, अमर्त्य सेन के माता-पिता को दिए गए घर से लेकर, जो दुकान रस्ते के बगल में उन्हें उजाड़ने से लेकर ! श्यामा प्रसाद मुखर्जी की फोटो शांतिनिकेतन के हरेक खंबे पर लगाने का औचित्य रविंद्रनाथ जैसे वैश्विक स्तर पर सोच विचार करने वाले प्रतिभाशाली महान शख्सियत का अपमान करना है !


लगभग सव्वा सौ साल से अधिक समय से महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने( 1863 में) शुरू किया यह स्कूल आज काफी जंजीरों से घिरा हुआ है ! और सबसे हैरानी की बात उन्होंने शुरू किया हुआ पौष मेला का आयोजन गत तीन साल से बंद कर दिया है ! जो कि अमित शाह कोरोना के सेकंड वेव्ह में आये तो काफी जोर शोर से स्वागत किया गया ! और नाच गान अलग से ! तब कोरोना आडे नही आया ? लेकिन पौष मेले जैसी गतिविधियां नही होने देना क्या संदेश दिया जा रहा है ? जिसमें बाउल और अन्य कलाकारों के कला का प्रदर्शन से लेकर स्थानीय कलाकारों की कलाकृतियां बिक्री की जाती हैं ! और महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने समय से ही अगल – बगल के गांव के कलाकारों की बनी हुई वस्तुओं तथा कलाओं के अभिव्यक्ति और बिक्री के लिए यह परंपरा शुरू की है ! लेकिन वर्तमान समय के व्हाईस चांसलर पदाधिकारी बनने के बाद से ही तुगलकी कार्यशैली से काम कर रहे हैं ! और उसी कड़ी में पौष मेला बंद करने का निर्णय ! असंवेदनशीलता और शांतिनिकेतन जैसे वैश्विक स्तर पर की जगह पर एकदम अकर्मण्यता की जिती – जागती मिसाल है !


लेकिन शांतिनिकेतन के सभ्य समाज की दाद देनी चाहिए उन्होंने पिछले साल से पर्यायी मेला आयोजित किया और इस साल भी २३ दिसंबर से पांच दिनों का कर रहे हैं ! मेरी हार्दिक शुभकामनाएं

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