काश कि तुम अमरुद होते!
और मैं हरा रंग
जब पड़ती पहली बारिश की बूंदे
उस हरे पर
मैं मिठास बन कर घुल जाती तुझमें
और तुम बूंद बूंद प्यास बन कर
उतरते जाते मेरे अंदर …
मैं रटाती बच्चों को
ह से हरा
और बच्चे आ से आषाढ़
सीख रहे होते …
मैं अचानक कभी निकल पड़ती
मुसलाधार बारिश में
कच्ची पगडंडियों में
तुम फिसलन बन कर
चलते मेरे साथ हमकदम बनकर
काश कि तुम कीचड़ होते
सन जाते मेरे पूरे बदन में …
काश कि मैं बरसात होती
और तुम हरसिंगार
मैं बरसती रहती रात भर
तुम्हारे थरथराते लबों पर
मैं गुलाबी जाड़ा बन जाती
और तुम हरा मानसून …
सीमा संगसार सीमा
Adv from Sponsors