12 मार्च 1930 के दिन साबरमती आश्रम से दांडी मार्च की शुरुआत महात्मा गाँधी के साथ कुल मिलाकर 81 सत्याग्रहियों के साथ शुरू की गई यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत की आजादी ! और आज आजादी के नारे देने वाले लोगों को देशद्रोह के आरोप में जेल में डालने वाले लोग साबरमती आश्रम से दांडी मार्च के उनब्बे साल पूरे होने पर जश्न मनाने और उसके साथ ही अगले साल देश की आजादी के पचहत्तर साल के जश्न मनाने की शुरुआत की है ! और अपने चालिस मिनटों के भाषण मे चौबीस बार आंदोलन शब्द का प्रयोग किया है !
और अभि एक महीना भी नहीं हो रहा है कि भरी संसद में आंदोलन करने वाले लोगों को इतरा-इतरा कर आंदोलनजीवी से लेकर क्या-क्या नहीं कहा ! और उनब्बे साल के दांडी मार्च और आजादी के पचहत्तर साल के जश्न मनाने की शुरुआत एक ही समय अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में और नागपुर के रेशम बाग स्थित संघ मुख्यालय के प्रांगण में हेडगेवार और गोलवलकर के समाधि स्थल के सामने केंद्र सरकार के मंत्री और संघ स्वयं सेवक हालाकि दोनों कार्यक्रमों की शुरुआत करने वाले दोनों कट्टरपंथी ब्राम्हणी वर्ण श्रेष्ठत्व के मनुस्मृति के समर्थन करने वाले संगठन के स्वयंसेवक! कालाय तस्मेह नमः !
और इसी तरह नागपुर के रेशम बाग स्थित संघ मुख्यालय के प्रांगण में हेडगेवार और गोलवलकर के समाधि स्थल के सामने केंद्र सरकार के मंत्री और संघ स्वयंसेवक नितिन गडकरी के नेतृत्व में हुआ कार्यक्रमों को देखकर डॉ राम मनोहर लोहिया के पाखंड शब्द का इस तरह के घटनाक्रम के संदर्भ मे इस्तेमाल करने का तरीका याद आया ! आचार्य केलकर और इंदुताई केलकरके कारण मेरे जीवन के पंद्रह वर्ष का रहा होगा तबसे मराठी भाषा में अनुवाद किया समग्र लोहिया पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है!और इसी कारण इस तरह के किसी भी घटना के बाद मेरी तिखि प्रतिक्रिया होने की शुरुआत भी हुई है !
जिस संघ परिवार ने सोच-समझ कर ही संपूर्ण आजादी के आंदोलन मे भाग नहीं लिया है ! और उल्टा अंग्रेजी सरकार को खुश करने के लिए आजादी के आंदोलन मे भाग लेने वाले लोगों के अंग्रेजी पुलिस को नाम बताने का काम किया है ! और अंग्रेजी सेना मे भर्ती से लेकर अंग्रेजी पुलिस-प्रशासन मे अपने लोगों को तयशुदा निति के तहत नौकरी करने के लिए भेजने का काम किया है ! और तिरंगा झंडे का अस्वीकार करने से लेकर हमारे संविधान को अस्वीकार करने की बात इतिहासकारों ने दर्ज की है !
और अब आजादी के पचहत्तर साल के जश्न मनाने की शुरुआत रेशम बाग,नागपुर से लेकर अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी मार्च के उनब्बे साल पूरे होने पर दोबारा दांडी मार्च को हरी झंडी दिखाने वाले शख्सियत का आजसे गिनकर उन्नीस साल पहले उसी साबरमती आश्रम में दंगे की हालत को लेकर शांति-सदभावना के लिए मल्लिका साराभाई के अगुआई में आयोजित की गई बैठकों के उपर हमला करवाकर उसके बाद साबरमती आश्रम में कोई भी शांति-सदभावना का कार्यक्रम नहीं हो इसके फतवे जारी करने के लिए मजबूर कर दिया वही आदमी बार-बार साबरमती आश्रम के प्रांगण का विदेशी मेहमानों को झूला झुलवाता है ! और इस तरह के कार्यक्रम भी करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं !
और दूसरी तरफ देश के आधे से ज्यादा आबादी जिस कृषि क्षेत्र पर निर्भर है उनके आंदोलन को गाली-गलोज वह भी भरी संसद में कर के बारह मार्च को आजादी के आंदोलन के समर्थन में पटेल-नेहरू के योगदान करने की बात पाखंड के अलावा और कुछ भी नहीं है ! क्योंकी उसी नेहरू को बेइज्जत करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा है! इतना ढोंग? अरे भाई अगर नेहरू से इतना ही नफरत करते हो तो करते रहो लेकिन वक्त-बेवक्त नेहरू,पटेल,सुभाष चन्द्र बोस के प्रति पाखंड करना बंद करो !
क्योंकि वही सुभाष चन्द्र बोस आजादी के लडाई के लिए संघ की मदद मांगने के लिए महाराष्ट्र में आये थे और तत्कालीन संघ प्रमुख और संस्थापकों में सेएक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जब नाशिक मे थे तब नेताजी मुंबई में आकर अपनी हेडगेवार के साथ मुलाकात होनी चाहिये इसलिये बालासाहेब हुद्दार नामके प्रथम संघसचिव रहे व्यक्ति और उनके साथ अपने एक आदमी को मुंबई से नासिक भेजा और हेडगेवार जहां पर ठहरे हुए थे उस जगह हुद्दार और नेताजी के आदमी पहुंच कर देखा कि हेडगेवार अपने कुछ साथियों के साथ ठहाके लगाते हुए खुब जोर-शोर से बातचीत कर रहे थे जो बाहर तक सुनाई पड़ रही थी !
उस कमरे में अकेले हुद्दार गये थे और खास बात करना है बोल कर अन्य लोगों को बाहर जाने के लिए कहा और फिर हुद्दार ने कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मुंबई में आकर ठहरे हैं और अपने एक आदमी को मेरे साथ भेजा है वह आपसे मिलकर नेताजी की क्या बात है वह आपको बतायेगा और फिर नेताजी खुद आप को मिलने के लिए आने की बात है तो हेडगेवार ने कहा कि आप देख नहीं रहे मेरी तबियत ठीक नहीं है और मैं किसी भी तरह की बातचीत करने की स्थिति में नहीं हूँ तो मैंने कहा कि आप कम-से-कम उस आदमी को तो मिल लीजिए जो नेताजी ने खुद भेजा है !
तो तुरंत हेडगेवार ने एक कंबल उठा कर अपने आप को सर से पाँव तक ढककर मुझे कहा कि आप देख नहीं रहे मेरी तबियत कितनी खराब है ? मै किसी से भी बात करने की स्थिति में नहीं हूँ ! और मैं मायूस होकर बाहर निकलने के बाद तुरंत बाहर खड़े हेडगेवार के साथ पहले से हँसी मजाक करने वाले लोग अंदर उनके कमरे में दाखिल होते ही हसी के फव्वारे की आवाज आने लगी हम और हमारे साथ नेताजी ने भेजे हुऐ साथी निराश होकर वापस मुंबई आकर नेताजी को पूरा किस्सा बताया और उसके बाद ही मैंने खुद देखा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस विदेशों की मदद से भारत के आजादी की लड़ाई लढने के लिए भारत से बाहर चले गए ! और यह सब विस्तृत जानकारी बालासाहेब हुद्दार ने इलेस्ट्रेटेड वीकली नामके अंग्रेजी पत्रिका में अपने इंटरव्यू में कहीं है !
यह है संघ परिवार के आजादी के आंदोलन मे भाग लेने की कवायद ! हाँ संघ स्थापना के पाँच साल पहले हेडगेवार ने 1920 के झंडा सत्याग्रह में भागीदारी की है और अल्पकालिक जेल जाने का मौका मिला है ! लेकिन 1925 के दशहरे के दिन संघ स्थापना के बाद 15 अगस्त 1947 तक बाईस साल के दौर में एक भी मौका नहीं दिखाई देता है कि संघ के तरफसे कोई आजादी के आंदोलन मे भाग लेने वाले थे ! उल्टा 1940 मे हेडगेवार के मृत्यु के बाद गोलवलकर संघ प्रमुख बने तो उन्होंने नितिगत निर्णय लिया था कि संघ को अपने संघटन को मजबूत करने के लिए ध्यान देना चाहिए और आजादी के आंदोलन मे भाग लेकर अंग्रेज सरकार को नाराज करने की गलती नहीं करना है !
इस तरह आज संपूर्ण भारत में सबसे बड़ा संघटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 96 साल की यात्रा में आजादी से लेकर देश के दलित,आदिवासी,महिला एवं पिछडी जातीयो के सवाल से लेकर वर्तमान किसान-मजदूर के और विद्यार्थीयोके आंदोलन मे क्या भुमिका चल रही है ? जेएनयू,जामिया,अलिगढ से लेकर हैद्राबाद के सेंट्रल यूनिवर्सिटी मे रोहित वेमुला की मृत्यु से लेकर जेएनयू के मजीद के गायब होने की बात के लिए कौन जिम्मेदार है ? और उपरसे आभाविप के ही लोगो द्वारा भारत विरोधी नारे लगाने की बात अब जगजाहीर है और आजादी के पचहत्तर साल के जश्न मनाने की शुरुआत करने वाले कितने बेशर्म होकर भारत के आजादी की लड़ाई लढने के लिए निकाले गए 12 मार्च 1930 के दिन साबरमती आश्रम से दांडी मार्च के उनब्बे साल के स्मृति कार्यक्रम में दो दर्जन से अधिक बार आंदोलन शब्द का इस्तेमाल करने का पाखंड देख कर मुझे रहा नहीं गया !
और सबसे हैरानी की बात हमने आजादी के आंदोलन मे भाग नहीं लिया है और हम समस्त देशवासियों से माफी मांगने के लिए तैयार नहीं गुजरात के दंगे की उन्नीस्वी स्मृति का समय मे वह भी महात्मा गाँधी जी के साबरमती आश्रम के प्रांगण में बैठकर कमसेकम अब तो माफी मांगने का उचित समय था ! लेकिन छप्पन इंची छाती का क्या ?
रस्सी जलकर भी बल कायम रहने वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं !
डॉ सुरेश खैरनार