यह महात्मा गाँधी की 1909 में लिखि हुई हिंद स्वराज्य नामकी किताब का इंग्लैंड की हालत शिर्षक से लिखा गया पन्ना नंबर 13 पर का मजमून है ! इस लिखने को इस साल 115 साल हो रहे हैं ! जबकि भारत में पार्लियामेंट का अस्तित्व नही था ! यह मजमून इंग्लैंड की सातसौ साल पुरानी पार्लियामेंट को लेकर लिखा गया है ! लेकिन 115 साल पहले लिखा गया पार्लियामेंट के बारे में यह मजमून ! आज भारत की संसदीय राजनीति को हूँ- ब – हूँ लागू हो रहा है !
इंग्लैंड की हालत
पाठक – आप जो कहते हैं उस पर से तो यही अंदाजा लगाता हूँ कि इंग्लैंड में जो राज्य चलता है वह ठीक नहीं है !

संपादक – आपका यह ख्याल ठीक है ! इंग्लैंड में आज जो हालात हैं वह सचमुच दयनीय – तरस खाने लायक है ! मैं तो भगवान से यही मांगता हूँ कि हिंदुस्तानकी ऐसी हालत कभी न हो ! जिसे आप पार्लियामेंटकी माता कहते है, वह पार्लियामेंट तो बांझ और बेसवा है ! ये दोनों शब्द बहुत कडे है, तो भी उसे अच्छी तरह लागू होते हैं ! मैंने उसे बांझ कहा, क्योंकि अब तक उस पार्लियामेंटने अपने आप एक भी अच्छा काम नहीं किया ! अगर उस पर जोर – दबाव डालने वाला कोई नहीं हो तो वह कुछ भी न करें, ऐसी उसकी कुदरती हालत है ! और वह बेसवा है क्योंकि जो मंत्रि-मंडल उसे रखे उसके पास रहती है ! आज उसका मालिक एक्स्विथ है, तो कल बालफर होगा और परसों कोई तीसरा !

पाठक : आपके बोलने में कुछ व्यंग है ! बांझ शब्दको अब तक आपने लागू नहीं किया ! पार्लियामेंट लोगोकी बनी है, इसलिए बेशक लोगों के दबाव से ही काम करेगी ! यही उसका गुण है, उसके उपर का अंकुश है !

संपादक : यह बडी गलत बात है ! अगर पार्लियामेंट बांझ ना हो तो इस तरह होना चाहिए – लोग उसमे अच्छे से अच्छे मेंबर चुनकर भेजते हैं ! मेंबर तनख्वाह नही लेते, इसलिए उन्हें लोगोकी भलाई के लिए पार्लियामेंट में जाना चाहिये, लोग खुद सुशिक्षित – संस्कारी माने जाते हैं, इसलिए उनसे भूल नहीं होती ऐसा हमे मानना चाहिये ! ऐसी पार्लियामेंटको आर्जिकी जरूरत नहीं होनी चाहिए, न दबाव की ! उस पार्लियामेंटका काम इतना सरल होना चाहिये कि दिन-ब-दिन उसका तेज बढता जाय और लोगों पर उसका असर होता जाय ! लेकिन इससे उलटे इतना तो सब कबूल करते हैं कि पार्लियामेंटके मेंबर दिखावटी और स्वार्थी पाये जाते हैं ! सब अपना मतलब साधने की सोचते हैं ! सिर्फ डर के कारण ही पार्लियामेंट कुछ काम करती है ! जो काम आज किया वह कल उसे रद्द करना पड़ता है ! आजतक एक भी चिजको पार्लियामेंटमे ठिकाने लगाया हो ऐसी कोई मिसाल देखने में नहीं आती ! बडे सवालों की चर्चा जब पार्लियामेंटमे चलती है, तब उसके मेंबर पैर फैलाकर लेटते है, या झपकिया लेते हैं ! उस पार्लियामेंटमे मेंबर इतने जोरसे चिल्लाते है कि सुनने वाले परेशान हो जाते हैं ! उसे दुनिया के महान लेखक ने उसे ‘दुनिया की बातुनी’ जैसा नाम दिया है ! जितना समय और पैसा पार्लियामेंट खर्च करती है उतना समय और पैसा अगर अच्छे लोगों को मिले तो प्रजा का उध्दार हो जाय ! ब्रिटिश पार्लियामेंट महज प्रजाका खिलौना है और वह खिलौना प्रजाको भारी खर्च में डालता है ! ये विचार मेरे खुद के है ऐसा आप ना माने ! बडे ही विचारशील अंग्रेज ऐसा विचार रखते हैं ! एक मेंबरने तो यहां तक कहा है कि पार्लियामेंट धर्मिष्ठ आदमी के लायक नहीं रही ! दुसरे मेंबरोने तो यहां तक कहा है कि पार्लियामेंट एक बच्चा है ! बच्चों को कभी आपने हमेशा बच्चा ही रहते देखा है ? आज सातसौ बरस के बाद भी अगर पार्लियामेंट बच्चा ही हो, तो वह कब बडी होगी ?

पाठक : आपने मुझे सोचमे डाल दिया ! यह सब मुझे तुरंत मान लेना चाहिये ऐसा आप तो आप नही कहेंगे ! आप बिल्कुल निराले विचार मेरे मन में डाल रहे हैं ! मुझे उन्हें हजम करना होगा ! अच्छा अब बेसवा शब्द का विवेचन किजिये !

संपादक : मेरे विचारों को आप तुरंत नही मान सकते, यह बात ठीक है ! उसके बारे में आपको जो साहित्य पढना चाहिये आप पढेंगे, तो आपको कुछ खयाल आयेगा ! पार्लियामेंट को मैने बेसवा कहा, वह भी ठीक है ! उसका कोई एक मालिक नही हो सकता ! लेकिन मेरे कहने का मतलब इतना ही नहीं है ! जब कोई उसका मालिक बनता है – जैसे प्रधानमंत्री – तब भी उसकी चाल एक सरीखी नही रहती ! जैसे बुरे हाल बेसवा के होते हैं, वैसे ही सदा पार्लियामेंट के होते हैं ! प्रधानमंत्री को पार्लियामेंटकी थोडी ही परवाह रहती है ! वह तो अपने सत्ता के मद में मस्त रहता है ! अपना दल कैसा जिते इसकी लगन उसे रहती है ! पार्लियामेंट सही काम कैसे करें, इसका वह बहुत कम विचार करता है ! अपने दल को बलवान बनाने के लिए प्रधानमंत्री पार्लियामेंटसे कैसे कैसे काम करवाता है, इसकी मिसालें जितनी चाहिए उतनी मिल सकती है ! यह सब सोचने लायक है !

पाठक : तब तो आज तक जिन्हें हम देशाभिमानी और इमानदार समझते आये हैं उन पर भी आप टूट पडते है !

संपादक : हां, यह सच है ! मुझे प्रधानमंत्रियों से द्वेष नही है ! लेकिन तजरबेसे मैने देखा है कि वे सच्चे देशाभिमानी नहीं कहे जा सकते ! जिसे हम घूस कहते हैं वह घूस वह खुल्लमखुल्ला नही लेते – देते, इसलिए भले ही वे इमानदार कहे जायं ! लेकिन उनके पास बसिला काम कर सकता है ! वे दुसरोंसे काम निकालने के लिए उपाधि वगैरह की घूस बहुत देते हैं ! मै हिम्मत के साथ कह सकता हूँ कि उनमें शुध्द भावना और सच्ची इमानदारी नही होती !

पाठक : जब आपके ऐसे ख्याल है तो जिन अंग्रेजों के नाम से पार्लियामेंट राज करती है उनके बारे में कुछ कहिये, ताकि उनके स्वराज्य का पूरा खयाल मुझे आ जाये !

संपादक : जो अंग्रेज वोटर है ( चुनाव करते हैं ), उनकी धर्म – पुस्तक (बाईबल) तो है अखबार ! वे अखबारों से अपने विचार बनाते हैं ! अखबार अप्रमाणिक होते हैं, एक ही बात को दो शकले देते हैं ! एक दलवाले उसी बात को बडी बनाकर दिखलाते है, तो दुसरे दलवाले उसीको छोटी कर डालते हैं ! एक अखबारवाला किसी को अंग्रेजी नेता को प्रामाणिक मानेगा, तो दूसरा अखबारवाला उसको अप्रामाणिक मानेगा ! जिस देश में ऐसे अखबार है उस देश के आदमियोकी कैसी दूर्दशा होगी ?
यह महात्मा गाँधी जी की हिंद स्वराज्य नामकी किताब का ‘इंग्लेंडकी हालत’ इस शिर्षक से लिखा हुआ मजमून है ! पन्ना क्रमांक 13, 14, 15, 16
क्या यह पढ़ने के बाद वर्तमान भारत में चल रही संसदीय राजनीति का हूबहू चित्र नही दिखाई देता है ? हालांकि उन्होंने यह किताब आजसे 115 साल पहले लिखि थी ! 1909 में भारतीय संसद का अस्तित्व दूर – दूर तक नहीं था ! लेकिन 115 साल पहले महात्मा गाँधी जी ने भले ही इंग्लैंड के पार्लियामेंट को देखते हुए यह सब लिखा है ! लेकिन आज भारत की संसदीय राजनीति को कितना हूबहू लागू पड रहा है ?

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