शायद कर्नाटक में बीजेपी की हार के बाद ! और आने वाले लोकसभा चुनाव के कारण, सेफ्रोन डिजिटल आर्मि के द्वारा ! सोशल मीडिया पर , बंगाल में बटवारे के समय (1946-47) मतलब आजसे पचहत्तर साल से भी अधिक समय पहले की बात ! जो मैंने अपने बचपन में संघ की शाखा में सुना है ! “कि हमारे हिंदू मां – बहनों के साथ बटवारे के समय कैसे – कैसे अत्याचार हुए ?” इसके मसाला लगा कर ! संघ की शाखा में घोटघोटकर बताने के बातें मुझे आज भी याद आती है ! लेकिन मेरी बालबुद्धी को यह सवाल सता रहा था ! “कि हमारे हिंदू धर्म के मर्द उस समय क्या कर रहे थे ? सामान्यतः दंगे में दोनों समुदाय के लोगों की आपसमे लड़ाई होती है ! और उसी को दंगा-फसाद बोला जाता है ! तो रामचंद्र गुहा से लेकर, भिष्म साहनी, प्यारेलाल के महात्मा गाँधी जी के पूना के आगा खान पॅलेस से 1944 के पांच मई को 21 महीनों की गिरफ्तारी से छोडने के समय से ! 30 जनवरी 1948 के दिन तक का पूरा दस्तावेज जिसका शीर्षक है ‘लास्ट फेज’ ! मतलब आखिरी पर्व !


तथा भारत के बटवारे पर जोया चॅटर्जी, से लेकर शेषराव मोरे, मुशरुल हसन, शमशुल इस्लाम, डॉ. राम मनोहर लोहिया, मौलाना आझाद, अमृता प्रीतम, खुशवंत सिंह, कुलदीप नैयर, अमर्त्य सेन, आएशा जलाल से लेकर दर्जनों लोगों ने खुद के अनुभवों से लेकर संपूर्ण इतिहास को खंगालने के बाद लिखा हुआ साहित्य मौजूद हैं ! और उसमे सिर्फ मुस्लिम या सिख समुदाय ने या सिर्फ हिंदू समुदाय ने ऐसा किया से ज्यादा ! सभी पक्षों के सांप्रदायिक तत्वों के द्वारा ! जिसमें मुस्लिम लीग के साथ हिंदू महासभा तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका उतनी ही संगीन है ! आज इस बासी कढ़ी को उबालने का उद्देश्य क्या है ?
हजार – पांच सौ साल पुराना औरंगजेब हो या बाबर के अत्याचारों का हिसाब आज के कीसी भारत में पीढी दर पीढी रह रहे और अपने हुनर तथा मेहनत से अपने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी निभाने वाले युसुफ या करीम को किसी भी दंगे में मारने से कौन-सा हिसाब पूरा होगा ? हिटलर या मुसोलीनी ने जो भी कुछ किया है ! उसका हिसाब आज के किसी जर्मन या इटालियन से पुछने जैसे ही बेवकूफी सावरकर से शुरू होकर आज भी लगातार जारी है !


सावरकर के साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस की, मुंबई में सावरकर सदन में 22 जून 1939 के दिन द्विराष्ट्र के सिध्दांत को लेकर लंबे समय तक बातचीत हुई ! लेकिन सावरकर अपने द्विराष्ट्र के सिध्दांत पर अडे रहे ! और इस मुलाकात की 24 जून के टाईम्स ऑफ इंडिया में खबर है ! “कि सावरकर के साथ की मुलाकात से नेताजी सुभाष चंद्र बोस बहुत नाराज होकर, अपने मुंबई की जनसभा को छोड़कर चले गए ! और अपने भाई को पत्र लिखकर कहा कि “सावरकर अपने पहचान की झुठी कल्पना पर अड़ियल रहने के कारण ! हमारे देश का बटवारा होकर रहेगा ! और उसके लिए यह आदमी भी जिम्मेदार रहेगा ! और भारत की एकात्मता के लिए कुछ भी नहीं करेगा ”


मेरा मानना है, कि बैरिस्टर जीना हो या बैरिस्टर सावरकर दोनों भारत के बटवारे के बारे में बराबर के गुनाहगार है ! महात्मा गाँधी जी के तुलना में सावरकर का जनाधार मामुली था ! लेकिन जीना को मुसलमानों में वह भी नवाबों तथा जमींदार मुसलमानों का जबरदस्त समर्थन था ! क्योंकि कांग्रेस में के सोशलिस्ट लोगों का जमींदारी उन्मूलन और समाजवादी विचारधारा के आग्रह को देखते हुए उत्तर भारत के मुसलमान जमींदार पाकिस्तान के पक्षधर थे ! और आज भी पाकिस्तान में बटवारे के बाद गए मुसलमान जिन्हें मुहाजिर बोला जाता है ! बड़ी संख्या में चले गए हैं ! और पाकिस्तान की कल्पना को अमली जामा पहनाने में अहम भूमिका तत्कालीन उत्तर भारत के मुसलमानों ने वर्तमान पाकिस्तानी मुल के लोगो की तुलना में ज्यादा अदा की है !


संघ का एक तबका अखंड भारत की बात करता हैं ! फिर विनायक दामोदर सावरकर के द्विराष्ट्र सिध्दांत का क्या जो उन्होंने अपनी हिंदूत्द नाम की किताब में लिखा है और गोलवलकर गुरुजिके वुई और बंच अॉफ थॉट में उसकी ही नकल कर के लिखा है ! और शाखाओं में बौध्दिक तथा ओटीसी कैम्पो में भी सभी अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ नफरत के बीजों को बोया जाता है ! तभी तो गुजरात या भागलपुर, मुजफ्फरनगर जैसे दंगे होते हैं !

और यही ध्रुवीकरण की राजनीति करते-करते आज सत्ताधारी बने हुए हैं ! तो अखंड भारत क्या पूरे पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों को मारकर बनाएंगे ? भारत – बंगला देश के मुसलमानों को मिलाकर शायद पचास करोड़ से अधिक आबादी को मारने के लिए तिसरा विश्वयुद्ध छेडना पडेगा और उसमे सिर्फ मुसलमानों की मृत्यु होगी और हिंदू अमर बने रहेंगे ? युद्ध में समसमान नुकसान ( Collateral damage) होता है ! और आज की तारीख में युद्ध हर तरह से गलत उपाय है ! जो दुनिया में अबतक के सभी युद्धाभ्यास के बाद सिध्द हो चुका है ! इसलिए युद्ध या दंगे – फसाद मानव विकास की प्रगति में बाधा उत्पन्न करते हैं ! यह वर्तमान समय में रशिया और युक्रेन में जो भी कुछ चल रहा है ! वह पर्याप्त मात्रा में प्रमाण है ! कल ही युक्रेन के सब से बडे बांध को उड़ा दिया है और शेकडो गांव के लोग विस्थापित हुए हैं !


पहले से ही रह रहे मुसलमानों के साथ गुजरात – भागलपुर जैसे दंगे करते हुए ! पहले से रह रहे मुसलमानों को आप सतत सताने का अभियान करते हुए ! नए और मुसलमानों को कैसे बर्दाश्त करोगे ? या सबको खत्म करने से काम चलाने जाओगे ? तो खुद को भी मरने की तैयारी रखनी होगी ! ऐसे नफरत की खेती कबतक करने से काम चलेगा ? कोई भी देश या व्यक्ति नफरत के महौल में ज्यादा समय तक रह नहीं सकता ! आपसी विश्वास प्रेम से ही देश की एकता और अखंडता बनी रहती है ! पाकिस्तान के निर्माण के कारण जो जीना और सावरकर ने गिनाये है ! कि हिंदू अलग राष्ट्र है ! और मुसलमानों का भी अलग राष्ट्र है ! और उसी कारण देश का बटवारा हुआ है ! हम लोग गत तीस सालों से भी अधिक समय से भारत – पाकिस्तान – बंगला देश में आपसी सौहार्द बनाने के लिए एक फोरम बनाकर लगातार प्रयास कर रहे हैं ! कि तीनों ने एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हुए ! और एक दूसरे के प्रति अविश्वास के चलते रक्षा जैसे गैररचनात्मक काम में तीनों देशों के बजट का कितना बड़ा हिस्सा खर्च होता है ? अगर तीनों देशों के रक्षा बजट में कटौती करते हुए, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पानी की समस्या तथा तीनों देशों के अंदरूनी सड़कों से लेकर रेल तथा जलमार्ग और उर्जा, पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण सवाल एक दूसरे के सहयोग से काम करने से हल करने के लिए विशेष रूप से मदद होगी !


सावरकर या जीना हिटलर हो या मुसोलीनी यह मनोरुग्ण लोगों में शुमार होते हैं ! और वह इतिहास के क्रम में सिद्ध हो चुके हैं ! नफरत से नफरत ही बढती है ! और उस कारण कितने लोग मारे गए हैं ? यह इतिहास में से सिखने की जगह ! उल्टा पूरे इतिहास को बदलने की कवायद जारी है ! इससे सर्वसामान्य हिंदूओं का भी नुकसान हो रहा है ! जीवन के रोजमर्रे के सवाल पर उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया देने की जगह ! उन्हें एक-दुसरे से नफरत करने के लिए सेफ्रोन डिजिटल आर्मि की कोशिश का ही परिणाम है ! कि जवाहरलाल नेहरू या महात्मा गाँधी जी के खिलाफ बदनामी की मुहिम ! और वह कम पड़ता है ! तो उसमें मुसलमानों को जोड कर अब खुलकर पुछा जा रहा है ! “कि यह जो फोटो है ! जो मॉर्फ करने के बाद ही बनाए हुए हैं ! इसे छोड़कर आप महंगाई, बेरोजगारी, रेल्वे का हादसा हो या फिर पहलवान लड़कियों के यौन शोषण की बात सब कुछ भूल कर हिंदू – मुस्लिम ध्रुवीकरण करने के लिए विशेष रूप से यह अभियान जारी है ! मतलब बीजेपी या संघ बारह महीनों चौबीसों घण्टे ! सिर्फ़ और सिर्फ़ ध्रुवीकरण की राजनीति करते हुए ! 145 करोड़ जन संख्या के असली सवालों को हल करने का छोड़कर, गाँधीजी या जवाहरलाल नेहरू की छवि बिगाड़ कर आज क्या हासिल करना चाहते हैं ?


जिस विनायक दामोदर सावरकर ने 1883 में पैदा होने के बाद 83 साल की जींदगी में ! शुरू के 25-30 साल छोड़ दें तो ! पचास साल से भी अधिक समय में भारत के लिए क्या किया ? चार जुलै 1911 को अंदमान जेल में जाने के 55 दिनों के भीतर 30 अगस्त 1911 को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को पहला माफी मांगने का पत्र लिखा है ! और नौ साल दस महिने अंदमान के जेल से छ बार माफी मांगने की अर्जियां लिखि है ! उनकी पत्नी और भाई ने चार अर्जियों को लिखा है ! और एक अर्जि सावरकर के छोटे भाई नारायण सावरकर ने महात्मा गाँधी जी के साथ मुलाकात कर उन्हें अपने तरफसे विनायक दामोदर सावरकर के साथ अंग्रेजी सरकारने रियायत बरतने की अर्जी लिखने की विनती की ! और गांधीजी ने एक खत व्हाइसराय को लिखा है ! और उसे अपनी पत्रिका हरिजन में भी छापा है ! ( इसी बात को रक्षामंत्री श्री. राजनाथ सिंह कहते हैं ! “कि सावरकर ने अंदमान के जेल से महात्मा गाँधी जी के सलाह से माफी मांगने के पत्र लिखे है ! ) मतलब यह श्रेय महात्मा गाँधी जी के नाम पर बोलते हुए राजनाथ सिंह भूल रहे हैं कि वह सावरकर स्वातंत्र्यवीर सचमुच कितने वीर थे ? इस पर सवाल उठा रहे हैं ! क्योंकि सावरकर खुद बहुत ही बुध्दिमान थे ! और आत्मसम्मान पर कभी भी समझौता नहीं करने वाले लोगों में से एक थे ऐसा उनके अंधभक्त कहते है !


अंदमान के जेल में सावरकर के पहले ही 123 कालापानी की सजायाफ्ता कैदी थे ! उसीमे सावरकर एक थे ! और उन्होंने अपनी आत्मकथा नही लिखने के कारण ! आज उनके नाम भी मालूम नहीं है ! सावरकर ने “माझी जन्मठेप” के नाम से अपनी आत्मकथा लिखकर चोरी- छिपे बाहर भेजने की वजह से वह किताब छपी थी ! और मैंने भी अपनी पंद्रह से भी कम उम्र में उसे पढकर ! कर्नल बारी नाम के अंदमान के सेल्युलर जेल के अधीक्षक को मारने की कसम खाई थी ! सावरकर अच्छे लेखक और कवि थे ! इस कारण उन्होंने खुद ही अपने बारे में स्वातंत्र्यवीर शब्द लिखा है ! जो लोगों को पता चला ! लेकिन वीर ने जेल में जाने के दो महिने के भीतर जेल से छोडने के लिए महारानी विक्टोरिया के नाम लगातार छ माफीनामे लिखें है ! यह बात 1983 में इंग्लैंड की पार्लमेंटने, सिक्रेट ऐक्ट को हटाने की वजह से ! अंग्रेजों ने भारत में रहते हुए जो भी पत्राचार किया था ! वह सब प्रकाशित होने लगे ! तब यह सब पता चला ! उसके पहले सावरकर 1966 में चल बसे थे ! उन्होंने माफीनामे लिखें है ! और माफीनामे की भाषा “ब्रिटेन के साम्राज्य की मै कैसी सेवा कर सकता ? और भटके हुए युवाओं को मै, ब्रिटिश शासन की सेवा करने के लिए तैयार कर सकता हूँ ! इसलिये मुझे रिहा किजीये ! ” जैसी गिड़गिड़ाते हुए भाषा में लिखा है !


सबसे हैरानी की बात, विनायक दामोदर सावरकर ने कान्हेरे, पिंगळे मदनलाल धिंग्रा, नथुराम गोडसे जैसे एक दर्जन युवाओं को आतंकवादी गतिविधियों के लिए तैयार करके ! उन्हें उन अपराधों में शामिल होने के कारण सभी फांसी की सजा में मारे गए ! लेकिन सावरकर ने एक भी अपराध की जिम्मेदारी नहीं ली ! उल्टा माफी मांगते रहे ! और उसी के परिणाम स्वरूप उन्हें अंदमान की जेल से 2 मई 1921 के दिन बाहर निकालने का निर्णय लिया गया ! और उन्हें 1924 से 1937 तक रत्नागिरी में गृहबंदी में अपने पत्नी के साथ ! और महिना साठ रुपये पेन्शन अंग्रेजों ने देना शुरू किया ! और 1937 को पूरी तरह से रिहा होने के बाद ! हिंदू महासभा के अध्यक्ष सात बार रहे थे ! और व्हाईसरॉय लिनलिथगो के साथ मिलकर दुसरे महायुद्ध के लिए ब्रिटिश सेना भर्ती के काम में लगे रहे ! छोटे भाई नारायण सावरकर तो सैन्य भर्ती बोर्ड के सदस्य रहे हैं ! और सावरकर को अंग्रेजो से पेंशन, अंग्रेजो को मदद और स्वतंत्रता आंदोलन को विरोध करने की शर्त पर ही मिलती थी ! अब ऐसे आदमी को स्वातंत्र्यवीर कैसे कह सकते ? जिसे 1937 में पूरी तरह अंग्रेजोने रिहा कर दिया था ! और आजादी 1947 को मिली ! उन दस सालों में कोई भी काम ऐसा नहीं किया ! जिससे आजादी मिलने के लिए मदद हुई हो ! उल्टा 8 अगस्त 1942 के भारत छोडो प्रस्ताव के बाद उसे समर्थन देना तो दूर की बात ! उल्टा अंग्रेजी सेना में भर्ती करने के लिए विशेष रूप से सक्रिय सहभाग लिए ! सावरकर 26 फरवरी 1966 के दिन इस दुनिया से विदा हुए मतलब आजादी के बाद 19 साल जिंदा थे ! उन दिनों में कौन सी देशसेवा की है ? और वर्तमान सरकार उनके 140 वे जयंती के अवसर पर नई संसद के उद्घाटन समारोह का आयोजन किया है ! यह समस्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्व कम करने की कृती मानी जायेगी !


वैसे भी गत सौ साल से भी अधिक समय से संघ की शाखा में ! और क्या बताया जाता है ? 1966-67 के समय शायद मैं आठवीं कक्षा में था ! उस समय संघ की शाखा में मेरे भुगोल के पाटील नाम के एक शिक्षक के प्रोत्साहित करने के कारण मै शाखा में जाता था ! और यह सब अपने कानों से शाखा में सुना हूँ ! उसमे सिर्फ नमक मिर्च और मसालों का अनुपात कम अधिक होते रहता है ! आज व्हाट्सअप पर अचानक यह सब याद दिलाने में हेटस्पिच का उल्लंघन नहीं है ? महात्मा गाँधी जी को किसी गोरी महिला के साथ नाचते हुए ! और जवाहरलाल नेहरू के साथ अलग – अलग महिलाओं के साथ गले लगने या चुंबन के दृश्यों को देखकर ! शतप्रतिशत यह मॉर्फ के तकनीक का इस्तेमाल करके ही बनाया गया है ! और हर फोटो के निचे कॉमेंट है! “कि आप क्या सिर्फ पेट्रोल – डिजल के दाम क्यों बढ रहे हैं ? यही सोच रहे हों ? यह सब कुछ ठीक लग रहा है आपको ?
हालांकि मेरे एक मित्र के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मै रुमर्स स्प्रेडिंग सोसायटी भी बोला करता हूँ ! यह अभियान आजकल बहुत ही तेजी से हो रहा है ! शायद 2024 के चुनाव की तैयारी भी हो सकती है ! और उसके पहले इस तरह की हरकतों को फैलाने से शायद गुजरात या भागलपुर के जैसे दंगे भी करवा सकते हैं ! क्योंकि बीजेपी जैसी वैचारिक रूप से दिवालिया पार्टी के पास और क्या मुद्दे हो सकते हैं ?


जिस दल ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में महात्मा गाँधी जी की 30 जनवरी 1948 के दिन नथुराम गोडसे और उसके अन्य सहयोगीयोने मिलकर हत्या की थी ! तो 31 जनवरी से महाराष्ट्र में ब्राम्हणों के घरों पर हमले हुए ! जिसमें हजारों की संख्या में ब्राम्हण मारे गए ! और शेकडो ब्राम्हण औरतों के साथ बलात्कार किए गए ! और हजारों की संख्या में विस्थापित हुए ! ऐसे पर्चे बाटें जा रहे थे ! अगर यह बात सच होतीं तो क्या आज संघ का अस्तित्व बचा हुआ मिलता ? क्योंकि आचार्य विनोबा भावे की भाषा में नथुराम संघ का सदस्य था और संघ के सभी सिपहसलारों में महाराष्ट्र के ब्राम्हण है ! जो नागपुर से ढाका और पेशावर तक फैला हुआ है ! और संघ की स्थापना करने से लेकर उसके सभी नितिनिर्धारक महाराष्ट्र के ब्राम्हणों के हथो में है ! और उसमे शतप्रतिशत महाराष्ट्र के ब्राम्हणो की बुद्धि का प्रयोग होता है ! इसलिए मैंने भले ही जाति का त्याग कर दिया है लेकिन मै भूल नहीं सकता कि बापू का हत्यारा महाराष्ट्रीयन ब्राम्हण है !

यह विनोबा भावे मार्च 1948 में सेवाग्राम आश्रम में बापू अब रहे नही आगे क्या ? इस शिर्षक से गोपाल कृष्ण गाँधी ने संपादित की हुई किताब में दर्ज है ! जिसमें नेहरू, मौलाना आझाद, जयप्रकाश नारायण, तुकडोजी महाराज से लेकर आचार्य कृपलानी, राजेंद्र प्रसाद तथा अन्य लोगों के साथ आचार्य विनोबा भावे ने अपनी बात बताई है और कहा कि महाराष्ट्र में कुछ जगहों पर तोडफोड की वारदातें हुई है लेकिन उन वारदातें की हजारों की संख्या में ब्राम्हण मारे गए और महिलाओं के साथ बलात्कार यह संघ के तकनीक का पार्ट है कि बटवारे के समय की बात हो या गांधी हत्या के बाद या केरला स्टोरी या कश्मीर फाईल्स सभी जगहों पर महिलाओं को लेकर बढ़ा-चढ़ाकर बोलने लिखने में संघी सेक्स को लेकर मनोरुग्ण के स्तर पर जाकर लोगों को उकसाने का प्रयत्न करते हैं और इस बात का प्रमाण गुजरात के दंगों में बिल्किस बानो से लेकर और भी कई महिलाओं के साथ बलात्कार करने और उन्हें छोड़ देना या ताजा महिला पहलवानों के मुद्दे पर संघ और संघ की राजनीतिक इकाई की भूमिका कितनी पाखंडीयो के जैसे चल रही है ! मतलब महिलाओं का इस्तेमाल भडकाने के लिए करेंगे लेकिन जब उन्हें सही मायने में सम्मान देने की बात आती है तो लिपापोती करेंगे ! ब्रजभूषण जैसे गुंडे को बचाने के प्रयास का क्या अर्थ है ? और प्रधान मंत्री “बेटी बचाओ अभियान” का मंत्र जपने का पाखंड करते हैं !


जो पार्टी हमारे देश के जवानों को पुलवामा के तथाकथित पाकिस्तानियों ने किया हुआ हमले में ! हमारे चालिस से अधिक जवानों को मरवाने के बाद ! पूरा 2019 का लोकसभा का चुनाव जीत कर ले गए थे ! यह राजनीतिक दल नही है ! जल्लादो का दल है ! जो सिर्फ और सिर्फ लाशों पर राजनीति करती है ! मुझे तो संशय है कि बालासोर का रेल हादसा किसी भी आतंकी संगठनों के माथे पर मढने से सरकार की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है ! सीबीआई के पास रेल दुर्घटना की जांच और किस बात के लिए दिया गया है ? क्या सीबीआई की कोई विश्वसनीयता बची है ? इसी बीजेपी ने उसे किसी समय सरकारी पोपट कहा है ! और वह गत नौ वर्ष से बखुबी पोपट की भूमिका निभा रहा है !


26 फरवरी 2002 के दिन नरेंद्र मोदीजी ने गोधरा कांड के बाद चंद मिनिटों में पाकिस्तानी षडयंत्र का आरोप किया है ! अब बालासोर में नरेंद्र मोदी मोबाईल फोन पर टूटे हुए कोच में खडे होकर क्या बात कर रहे होंगे ? और किसके साथ बात कर रहे होंगे ?
गोधरा कांड के बाद 59 अधजली लाशों को लेकर खुले ट्रकों पर लादकर जुलूस निकालने वाले लोगों की मानसिकता कुछ भी कर सकते हैं ! मौत के सौदागर ऐसा ही थोडा बोला गया है ?


और इसिलिये हर बात में जातिवाद या धार्मिक ध्रुवीकरण ! या भाषा लिंग के आधार पर राजनीति करते हुए ! लोगो को उकसाने के अलावा और कोई बात नहीं है ! और यह सब करते हुए, धन्नासेठों की तिजोरीया भरने के अलावा कोई काम नहीं है ! और इसी काम के लिए धन्नासेठों ने बीजेपी के लिए अपनी तिजोरीया खुली छोड दी है !
कैसे एक तरफा मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हिंदुओ के उपर अत्याचार किए ? औरतें कैसी बेआबरू की गई ? कि खबरें और अब फोटो मॉर्फ करके नेहरू गाँधी जी के खिलाफ प्रचार-प्रसार किया जा रहा है ! 76-77 साल के बाद आज अचानक यह सब करने की वजह बिल्कुल साफ है ! यह सब फैलाने वाले निचे सवाल लिख रहे हैं ! “कि आपको यह सब देखकर भी आज पेट्रोल – डिजल और अन्य महंगाई ज्यादा लग रही है ?” 75 साल पहले की बात वह भी बढ़ा-चढ़ाकर बताते हुए वर्तमान सरकार की वकालत करने वाले ने अपना मकसद छुपाया नही है !


सबसे पहली बात इन लोगों के पूर्वज, खुद तत्कालीन बंगाल सरकार मे शामिल रहे हैं ! श्यामाप्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग के मंत्रिमंडल में शामिल थे ! वैसे ही सिंध प्रांत में भी शामिल थे ! तो मेरा प्रश्न है ! “कि जब आप मुस्लिम लीग के साथ मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे ! तो कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तय हुआ होगा ? क्योंकि मुस्लिम लीग ने 23 मार्च 1940 को पाकिस्तान के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी ! और उसके बाद जब भारत छोडो आंदोलन के कारण 8 अगस्त 1942 के बाद कांग्रेस के नेता जेल में बंद रहे ! तो उनकी अनुपस्थिति में भारत में अलग-अलग प्रांतों में सरकारों का गठन हुआ था ! तो मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा ! और वह भी विनायक दामोदर सावरकर के नेतृत्व वाले समय में ! कोई भी हिंदूत्ववादी यह बता दें कि सिंध बंगाल जैसे संवेदनशील प्रदेशों में ! मुस्लिम लीग ने दो वर्ष पूर्व ही पाकिस्तान की घोषणा कर दी थी ! तो क्या हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग को पाकिस्तान की मांग छोड़ने की शर्त पर मिलजुलकर सरकारो को बनाने का प्रस्ताव देकर सरकारों को बनाया ?” और नही तो फिर मुस्लिम लीग के साथ मंत्रिमंडल बनाने का मतलब क्या था ?


अखंड भारत की रट लगाए थकते नही ! और भारत को खंडित करने का प्रस्ताव पास की हुई मुस्लिम लीग के साथ वह भी दोनो संवेदनशील प्रांतों में ! जहां बटवारे का असर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है ! तो एक मिनट के लिए मान लिया कि मुस्लिम समुदाय ने ज्यादती की ! तो हिंदू महासभा तब जनसंघ का जन्म हुआ नहीं था ! और बीजेपी तो आजादी के चालिस साल बाद पैदा हुई हैं ! लेकिन उनके मातृसंस्था संघ की स्थापना होकर बीस साल से भी अधिक समय हो चुका था ! वह उस समय क्या कर रहे थे ? विनायक दामोदर सावरकर गिनकर साठ साल पार कर चुकें थे ! और आजादी के ग्यारह वर्ष पहले ही वह सिर्फ आजाद नहीं थे ! बाकायदा अंग्रेजों की महिना साठ रुपये की पेंशन पर जी रहे थे ! और उस समय उन्होंने अपनी पेंशन की रकम बढ़ाने के लिए अंग्रेजी सरकार को अर्जी लिखि थी ! तो अंग्रेजी सरकारने कहा कि “हमारे कलक्टर की तनखा से आपको पेंशन ज्यादा दी जा रही है !” यह है तथाकथित स्वातंत्र्यवीर सावरकर की देशभक्ती !


अब लग रहा है कि हिंदूत्ववादी लोगों के इस तरह की हरकतों को देखते हुए ही सर्वसाधारण लोग महात्मा गाँधी जी के पिछे गए होंगे ! और भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई सत्याग्रह आंदोलन के द्वारा लडे है ! और विनायक दामोदर सावरकर से लेकर माधव सदाशिव गोलवलकर अंग्रेजी सेना में भर्ती का काम करते रहे !


उल्टा नेताजी सुभाष चंद्र बोस विदेश जाने के पहले संघ के तत्कालीन प्रमुख डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के पास संघ के स्वयंसेवकों को आजाद हिंद सेना में शामिल होने के लिए कहने के लिए विशेष रूप से कलकत्ता से महाराष्ट्र में 1940 मे आए थे ! और उनके साथ नागपुर के संघ के संस्थापकों में से एक बालाजी हुद्दार थे ! और उन्होंने अपने अनुभव नागपुर से निकलने वाले ‘ग्रामसेवक नाम’ की पत्रिका ने बालाजी हुद्दार शताब्दी विशेषांक में वर्ष 2003 अंक 2 में, साफ तौर पर लिखा है ! “कि मै नेताजी सुभाष चंद्र बोस और संघ के बीच की कडी के रूप में काम किया हूँ ! और संघ के प्रमुख डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने झुठमुठ का बिमारी का नाटक करके, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलने से मना कर दिया था ! सावरकर ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ मुलाकात की ! लेकिन आजाद हिंद सेना की जगह अंग्रेजी सेना में भर्ती करने का काम करते रहे ! और नेताजी इन लोगों के उस अनुभव के बाद ही विदेशी मदद के लिए भारत छोडकर चलें गए ! आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ गांधी, नेहरु ने कैसा व्यवहार किया ? के किस्से फैला रहे हैं ! लेकिन विदेशी भूमि पर अपनी आझाद हिंद सेना की टुकडीयो के नाम में नेहरू, गाँधी, पटेल, मौलाना आझाद जी की नाम की टुकडीया थी ! लेकिन हेडगेवार या सावरकर का नाम नहीं था !


मतलब भारत की आजादी की लड़ाई सुभाष चंद्र बोस अपने ढंग से लड रहे थे ! उन्हें किसी भी हिंदूत्ववादी तत्वों की मदद नहीं मिली ! महात्मा गाँधी और उनके साथ अन्य लोगों की लड़ाई सत्याग्रह आंदोलन के द्वारा शुरू थी ! उससे भी कोसो दूर संघ तथा विनायक दामोदर सावरकर रहे है ! फिर बात आती है बटवारे की ! तो उसका भी दोष कांग्रेस या महात्मा गाँधी जी के कंधों पर डालने वाले संघ तथा सावरकर ने कौन सी बंदूक लेकर बटवारे के खिलाफ कार्रवाई करने का एखादा उदाहरण है ? महात्मा गाँधी जी के हत्या के लिए पिस्तौल मिलती है ? लेकिन बटवारे के लिए विशेष रूप से योगदान देने वाले बैरिस्टर जीना या सुर्हावर्दी के साथ सरकारों में शामिल होने के लिए कौन सा अखंड भारत का कर्तव्य का निर्वाह कर रहे थे ?
डॉ. सुरेश खैरनार, 7 जून 2023, नागपुर

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