पाकिस्तान की जम्मू या लद्दाख में कोई दिलचस्पी नहीं है. वह इसका स्वागत करेगा. यह पाकिस्तानी चाल भी है. भारतीय संविधान का तब क्या अर्थ रहेगा? भारत एक समग्र, समावेशी एवं धर्मनिरपेक्ष देश है और इसलिए शेख अब्दुल्ला भारत के साथ खड़े थे, उन्होंने भारत के साथ रहना पसंद किया. महाराजा हरि सिंह पाकिस्तान के साथ जा सकते थे, उन्हें कोई चिंता नहीं थी.
पिछले हफ्ते दो राज्यों झारखंड और जम्मू-कश्मीर के चुनाव नतीजे आए हैं. नरेंद्र मोदी का प्रबल समर्थक भी इस बात को मानेगा कि मोदी लहर नाम की कोई चीज़ अब देश में नहीं है. जैसा कि हमने पहले भी कहा है कि लोकसभा चुनाव में मतदान कांग्रेस के विरोध में हुआ था, क्योंकि सीएजी ने कुछ ऐसे बड़े घोटालों को बेनकाब किया था, जिन्हें देखकर लोग सकते में आ गए थे कि घोटाले इस हद तक हो सकते हैं. इसलिए लोगों के वोट सबसे मज़बूत विपक्षी पार्टी भाजपा को चले गए. भाजपा देश के अधिकांश हिस्सों में सबसे मज़बूत पार्टी थी, इसलिए उसे वोट मिल गए. जहां भी कोई विकल्प था, वहां लोगों ने उस विकल्प को चुना. उसके बाद जहां कहीं भी चुनाव हुए, यही पैटर्न दोहराए गए.
उदाहरण के लिए महाराष्ट्र को देख लें, जहां मोदी की कोई पार्टी नहीं थी. भाजपा वहां इसलिए सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आई, क्योंकि लोग कांग्रेस को वोट नहीं देना चाहते थे और जहां-जहां शिवसेना मज़बूत थी, लोगों ने उसे ही चुना. उसी तरह झारखंड में अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) न होता, तो भाजपा ने वहां भी क्लीन स्वीप कर लिया होता और लोग कहते कि मोदी लहर है. जेएमएम ने 20-30 सीटों पर अपनी मज़बूत दावेदारी पेश की. इसलिए भाजपा ने अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ मिलकर 81 में से 42 सीटें जीतकर व्यवहारिक बहुमत हासिल कर लिया है. और, स्वाभाविक रूप से वह वहां अपनी सरकार बना लेगी, इसमें उसे कोई परेशानी नहीं होगी. अब एक नज़र जम्मू-कश्मीर पर डालते हैं, जो और भी अधिक दिलचस्प है. यहां भाजपा ने कांग्रेस के आधार पर क़ब्ज़ा किया है. जम्मू में कांग्रेस एक मज़बूत पार्टी थी और भाजपा धीरे-धीरे अपना आधार मज़बूत कर रही थी. अब लोग कांग्रेस को वोट नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे सारे वोट भाजपा को चले गए. पार्टी ने जो 25 सीटें जीती हैं, वे सब जम्मू क्षेत्र की हैं. घाटी से उसे एक भी सीट नहीं मिली. जबकि कांग्रेस घाटी में भी एक-दो सीटें जीतने में कामयाब होती आई है. राज्य के वोटिंग पैटर्न और बदलती हुई परिस्थितियों को समझना ज़रूरी है.
मुझे आश्चर्य है कि समीक्षक कह रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर के चुनाव कोई रास्ता दिखाएंगे. लेकिन, मेरे हिसाब से ऐसा नहीं है. मैं समझता हूं कि चुनाव नतीजे इस लिहाज से बुरे हैं, क्योंकि यह आर्टिकल 370 के तहत एक ऑटोनोमस राज्य है, जिसे भाजपा समाप्त करने की बात करती रही है. चुनाव प्रचार के दौरान उसने 370 की बात नहीं की. अगर ऐसा किया होता, तो उसे 25 सीटें भी न मिलतीं. फिलहाल सही राजनीतिक समाधान यह होगा कि कश्मीरी दलों को कश्मीर में सरकार बनानी चाहिए. यानी मुफ्ती की पार्टी पीडीपी, जो सबसे बड़ी पार्टी है और नेशनल कांफ्रेंस को साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए. दरअसल, राजनीति में आम तौर पर यह होता है कि एक-दूसरे पर तलवारें तनी रहती हैं कि एक-दूसरे से बात नहीं करेंगे. मुफ्ती ने यह कहकर चुनाव लड़ा कि पीडीपी ही एक ऐसी पार्टी है, जो भाजपा को जम्मू-कश्मीर में आने रोक सकती है. लेकिन, वह भाजपा को आने से नहीं रोक सके, क्योंकि उसके पास 25 सीटें हैं और वह अब भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के बारे में सोच रहे हैं. ऐसा करना एक गलती होगी, क्योंकि वह अपना जनाधार खो देंगे. जम्मू-कश्मीर की अवाम कश्मीरियत चाहती है, जो उनका बुनियादी नारा है, वे
मुझे आश्चर्य है कि समीक्षक कह रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर के चुनाव कोई रास्ता दिखाएंगे. लेकिन, मेरे हिसाब से ऐसा नहीं है. मैं समझता हूं कि चुनाव नतीजे इस लिहाज से बुरे हैं, क्योंकि यह आर्टिकल 370 के तहत एक ऑटोनोमस राज्य है, जिसे भाजपा समाप्त करने की बात करती रही है. चुनाव प्रचार के दौरान उसने 370 की बात नहीं की. अगर ऐसा किया होता, तो उसे 25 सीटें भी न मिलतीं. फिलहाल सही राजनीतिक समाधान यह होगा कि कश्मीरी दलों को कश्मीर में सरकार बनानी चाहिए. यानी मुफ्ती की पार्टी पीडीपी, जो सबसे बड़ी पार्टी है और नेशनल कांफ्रेंस को साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए.
कश्मीरी चरित्र चाहते हैं. यह हिंदू-मुस्लिम समस्या नहीं है. भाजपा जो करना चाहती है या कहती है या आरएसएस और उनके अमेरिकी दोस्त कहते हैं, उसके विपरीत जम्मू-कश्मीर के लोग आर्टिकल 370 चाहते हैं. वे कश्मीर का तीन हिस्सों में बंटवारा चाहते हैं, जिसमें जम्मू भारत के साथ जाए, लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बने और कश्मीर ही एक ऐसा मसला हो, जिस पर भारत और पाकिस्तान बातचीत करें.
पाकिस्तान की जम्मू या लद्दाख में कोई दिलचस्पी नहीं है. वह इसका स्वागत करेगा. यह पाकिस्तानी चाल भी है. भारतीय संविधान का तब क्या अर्थ रहेगा? भारत एक समग्र, समावेशी एवं धर्मनिरपेक्ष देश है और इसलिए शेख अब्दुल्ला भारत के साथ खड़े थे, उन्होंने भारत के साथ रहना पसंद किया. महाराजा हरि सिंह पाकिस्तान के साथ जा सकते थे, उन्हें कोई चिंता नहीं थी. यह तो शेख अब्दुल्ला थे, जिन्होंने कहा कि गांधी एवं नेहरू बेहतर व्यक्ति हैं, जो व्यक्ति की गरिमा की गारंटी दे सकते हैं और इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान जाना अच्छा नहीं होगा. जाहिर है, उनकी आशंका सच साबित हुई. आज पाकिस्तान एक परेशान देश है. मुसलमान अपने ही समुदाय के 132 बच्चों को मार रहे हैं. बदतर हालात का इससे अधिक बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है? हर कोई देख सकता है कि क्या हो रहा है. लेकिन, अब जो चुनाव नतीजे आए हैं, उन्हें देखते हुए कश्मीर में सरकार बनाने का काम बहुत ही परिपक्व तरीके से किया जाना चाहिए. 44 प्लस की दौड़ में नहीं पड़ना चाहिए. राजनीति कॉरपोरेट की दुनिया नहीं है, जहां 2 और 2 चार होते हैं. राजनीति स़िर्फ राजनीति है. लोगों ने सोच और विचारधारा के मुताबिक वोट किया है.
एक विचारधारा कश्मीरियत, स्वायत्तता और आर्टिकल 370 की है. मेरे हिसाब से कोई भी कश्मीरी पार्टी, चाहे वह कांग्रेस या भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाए, उनसे यह वादा ले कि 370 को हटाया नहीं जाएगा, बल्कि इसे और मजबूत किया जाएगा. अगर भाजपा सरकार में शामिल होती है और 370 पर चुप है, तो फिर यह इस सवाल का जवाब नहीं है. ऐसे में, मुफ्ती के लिए कांग्रेस के साथ जाना बेहतर होगा, पुरानी दुश्मनी भूल जाइए. राजनीति में शत्रुता से काम नहीं चलता. अगर चाहें, तो भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस एक साथ मिलकर भी सरकार बना सकती हैं. भाजपा केवल यहां समस्या ही खड़ी कर सकती है. भाजपा का जो एजेंडा है, वह कश्मीर को भारत से जोड़ता नहीं है. कश्मीर पर हमारा हक़ है, क्योंकि भारत के साथ उसके विलय पर महाराजा हरि सिंह ने हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन भाजपा 370 की बात करके, हिंदू-मुस्लिम की बात करके इस मुद्दे को कमजोर बना देना चाहती है. भाजपा अभी भी राजनीतिक परिपक्वता के स्तर तक नहीं पहुंच सकी है, जैसी परिपक्वता सौ साल से ज़्यादा पुरानी कांग्रेस पार्टी की है.
अटल जी और आडवाणी जी निश्चित रूप से अलग थे. वे इन बातों को समझते थे. उन्होंने 370 पर ऐसी बातें नहीं कीं. इस चुनाव में हमने कश्मीर में 370 की बात सुनी. अच्छा यह रहा कि 370 की बात हमने प्रधानमंत्री से नहीं सुनी. सही बात तो यह है कि आर्टिकल 370 तब तक रहेगा, जब तक कश्मीरी अवाम इसे न हटाना चाहे. हम संविधान में किए गए अपने वादे को पूरा करेंगे. इस सोच के साथ ही भाजपा कश्मीर में एक बेहतर सरकार बना पाएगी. कश्मीर में भी भ्रष्टाचार है. आम तौर पर नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार पसंद नहीं करते. इसलिए मुफ्ती मोहम्मद सईद को सोचना चाहिए कि वह क्या कर रहे हैं. उन्हें भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने की हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए, ताकि यहां सरकार बन जाए और महबूबा को केंद्र में मंत्री पद मिल जाए. ऐसा करना दीर्घकालिक सोच वाली राजनीति की जगह अल्पकालिक राजनीति होगी.