राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेता उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बैठ कर दलितों और उपेक्षितों को आगे लाने, उनका हौसला बढ़ाने और उन्हें समान धरातल पर खड़ा करने पर गंभीरता से विचार कर रहे थे, लेकिन अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लगा कर सांसद बन गए नेता पर सख्त कार्रवाई की अनिवार्यता संघ की विचार प्रक्रिया में कहीं शामिल नहीं थी. दलितों का हक मार कर सांसद बनने की नायाब घटना के बारे में संघ और भाजपा के शीर्ष नेताओं को पहले से ही पक्की जानकारी है. आम कार्यकर्ताओं को भी पता है. लेकिन नेताओं में चुप्पी सधी हुई है और कार्यकर्ताओं में नेतृत्व की कथनी और करनी के भारी फर्क पर तमाम चर्चाएं हो रही हैं.
लोकसभा चुनाव में टिकट के बंटवारे के समय ही भाजपा आलाकमान को यह खबर मिल गई थी कि जौनपुर के मछलीशहर सुरक्षित सीट से भाजपा का प्रत्याशी बनना चाह रहे रामचरित्र निषाद ने खुद को अनुसूचित जाति का व्यक्ति साबित करने के लिए फर्जी सर्टिफिकेट बनवा रखा है. लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी, डॉ. हर्षवर्धन और अमित शाह सब कुछ जानते हुए भी रामचरित्र के चरित्र पर मेहरबान थे. भाजपा का प्रदेश नेतृत्व यह समझता था कि दलित होने का फर्जी दावा नामांकन पत्र के दाखिले के समय ही खारिज हो जाएगा, इसलिए एहतियात बरतते हुए दूसरे अधिकृत प्रत्याशी का नामांकन भी बाक़ायदा पार्टी के सिम्बल के साथ दाखिल करा दिया गया था. लेकिन रामचरित्र ने सब कुछ मैनेज कर लिया.
इस नायाब कहानी के विस्तार में चलने से पहलेे रामचरित्र के अति-पिछड़े से दलित बनने का खेल समझते चलें. उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के कटरा बुजुर्ग गांव के रहने वाले रामचरित्र ने दिसंबर 2007 में दिल्ली से अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र हासिल कर लिया. रामचरित्र जन्म के आधार पर निषाद जाति के हैं, जो उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ी जाति में शुमार है. दिलचस्प यह है कि यही रामचरित्र संत कबीर नगर के मेहदावल विधानसभा क्षेत्र से 2007 का विधानसभा का चुनाव जनरल सीट से लड़ चुके हैं. वर्ष 2007 के अप्रैल महीने में कांग्रेस के टिकट पर राम चरित्र मेहदावल विधानसभा की जनरल सीट से चुनाव लड़ते हैं और उसी साल दिसम्बर महीने में दिल्ली के दलित बन जाते हैं. संत कबीर नगर के सहायक जिला निर्वाचन अधिकारी का आधिकारिक वक्तव्य है कि मेहदवाल सीट से 2007 में लड़ने वाले राष्ट्रीय दलों के सभी प्रत्याशी सामान्य (जनरल) वर्ग के थे. राष्ट्रीय दलों का कोई प्रत्याशी अनुसूचित जाति या जनजाति का नहीं था.
भारत सरकार की सूची के अनुसार मल्लाह जाति पिछड़ी जाति के अंतर्गत आती है. दिल्ली सरकार का अध्यादेश भी है कि निषाद जाति का कोई भी व्यक्ति या उसके माता-पिता अगर 1950 के पहले से दिल्ली के निवासी हैं तो उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल माना जा सकता है. रामचरित्र के पिता राम नारायण बस्ती के कटरा बुजुर्ग गांव के मूल निवासी थे. रामचरित्र भी वहीं के मूल निवासी हैं. वर्ष 2000 के दिसंबर महीने में उन्होंने दिल्ली से अनुसूचित जाति का प्रमाण कैसे प्राप्त कर लिया. यह जांच का विषय है.
सामर्थ्य वाला व्यक्ति इस देश में कानून को किस तरह मैनेज करता है, इसका यह नायाब उदाहरण है. लोकसभा चुनाव में मछलीशहर (अ.जा.) निर्वाचन क्षेत्र के लिए नामांकन दाखिला लेने वाले रिटर्निंग अफसर (उप चुनाव अधिकारी) राधेश्याम की हास्यास्पद रिपोर्ट का जायजा लेते चलें. रिटर्निंग अफसर साफ-साफ लिखते हैं कि बस्ती जिले के गणेशपुर तहसील के कटरा बुजुर्ग गांव निवासी रामचरित्र मल्लाह जाति के अंतर्गत आते हैं, जो उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ा वर्ग में आती है. लेकिन रामचरित्र ने दिल्ली के सीलमपुर तहसील से अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है. उसके सत्यापन रिपोर्ट में भी यह माना गया है कि इस बारे में कई शिकायतें प्राप्त हुई हैं, लेकिन उन शिकायतों पर कोई निर्णय नहीं हुआ है. रिटर्निंग अफसर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए खुद ही यह कहते हैं कि जाति के निर्धारण की तरह आरक्षण का निर्धारण भी जन्म के आधार पर होता है. यह सब कुछ मानने के बावजूद अपनी अक्षमता जताते हुए रिटर्निंग अफसर ने रामचरित्र का नामांकन मंजूर कर लिया और फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर अति पिछड़ा वर्ग के रामचरित्र दलित सीट से भाजपा के टिकट पर सांसद चुन लिए गए.
दलितों का हक मार कर भाजपा ने अपने उस प्रत्याशी को सांसद बनवा लिया जो फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर अति पिछड़ी जाति से अनुसूचित जाति का बन गया था. उत्तर प्रदेश सरकार का आधिकारिक दस्तावेज स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है कि मल्लाह व निषाद जाति का व्यक्ति लोकसभा या विधानसभा की अनुसूचित जाति की आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं है. भारत सरकार की सूची के अनुसार मल्लाह जाति पिछड़ी जाति के अंतर्गत आती है. दिल्ली सरकार का अध्यादेश भी है कि निषाद जाति का कोई भी व्यक्ति या उसके माता-पिता अगर 1950 के पहले से दिल्ली के निवासी हैं तो उन्हें अनुसूचित जाति में शामिल माना जा सकता है. रामचरित्र के पिता राम नारायण बस्ती के कटरा बुजुर्ग गांव के मूल निवासी थे. रामचरित्र भी वहीं के मूल निवासी हैं. वर्ष 2000 के दिसंबर महीने में उन्होंने दिल्ली से अनुसूचित जाति का प्रमाण कैसे प्राप्त कर लिया. यह जांच का विषय है. रामचरित्र यदि दिल्ली के निवासी थे तो उन्होंने अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र हासिल करने के आठ साल बाद 26 अगस्त 2013 को वोटर लिस्ट और परिवार रजिस्टर से नाम हटाने का आवेदन क्यों दिया? 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पहले से की जा रही तमाम पेशबंदियों के तहत यह किया गया. रामचरित्र के प्रमाणपत्र पर विवाद होने के बाद दिल्ली के सीलमपुर के तहसीलदार मदनलाल ने 29 मार्च 2014 को बचकाने और हास्यास्पद तर्क देकर ऐसे महत्वपूर्ण मामले को लंबित रख दिया. जबकि इन्हीं मदनलाल ने महज आठ दिन पहले रामचरित्र के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए यह सख्त ताकीद की थी कि अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किसी भी फायदे के लिए नहीं किया जाए. आठ दिन बाद ही मदनलाल की सख्ती विलंबित-ताल में चली गई. इस तरह रामचरित्र का दिल्ली का अधिवास प्रमाण पत्र फिलहाल स्थगन की अवस्था में है, लेकिन इसी के आधार पर कोई व्यक्ति संविधान को ठेंगे पर रख कर सांसदी इन्जॉय तो कर रहा है!
ऐसे ही फर्जीवाड़े में गईं थीं अनीता सिद्धार्थ
फर्जी जाति प्रमाण पत्र लगाकर सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के मामले में अनीता सिद्धार्थ की जौनपुर जिला पंचायत सदस्यता तो रद्द हुई ही, फर्जीवाड़े में उन्हें सजा भी भुगतनी पड़ रही है. उच्च न्यायालय के आदेश पर शासन स्तर से हुई जांच में फर्जीवाड़ा कर अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र हासिल करने की शिकायत सही पाई गई.
जिला पंचायत के वार्ड संख्या 23 से अनीता सिद्धार्थ जिला पंचायत सदस्य चुनी गई थीं. बाद में वे जिला पंचायत अध्यक्ष भी निर्वाचित हुईं. दोनों पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थे. जांच में पाया गया कि बसारतपुर की रहने वाली अनीता सिद्धार्थ के पक्ष में सुल्तानपुर जिले के कादीपुर के तहसीलदार द्वारा नियम और कानून को ताक पर रख कर अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र दे दिया गया था. वह प्रमाण पत्र फर्जी पाया गया. अनीता की मूल जाति बारी, पिछड़ी जाति में शामिल है. शासन ने झूठी घोषणा के आधार पर आरक्षण का लाभ प्राप्त करने का अनीता सिद्धार्थ को दोषी पाया और इस पर अदालत से उन्हें सजा सुनाई.