अंग्रेजी शासन के ख़िलाफ़ आंदोलन करने वाले लोगों से लेकर आज़ादी के बाद भारत की सभी सत्ता में रही सरकारोने इस कानून के अंतर्गत अपने विरोध में आंदोलन करने वाले लोगों पर इस क़ानून के अंतर्गत कार्यवाई की है ! और अभी केन्द्र सरकारने पिछले साल नागरिक संशोधन कानून लाने के ख़िलाफ़ जो आंदोलन हुआ है ! उसमे से तीन विद्दार्थी जिसमें दो लडकियों का भी समावेश है उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय ने जमानत देते हुए जो फटकार दिल्ली पुलिस को लगाई है, उसे देखकर मुझे मेरे आपातकाल के डी आई आर के अंतर्गत हिरासत में लेने की कार्यवाही याद आ रही है ! शायद अक्तूबर 1976 के प्रथम सप्ताह में मै भूमिगत रूप से आपातकाल के खिलाफ काम करते वक्त पकडा गया था ! और चौबीस घंटों के भीतर मुझे अदालत में पेश किया गया था !

और मेरे उपर आरोप लगाया था भारत सरकार को अपदस्थ करने का गुप्त षडयंत्र ! और सबुतो के नाम पर दिनमान, धर्मयुग, इलेस्ट्रेटेड वीकली, साधना, माणूस नामके मराठी पत्रिका के आपातकाल के भी पहले के अंकों का पुलिंदा और दो कपड़ों के बैनर जिसमें से एक पर लिखा था हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है ! और दुसरे बैनर पर लिखा था कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ! तो अमरावती के कोर्ट में जब मेरे केस पर बहस चली तो जज साहब ने भारत सरकार को अपदस्थ करने का गुप्त षडयंत्र के नाम पर सबुतो की जांच की तो ! सबुतोके नाम पर पेश किया गया पत्रिकाओं के अंक और दो कपड़ों के बैनर देखकर जज साहब ने पुलिस को आडे हाथ लेते हुए कहा कि सभी पत्रिकाओं के अंक आपातकाल के पहले के होने से उनके अंदर सरकार के खिलाफ क्या लिखा है ?

यह आज बेमतलब के सबूत है और रहा सवाल दो बैनरो का तो इसतरह के बैनर से सरकार को अपदस्थ होने की बात पर सरकार कबकी अपदस्थ हो गई होती ! पुलिस को काफी खरी-खोटी सुनना पडा था ! तो यह मामला आजसे पैंतालीस साल पहले का है ! आने वाले 26 जून को आपातकाल को छियालिस साल होने जा रहे हैं ! और वर्तमान सत्ताधारी दल के लोग आपातकाल की खूब निंदा करते हैं ! और आने वाले 26 जून को भी पानी पी-पीकर निंदा करेंगे ! लेकिन मई 2014 से जबसे केंद्र सरकार बनी है ! और दोबारा 2019 के बाद बनकर आज सात साल एक महीना एक दिन हो रहा है!

 

इस सरकार को सत्ता में आने के एक साल एक महीना बाद बीजेपी के भीष्म पितामह लालकृष्ण अडवाणी जी ने शेखर गुप्ता नामके इंडियन एक्सप्रेस के संपादक को साक्षात्कार में कहा था कि एक आपातकाल चालीस साल पहले हमने देखा है (25 जून 2015 को इंटरवू दिया है !) जो इंदिरा गाँधी जी ने खुलकर आपातकाल लगाया था लेकिन गत एक साल से भारत मे अघोषित आपातकाल जारी है ! और उनका इशारा वर्तमान सरकार की तरफ था ! आज उनके साक्षात्कार को छ साल हो रहे हैं ! और परिस्थितियों को देखते हुए लालकृष्ण अडवाणी जी ने कहीं हुईं बात कितनी महत्वपूर्ण है इसका प्रमाण विभिन्न आंदोलन करने वाले लोगों को तथाकथित देशद्रोह के कानून के अंतर्गत कार्यवाई की है ! और बगैर अदालत में पेश किया सभी विभिन्न जेलों में बंद कर के और यह ताजा दिल्ली उच्च न्यायालय ने जमानत देते हुए जो फटकार दिल्ली पुलिस को लगाई है !

यह भारत सरकार को ही लागू पडती है ! क्योंकि दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के मातहत आने के कारण जे एन यू, जामिया मिलिया, या शाहीन बाग के आंदोलन कारियों के साथ और वर्तमान में छ महीने से भी ज्यादा समय हो रहा है किसानों के आंदोलन के साथ दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के इशारों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर के और शेकडो लोगों को जेल मे रखना यह अंग्रेजों के समय से ही जारी इस कानून के अंतर्गत कार्यवाई करना यह इस कानून की आडमे अपने अकर्मण्यता छुपाने के लिए इस्तेमाल करना है !

उसी तरह आतंकवाद का आरोप लगाते हुए किसान-मजदूर के कानून बदलने के सरकार के निर्णय के विरुद्ध पंजाब से किसान जुलुस लेकर दिल्ली के लिए निकल पड़े तो हरियाणा सरकार के जिम्मेदार लोगों ने खालिस्तानी आरोप लगाया है! और कोई तो पाकिस्तानी भी बोले है ! और रोकने के लिए रोड खोदने से लेकर किले गाडने और पानी के फौवारे जनवरी-फरवरी की दो-तीन डीग्री तपमान मे !

इसके अलावा बिजली-पानी काटकर इंटरनेट सेवा ठप्प करना आम बात है ! कश्मीर मे तो लगातार यही हथकंडे अपनाये जा रहे ! लेकिन जब से केंद्र में भाजपा की सरकार ने सत्ता सम्हाली है तबसे देश मे कहीं भी आंदोलन शुरू हुआ तो सबसे पहले इंटरनेट बंद कर के ! और मेनस्ट्रीम मीडिया की पहले दिन से कलम, कैमरे कब्जे में कर के ! और अब तो सोशल मीडिया को भी कब्जा करने की कोशिश लगातार जारी है ! तो लालकृष्ण अडवाणीजीने चालीस साल के आपातकाल के उपलक्ष्य में 2015 के 25 जून को शेखर गुप्ता को दिया हुआ साक्षात्कार को छ साल हो रहे हैं !

और इन छ साल मे सभी संविधानिक संस्थाओं को अपनी मर्जी के लोगों को बहाल करने का सबसे ताजा उदाहरण दीपक मिश्रा नामके सर्वोच्च न्यायालय के रिटायर न्यायाधीश को मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया ! यह वही न्यायाधीश है जिन्होंने प्रधानमंत्री की बेशुमार तारीफों के कशिदे पढे हैं ! और उनके न्यायाधीश की हैसियत से एक भी निर्णय जनहित में नहीं रहते हुए वर्तमान सरकार और अदानी जैसे उद्योगपतियों के हितों की रक्षा करने में दिये गये है !

वही मामला तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने अपने निवृत्ति के पहले देशका सबसे संवेदनशील मामला! मसजिद-मंदिर विवाद से लेकर नागरिक संशोधन कानून लाने के लिए और कश्मीर के 370 जैसे विवादित मामले को दबाने के कारनामों के कारण चंद महीनों में रिटायर होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा में मनोनीत सदस्य करने की कृति भारत के संसदीय इतिहास मे यह पहला मौका है !

इस परिप्रेक्ष्य में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सिद्धांर्थ मृदुल और अनुप जयराम भंबानी ने दो युवतियों और एक युवक को एक साल के पस्चात ही सही लेकिन दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार करने को लेकर सही शब्दों में फटकार लगाई है ! उम्मीद करता हूँ कि वर्तमान सरकार हमारे संविधान के अंतर्गत सही मायनों मे काम करेंगी ! क्योंकि आने वाले 26 जून को आपातकाल को छियालिस साल होने को लेकर भाजपा खूब लोकतंत्र की दुहाई देकर कांग्रेस को कोसने की जगह खुद सही मायनों मे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने का संकल्प करें तो भी बेहतर होगा !

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