पिछले साल लोकसभा चुनाव में भारी-भरकम बहुमत हासिल करके केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई भारतीय जनता पार्टी के अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. वरिष्ठ और निष्ठावान नेताओं-कार्यकर्ताओं की अनदेखी संगठन के अंदर असंतोष पैदा कर रही है, जो दिनोंदिन गहराता जा रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता संजय जोशी के जन्मदिन का मसला इसका ताजा उदाहरण है. आ़िखर कौन है, जो भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र को छिन्न-भिन्न करना चाहता है और अपनी मर्जी थोपना चाहता है, यह जानते हुए भी कि ऐसा करना संगठन के हित में नहीं होगा? और, इसके पीछे असल मकसद क्या है?


sanjay-joshi-se-kise-khatraनाम संजय विनायक जोशी. भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं या नहीं, पता नहीं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं, यह निश्चित है. आरोप है कि इनसे भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कार्यकर्ता ज़्यादा मिलने आते हैं. इनके ऊपर यह भी आरोप है कि इनसे केंद्र सरकार के मंत्री, राज्य सरकारों के मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशों के संगठन से जुड़े बड़े नाम अक्सर मिलने आते हैं. आ़िखरी आरोप यह है कि संजय विनायक जोशी भारतीय जनता पार्टी में बहुत छोटा, लेकिन समानांतर सत्ता का केंद्र बनते जा रहे हैं.
अब इस व्यक्ति के बारे में थोड़ी और जानकारी लेते हैं. संजय विनायक जोशी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी में संजय भाई जोशी के नाम से जाना जाता है. यह नाम भारतीय जनता पार्टी में कार्यकर्ताओं के स्तर पर बहुत आदर से लिया जाता है. आईआईटी से शिक्षा प्राप्त कर यह संघ के स्वयंसेवक बने और फिर भारतीय जनता पार्टी के संगठन मंत्री बन गए.
सारे देश में जाना जाता है कि इस व्यक्ति ने उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी से पंगा लिया और बाद में जब नरेंद्र भाई मोदी प्रधानमंत्री बने, तब भी इन्होंने नरेंद्र भाई का विरोध तो नहीं किया, लेकिन अपनी बात पर हिमालय की तरह अडिग रहे. इसी छह अप्रैल को नॉर्थ एवेन्यू में इनके निवास स्थान पर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सादगी भरी भव्यता से इनका जन्मदिन मनाया. संजय जोशी का यह 54वां जन्मदिन था, जिसमें लगभग चार हज़ार कार्यकर्ता बिना किसी निमंत्रण और बिना आयोजन के संजय जोशी के निवास स्थान पर पहुंचे. इन चार हज़ार लोगों में सामान्य स्वयंसेवक, भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता, कॉरपोरेटर, एमएलए, सांसद, यहां तक कि कई मंत्री भी शामिल हुए. संजय जोशी को बधाई देने वालों में राजनाथ सिंह, मनोज तिवारी, ब्रह्म सिंह तंवर, रमेश बिधूड़ी, संजीव बालियान जैसे लोग शामिल थे. बधाई देने वालों में कैलाश विजयवर्गीय भी शामिल थे. दरअसल, पिछले 11 महीने के शासनकाल में संजय जोशी ने नरेंद्र मोदी का खुलकर समर्थन किया और उनके कामों की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की, लेकिन यह जन्मदिन भारतीय जनता पार्टी में एक महत्वपूर्ण घटना की तरह देखा गया.
भारतीय जनता पार्टी में एक ऐसा समूह है, जो नरेंद्र मोदी के लिए ऐसे काम करना चाहता है, जिससे वही नरेंद्र मोदी के आस-पास दिखाई दे. भारतीय जनता पार्टी से जुड़े बाकी लोगों का नरेंद्र मोदी के आस-पास दिखने वालों में कोई स्थान न हो. इस समूह को सबसे बड़ी चिंता इस बात से हुई कि उसके सारे प्रयासों के बावजूद न संजय जोशी को कुचला जा सका, न संजय जोशी का चरित्र हनन किया जा सका, न संजय जोशी की हत्या की जा सकी. बल्कि इसके उल्टे संजय जोशी भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच पहले से ज़्यादा लोकप्रिय होते दिखाई दिए और यह छह अप्रैल उसकी एक प्रतीकात्मक घटना के रूप में इस समूह द्वारा देखा गया. इस समूह को यह भी लगा कि जब सरकार नरेंद्र भाई मोदी की है, जो संजय भाई जोशी को पसंद नहीं करते, तब इसके बावजूद इतने लोग संजय जोशी को जन्मदिन की बधाई देने क्यों आए? और, इस समूह ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व को यह सफलतापूर्वक समझा दिया कि संजय जोशी को अगर तत्काल न रोका गया या उन्हें स्टैच्यू की मुद्रा में नहीं लाया गया, तो वह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच में उनकी शिकायतें सुनने वाला न केवल केंद्र बन जाएंगे, बल्कि भारतीय जनता पार्टी को सही रास्ते पर लाने की मुहिम भी छेड़ सकते हैं.
संघ के वरिष्ठ लोगों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में अहंकार आ गया है और उसी अहंकार में भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने उन प्रमुख लोगों को फोन करना शुरू किया, जो लोग संजय भाई जोशी को बधाई देने वहां पहुंचे थे या जिन्होंने फोन से संजय भाई जोशी को बधाई दी थी. दरअसल, संघ का यह स्पष्ट मानना है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में अहंकार का समावेश हो गया है. स़िर्फ फोन ही नहीं किए गए, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को नोटिस भी दिए गए और यह जानने की कोशिश की गई कि आ़िखर संजय जोशी के समर्थन वाले पोस्टर किसने लगाए, किसने छपवाए और सारे देश में वे कैसे लग गए? अभी किसी को पता नहीं है कि संजय जोशी भारतीय जनता पार्टी के साधारण सदस्य हैं भी या नहीं. लेकिन, भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का मानना है कि संजय जोशी ने कभी पार्टी विरोधी काम नहीं किया. संजय जोशी उन कुछ गिने हुए लोगों में हैं, जो देश के सारे भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की कार्यशैली, उनकी क्षमता और उनके क्रियाकलापों से परिचित हैं तथा लगभग हर नेता के अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब उनके पास है.

भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ता संजय जोशी की तीव्र बुद्धिमता के कायल हैं. वह उनसे हमेशा सलाह लेते रहते हैं. संघ को इस बात पर बड़ा अ़फसोस है कि जिस व्यक्ति ने अपना सारा जीवन संगठन को दे दिया हो और जो हमेशा संगठन के हित में काम करता रहा हो, वह आज कुछ व्यक्तियों की जिद की वजह से हाशिये पर पड़ा हुआ है.

भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ता संजय जोशी की तीव्र बुद्धिमता के कायल हैं. वह उनसे हमेशा सलाह लेते रहते हैं. संघ को इस बात पर बड़ा अ़फसोस है कि जिस व्यक्ति ने अपना सारा जीवन संगठन को दे दिया हो और जो हमेशा संगठन के हित में काम करता रहा हो, वह आज कुछ व्यक्तियों की जिद की वजह से हाशिये पर पड़ा हुआ है. संघ को इस बात पर भी गुस्सा है कि जब संजय जोशी से भाजपा के संगठन मंत्री के पद से इस्ती़फा देने के लिए नरेंद्र मोदी की जिद की वजह से कहा गया, तब संजय जोशी ने बिना कोई देर किए अपने पद से इस्ती़फा दे दिया, लेकिन उस समय पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावेडकर ने मीडिया के सामने आकर घोषणा की कि संजय जोशी ने भारतीय जनता पार्टी से इस्ती़फा दे दिया. प्रकाश जावेडकर नरेंद्र मोदी के प्रिय पात्र बन गए और बिना चुनाव लड़े राज्यसभा में होने की वजह से महत्वपूर्ण मंत्री भी बन गए हैं. पर संघ को उनके इस आचरण के ऊपर न केवल दु:ख है, बल्कि क्षोभ भी है. संघ का जब हम नाम लेते हैं, तो आप यह मान लें कि संघ के सात बड़े लोगों में से हम कुछ लोगों की समझ को आपके सामने रख रहे हैं. संघ का यह मानना है कि संजय जोशी गुरु गोलवलकर जी यानी गुरुजी और दीन दयाल उपाध्याय के आदर्शों पर बनी पार्टी का काम सबसे अच्छे से करने वाले लोगों में से एक हैं. संघ को इस बात का एहसास भी हो चला है कि भारतीय जनता पार्टी अब गुजरात के चार महान पुत्रों की इच्छा से चलने के रास्ते पर चल पड़ी है. इनमें पहला नाम स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी का है, दूसरा नाम भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का है और तीसरा नाम श्री गौतम अडानी का है और चौथा नाम श्री मुकेश अंबानी का है. संघ को इस बात का एहसास है कि ये चारों महान गुजरातियों की टोली को जो पसंद नहीं आएगा, वह कालांतर में भारतीय जनता पार्टी से बाहर कर दिया जाएगा. और इसीलिए, भारतीय जनता पार्टी में एक नया ट्रेंड शुरू हो गया है कि इन चारों में से कोई न कोई उसका चेहरा पहचाने, उसके बारे में कुछ कहे, तभी वह भारतीय जनता पार्टी में या सरकार से जुड़ी हुई समितियों में कोई महत्वपूर्ण स्थान पा सकता है. संघ के भीतर अनौपचारिक तौर पर कई बार यह चर्चा चली है कि भारतीय जनता पार्टी को दस करोड़ सदस्यों की पार्टी बनाने के लिए जिस तरीके का इस्तेमाल किया गया, वह ग़लत है. मिस्डकॉल के ज़रिये दस करोड़ की सदस्य संख्या वाली पार्टी में संजय जोशी जैसा व्यक्ति सदस्य नहीं है, यह बात संघ को सबसे ज़्यादा खल रही है. लेकिन, संघ ने यह तय किया है कि वह एक वर्ष तक श्री नरेंद्र भाई मोदी को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करेगा, पार्टी को लेकर यानी अमित शाह के क्रियाकलापों को लेकर कोई टिप्पणी नहीं करेगा. और, वह साल मई में पूरा हो रहा है. मई के बाद संघ मोदी सरकार पर अपना आकलन जारी करेगा. संघ को इस बात के ऊपर भी अ़फसोस है कि भारतीय जनता पार्टी को इतनी बड़ी पार्टी यानी दस करोड़ की सदस्य संख्या वाली पार्टी बनाने में संजय जोशी का किसी से कम योगदान नहीं है, लेकिन अमित शाह संजय जोशी को किनारे रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. तब भी संजय जोशी भारतीय जनता पार्टी के लिए लगातार काम कर रहे हैं.

संघ संजय जोशी की बातों को महत्व भी देता है और संघ के वरिष्ठ लोग समय-समय पर संजय जोशी से मिलते रहते हैं. जनवरी में अहमदाबाद में संघ की बैठक हुई, जिसमें गणवेश में संजय जोशी शामिल हुए. वहां पर पत्रकारों ने सर संघचालक श्री मोहन भागवत और श्री एमजी वैद्य से पूछा कि संजय जोशी का भविष्य क्या है, संजय जोशी के बारे में आपकी राय क्या है? इस पर दोनों ने कहा, संजय जोशी हमारे थे, हमारे हैं और हमारे रहेंगे. इसका मतलब संघ ने देश को सा़फ किया और संघ ने भारतीय जनता पार्टी को भी सा़फ किया कि संजय जोशी का स्थान संघ की नज़रों में जैसा था, वैसा ही है. संघ का यह मानना है कि संजय जोशी का कार्यकर्ताओं में बड़ा सम्मान है. इसका उदाहरण दिल्ली विधानसभा चुनाव है. दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले दिल्ली के कैंटोनमेंट का चुनाव हुआ, जिसमें भारतीय जनता पार्टी बड़े बहुमत से जीती. लेकिन, 20 दिनों में बिना संघ से मशविरा किए और बिना संजय जोशी से मशविरा किए भारतीय जनता पार्टी के नेता किरण बेदी को पार्टी में ले आए और अचानक भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का उत्साह चुनाव में धीमा हो गया और उनकी रुचि समाप्त हो गई. संघ को यह जानकारी संजय जोशी ने उसी समय दे दी कि भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता अब मन से चुनाव में नहीं लगे हैं. संघ की सारी कोशिशों के बावजूद कार्यकर्ता चुनाव में नहीं लगे और भारतीय जनता पार्टी की चुनाव में इतिहास की सबसे बुरी हार हुई. आज संजय जोशी भारतीय जनता पार्टी के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं की आशा का केंद्र बन गए हैं, जिनसे आज नेता या मंत्री नहीं मिल रहे हैं.
यह चिंता अब संघ को भी होने लगी है, पर ज़्यादा चिंता भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं में हो रही है कि जितने भी वरिष्ठ नेता हैं, उन्हें किनारे किया जा रहा है. चाहे वह लालकृष्ण आडवाणी हों या मुरली मनोहर जोशी हों. लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के पास अब कार्यकर्ता जा नहीं रहा है. संगठन को चिंता इसीलिए हुई कि संजय जोशी के घर पर इतनी भीड़ कैसे हो गई और इसलिए संगठन ने सख्त क़दम उठाए. वहां जो मंत्री आए थे, उन्हें चेतावनी मिली, जिनमें श्रीपद नायक, सर्वानंद सोनेवाल, संजीव बालियान शामिल हैं. श्रीपद नायक के निजी सचिव नितिन सरदारे को फौरन निकाल देने का आदेश दिया गया और श्रीपद नायक ने नितिन सरदारे को तत्काल अपने पीए के पद से बर्खास्त कर दिया. यह चेतावनी शायद संगठन ने सभी लोगों को दी कि उनके ़िखला़फ भी ऐसी ही कार्रवाई हो सकती है. नितिन सरदारे का दोष स़िर्फ इतना था कि वह कुछ स्वयंसेवकों के साथ संजय जोशी को बधाई देने छह अप्रैल को उनके घर चले गए. जब टेलीविजन पर यह मसला उछला कि नितिन सरदारे को श्रीपद नायक ने पार्टी के आदेश पर अपने निजी सचिव के पद से हटा दिया है, तो फौरन संघ के कान खड़े हुए और संघ ने पार्टी से पूछा कि यह सब क्या हो रहा है, क्यों कर रहे हो? संघ के इस नोटिस के बाद बाकी लोगों को निकालने की कार्रवाई फिलहाल रोक दी गई. पर हमारे सूत्र बताते हैं कि 84 लोगों की सूची (लिस्ट) भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने बनाई है और उन 84 लोगों के ऊपर धीरे-धीरे कार्रवाई होने वाली है. कुछ नाम सामने हैं, जिनसे सख्ती से पूछताछ हुई, जिनमें रमेश विधूड़ी, ब्रह्म सिंह तंवर, कैलाश विजयवर्गीय, चिंतामणि मालवीय, धर्मेंद्र प्रधान, नड्डा साहब और प्रवेश वर्मा प्रमुख हैं. इनमें श्रीपद नायक, सर्वानंद सोनेवाल, संजीव बालियान का नाम भी जोड़ लेना चाहिए. और, सबको चेतावनी दी गई कि भविष्य में यह हरकत न दोहराई जाए. लेकिन, एक और शख्स संजय जोशी को बधाई देने वालों में शामिल रहे हैं, देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह. राजनाथ सिंह से सवाल-जवाब करने की ताकत अभी पार्टी में किसी में नहीं है. लेकिन, ऐसा लगता है कि जिन 84 लोगों की सूची बनाई गई है, उनमें से कुछ के ़िखला़फ पार्टी धीरे-धीरे सख्त कार्रवाई करेगी और उन्हें संजय जोशी को जन्मदिन की बधाई देने का इनाम अनुशासनात्मक दंड के रूप में मिलेगा.
संजय जोशी की कहानी पार्टी में तेजी से चिंता का विषय बन रही है, क्योंकि संघ के लोग कह रहे हैं कि श्रीनगर में पाकिस्तानी करेंसी चलाने का समर्थन करने वाले पीडीपी के साथ मौजूदा संगठन सरकार बना रहा है, अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने वाले मुलायम सिंह के पड़ोस में प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष घंटों बैठे रहते हैं, आडवाणी जी को गिरफ्तार करने वाले लालू प्रसाद की बेटी की शादी और रिसेप्शन में प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष जाते हैं, आरएसएस को आतंकवादी संगठन कहने वाले शरद पवार के घर पार्टी के बड़े लोग नाश्ते पर जाते हैं और दूसरी तऱफ आरएसएस के निष्ठावान प्रचारक संजय जोशी को उनके जन्मदिन पर बधाई देने वाले लोगों को पार्टी प्रताड़ित कर रही है. संघ के लोगों में यह सबसे बड़ी चिंता पैदा हुई है कि भारतीय जनता पार्टी जागकर सोए जा रही है और यह कहां पहुंचेगी? संघ को इस बात की चिंता है कि भारतीय जनता पार्टी विचारधारा के तौर पर और संगठनात्मक रूप से कमजोर हो रही है. पार्टी को यह लगता है कि वह दिल्ली में चुनाव हार चुकी है,बिहार में संपूर्ण विपक्ष एकजुट हो गया है, इसलिए वहां उसकी जीत के आसार कम नज़र आते हैं. संघ के इस बड़े नेता को यह भी चिंता है कि जब-जब कांग्रेस के ़िखला़फ विपक्ष ने एक होकर लड़ाई लड़ी, कांग्रेस हारी और आज वह स्थिति भारतीय जनता पार्टी के सामने आकर खड़ी हो गई है. इसलिए उन्हें डर है कि बिहार में भारतीय जनता पार्टी की जीत असंभव नहीं, तो महा-मुश्किल अवश्य है. और, संघ के इस वरिष्ठ नेता को यह भी लगता है कि उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में अगर भारतीय जनता पार्टी मायावती को अपने साथ नहीं ले पाई, तो वहां पर भी उसकी जीत में वैसा ही संदेह पैदा होगा, जैसा बिहार में है. वह यह भी कहते हैं कि अगर बिहार में भारतीय जनता पार्टी हार गई, तो आगे किसी राज्य में उसके जीतने की संभावना बहुत धूमिल हो जाएगी.
जब मैंने संघ के इस वरिष्ठ नेता से जानना चाहा कि आ़िखर इस कार्रवाई के पीछे कौन हो सकता है, जो यह जानते हुए भी कि संघ को यह पसंद नहीं आएगा और उसने यह काम किया? इस पर उनका कहना था, मैं सा़फ तो नहीं कह सकता, लेकिन मुझे लगता है कि अमित शाह ने अपने सलाहकारों के कहने पर यह काम किया और ये वे सलाहकार हैं, जो संजय जोशी को लेकर नरेंद्र मोदी के गुस्से को अपने हक़ में घुमाना चाहते हैं. हालांकि, संघ के लोगों का अंदाज़ा है कि यह क़दम उठाने से पहले अमित शाह ने नरेंद्र मोदी से अवश्य बातचीत की होगी. लेकिन क्या नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कह दिया होगा, कार्रवाई करो. ऐसा इन लोगों को नहीं लगता है. इन्हें लगता है कि यह सारी कार्रवाई एक छोटी सोच की वजह से की गई और संघ को इस बात का भी एहसास है कि इस कार्रवाई से उसके कार्यकर्ताओं में बड़ा गुस्सा है. मजे की बात यह है कि जो लोग संजय जोशी के जन्मदिन के समारोह में आए थे, इंटेलिजेंस ब्यूरो के ज़रिये से उनकी वीडियो रिकॉर्डिंग कराई गई और उस रिकॉर्डिंग को भारतीय जनता पार्टी के हेडक्वार्टर में एनालाइज किया गया और पहचाना गया कि कौन-कौन है और जो लोग पहचाने गए, उनके साथ डांट-डपट की गई.
संघ को इस बात की जानकारी है कि पहले संगठन में यह बात हुई कि 4,000 लोगों को पार्टी से निकाल दिया जाए, पर फिर वहां यह सवाल उठा कि अगर 4,000 लोगों की जगह 40,000 संख्या हो गई, तो क्या होगा? इसलिए, जो भी जहां पद पर है, उसे पद से हटाओ और पार्टी का साधारण सदस्य बना रहने दो. हरियाणा में पार्टी के मंत्री एवं कार्यकारिणी के सदस्य जसवंत यादव को उदाहरण के लिए, उनके पद से हटा दिया गया और वह वहां पर साधारण सदस्य हैं. इस बात की घोषणा नहीं की गई, क्योंकि संगठन को डर था कि इससे मीडिया में काफी शोर-शराबा होगा. संघ के इस वरिष्ठ नेता का यह भी कहना है कि जब आप पीडीपी के साथ मिल सकते हैं, मुलायम सिंह के घर जा सकते हैं, लालू यादव के घर जा सकते हैं, शरद पवार के घर जा सकते हैं, तो ऐसा कौन-सा आपराधिक काम संजय जोशी ने कर दिया है कि उनके घर जाने वाले कार्यकर्ताओं को आप सजा देते हैं, संजय जोशी को पार्टी से निकालने की बात करते हैं? उस कार्यकर्ता को, जो संघ के सबसे निष्ठावान कार्यकर्ताओं में से एक है और जिससे लगातार संघ के सारे वरिष्ठ लोग मिलते रहते हैं. और, यहीं पर संघ के लोगों का कहना है कि सबका साथ, सबका विकास का आधार लेकर इतने लोगों से मिला जा सकता है, तो सबका साथ-सबका विकास का आधार संजय जोशी के ऊपर पार्टी क्यों नहीं लागू करती?
अमित शाह के दो मुख्य सलाहकार हैं, पार्टी के संगठन मंत्री रामलाल और पार्टी के सचिव श्याम जाजू. सारे राज्यों और सारे कार्यकर्ताओं से फोन पर डांट-डपट और पूछताछ श्याम जाजू ने की. संघ के इस वरिष्ठ नेता का कहना है कि श्याम जाजू क्या अपने मन से यह सारी कार्रवाई कर रहे थे या उन्हें रामलाल जी या अमित शाह जी ने ऐसा करने के लिए कहा था. ये सात्विक स्वभाव के संघ के लोग भारतीय जनता पार्टी में चल रही राजनीति से बहुत दु:खी हैं. संघ मई में अपनी राय पार्टी के बारे में रखेगा और संघ भारतीय जनता पार्टी के कार्यकलापों से खुश नहीं है. इसका एक उदाहरण संघ के सारे आनुषांगिक संगठन हैं, जिनसे संघ ने कहा है कि वे अपनी मांगों के लिए अपने स्वर तेज करें या मांगें उठाते रहें. उदाहरण के लिए, भारतीय मज़दूर संघ सरकार के सुर में सुर नहीं मिला रहा है. संघ से जुड़े बाकी आनुषांगिक संगठन भी सुर में सुर नहीं मिला रहे हैं और यह इशारा पार्टी के बुद्धिमान कार्यकर्ता सीधे-सीधे समझ रहे हैं.
जो पोस्टर भारतीय जनता पार्टी के दफ्तर के सामने, आडवाणी जी के घर के बाहर, प्रधानमंत्री के रास्ते में लगे थे, वे बहुत मजेदार हैं, जिसका पहला नारा है-सबका साथ, सबका विकास, फिर क्यों नहीं संजय जोशी का साथ. अब इसमें एक कहानी और है. भारतीय जनता पार्टी का कार्यालय सर्वाधिक सुरक्षित क्षेत्र है. वहां पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. वह कौन शख्स है, भारतीय जनता पार्टी का इतना ताकतवर, जिसने भारतीय जनता पार्टी के दफ्तर के सारे सीसीटीवी कैमरे उस समय बंद करा दिए, जब संजय जोशी के पोस्टर भारतीय जनता पार्टी के दफ्तर के सामने लगाए गए? और यह एक बार नहीं, दो बार हुआ. एक बार पोस्टर हटाए गए, फिर दोबारा पोस्टर लगे और दोनों समय सीसीटीवी कैमरे बंद नज़र आए. उसी तरह आडवाणी जी का घर जेड प्लस सिक्योरिटी के अंदर आता है, वहां पर किसने पोस्टर लगवाए? वहां का भी कुछ पता नहीं चला. और, यहीं पर याद आती है भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में बने स्ट्रांग रूम से दो करोड़ रुपये की चोरी. उस चोरी का आज तक पता नहीं चला कि वह पैसा कहां गया और उस चोरी को लेकर कोई एफआईआर भी नहीं लिखवाई गई.
भारतीय जनता पार्टी कार्यालय के भीतर एक कमाल की बात है कि जब कोई ऐसी घटना होती है, तो वहां के सीसीटीवी कैमरे बंद हो जाते हैं और भारतीय जनता पार्टी को चलाने वाले लोग उसका कारण नहीं तलाश पाते. इसका मतलब कोई छिपा हुआ शख्स है, जो भारतीय जनता पार्टी के भीतर चल रही बहुत सारी चीजों से खुश नहीं है. इसका दूसरा पहलू यह है कि पुलिस ने टोका नहीं पोस्टर लगाने वालों को, जबकि भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय कार्यालय सर्वाधिक सुरक्षित क्षेत्रों में आता है. चौबीस घंटे वहां पुलिस की गाड़ियां खड़ी रहती हैं. जब ये पोस्टर टेलीविजन पर दिखाए जाने लगे, तब भारतीय जनता पार्टी के लोगों ने उन्हें दीवारों से हटाया. इतना ही नहीं. पोस्टर स़िर्फ भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय और आडवाणी जी घर पर या प्रधानमंत्री के रास्ते के आसपास नहीं लगे, पोस्टर लगे अहमदाबाद में, राजकोट में, गुजरात के कम से कम सात शहरों में, लखनऊ में, पटना में, दक्षिण के कुछ राज्यों में. लखनऊ में संजय जोशी के जन्मदिन पर मिठाइयां बांटी गईं. यह सब कैसे हुआ, कैसे इतना ऑर्गनाइज्ड तरीके से हुआ? इसके पीछे ज़रूर भारतीय जनता पार्टी के भीतर का तंत्र या और उस तंत्र का कोई ताकतवर शख्स या ताकतवर ग्रुप शामिल है.
संजय जोशी का प्रकरण यह बताता है कि भारतीय जनता पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है. भारतीय जनता पार्टी में एक बड़ा वर्ग संजय जोशी को पार्टी में लेना चाहता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी भारतीय जनता पार्टी में जो कुछ चल रहा है, उससे खुश नहीं है, क्योंकि संघ के कुछ वरिष्ठ नेताओं का यह भी कहना है कि अमित शाह संकीर्ण मानसिकता या अभी तक वह स्वयं को गुजरात के मनोविज्ञान से ऊपर उठा ही नहीं पाए. पर जो भी हो, भारतीय जनता पार्टी में पहली बार एक पर्दा उठा है और पता चला है कि इतने कड़े अनुशासन, इतने सख्त प्रधानमंत्री, इतने सख्त पार्टी अध्यक्ष के होते हुए भी कोई है, जो इन सब चाल-चरित्र से सहमत नहीं है. वह व्यक्ति भी हो सकता है, वह ग्रुप भी हो सकता है, पर है वह शक्तिशाली. वह कौन है, इसका पता भारतीय जनता पार्टी के लोग ही बता सकते हैं.

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