संपूर्ण क्रांती के पचास साल के मेरे मुक्त चिंतन पर कल डॉ. जी. जी. पारिख की प्रतिक्रिया आई है ! उन्होंने कहा है कि “यह कैसे होगा ? यह भी आपको लिखना चाहिए !” 100 वर्ष आयु के डाक्टर जी जी समाजवादी आंदोलन के तथा देश की आजादी के आंदोलन के एकमात्र जीवित प्रतिनिधि आज हमारे बीच में है ! और उनकी खासियत है, कि वह मेरे लेख नियमित रूप से पढते है ! और कभी-कभी फोन करते हैं ! या कभी-कभी लिखित रूप से प्रतिक्रिया देते है ! जी जी की मै बहुत इज्जत करता हूँ ! इसिलिये यह मजमून लिखने की कोशिश कर रहा हूँ !


अनायास अभी- अभी दो महीने से भी अधिक समय से चल रहे चुनावी दंगल थमी है ! और तथाकथित चुनाव के आकलन के चर्चाओं से टीवी चैनल पर वर्तमान सत्ताधारी दल के तरफसे एकतरफा चर्चा चल रही है ! अगर कल मतगणना के बाद निर्णय कुछ और आए तो देश में गृहयुद्ध हो सकता है ! क्योंकि सत्ताधारी पार्टी के लोगो की मानसिकता पहले से ही हम ही राज करने वाले हैं ! और तथाकथित चुनाव के विशेषज्ञ जब इस तरह के एकतरफा घोषणा करने के बाद सत्ताधारी दल के लोग हताशा में कुछ भी करने के लिए तैयार करने की गलती कि जा रही है ! उस परिप्रेक्ष्य में जयप्रकाशजी के लोकउम्मिदवार की संकल्पना बहुत ही मायने रखती है !


1977 के मई माह में जनता पार्टी की सरकार को जयप्रकाश नारायण ने राजघाट पर शपथ दिलाने के बाद, “मैं धुनी युवाओं की तलाश में हूँ !” ऐसी अपिल की थी ! और उसके जवाब में मैंने लिखित रूप से सानेगुरुजी द्वारा स्थापित मराठी साप्ताहिक ‘साधना’ में जवाब दिया था, कि “मैं धुनी युवाओं की टोली में शामिल होना चाहता हूँ !” ( जबकि उसी दौरान महाराष्ट्र जनता पार्टी के अध्यक्ष एस. एम. जोशी बहुत ही आग्रह के साथ मुझे अपने साथ, एक महामंत्री के रूप में लेना चाहते थे ! तो मैंने जब उन्हें कहा कि “अण्णा मैंने जयप्रकाशजी के धुनी युवाओं की जमात में शामिल होने का निर्णय लिया है ! “तो उन्होंने कहा कि मुझे तुम पर गर्व महसूस हो रहा है ! मेरे पास जनता पार्टी में विभिन्न पदों के लिए शेकडो लोगों का आग्रह हो रहा है ! कि हमें पार्टी में किसी भी पदाधिकारी की जिम्मेदारी दिजीए, मुझे मालूम था कि यह पार्टी आज सत्ताधारी है, इसलिए यह लोग इतना मचल रहे हैं ! इसलिए मुझे तुम्हारा निर्णय जयप्रकाशजी के संपूर्ण क्रांती के लिए छात्र युवा संघर्ष वाहीनी संपूर्ण देश में फैलाने के काम में तुम शामिल होना चाहते हो ! यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हो रही है! और तुम्हारे उपर गर्व भी ! ” ) और अमरावती में उसी कड़ी में हम कुछ मित्रों ने मिलकर युवाओं और युवतियों का एक सप्ताह का शिबिर मई 1977 में आयोजित किया था ! जिसमें महाराष्ट्र संघर्ष वाहिनी की स्थापना की गई थी !


बिहार आंदोलन के दौरान जयप्रकाशजी ने संपूर्ण क्रांती को प्रत्यक्ष रूप से जमीन पर लाने के लिए, उन्होंने हर गांव तथा मोहल्ले में लोकसमिती का निर्माण करते हुए, वहां की स्थानीय समस्याओं का निराकरण करने, तथा जनता उम्मीदवारों का चयन सर्वसम्मति से करने की सूचना की थी ! और जनता पार्टी की स्थापना होने के पहले ही, इस प्रक्रिया का नाम दो साल पहले ही जनता सरकार दिया गया था ! सबसे पहले मोहल्ले के स्तर पर, फिर वॉर्ड तथा विधानसभा और लोकसभा के भी उम्मीदवारों का चयन इस प्रक्रिया से करने की सुचना की थी ! जिसका अमल शायद ही किसी भी जगह किया गया ऐसा नहीं हुआ ! क्योंकि 25 जून 1975 के दिन आपातकाल की घोषणा की गई तो काफी लोगों को जेल में बंद कर दिया गया ! जिसमें जयप्रकाशजी भी एक थे ! और कुछ अंडरग्राउंड हो गए ! इस परिस्थिति में आपात स्थिति का खत्म होना यह प्रथमिकता का मुद्दा बन गया ! और उसी के इर्द-गिर्द हमारे सभी साथियों की ताकत लग गई ! उन्नीस महिनो के बाद चुनाव की घोषणा की वजह से, श्रीमती इंदिरा गाँधी को सत्ता से हटाने की प्रथमिकता बन गई ! और उसके लिए कुछ पार्टियों को मिलाकर एक पार्टी जिसका नाम ही जनता पार्टी रखने की वजह से बिहार आंदोलन के दौरान जनता सरकार का प्रयोग शुद्ध रूप से निर्दलीय था ! वह दोयम दर्जे पर चला गया ! और जनता पार्टी प्रथम स्थान पर आ गई ! और इसिलिये कुछ लोगों को लगने लगा कि अब सभी समस्याओं का हल करने के लिए यही अच्छा उपाय है ! और बिहार आंदोलन के प्रथम क्रमांक की लिडरशिप जनता पार्टी में चली गई ! और संपूर्ण क्रांती के सपने को पूरा करने के लिए उन्हें आपसी कलह के वजह से फुर्सत ही नहीं मिली !


जयप्रकाशजी भी पचहत्तर वर्ष पार कर चुके थे ! उम्र की वजह से कई बीमारियो जिसमें उनके गुर्दे खराब होने की वजह वह पर्याप्त समय अपनी संकल्पना को साकार करने के लिए नहीं दे सके ! जनता पार्टी की सरकार आने के बाद आपातकाल तो हट गया ! लेकिन जनता पार्टी ने संपूर्ण क्रांती की दिशा में एक कदम भी चलने की जहमत नहीं उठाई ! क्योंकि वह पूरा के पूरा भानामती का कुनबा था ! जिनके कांग्रेस को हटाने का एक मुद्दा छोड दो तो लगभग हर मुद्दे पर मतभेद थे ! और वह स्वभाविक भी है! क्योंकि घोर सांप्रदायिक जनसंघ, तथा मोरारजी देसाई जैसे पुंजिवाद के समर्थक और चौधरी चरण सिंह तथा देवीलाल जैसे सामंतवादी मानसिकता के लोगों के साथ समाजवादियों का भला कोई मिलाफ हो सकता है ? और यह बात मैं इस पार्टी के गठन की प्रक्रिया के दौरान ही कह रहा था ! और वैसे भी जयप्रकाशजी अक्सर बिहार आंदोलन के दौरान सांपनाथ के जगह नागनाथ की उपमा ऐसे सत्ता परिवर्तन को बोलते थे ! लेकिन इंदिरा गाँधी वर्तमान प्रधानमंत्री के जैसे ही एकाधिकारशाही हो गई थी ! और सीबीआई तथा सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल अपने विरोधियों के खिलाफ करने की शुरुआत उन्होंने ही की है ! नरेंद्र मोदी सिर्फ उसको और निर्दयता से इस्तेमाल कर रहे हैं ! सिर्फ कुछ डिग्री का फर्क है !


लेकिन उसके बाद आने वाले चुनावों में जनता उम्मीदवार के नाम से बिहार तथा महाराष्ट्र के वर्धा तथा कही और भी उम्मीदवारों को खड़ा किया गया था ! लेकिन जयप्रकाशजी के सुचना का पालन कही भी नहीं किया गया ! और यह करने वाले लोगों में जयप्रकाशजी के बहुत करीबी लोग थे ! महाराष्ट्र में प्रोफेसर ठाकुरदास बंग और बिहार में आचार्य राममूर्ति जैसे दिग्गजों ने जनता उम्मीदवारों का चयन करने की वॉर्ड से लेकर और सर्वसम्मति से करने की कोशिश भी नहीं की ! उन उम्मीदवारों की सिधी उपर से घोषणा की गई थी ! और जयप्रकाशजी के लोकसमिती या जनता उम्मीदवार का माखौल उड़ाया गया है ! और यह बात मैंने प्रोफेसर ठाकुरदास बंग और आचार्य राममूर्ति को प्रत्यक्ष मुलाकात में भी बहुत साफ-साफ़ शब्दों में कहीं है !
अगर जयप्रकाशजी की सुचना के अनुसार उम्मीदवारों का चयन गलि – मोहल्ले के स्तर से करते हुए, वह भी सर्वसम्मति से तो वॉर्ड से लेकर लोकसभा तक के चुनाव में, लोकसमिती के उम्मीदवारों का चुन कर जाना, शतप्रतिशत पहले से ही तय हो गया होता ! तो मतदान की प्रक्रिया सिर्फ एक हमारे चुनाव के अनुसार एक प्रक्रिया के अलावा और कुछ नहीं रही होती ! क्योंकि वह उम्मीदवार जब वॉर्ड से लेकर लोकसभा तक सर्व संमती से खड़ा किया गया होता तो अन्य कोई भी उम्मीदवार भले ही वह किसी बड़ी पार्टी या पुंजिपति क्यों न हो उसका चयन होने की संभावना ही नहीं है ! यह मॉडल अभी भी प्रयोग में लाया जा सकता है !


महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले के मेंढा -(लेखा) गांव में स्थानीय साथी देवाजी तोफा और चंद्रपूर के मोहन हिराबाई हिरालाल मुंबई दिल्ली में हमारी सरकार हमारे गांव में हम ही सरकार जैसे नारे को लेकर पिछले 38 सालों से इस तरह की कोशिश कर रहे हैं ! और यह प्रक्रिया बडे पैमाने पर होती है तो हमारे लोकतंत्र तथा संसदीय क्षेत्र में मौलिक परिवर्तन हो सकता है !
लेकिन इस तरह से किसी भी जगह पर उम्मीदवारों का चयन नहीं किया गया ! जयप्रकाशजी के लोकउम्मिदवार की संकल्पना का माखौल उडाने की गलती हमारे वरिष्ठ मित्रोमेसे कुछ लोगों ने की थी ! और इसलिए किसी भी उम्मीदवार के चुनकर जाने का तो सवाल ही नहीं ! उल्टा एक भी उम्मीदवार को सम्मानजनक वोट नहीं मिले ! सभी को अपने अमानत की रकम तक बचाने का उदाहरण नहीं हैं !
काश जयप्रकाशजी के लोकसमिती का गठन उन्होंने बताया उस तरह से किया गया होता तो आज भारत के चुनाव की वर्तमान स्थिति पैसे, जाति – धर्म और सबसे महत्वपूर्ण बात वर्तमान राजनीतिक दलों का अस्तित्व ही नहीं रहा होता ! क्योंकि जयप्रकाशजी ने भले ही जनता पार्टी के निर्माण में योगदान दिया था ! और वह भानामती का कुनबा 19 महिनो के लिए बना भी था ! क्योंकि वह आपातकाल के पृष्ठभूमि के वजह से बनाना पड़ा था ! लेकिन जयप्रकाशजी को भी पता था कि यह ज्यादा लंबे समय तक नहीं चलेगा ! और इसिलिये उन्होंने जनता पार्टी सत्ता में आने के बावजूद लोकसमिती की संकल्पना वैसे तो उन्होंने इस संकल्पना को आंदोलन के दौरान ही कॉइन किया था ! लेकिन आंदोलन की प्रथमिकता में विधानसभा के इस्तीफे के उपर ज्यादा समय चला और साथ- साथ संपूर्ण क्रांती को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया दोयम दर्जे पर चली गई ! इसलिए हमारे साथी जो जयप्रकाशजी के आंदोलन से ही निकल कर मेंढा- (लेखा) गडचिरोली जैसे नक्सलियों के लिए प्रसिद्ध एरिया में रहते हुए कर रहे हैं ! इस मॉडल को लेकर संपूर्ण क्रांती की दिशा में आगे बढ़ने की संभावना है !

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