वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के बाद जब मुसलमानों ने वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना दुश्मन मान लिया था, तब गुजरात के ही एक मुस्लिम व्यापारी डॉ. ज़फर यूनुस सरेशवाला ने न स़िर्फ मोदी का साथ दिया, बल्कि मुसलमानों को उनके क़रीब लाने की भी कोशिश की. ज़फर सरेशवाला को व्यक्तिगत तौर पर इसका ़फायदा तो ज़रूर हुआ, लेकिन वह अपनी ही कौम में बुरी तरह बदनाम हो गए. दूसरी तऱफ एक सच्चाई यह भी है कि नरेंद्र मोदी जबसे प्रधानमंत्री बने हैं, वह मुसलमानों से जुड़ा कोई भी ़फैसला ज़फर सरेशवाला से विचार-विमर्श किए बगैर नहीं लेते.
वर्ष 1994 या फिर 95 की बात है, लंदन के इंडियन मुस्लिम फेडरेशन ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी के मा़ैके पर एक विरोध सभा आयोजित करने की घोषणा की थी. लंदन के एक मशहूर धार्मिक नेता मौलाना ईसा मंसूरी, जो खुद भी गुजराती हैं, ने फेडरेशन के आयोजकों से फोन पर कहा कि वे इस विरोध सभा में ज़फर सरेशवाला को भी आमंत्रित करें, क्योंकि वह एक बड़े व्यापारी हैं और मुसलमानों के मुद्दों में गहरी दिलचस्पी रखते हैं. इससे पहले ब्रिटेन के मुसलमानों ने ज़फर सरेशवाला का नाम नहीं सुना था, लिहाज़ा सरेशवाला को उस कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया. सरेशवाला उस कार्यक्रम में न स़िर्फ शरीक हुए, बल्कि उन्होंने अपने विचार भी लोगों के सामने रखे. इसके बाद लंदन के मुस्लिम संगठनों के साथ सरेशवाला की नज़दीकियां दिनोंदिन बढ़ती गईं, जिसका ़फायदा उठाते हुए उन्होंने ब्रिटेन में रहते हुए न केवल गुजरात स्थित अपनी कंपनी पारसोली कॉरपोरेशन का बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार किया, बल्कि इस्लामी बैंकिंग से संबंधित कई सेमिनार आयोजित कराकर वह इस सिलसिले में प्रमुख मुस्लिम आलिमों (उलेमा) के संदेशों और फतवों को भी लोगों के सामने लेकर आए.
ज़फर सरेशवाला पहली बार अ़खबार की सुर्खियों में कब आए, यह वाकया भी बेहद दिलचस्प है. वर्ष 2001 में कुछ असामाजिक तत्वों के ज़रिये कुरान जलाने की एक दु:खद घटना दिल्ली में घटी, जिस पर दिल्ली में मुसलमानों की ओर से जबदजस्त विरोध प्रदर्शन हुआ था. उस वक्त यहीं के एक अ़खबार ने यह बात उजागर की थी कि इस धरना-प्रदर्शन के पीछे ब्रिटेन में रहने वाले एक गुजराती व्यापारी ज़फर सरेशवाला का हाथ है. इसके बाद वर्ष 2002 में गुजरात में दंगे भड़क गए. एक अ़खबार को दिए गए इंटरव्यू में सरेशवाला ने कहा था कि गुजरात दंगों के दौरान उनके घर और कार्यालय को भी आग लगा दी गई थी. उनकी कंपनी के सारे शेयर होल्डर उन्हें छोड़कर चले गए थे, जिसकी वजह से उन्हें 3.3 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ था. अब सरेशवाला के पास दो ही रास्ते थे. पहला यह कि वह मुल्क छोड़कर ब्रिटेन चले जाएं और दूसरा यह कि हिंदुस्तान में ही रहकर अपना व्यवसाय दोबारा खड़ा करें.
ज़फर सरेशवाला के विरोधियों की मानें, तो उन दिनों उनके सामने एक और मुसीबत खड़ी हो गई थी. दरअसल, गुजरात दंगों के बाद सरेशवाला ने ब्रिटेन की अलग-अलग जगहों पर वहां के भारतीय मूल के मुसलमानों द्वारा आयोजित किए जाने वाले विभिन्न दंगा विरोधी कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर शिरकत की और हर कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी के ़िखला़फ भावनात्मक भाषण दिए, जिसकी वजह से गुजरात में उनके परिवार वालों को प्रशासन द्वारा परेशान किया जाने लगा. इसलिए इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए सरेशवाला ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने का फैसला किया. अब सवाल यह था कि मुलाकात कैसे हो? तभी खुशकिस्मती से उनके हाथ एक सुनहरा मा़ैका लग गया. अगस्त 2003 में मोदी लंदन का दौरा करने वाले थे. जब सरेशवाला को यह खबर मिली, तो उन्होंने उत्तरी लंदन के हैकनी इलाके में, जहां बड़ी तादाद में गुजराती मुसलमान रहते हैं, के एक संगठन काउंसिल ऑफ इंडियन मुस्लिम के चेयरमैन मुनाफ जैना को फोन करके अपनी परेशानियों से उन्हें अवगत कराया और मोदी से मिलने की इच्छा ज़ाहिर की. मुनाफ जैना ने उनसे सहानुभूति जताते हुए कहा कि अगर मोदी से मुलाकात करके उनकी परेशानी खत्म हो सकती है, तो वह इसके लिए ज़रूर कोई रास्ता निकालेंगे.
दूसरी तऱफ भारत में सरेशवाला ने मौलाना ईसा मंसूरी, इंडिया टीवी के मालिक रजत शर्मा एवं फिल्म निर्देशक महेश भट्ट को इस बात के लिए राजी किया कि वे किसी तरह नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात करा दें. आ़िखरकार सरेशवाला लंदन में अगस्त, 2013 में नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने में सफल रहे. इस मुलाकात के बाद सरेशवाला का बयान अ़खबारों में छपा. चूंकि वह नरेंद्र मोदी से कभी मिले नहीं थे, इसलिए उन्होंने उनके बारे में ग़लतफहमियां पाल रखी थीं, लेकिन मोदी से मुलाकात के बाद उनकी तमाम ग़लतफहमियां दूर हो गईं. इसके बाद बकौल ज़फर सरेशवाला, नरेंद्र मोदी ने एक बार उन्हें लंदन में फोन करके कहा कि कब तक अंग्रेजों की गुलामी करते रहोगे? मुल्क वापस आ जाओ. लिहाजा सरेशवाला पूरी तरह अपने वतन वापस आ गए. भारत वापसी के बाद जब गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने उन पर अपनी मेहरबानियों की बौछार कर दी, तो उस एहसान का बदला चुकाते हुए सरेशवाला ने भी मुस्लिम दुश्मनी वाले मोदी के दाग को धोने की पूरी कोशिश की. तबसे लेकर आज तक वह लगातार इस कोशिश में लगे हैं और उन्हीं की कोशिशों का नतीजा है कि मुसलमानों के विभिन्न प्रतिनिधि मंडल प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कर रहे हैं.
मोदी से मुसलमानों को बातचीत क्यों करनी चाहिए, इसके बारे में शुरू से ही सरेशवाला यही दलील देते आए हैं कि उनका धर्म उन्हें यही सिखाता है कि अगर किसी समस्या के समाधान के लिए दुश्मन से भी बात करनी पड़े, तो ऐसी कोशिश ज़रूर करनी चाहिए. अब यहां सवाल यह उठता है कि सरेशवाला ने मोदी से मुलाकात करके मुसलमानों की कौन-सी समस्याओं का निराकरण कराया है? अ़खबारों को दिए गए अपने इंटरव्यू में सरेशवाला बताते हैं कि 2006 में गुजरात में होने वाले कई एनकाउंटर के बाद जब पुलिस ने वहां के मदरसों में पढ़ाने वाले मौलवियों को निशाना बनाना शुरू किया, तो उन्होंने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात कराकर इस समस्या का हल कराया था. उसी तरह वह यह भी दावा करते हैं कि वर्ष 2012 में जब गुजरात सरकार के एक विकास कार्यक्रम के चलते पुराने अहमदाबाद के 3,500 हॉकरों की रोजी-रोटी छिन गई, तो मोदी से मिलकर उन्होंने उन हॉकरों के पुनर्वास में मदद की.
वर्ष 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, तो पार्टी के साथ-साथ मोदी ने भी मुुसलमानों को अपने क़रीब लाने की कोशिश की. उसी कोशिश के तहत उन्होंने उर्दू अ़खबारों एवं चैनलों को जो इंटरव्यू दिए, उनमें उन्होंने यह बताने की कोशिश की कि उनकी नज़र में हिंदुस्तान के मुसलमान वैसे ही हैं, जैसे यहां की दूसरी कौमें. उन्होंने यहां तक कहा कि जिस दिन मुसलमान उन्हें पहचान लेंगे, वे उनसे बेपनाह मोहब्बत करने लगेंगे. ज़फर सरेश वाला ने इस काम में मोदी का भरपूर साथ दिया. सबसे पहले उन्होंने नई दुनिया के एडिटर एवं समाजवादी पार्टी के नेता शाहिद सिद्दीकी के साथ मोदी के इंटरव्यू की व्यवस्था कराई, जिसके छपने के बाद शाहिद सिद्दीकी की समाजवादी पार्टी से छुट्टी हो गई. इसके बाद सरेशवाला की ही कोशिशों की वजह से मोदी का इंटरव्यू ईटीवी और आलमी समय पर प्रसारित हुआ.
प्रधानमंत्री बनने के बाद चूंकि नरेंद्र मोदी पर हिंदुस्तानी मुसलमानों का भरोसा बहाल नहीं हो सका है, इसलिए वह सरेशवाला की मदद से मुसलमानों के किसी न किसी प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात का दौर जारी रखे हुए हैं. इन मुलाकातों के ज़रिये मोदी यह साबित करना चाहते हैं कि अब मुसलमानों को उनसे कोई शिकायत नहीं है. इन मुलाकातों के दौरान विभिन्न प्रतिनिधि मंडलों ने बुनियादी मसलों जैसे दरगाहों, मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों एवं वक्फ संपत्तियों की हिफाजत के साथ-साथ मुसलमानों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास के लिए क़दम उठाने की दरख्वास्त की.
इन हालिया मुलाकातों के बाद देश के बड़े मुस्लिम संगठनों की तऱफ से यह सवाल उठाया जाने लगा है कि प्रधानमंत्री अलग-अलग मसलकों एवं संप्रदायों के लोगों से मुलाकात तो कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमात-ए-इस्लामी हिंद, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और मुस्लिम मुशावरत जैसे संगठनों से मुलाक़ात नहीं की. इसके बाद सरेशवाला एक बार फिर हरकत में आ गए और उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रतिनिधियों को प्रधानमंत्री से मुलाकात करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने मुलाकात करने से इंकार कर दिया. इसके बाद 22 मार्च, 2015 को सरेशवाला ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में बिन बुलाए पहुंच गए, जिस पर एमआईएम के सांसद असदउद्दीन ओवैसी ने जबरदस्त विरोध दर्ज कराया. इसके बाद सरेशवाला को कार्यक्रम से बाहर जाना पड़ा. हालांकि, सरेशवाला ने सफाई पेश की कि बोर्ड के अधिकारियों के साथ उनके संपर्क हैं और जयपुर के कार्यक्रम में वह उन्हीं के कहने पर गए थे.
बहरहाल, इन तमाम आलोचनाओं के बावजूद सरेशवाला ने हार नहीं मानी है. वह लगातार इस कोशिश में हैं कि मोदी और मुसलमानों के बीच की दूरी कैसे कम की जाए. खबरों के मुताबिक, सरेशवाला ने देश भर के प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं से अलग-अलग मुलाकात की है. उन्हीं में से एक नाम मौलाना वली रहमानी का है, जो मुस्लिम मामलों के जानकार होने के साथ-साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता एवं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य भी हैं. सरेशवाला से उनकी मुलाकात 17 मई, 2015 को मुंबई के एक पांच सितारा होटल ताज लैंड इन में हुई, जिसमें सरेशवाला ने रहमानी को यह समझाने की कोशिश की कि मुसलमानों के मुद्दों पर बातचीत का सिलसिला शुरू होना चाहिए. इसके लिए ज़रूरी है कि मुसलमानों के बीच से ही कोई विश्वसनीय नेता मोदी से मुलाकात की पहल करे.
मौलाना वली रहमानी ने भी शर्त रखते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी से वह तभी मिलेंगे, जब इस बात की गारंटी दी जाए कि यह सरकार मुस्लिम मसलों को हल करने के लिए संजीदगी से कोशिश करेगी और उस मुलाकात को चाय-पानी और फोटो सेशन तक सीमित नहीं रखेगी. बहरहाल, इस बैठक का भी कोई नतीजा नहीं निकला. ताजा खबर यह है कि दो जून, 2015 को ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष मौलाना उमर इलियासी के नेतृत्व में मुसलमानों के अब तक के सबसे बड़े प्रतिनिधि मंडल ने प्रधानमंत्री मोदी से उनके निवास पर मुलाकात की. हालांकि, इस सिलसिले में ज़फर सरेशवाला का नाम कहीं नहीं आया, लेकिन मुसलमानों के इतने बड़े प्रतिनिधि मंडल से मुुलाकात के पीछे सरेशवाला की भूमिका को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है. इस मुलाकात के दौरान अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी मौजूद थे.
मुलाकात के बाद मौलाना इलियासी ने मीडिया से कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि आप मन की बात करते हैं और हम आपसे दिल की बात करने आए हैं. आप जिन दिनों जर्मनी में मेक इन इंडिया की बात कर रहे थे, उन्हीं दिनों कुछ लोग मुल्क के अंदर हिंदुस्तान को तबाह करने की बात कर रहे थे. इसके जवाब में प्रधानमंत्री ने प्रतिनिधि मंडल से कहा, अगर आप किसी मसले को लेकर मेरे दरवाजे पर आधी रात को भी दस्तक देते हैं, तो मैं आपकी बात सुनने को तैयार हूं. इस मुलाकात को लेकर मीडिया चाहे जो कुछ भी कहे, पर ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री पर मुसलमानों का भरोसा बहाल होने लगा है. जहां तक विदेशी मोर्चे पर मोदी के लिए राह आसान करने का सवाल है, तो यह हक़ीक़त है कि प्रधानमंत्री अब तक 20 देशों की यात्रा कर चुके हैं, जिनमें से बांग्लादेश को छोड़कर उन्होंने अन्य किसी मुस्लिम देश का दौरा नहीं किया. इसलिए नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि सरेशवाला किसी बड़े मुस्लिम देश का दौरा करने की राह आसान करें. इस सिलसिले में ़खबर आ रही है कि सरेशवाला इस मुहिम में लग चुके हैं और पिछले दिनों उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), तुर्की और सऊदी अरब के अ़खबारों में अपने इंटरव्यू छपवाए हैं, जिनमें मोदी से जुड़ी बातें भी कही गई हैं. लिहाजा आने वाले दिनों में यदि मोदी किसी मुस्लिम देश का दौरा करते हैं, तो समझ लेना चाहिए कि इसके पीछे ज़फर सरेशवाला का हाथ ज़रूर है.
ज़फर सरेशवाला : एक परिचय
ज़फर सरेश वाला की मानें, तो उनके पूर्वज 250 साल पहले मौजूदा सऊदी अरब से हिजरत करके गुजरात में बस गए थे. उनका संबंध सुन्नी बोहरा समुदाय से है. यह समुदाय दाऊदी बोहरा से अलग है. ज़फर सरेशवाला मैकेनिकल इंजीनियरिंग से ग्रेजुएट हैं. पेशे के लिहाज़ से वह हिंदुस्तान में इस्लामिक बैंकिंग और फाइनेंस के जनक माने जाते हैं. यही नहीं, वह भारत के पहले और एकमात्र मुसलमान हैं, जिनकी कंपनी पारसोली कॉरपोरेशन लिमिटेड नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में रजिस्टर्ड है. ज़फर सरेशवाला के पिता मोहम्मद यूनुस सरेशवाला का अक्टूबर 2013 में देहांत हो गया था. ज़फर कहते हैं कि उनके पिता ने भी यही मशविरा दिया था कि वह मोदी के साथ अपने संबंध बरकरार रखें.