सूबे में एनडीए के भीतर लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर अब खुलेआम घमासान मचना शुरू हो गया है. नीतीश कुमार ने अपनी कोर टीम के साथ गहन मंथन के बाद इशारों ही इशारों में ऐलान करवा दिया कि जद (यू) कम से कम 25 सीटों की हकदार है. इसके साथ साफ लहजों में यह भी ऐलान हुआ कि बिहार में नीतीश कुमार के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जाएगा. राज्य में भाजपा के 22 सांसद हैं और सहयोगी लोजपा के छह और रालोसपा के तीन सांसद हैं. गौर करने वाली बात यह है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में राज्य में ऐसी स्थिति नहीं थी. तब राज्य में एनडीए में सिर्फ जद (यू) और भाजपा का गठबंधन था और दोनों ने साथ चुनाव लड़ा था. जद (यू) 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से उसे 20 सीटों पर जीत मिली थी और भाजपा 15 सीटों पर लड़कर 12 सीटें जीतने में कामयाब रही थी.

शुरू हुई जुबानी जंग

बिहार की सभी राजनीतिक सच्चाइयों को जानते समझते जद (यू) ने अपना इरादा साफ कर दिया है. जद (यू) के इन दो तीरों से एनडीए की राजनीति परदे से बाहर आ गई और हर घटक दल के नेताओं ने सीट व चेहरे को लेकर अपनी-अपनी बात रखनी शुरू कर दी. गौरतलब है कि जिस दिन से जद (यू) की एनडीए में वापसी हुई, ठीक उसी दिन से यह आशंका जताई जाने लगी कि बिहार में इस बार सीटों के बंटवारे में एनडीए कहीं फंस न जाए. लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहा है, घटक दलों की धड़कनें तेज होती जा रही हैं. इसी का नतीजा है कि सभी सहयोगी भाजपा से जल्द से जल्द सीटों के बंटवारे की मांग कर रहे हैं. इसी पृष्ठभूमि में जद (यू) ने अपना तीर चला दिया और अब इंतजार भाजपा के जबाव का है. बात ज्यादा बिगड़े उससे पहले ही सुशील मोदी ने डैमेज कंट्रोल के तहत बयान जारी कर दिया. सुशील मोदी ने कहा कि हमारे बीच में कोई विवाद नहीं है. जब दिल मिल गए हैं तो सीट कौन सी बड़ी चीज है. लेकिन मंत्री रामकृपाल यादव दूसरी बात कहते हैं. उनका कहना है कि जब देशभर में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जा रहा है तो बिहार इससे अलग कैसे हो सकता है. ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने तुरंत ही इसका जबाव दिया. उन्होंने कहा कि गठबंधन में सीटें संख्या बल के हिसाब से तय होनी चाहिए. भाजपा दिल्ली में बड़ी पार्टी है लेकिन बिहार में हम बड़ी पार्टी हैं.

गो-स्लो की भाजपाई रणनीति

भाजपा के सूत्र बताते हैं कि सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा बहुत जल्दी में नहीं है. जहां तक जदयू, लोजपा और रालोसपा के दबाव का सवाल है तो इसे भी पार्टी बहुत तवज्जो नहीं देने वाली है. भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि नीतीश कुमार के पास अब महागठबंधन में वापस लौटने का विकल्प नहीं है. कांग्र्रेस के ना के बाद तो भाजपा का विश्वास और भी बढ़ा है. सूत्र बताते हैं कि भाजपा चाहती है कि जदयू बिहार में ज्यादा से ज्यादा 12 सीटों पर चुनाव लड़े. अगर जद (यू) कुछ और सीटों पर अड़ती है तो उसे बिहार से बाहर के राज्यों में चार से पांच सीटें दी जा सकती हैं. भाजपा के रणनीतिकार अभी इसी फॉर्मूले पर तालमेल की गाड़ी को आगे बढ़ाना चाहते हैं. भाजपा खेमे के लोग ऐसी उम्मीद कर रहे हैं कि जद (यू) अपनी राष्ट्रीय छवि बनाने के लिए भाजपा के इस फॉर्मूले पर कुछ ना नुकर के बाद राजी हो सकती है.

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