समरदा के साथ दोस्ती होने के बाद शायद1990 – 91 की बात होगी ! हम लोग कभी-कभी कलकत्ता कॉफी हाउस में भी अड्डा जमाने के लिए जाते थे ! एक दिन हम दोनों कॉफी हाउस के कोने के टेबल पर बैठे थे ! तो कुछ समय में तीन-चार युवा जिसमें एक लड़की भी थी ! हाथों में डायरियों को लेकर खडे होकर ऑटोग्राफ प्लिज बोलने लगे ! समरदा मुस्कुराते हुए बोलने लगे की “सुरेश यह आपका आटोग्राफ मांग रहे हैं !” तो मैंने कहा कि “बिल्कुल भी नहीं यह आपके आटोग्राफ के लिए आए हैं !” क्योंकि समर बागची शायद भारत के पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने दूरदर्शन पर क्वेस्ट नाम से विज्ञान के उपर एक कार्यक्रम कुछ दिनों तक नियमित रूप से किया था ! तो उस समय जो भी विद्यार्थियों ने स्कूल में अपनी पढ़ाई करने के समय उसे देखा था ! वह समरदा को एक सेलेब्रिटी मानते थे ! और वह युवा पीढ़ी के सभी लोग शायद उसी में से थे ! लेकिन समरदा कुछ देर तक मेरी बढाई करते हुए उन्हें कहे जा रहे थे कि “यह दाढ़ीवाला मुझसे बडा आदमी है ! और इसका आटोग्राफ लो !” आखिर मुझे कहना पडा कि “आपके नजर में मै जरुर बडा आदमी हूँ ! लेकिन फिलहाल आप इन बच्चों को आपका आटोग्राफ दे दिजिए !”
यह मेरे कोलकाता के 90 साल के उम्र के वैज्ञानिक मित्र है ! समर बागची, जिन्होंने पूर्व भारत में पांच विज्ञान म्यूजीयम बनाने के लिए योगदान दिया है ! और एक समय संपूर्ण विश्व के मुजियम के भी अध्यक्षता वाली जिम्मेदारी निभाई है ! सबसे महत्वपूर्ण बात हमारे देश के गरीब छात्रों को विज्ञान यानी खर्चीली और कठिन शिक्षा की ! कुंठा से मुक्त करने के लिए, कबाड के सामान से विज्ञान के उपकरण बनाकर ! संपूर्ण देश में पाठशालाओं में जा-जाकर, विज्ञान प्रचार- प्रसार का काम किया है !
और अभी हाल ही में उन्होंने मुझे पुछा था कि डॉक्टरों की सलाह है कि आपके पुराने स्पेसमेकर का समय हो गया है अभी नया लगा लिजिये तो तुम्हारी क्या राय है ? तो मैंने कहा कि “जहां तक आपकी आर्थिक स्थिति की बात है ! उसे देखते हुए, आप आसानी से और कुछ पैसे खर्च करके, अपने जीवन की दोरी को बढा ले सकते !” तो उन्होंने अपने पेस्मेकर के अॉपरेशन के बाद, एक महिनेके भितर पुरूलिया के स्कूल में चले गए थे ! ऐसे समरदा के जज्बे को मेरा सलाम ! अगर इस देश में ऐसे सौ समरदा भी निकल पड़े, तो देश की अंधश्रध्दा और धर्मांधता का बंदोबस्त हो सकता है ! उस स्पेसमेकर के बाद कुछ समय तो वह कुछ ज्यादा ही अॅक्टिव्ह हो गए थे ! उन्हें शायद कमर में कुछ तकलीफ होने लगी थी ! इस कारण और एक ऑपरेशन किया गया! मेरी जानकारी के अनुसार यह उनका पंद्रहवीं बार का ऑपरेशन था ! खुद वैज्ञानिक होने की वजह से और घर में बडे भाई तथा छोटी बहन बडे डॉक्टर थे ! इसलिए भी वह इतने ऑपरेशन किए थे ! लेकिन अंतिम ऑपरेशन नब्बे वर्ष से अधिक उम्र में हुआ था ! और उसके बाद उन्हें कोई न कोई तकलीफ हो ही रही थी जिससे वह 20 जुलाई 2023 के दिन 91 उम्र में हमारे बीच नहीं रहे !
शायद 1985-86 का समय होगा ! कलकत्ता के धर्मतला जिसे आजकल लेनिन सरणी कहा जाता है ! वहां पिअरलेस हेडक्वार्टर के सामने, मरीझापी के शरणार्थी, शायद 1971 के बाद बंगला देश बनने के समय, कुछ लोग चलें आए हैं ! और अभी भी उन्हें नागरिकता नही मिली थी ! इसलिए अॉल इंडिया फिशवर्कस फोरम के तरफसे धरना प्रदर्शन चल रहा था ! और मेधा पाटकर, थॉमस कोचेरी तथा मै भी उनके समर्थन में शामिल थे ! और धरना प्रदर्शन के बगल में स्थित फुटपाथ पर काफी लोग खड़े थे ! जिसमें दो हमउम्र लोग, शायद पचपन साठ साल के होंगे ! खड़े थे ! और जैसा ही मै मंच से उतर कर फुटपाथ पर पहुंचा ! तो उन्होंने मुझे घेरकर पुछा की “मेधाजी आपके घरपर ठहरी है ?” तो मैंने कहा कि हां ! तो उन्होंने कहा कि हमें उनसे मिलना है ! क्या हम आप के घर कल सुबह – सुबह आए तो चलेगा ? तो मैंने पुछा की आप लोगों का परिचय दिजिए, और मेधाजी के साथ क्यों मिलने के लिए आना चाहते हो ? तो उन्होंने कहा कि “मै समर बागची कलकत्ता के बिर्ला टेक्निकल मुजियम का पूर्व अधिक्षक ! और दुसरे सज्जन ने कहा कि” मै अर्थशास्त्र का आई आईटी का रिटायर्ड प्रोफेसर अजित नारायण बोस हूँ !” तो मैंने पुछा की” मेधाजी के साथ क्यों मिलना चाहते ?” उन्होंने कहा कि” हमें उनके नर्मदा आंदोलन के बारे में बात करने के लिए मिलना है !” वैसे भी उस समय कलकत्ता में नर्मदा बचाओ आंदोलन का विशेष समर्थन नहीं बना था ! हमारे एक पुराने मित्र निरंजन हलदार थे ! जो वन मॅन शो था ! इसलिए मैंने सोचा कि दोनों बुजुर्ग काफी सुलझे हुए हैं ! और अगर यह दोनों भी तैयार होते हैं तो अच्छा ही है ! इसलिए मैंने उन्हें हमारे घर का पता दिया ! और अचरज की बात दोनों सुबह के छह बजे हमारे घर पर हाजिर ! यह है समरदा और अजितदा के साथ परिचय की शुरुआत !
दोनो के दोनों पुराने कम्युनिस्ट पार्टी से निराश होकर निकलें हुए थे ! इसलिए सोवियत रूस के विकास के मॉडल का भूत पूरी तरह से उनके माथे से निकला नही था ! इसमें अजितदा ज्यादा कट्टरपंथी निकलें ! समरदा पहले ही थोडा सोवियत संघ खुद जाकर आने के वजह से, मानसिक रूप से कुछ हदतक निराश होकर आए थे ! अजितदा के लिए थोड़ा समय लगा ! लेकिन वह भी जल्द ही विकास की अवधारणा को लेकर तैयार हुऐ ! और जैसे ही वह तैयार हुए, उन्होंने तुरंत अंग्रेजी में एक पत्रिका शुरू करने का प्रस्ताव दिया ! जो बाद में एन ए पी एम बुलेटिन के रूप में शुरू किया था ! और अजितदा को ही संपादक की जिम्मेदारी सौंपी गई थी !
अजितदा और समरदा के आग्रह से, जल्द ही कलकत्ता के कॉलेज स्ट्रीट के स्टुडंट्स हॉल में एन ए पी एम का दिनभर का संमेलन आयोजित किया गया ! और जहां तक मेरा निरिक्षण था, शायद कलकत्ता के ज्यादा से ज्यादा एक्टिविस्ट उस दिन स्टुडंट्स हॉल में जमा हुए थे ! जो एक दूसरे का मुंह भी नहीं देखना चाहते, ऐसे लोगों की उपस्थिति देखते हुए , मुझे लगा कि यह बहुत ही अच्छा समय है ! जिसमें एक कमेटी का गठन किया जाए ! लेकिन हमारे पुराने साथी निरंजन हलदार ने अडंगा लगाते हुए वह होने नहीं दिया ! और दिनभर का संमेलन सिर्फ भाषणों में ही खत्म हो गया !
लेकिन उसके बाद 18 सूर्यसेन स्ट्रीट में एक दुसरी बैठक आयोजित की गई ! जिसमें फ्रेंड्स अॉफ नर्मदा की स्थापना की गई ! जिसमें मुझे ही अध्यक्ष करने लगे ! तो मैंने कहा कि मैं श्रीमती खैरनार की कृपा से आज कलकत्ता में हूँ ! उनकी केंद्रीय विद्यालय की नौकरी में सतत तबादले होते रहते हैं ! और कल उन्हें कहा भेजेंगे यह पता नहीं ? इसलिए और दुसरी महत्वपूर्ण बात बंगाल में नॉनबंगाली को ऐसी प्रक्रियाओं का नेतृत्व देने की गलती मत किजिए ! बंगाल में एकसे बढकर एक लोगो के रहते हुए ! ऐसा मत किजिए ! तो मणिंद्र नारायण बोस को फ्रेंड्स अॉफ नर्मदा का बंगाल चॅप्टर का अध्यक्ष बनाया गया था !
इस पूरे घटनाक्रम में अजितदा और समरदा की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण रही है ! और मेरे और उनके साथ और भी नजदीकी बढने में काम आई है ! हालांकि वह दोनों नियमित रूप से मेरे घर आते थे ! और जमकर बहस होती थी ! क्योंकि मार्क्सवादी और समाजवादी पार्टीया दोनो ही सोवियत रूस के विकास के मॉडल के बारे में सहानुभूति रखने वाले लोग हैं ! जिन्हें वहीं विकास सही लगता है ! क्योंकि अजितदा और समरदा के अलावा मेरे संबंध प्रोफेसर मधु दंडवते तथा मोहन धारिया से भी थे ! और वह भी यही कहते थे ! “कि सुरेश हमारे किसान कबतक बरसात के पानी पर निर्भर रहते हुए खेती करेंगे ?” तो मैं उन्हें सिंचाई के नाम पर विश्व भर में बने हुए सभी बड़े बांध आज तकनीकी के पैमाने से हरतरह से खारिज कर दिए जा रहे हैं ! और सबसे मुख्य बात बांध बनाने की लागत और उसके बाद उसके मुल्यांकन करने पर कॉस्टबेनिफिट रेशों में जबरदस्त फर्क नजर आने के बाद सभी बांध खारिज किए जा रहे हैं ! एक भारत ही है जो उनकी पूराने तकनीक की नकल किए जा रहा है !
इस बात को समरदा ने बहुत ही अच्छे तरह से गांधी और रविंद्रनाथ टागौर की विकास की अवधारणा को लेकर बहुत ही अच्छा निबंध लिखा है ! वैसे ही उन्होंने विज्ञान का इतिहास भी लिखने का प्रयास किया है ! उनका ज्यादा तर लेखन बंगला में हुआ है ! मुख्य रूप से एस यू सी आई नामके राजनीतिक दल की पत्रिका में बाकायदा उन्हें एक कॉलम नियमित रूप से लिखने का मौका मिला था ! और मेरी राय में उन्होंने ज्यादा तर लेखन विज्ञान और विकास की अवधारणा को लेकर ही किया है ! समरदा एक वैज्ञानिक के साथ – साथ बहुत ही अच्छे इंसान थे ! मैंने बंगाल में मेरे पंद्रह साल के वास्तव्य में दो लोगों को देखा है, कि जिन्हें किसी भी तरह का अहंकार और लोभ-लालच लगभग नही के बराबर था ! उनमें एक थे लेखक – पत्रकार गौरकिशोर घोष ! और दुसरे समर बागची ! दोनों मेरे पारिवारिक दोस्त थे ! इसलिए दोनों को मैंने बहुत ही करीब से देखा है ! साथ-साथ हजारों घंटे की अड्डाबाजी की है ! और दोनो के संपूर्ण परिवार के साथ, और हमारे परिवार के साथ, उनका बहुत ही घनिष्ठ संबंध बना है ! हमने कलकत्ता के कलामंदिर से लेकर डोवरलेन संगीत महफिल का सहश्रवण ( सहभोजन, सहजीवन के जैसे ही ) का लाभ उठाया है ! शायद हमारे कलकत्ता के पंद्रह साल के (1982-97 ) रहवासी होने का वह समय हमारे जीवन का सबसे सुंदर, और साहित्य, कला, तथा मनुष्य के एक-दुसरे के साथ के संबंधों का सब से बेहतरीन समय था ! जिसमें गौरदा और समरदा को सब से अधिक श्रेय जाता है ! समरदा वैज्ञानिक होने के बावजूद मैत्रेयी देवी के अनाथालय में उन्हे मदद करना, मैत्रेयी देवी के बाद वहीं उस अनाथालय का काम देखते थे ! वैसे ही गौरदा भी अपने पिता ने महिलाओं के लिए एक आश्रम शुरू किया था ! वह भी उनके जाने के बाद उसका काम देखते थे ! और दोनों की ह्यूमन क्वालिटी ( मनुष्यता का स्तर ) बहुत ही उंचे दर्जे का था ! मुझे तो लगता है कि दोनों सिर्फ प्रेम करने के लिए ही पैदा हुए थे ! ऐसे समरदा के चले जाने से मुझे तो कलकत्ता खाली – खाली लग रहा है ! आज उनके प्रथम स्मृति दिवस पर भावभीनी श्रध्दांजलि !
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