1992 की बात है ।हम लोग यानी मैं और मेरी पत्नी पैलेस ऑन व्हील्स से सफर कर रहे थे ।इस यात्रा का एक पड़ाव जोधपुर में भी था। आम तौर पर बड़े शहरों में दिन भर लक्जरी बसों से नगर दर्शन कराया जाता है और लंच किसी पांच सितारा होटल में ।जोधपुर नगर दर्शन के दौरान हमें बताया गया कि जिस प्रकार जयपुर को गुलाबी नगर कहा जाता है उसी प्रकार जोधपुर को नीला नगर ।यह जानकारी हमें उस समय दी गयी जब हम लोग मेहरानगढ़ की ओर जा रहे थे। यह क्षेत्र पहाड़ी पर है और इसके नीचे दीखने वाले मकान नीले रंग के हैं।यह भी बताया गया की जोधपुर शहर के भीतर के ज़्यादातर मकानों की पुताई नीले रंग में ही करायी जाती है । पहले ये सभी नीले मकान ब्राह्मणों के हुआ करते थे ,अब दूसरी जातियों के भी हैं । लंच हमने उमेद भवन पैलेस में किया जो जोधपुर की शान है ।आधे महल में होटल है और आधे भाग में पूर्व महाराजा गजसिंह अपने परिवार के साथ रहते हैं ।उसकी भव्यता और सुंदरता देखते ही बनती है ।यह महल मेरे मन में घर कर गया और दिल के किसी कोने में यहां रहने की इच्छा जागृत हुई। जी हां,यह वही उमेद भवन पैलेस है जहां कई फिल्मी सितारों की शादियां शाही अंदाज़ में होती हैं ।लगता है कुदरत ने मेरे दिल की आवाज़ सुन ली ।डालमिया सेवा ट्रस्ट नामक एनजीओ के अध्यक्ष समाजसेवी उद्यमी संजय डालमिया ने उनके ट्रस्ट द्वारा लगने वाले चिकित्सा शिविरों में उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए मुझे कहा। उस सिलसिले में मैंने शुरू में उमेद भवन पैलेस को अपना ठौर बनाया।मैं यहां सन 2000 में रहा था, पूरा एक साल। हर माह दो दिन के लिए यहां आकर रहता था । पूर्व महाराजा गजसिंह जी से भी मुलाकातें हुआ करती थीं ।

जोधपुर राजस्थान की व्यापारिक राजधानी है जो दुनिया भर के व्यापारियों को आकर्षित करती है ।यहां की कचौडियां और मिर्ची बड़ा स्थानीय लोगों के साथ साथ बाहर से आने वालों को भी खूब भाते हैं ।एक मिर्ची बड़ा के ऊपर-नीचे डबल रोटी के दो पीस खाने से पूरा नाश्ता हो जाता है ।नई सड़क का जनता स्वीट्स और रावत आपको हमेशा भरे मिलेंगे। यहां तीन किस्म की कचौडियां उपलब्ध हैं, प्याज वाली,दाल वाली और मावा वाली ।कचौडियों की क्रेज के बारे में वहां एक किस्सा मशहूर है ।एक बार मुंबई से उड़कर एक विमान को दिल्ली जाना था लेकिन पायलट को जोधपुर की कचौडियां बहुत पसंद थीं ।उसने जोधपुर एयरपोर्ट पर अपने किसी सहयोगी को फ़ोन करके जनता स्वीट्स से बक्सा भर कचौडियां लाकर रखने की हिदायत देते हुए कहा कि मुंबई से दिल्ली जाने वाले विमान को वह वाया जोधपुर लाएगा, सवारियां नहीं उतरेंगी वह काकपिट में कचौडियां पहुंचा दे। सहयोगी ने अपने पायलट के हुक्म की तामील की और उसके बाद विमान दिल्ली के लिए रवाना हो गया।पायलट के साथ दिल्ली में एयरलाइंस के अधिकारियों ने क्या सलूक किया, उस बाबत यही सुनने में आया कि यह सभी लोगों की मिलीभगत थी क्योंकि सभी को जोधपुर की कचौडियां बहुत पसंद हैं ।

जोधपुर से पाली जाते हुए रास्ते में रोहट पड़ता है ।वहां की कचौडियां भी मशहूर हैं लेकिन जोधपुर जितनी नहीं ।एक तो उनका साइज़ छोटा होता है और स्वाद भी जोधपुर की कचौडियों जैसा मुझे नहीं लगा लेकिन स्थनीय लोगों को बहुत पसंद हैं । रोहट से पाली की तरफ जाते हुए रास्ते में एक स्थान पर मोटरसाइकिल की पूजा आराधना होती देख मैं ठिठका और मोटरसाइकिल की पूजा के इस रहस्य के बारे में जानना चाहा । मुझे बताया गया कि यह मोटरसाइकिल ओम बन्ना नामक एक राजपूत की
है जिसका एक सड़क हादसे में निधन हो गया था।इस दुर्घटना संबंधी सारी कार्रवाई पूरी करने के बाद पुलिस मोटरसाइकिल रोहट थाने ले गयी ।उसे बाहर खड़ा कर पुलिसकर्मी थाने के भीतर जाकर अगली कार्रवाई में जुट गये ।अचानक उनके कान में किसी मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने की अवाज पड़ी। बाहर आकर उन्होंने देखा कि जिस मोटरसाइकिल को वह दुर्घटनास्थल से लाये हैं वह अपने आप स्टार्ट होकर उस स्थान पर पहुंच गयी है जहां उसके सवार ओम बन्ना की मौत हुई थी ।इस आश्चर्यचकित करने वाली घटना की खबर आसपास के गांवों तक फैल गयी और लोग इकट्ठा होने लगे ।एक बार फिर पुलिस मोटरसाइकिल को थाने ले गयी और फिर से वैसी ही पुनरावृति हुई।पुलिस ने अब मोटरसाइकिल से पेट्रोल निकाल कर उसे थाने के बाहर खड़ा कर दिया लेकिन वह फिर दुर्घटनास्थल पर पहुंच गयी । वहां मौजूद लोगों ने इस मोटरसाइकिल में ओम बन्ना की आत्मा से युक्त ‘दिव्य’ और ‘दैवीशक्ति’ का स्वरूप बताया और इसप्रकार यह पूज्य हो गयी ।अब वहां विशेष वार्षिक पूजा होती है जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। उस दिन यहां अच्छा खासा मेला लग जाता है ।जिस तरह से मंदिरों के बाहर पूजा अर्चना के सामान से युक्त दुकानें होती हैं वैसी दुकानें यहां भी खुल गयी हैं।

पाली से होते हुए जादन पहुंचा ।जादन गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर 250 एकड़ में ‘ओम आश्रम’ पिछ्ले करीब तीस बरसों से बन रहा है जो इस साल के अंत तक पूर्ण होने की संभावना है ।यह दुनिया में पहला और अकेला ओम आश्रम है । इस आश्रम के बारे में दरअसल मुझे समाजसेवी उद्यमी संजय डालमिया ने बताया था ।उन दिनों मैं उनके एक एनजीओ डालमिया सेवा ट्रस्ट द्वारा मारवाड़ में आयोजित चिकित्सा शिविरों के निरीक्षण करने के लिए उनके प्रतिनिधि के तौर पर जाया करता था ।जोधपुर में अपने कुछ मित्रों की सहायता से जब मैं जादन पहुंचा तो लगभग एक वर्ग किलोमीटर में फैले इस आश्रम में मैंने स्कूल,कॉलेज,अस्पताल, गौशाला, बरसाती पानी को एक तालाब में एकत्रित कर कई प्रकार की फसलें उगाई जाने वाली प्रक्रिया को देखा। मरुस्थल में पानी की कमी की प्रतिपूर्ति को जल संचयन का यह बेहतर तरीका माना जाता है ।ओम आश्रम का निर्माण प्रकृति का संरक्षण है,धरती को बंजर होने से बचाना है,लोगों को इस तथ्य से भी अवगत कराना है कि क्लोराइड और वॉशिंग पाउडर का पानी धरती के लिए कितना नुकसानदेह है ।।इसी प्रकार यूरिया का इस्तेमाल भी धरती की उर्वरता के लिए घातक है ।यही कारण है कि कल जो भूमि साल में तीन-तीन फसलें दिया करती थी आज मुश्किल से एक या दो से अधिक नहीं दे पाती । कुदरत के साथ खिलवाड़ का असर सभी प्रकार की जिंदगियों पर पड़ता है इंसानों और जानवरों पर एक समान ।अलावा इसके पर्यावरण,विश्व शांति,शिक्षा,योग और वैदिक संस्कृति को बढ़ावा देने, संस्कृतियों और धर्मों में शांति और समझ के विकास तथाआरोग्यता के संरक्षण को ओम आश्रम अपना मूलमंत्र मानता है। निस्संदेह ऐसे विचार सराहनीय हैं-समाज और देश दोनों के लिये । इस मूलमंत्र का ही भाग है ओम आश्रम का दिव्य आकार जहां सभी प्रकार की हस्तकला, वास्तुकला और शिल्पकला के अद्वितीय व अलौकिक नमूने देखने को मिलेंगे। वहां पहुंचने पर कुछ ऐसा महसूस होता है जैसे आपके भीतर कुछ अलौकिक दिव्य तरंगें और ब्रह्मांडीय ऊर्जा प्रवेश कर गयी है।

मुझे ओम आश्रम के निर्माण के विभिन्न प्रक्रमों को देखने का कई बार सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसे विश्व दीप गुरूकुल स्वामी
महेश्वरानंद आश्रम शिक्षा एवं शोध केंद्र,जादन का अंग माना जाता है जो विश्व गुरु महामंडलेश्वर परमहंस स्वामी महेश्वरानंद पुरी महाराज की सरपरस्ती,मार्गदर्शन और आशीर्वाद से 1993 में स्थापित हुआ। इस आश्रम के बीचो-बीच चार खंडों वाला एक मंदिर बन रहा है ।इसका एक भूखंड धरती के नीचे है और तीन ऊपर ।भूगर्भ में स्वामी माधवानंद की समाधि है जिसके चारों तरफ सप्तऋषियों की मूर्तियां हैं । मैंने मंदिर देखने आने से पहले स्वामी योगेश पुरी से बात कर ली थी जिन्हें इस पूरी योजना का प्रमुख वास्तुशिल्पी माना जाता है ।उनकी कुटिया गेट से प्रवेश करते ही दाईं तरफ है । साढ़े छह फ़ूट लंबे बहुत ही खूबसूरत गेरुआ वस्त्रधारी स्वामी योगेश पुरी को जब मैं मिला तो उन्हें एकटक देखता ही रह गया।मैं उनके सामने बौना-सा लग रहा था।

उन्होंने दोनों हाथ जोड़ कर ‘हरि ओम ‘ कह कर मेरा अभिवादन किया । उनके बातचीत करने के ढंग और पहनावे को देखकर यह अनुमान लगा पाना मुश्किल था कि वह विदेशी हैं । वैसे वह मूलतः स्लोवेनिया के रहने वाले हैं जो कभी युगोस्लाविया का अंग था। वह वहां की राजधानी ल्जुबिजना में एक कॉलेज में वास्तुकला के सहायक प्राध्यापक थे जिन्होंने स्वामी महेश्वरानंद पुरी का शिष्यत्व विदेश में रहते ही 1990 में प्राप्त कर लिया था और 1991में जादन आ गये थे।शुरू शुरू में उनके माता पिता उनके इस फैसले के पक्ष में नहीं थे। बाद में वह मान गये।आजकल वे भी जादन में रहते हैं ।उन्हें यहां आये 32-33 साल हो गये हैं ।वह तलाकशुदा हैं और उनकी एक बेटी है जो यूरोप में ही रहती है ।अपना मूल नाम भी अब उन्हें याद नहीं ।पासपोर्ट स्वामी योगेश पुरी के नाम से है ।हिंदी और काफी कुछ राजस्थानी यहां के कारीगरों के साथ रहते हुए सीखी है। अपने गुरु स्वामी महेश्वरानंद के कारण उन्हें यह भारतीय नाम और गुरु की जाति पुरी प्राप्त हुई है । यह पूछे जाने पर कि जब स्वामी जी पूर्वी यूरोपीय देशों के साम्यवादी शासन के समय अपने आध्यात्मिक और मानवता के उत्थान संबंधी कार्यों से लोगों की मनोवैज्ञानिक सहायता कर रहे थे तब वह उनसे प्रभावित हुए थे या उससे भी पहले उन्हें जानते थे।स्वामी योगेशजी मुस्कुराये और बोले ‘हां, मैं उनकी सोच और प्रवचनो से प्रभावित हुआ था। लेकिन यह तथ्य भी उतना ही सही है कि दुनिया के अनेक भागों के बुद्धिजीवियों, वैज्ञानिकों, धार्मिक गुरुओं और राजनेताओं ने स्वामीजी के विश्व भर में किए जा रहे परोपकारी,मानवीय, धार्मिक और पर्यावरण की सुरक्षा के कार्यों को भी सराहा है । अपने भक्तों को स्वामी जी किस भाषा में संबोधित करते हैं योगेश पुरी जी ने बताया हिंदी, अंग्रज़ी, जर्मन में ।
हंगेरियन भी वह काफी हद तक समझ लेते हैं ।आपके अलावा स्वामी जी के और भी विदेशी शिष्य हैं? जी हां, 30-40 के करीब।वे केवल पूर्व यूरोपीय देशों के ही नहीं ,दुनिया भर के देशों से हैं जैसे अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया,ऑस्ट्रिया,चेकोस्लोवाकिया आदि देशों से। और स्वामी जी ने सभी को अपने अपने काम सौंप रखे हैं । सभी शिष्य हिंदी बोल और समझ लेते हैं और कुछ लिख-पढ़ भी सकते हैं,स्वामी योगेश पुरी ने जानकारी दी।उन्होंने यह भी बताया कि कामगारों के साथ रह कर बहुतों ने राजस्थानी भी सीख ली है । स्वामी महेश्वरानंद जी राजस्थानी हैं और पाली ज़िले के रूपवास गांव से संबंध रखते हैं ।वह स्वामी माधवानंद के शिष्य हैं ।उनका संबंध भी राजस्थान से था।औपचारिकता में समय नष्ट किये बिना स्वामी योगेश पुरी जी बोले ,’आइये त्रिलोक जी, मंदिर का निर्माणकार्य देखते हैं।’

सबसे पहले वह मुझे बाहर के गेट के बिल्कुल सामने बने मंदिर के प्रवेशद्वार से भीतर ले गये जो खासा ऊंचाई पर बना हुआ है ।
10-12 सीढियां चढ़ने के बाद एक बड़ा-सा हाल है जिसे प्रार्थना भवन कहा जाता है ।स्वामी योगेश पुरी ने कहा कि आइये त्रिलोक जी,ब्रह्मलीन स्वामी माधवानंद जी की समाधि के समक्ष बैठकर दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें।पांच मिनट वहां बैठने के बाद वह मुझे अपने साथ निर्माणाधीन आश्रम के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ऐसा विश्वव्यापी मंदिर बनाने का सपना स्वामी महेश्वरानंद पुरी ने विदेश में लोगों को योग सिखाते सिखाते और भारतीय सनातन संस्कृति पर चर्चा करते हुए देखा था। स्वामी जी का मानना है कि योग की ताकत और सनातन धर्म के दिव्य ज्ञान से शारीरिक और मानसिक दुखों को दूर किया जा सकता है ।इस बाबत जब उन्होंने अपने विदेशी मेज़बानों से अपने सपने की बात चलायी तो उन्होंने स्वामी जी को आश्वासन देते हुए कहा था कि आप अपने सपने को साकार करने की दिशा में सोच विचार कर अपना निर्णय लें, यहां से हम लोग आपको भरपूर सहयोग, समर्थन और सहायता प्रदान करेंगे।उस समय वह ऑस्ट्रिया में रहते थे जहां वह एक आयुर्वेदिक अस्पताल चलाते हैं जिसका नाम है इंटरनेशनल श्री दीप माधवानंद आश्रम।एक अनुमान के अनुसार इस समय स्वामी जी के यूरोप,अमेरिका,कनाडा,ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और भारत समेत 37 हज़ार योग शिविर हैं जो उनके भक्तजन चलाते हैं। विदेशों की भांति भारत में भी उनके अनेक भक्तों ने इस महान कार्य के लिए खुले दिल से दान दिया है जिसकी बदौलत यह भव्य आश्रम निर्मित हो रहा है ।

इस आश्रम के निर्माण में धौलपुर के बंशी पहाड़ के पत्थरों का इस्तेमाल किया जा रहा है । उत्तर भारत की नागर शैली की स्थापत्य कला तथा वास्तुकला के आधार पर निर्माण हो रहा है । स्वामी योगेश पुरी ने चलते चलते एक कक्ष का दरवाज़ा खोला और मुझे भीतर आने के लिये कहा।बहुत ही साफ सुथरा था वह कक्ष जहां दो बैड लगे हुए थे । बाथरूम कमरे के साथ ही संलग्न था । स्वामीजी ने बताया कि इस प्रकार के 108 कक्ष हैं जिन का निर्माण इसप्रकार किया गया है कि ऊपर टॉवर पर जाकर देखने से एक प्रभावशाली ओम आकार की आकृति देखने को मिलेगी। जिस तरह से जाप माला के एक सौ आठ मनके होते हैं उसी प्रकार से ये 108 कक्ष हैं जो ज़बरदस्त ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आकर्षित करते हैं । ये कक्ष उन लोगों के रहने के लिए हैं जो यहां योग की व्यापक शिक्षा प्राप्त करने तथा सनातन संस्कृति का अध्ययन करने के लिए आने वाले हैं ।इन कक्षों में एक साथ पांच सौ छात्र रह सकते हैं जो योग,संस्कृत और दर्शन शास्त्र में शिक्षा प्राप्त करते हैं ।इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य योग के प्राचीन विज्ञान और वैदिक संस्कृति के अमूल्य आध्यात्मिक खज़ाने को बढ़ावा देना है जिस में सम्मिलित है शारीरिक,मानसिक,सामाजिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य,सभी जीवित प्राणियों के जीवन का सम्मान,धर्मों,संस्कृतियों और राष्ट्रों के बीच सहिष्णुता,सम्मान और समझ तथा मानव और पशु अधिकारों और पर्यावरण का संरक्षण । इन कक्षों में हर प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं ।

ये कक्ष दिखाने के बाद स्वामी योगेश पुरी एक खासी ऊंची बिल्डिंग दिखाने ले गये जिसके धुर ऊपर जाकर ओम की आकृति को स्पष्ट देखा जा सकता है ।ओम की ये आकृति देखने के लिए 108 फीट की सीढ़ियाँ चढ़नी होंगी। हालांकि ये सीढ़ियां बहुत ही सुगम और सुविधाजनक हैं बावजूद इसके एक तो अपनी बढ़ती उम्र, दूसरे सीढ़ियों के साथ सहारा न होने से डर लगता था लिहाजा आगे चलते हुए मैंने स्वामी जी का हाथ पकड़ा और मेरे पीछे मेरा ड्राइवर होने से मैं अपने आप को महफ़ूज महसूस कर रहा था । शिखर के ऊपर का नज़ारा अद्भुत था ।नीचे ओम की आकृति देखकर स्वामी योगेश पुरी की वास्तुकला की तारीफ किए बिना नहीं रह सका।वह विनीत इतने कि हाथ जोड़कर बोले कि यह गुरु जी स्वामी मेहश्वरानंद पुरी जी महाराज की कृपा और आशीर्वाद का फल है ।मेरे ड्राइवर ने नीचे की ओम आकृति और स्वामी योगेश पुरी के साथ चित्र लिये ।उस शिखर से पूरा परिसर बहुत ही अद्भुत और सुंदर दीख रहा था । यह भी बताया गया कि जब कोई विमान और हेलीकाप्टर यहां से गुज़रता है तो उसमें बैठे यात्रियों को ओम की आकृति साफ दीखती है । वहीं शिखर से पानी की एक बहुत बड़ी टंकी दीखी जो 90 फीट की ऊंचाई पर बनी हुई है जिस पर बारह मंदिर हैं ।सबसे ऊंचाई पर भगवान सूर्य को समर्पित सूर्य मंदिर है । नीचे एक झील ओम प्रतीक के अर्द्धचंद्राकार के रूप में परिलक्षित करती है ।पानी की टंकी के ऊपर का सूर्य मंदिर है जहां महादेव का शिवलिंग और उसके ऊपर ब्रह्मांड की आकृति है ।यह शिवलिंग स्फटिक का है ।मंदिर में ऐसे दो सौ स्तंभ बने हुए हैं जिन पर अलग अलग देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। बेशक यह ओम आश्रम दिव्य आकार का भव्य भवन है जहां वास्तुकला, हस्तकला और शिल्पकला का बेजोड़ नमूना परिलक्षित होता है । मंदिर में कुल 1100 स्तंभ हैं जिन पर विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ उकेरी गई हैं

स्वामी योगेश पुरी ने बताया कि यह विश्व का एकमात्र ऐसा आश्रम है जहां भारतीय योग विज्ञान और वैदिक संस्कृति को आने वाली पीढ़ी के बीच जीवित रखना है ।बाहरी हिस्से में स्वस्तिक के चिन्ह अंकित हैं ।यहां आकर लोग योग की ताकत को बखूबी समझेंगे।प्रार्थना भवन के पास एक भक्ति सागर भवन है जहां गुरु जी के सभी अवार्ड्स रखे हैं और अलग से एक फोटो गैलरी भी है ।साथ ही एक शिव मंदिर भी है ।शिव मंदिर भूगर्भ में भी है और प्रार्थना भवन के पास भी । एक तरह कह सकते हैं कि ओम आश्रम शिवमय है । चारों ओर नज़र डालने से किसी न किसी रूप में शिव की उपस्थिति अनुभव होगी या उनकी कई प्रकार से उकेरी गयी मूर्तियों से शिवलिंग से ।निस्संदेह बहुत ही भक्तिमय वातावरण है ।

यहां देवेश्वर गौशाला में एक हज़ार से अधिक गायें हैं ।अधिक नंदी (बैल) और देसी गायें हैं ।बीमार,बूढ़ीऔर बेघरबार गायों की देखभाल होती है ।गायों के दूध वहां के रहने वालों और काम करने वालों के बीच वितरित किया जाता है । देवेश्वर गौशाला के अतिरिक्त पांच-छह और गौशालायें भी हैं ।रूपवास में भी एक आश्रम बना हुआ है ।वहां पर भी छह-सात सौ गायें हैं ।बाप जी के गांव का आश्रम भी भव्य है । स्वामी जी को बीच में टोकते हुए मैंने उनसे पूछा कि स्वामी जी को आप कैसे संबोधित करते हैं,वह थोड़ा मुस्कुराये और बोले किसी भी आदरसूचक संबोधन से जैसे बाप जी,गुरु जी,स्वामी जी आदि ।वैसे ही राजस्थानी परंपरा भी है ।मैंने कई बार जोधपुर के लोगों को पूर्व महाराजा गजसिंह को बाप जी संबोधित करते हुए सुना था।वैसे ही वहां के एक संत स्वामी अचलानंद जी महाराज को भी लोगबाग बाप जी कह कर संबोधित करते हुए ।

स्वामी योगेश पुरी के अनुसार ओम के उच्चारण से आप एक ऐसी ध्वनि का अनुभव करते हैं जो आपके शरीर में कास्मिक तरंगें बिखेरती नज़र आती है ।ओम में प्रयुक्त तीन शब्द ‘अ’,’ओ’ और ‘म’ इस ध्वनि का प्रतीक हैं । यह ब्रह्मांडीय कंपन,मूल शाश्वत ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है ।ओम सृष्टि का अंतर्निहित स्रोत है,आदि-अनादि ।ओम पूर्णता,पूर्णता का प्रतिनिधित्व करता है ।आप आंखें बंद कर दत्तचित्त हो पूरे मनोयोग से यह ध्वनि अपने मुंह से निकालेंगे तो आप ‘आदि-अनादि’ का अनुभव करेंगे । सृष्टि के रचयिता कहे और माने जाने वाले त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को ओम का प्रतीक माना जाता है जिसके जाप से शरीर को गजब की सफूर्ति और मन को शांति प्राप्त होती है ।’ओम’ का निराकार स्वरूप धरती पर पहली बार साकार हुआ है ।

स्वामी योगेश पुरी ने बताया कि गुरु जी को योग और आध्यात्म का बहुत अच्छा अनुभव है ।वह प्राचीन योग और आधुनिक विज्ञान को साथ साथ लेकर प्रेरणा देते हैं । दैनिक जीवन में योग के महत्व को बताते हुए कहते हैं कि मानवता के कल्याण के साथ साथ संसार के सभी जीवों का भला होगा। वह जहां भी जाते हैं लोगों को आत्मज्ञान और सबसे प्रेम करने का संदेश देते हैं ।जीवन का सत्य और सही मार्ग समझने में उनकी मदद करते हैं,राष्ट्रों की आपसी सांस्कृतिक,धार्मिक समझ बढ़े वे एक दूसरे का आदर करें और उनमें सहनशक्ति बढ़े , सभी पर्यावरण प्रकृति की सुरक्षा का ध्यान रखें और शाकाहार को अपनायें यह उनका मुख्य परामर्श रहता है ।स्वामी महेश्वरानंद जी के उद्देश्यों की विस्तृत व्याख्या करते हुए स्वामी योगेश पुरी कहते हैं कि वह इस पूरे आश्रम को ऐसा बनाना चाहते हैं जिससे समाज के सभी वर्ग के लोगों का बिना किसी भेदभाव के भला हो,हिफाजत हो और उनके आगे बढ़ने के अवसर अवरुद्ध न हों ।वह सभी जीवों के लिए शारीरिक,सामाजिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य चाहते हैं।गुरु जी यह भी चाहते हैं कि सभी जंतुओं की जिंदगियों का सम्मान हो, सभी धर्मों,संस्कृतियों और राष्ट्रों के बीच सहनशीलता, सम्मान तथा भाईचारे की भावना विकसित हो तथा सभी मनुष्यों और पशुओं के अधिकार सुरक्षित रहें और पर्यावरण स्वास्थ्यवर्धक हो। वह सनातन संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के पक्षधर हैं और चाहते हैं कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का अधिक से अधिक अनुसरण किया जाये ।

सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में स्थित ओम आश्रम में जब आप प्रवेश करते हैं तो आप एक अलौकिक शक्ति का अनुभव करते हैं।वह संभवतः इसलिए कि यह स्थान आपको ब्रह्मांड सा प्रतीत होता है जिसके दर्शन आपको बहुत दूर से ही हो जाते हैं ।रही सही कसर शिव मंदिर के भीतर जाकर पूरी हो जाती है ।वहां आपको एक ऐसे शिवलिंग का स्वरूप देखने को मिलेगा जिसमें बारह ज्योतिर्लिंग हैं ।बताया जाता है कि इस विस्मयकारी शिवलिंग का निर्माण ओडिसा में हुआ है । मंदिर की दीवारों पर शिव के 1008 नामों के अनुरूप आकृतियाँ उकेरी गयी हैं जो भक्तजनों और दर्शकों को भी बहुत सुकून प्रदान करती हैं और वे दत्तचित्त हो कभी उन्हें निहारते हैं और कभी आंखें बंद करके उनमें डूब जाना चाहते हैं ।

विश्वद्वीप ओम गुरुकुल बहुत लंबा चौड़ा है ।यहां पर स्कूल और कॉलेज भी हैं और चिकित्सकीय सुविधाएं भी । यहां पर योग विश्वविद्यालय बनाने का भी प्रावधान है ।योग पर चर्चा को आगे बढ़ते स्वामी योगेश पुरी लगता था कहीं खो गये थे ।योग आध्यात्म है, आत्मविज्ञान,आत्मज्ञान है जो केवल आसनों तक ही सीमित नहीं है ।यहां हठयोग का आधुनिक रूप अपनाया जाता है जिसे शारीरिक फिटनेस,तनाव शैथिल्य और विश्रृंति की प्रधानता का प्रतीक है । हठयोग सत्कर्म पर केंद्रित है । भौतिक शरीर की शुद्धता मन की शुद्धता होती है ।इसके लिए आपको अहंकार,काम,क्रोध,मोह और लालच को छोड़ना होता है । ईसा संवत से पहले योग प्रचलित था।इसका उल्लेख उपनिषद में है ।कई तरह के योग हैं:बौद्ध,जैन और सनातन ।योग से भगवान तक पहुंचा जा सकता है ।यह तो आपकी साधना पर निर्भर करता है कि आप कितने निर्लिप्त होकर ध्यान लगाते हैं, ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करते हुए मोक्ष के द्वार तक पहुंचते हैं ।योग की शुरुआत आसन से होती है ,प्रणायाम अगली सीढ़ी है,बाद में प्रत्याहर है,उसके बाद ध्यान और अंत में समाधि । यह पूछे जाने पर कि स्वामी महेश्वरानंद ने कौनसी विधा प्राप्त की है तो योगेश पुरी जी ने बताया
कि वह ब्रह्मज्ञानी हैं ।इसपर मुझे गुरु ग्रंथ साहब में ‘सुखमनी ‘ में निहित एक श्लोक याद हो आया जिसके अनुसार ‘ब्रह्मज्ञानी’
‘अनाथ का नाथ, ब्रह्मज्ञानी का सब उपर हाथ’। निस्संदेह वह बहुत पहुंचे हुए संत हैं ।

15 अगस्त,1945 में रूपवास में जन्मे स्वामी महेश्वरानंद का असली नाम मांगीलाल था । उनके पिता पंडित कृष्ण रामजी ज्योतिषी थे और धार्मिक प्रवृति के थे ।तीन साल की आयु में ही बालक मांगीलाल ध्यान में लीन रहने लगे ।अभी वह बारह वर्ष के ही थे कि उनके पिता का निधन हो गया ।उनकी माता ने उन्हें उनके चाचा स्वामी माधवानंद के पास निपाल भेज दिया ।शुरू में पढ़ाई में उनकी ज़्यादा रुचि नहीं थी इसलिए वह अपने चाचा से सन्यासी बनाने को कहा करते थे जिसे कुछ समय बाद उनके चाचा ने उनकी यह इच्छापूर्ति कर दी ।उन्हें छह माह तक योग के बड़े कठिन नियमों से गुज़रना पड़ा ।इसमें ध्यान के साथ साथ उपवास भी शामिल था ।सत्रह बरस की उम्र में उन्हें आत्मसिद्धि प्राप्त हो गयी ।1967 में वह स्वामी बना दिये गये तथा 1972 में ऑस्ट्रिया-भारत योग वेदांत छात्रवृत्ति प्राप्त कर विएना पहुंच गये और पहला श्री दीप माधवानंद आश्रम स्थापित किया ।

ओम आश्रम के अतिरिक्त आधे हिस्से में स्कूल, कॉलेज हैं,अस्पताल है , वातावरण को स्वस्थ और आक्सीजन को बनाये रखने के लिए जंगल है ।योग विश्वविद्यालय जल्दी अस्तित्व में आयेगा।पहले मेडिकल कॉलेज की भी योजना थी लेकिन हाल में सरकार द्वारा पाली में नया मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की घोषणा से यहां अस्पताल बनाने का ही निर्णय लिया गया।जोधपुर में पहले से ही एक मेडिकल कॉलेज है ।प्राथमिक से लेकर वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल तक शिक्षा दी जाती है ।यहां भी बच्चे प्राचीन गुरुकुल पद्धति के अनुसार शिक्षा प्राप्त करें ऐसे प्रयास भी सुनने को मिले जिससे उनमें वैसे ही अनुशासन की भावना विकसित हो जैसी पुरातनकाल में थी और अपने गुरुओं के प्रति आदर सम्मान की भावना भी ।बेशक यहां पर सनातन भारतीय संस्कृति के साथ साथ योग सीखने पर ज़ोर दिया जाता है, बावजूद इसके यहां का स्कूल और कॉलेज आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विरुद्ध नहीं हैं ।यहां के कॉलेज में कला,विज्ञान, कामर्स के पाठ्यक्रम भी हैं और खेलकूद के लिए खुले और बड़े मैदान भी । रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रम भी हैं तो संगीत,कला और कंप्यूटर के शिक्षण की व्यवस्था भी । निस्संदेह ओम आश्रम एक बार देखना तो बनता है ।नामुमकिन नहीं कि देर सबेर यह पर्यटन स्थल बन जाये ।

Adv from Sponsors