अब तक दुनियाभर के खेलों में मैच फिक्सिंग के मामले सामने आते थे, लेकिन पहली बार मेजबानी फिक्सिंग का मामला सामने आया है. 2022 में आयोजित होने वाले फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी फिक्स थी. कतर को मेजबानी दिए जाने का समर्थन करने के लिए फीफा के सदस्यों ने करोड़ों अमेरिकी डॉलर की रिश्वत ली थी. इस बात का खुलासा हाल ही में अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने किया है. आश्चर्यजनक रूप से साल 2010 में ज्यूरिख में संपन्न हुई मेजबानों की चुनाव प्रक्रिया में कुल 22 में से 14 वोट कतर के पक्ष में पड़े थे. जनवरी 2011 में फीफा के अध्यक्ष सेप ब्लाटर कतर की राजधानी दोहा में एशियाई खेलों के आयोजन के पहले एक कार्यक्रम में पहुंचे और 2022 के फुटबॉल विश्व कप के सर्दियों में होने की उम्मीद जताई. 2018 और 2022 दोनों विश्व कप के लिए मेजबानों के चुनाव में भ्रष्टाचार के आरोपों ने मई 2011 में सिर उठाना शुरू किया, जब संडे टाइम्स अखबार ने इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की.
एक व्हिसिल ब्लोअर फेड्रा अलमजीद ने दावा किया था कि कतर के पक्ष में वोट डालने के लिए फीफा की कार्यकारी समिति को पैसे दिए गए. इसके बाद सितंबर 2013 में यूरोपीय फुटबॉल की संचालक संस्था यूएफा के 54 सदस्यीय दल ने पारंपरिक रूप से जून-जुलाई महीनों में आयोजित होने वाले टूर्नामेंट के समय को बदलने का समर्थन किया. इसके बाद इसी साल नवंबर में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने वर्ल्ड कप के आयोजन से जुड़े निर्माण कार्यों में हो रहे मानवाधिकार हनन का खुलासा किया. इसे लेकर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने रिपोर्ट जारी की. इसके बाद पिछले साल जून में ब्राजील में आयोजित हुए विश्व कप के दौरान फीफा पर 2022 का नया मेजबान चुनने का दबाव बढ़ गया, तब अमेरिकी वकील मिशेल गार्सिया की अध्यक्षता वाले दल ने फीफा पर लगे आरोपों की जांच शुरू कर दी थी. गार्सिया की फाइनल रिपोर्ट को कानूनी पेंच में उलझा कर फीफा ने सार्वजनिक नहीं होने दिया. पिछले साल नवंबर में फीफा ने ही स्विस अटॉर्नी के पास कुछ लोगों के खिलाफ 2018 और 2022 विश्व कप मेजबानी मामले में संभावित गड़बड़ी की शिकायत दर्ज की. 24 फरवरी को फीफा विश्व कप टास्क फोर्स ने प्रस्ताव दिया कि 2022 मुकाबले कतर में ही सर्दी के मौसम में नवंबर-दिसंबर में आयोजित किए जाएं, लेकिन कतर से मेजबानी वापस लिए जाने के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया.
27 मई, 2015 को स्विस अधिकारियों ने फीफा के ज्यूरिख मुख्यालय पर छापे मारे और 17 सालों से फीफा प्रमुख रहे ब्लाटर के साथ काम करने वाले कई वरिष्ठ अधिकारियों को साजिश और भ्रष्टाचार समेत कई आरोपों के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया, जिनमें फीफा के पूर्व उपाध्यक्षों जेफ़री वेब और यूगेनियो फिगोरेडे के अलावा एडुआर्डो ली, जूलियो रोका, कोस्टस टक्कास, राफेल एस्कुवेल और होसे मारिया मारिन भी शामिल हैं. उनके अलावा, कुछ अन्य अधिकारियों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. उनमें हाल के दिनों तक फीफा के उपाध्यक्ष और उत्तरी-मध्य अमरीका व कैरेबियन फुटबॉल परिसंघ के पूर्व अध्यक्ष, जैक वार्नर और दक्षिण अमरीकी फुटबॉल परिसंघ के पूर्व अध्यक्ष निकोलस लियोज़ भी शामिल हैं. इसके बाद फीफा के पूर्व शीर्ष अधिकारी चक ब्लेजर ने कोर्ट में रिश्वत लेने की बात स्वीकार की है. ब्लेजर के इस बयान से इस मामले में और बड़े खुलासे भी हो सकते हैं. उन्होंने कोर्ट में कहा कि उसने फीफा पदाधिकारियों के साथ मिलकर 1998 और 2010 फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी के लिए रिश्वत ली थी. विश्व कप 1998 की मेजबानी फ्रांस को मिली थी, जिसने मोरक्को को दौड़ में पछाड़ा था. वहीं 2010 विश्व कप दक्षिण अफ्रीका में हुआ था. ख़बरों के अनुसार, पिछले 24 सालों में 15 करोड़ डॉलर कथित तौर पर घूस या कमीशन के रूप में फीफा अधिकारियों ने लिए हैं. यदि चक के बयान में सच्चाई है तो 1998 में ब्लाटर के फीफा अध्यक्ष बनने के बाद उनकी मौन स्वीकृति के तहत फीफा में रिश्वत का यह काला खेल शुरू हो गया था.
पूरी दुनिया अब फीफा में फैले भ्रष्टाचार के लिए 17 साल तक अध्यक्ष रहे सेप ब्लाटर को ही जिम्मेदार ठहराया है. जब वह 1998 में फीफा के अध्यक्ष बने थे तब भी उन पर अपने पक्ष में वोट खरीदने के आरोप लगे थे. फीफा में भ्रष्टाचार की गंदी संस्कृति के जन्मदाता ब्लाटर ही है. हालांकि उन पर अब तक भ्रष्टाचार के आरोप साबित नहीं हुए हैं, लेकिन वह सब कुछ जानते हुए भी अब तक अंजान बने हुए थे. इस बात के भी सबूत हैं कि ब्लाटर को 14.2 करोड़ स्विस फ्रैंक की रिश्वत के लेनदेन की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने फीफा में भ्रष्ट गतिविधियों को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाये. अब, जब रिश्वतखोरी का खुलासा हो रहा है तो फीफा के दर्जनों अधिकारी हिरासत में लिए जा रहे हैं. उनमें से अधिकांश ब्लाटर के करीबी हैं. रिश्वतखोरी के बारे में जानकारी होने के बावजूद कुछ न करना ब्लाटर को भ्रष्टाचारियों का सहयोगी बनाता है.
पांचवी बार फीफा अध्यक्ष निर्वाचित होने के महज चार दिन बाद ब्लाटर का इस्तीफा देना और उनका हृदय परिवर्तन होना बहुत से सवाल खड़े करता है, लेकिन उनके इस्तीफे के बाद फीफा में आधारभूत परिवर्तन करने का मौका मिला है. उनके इस्तीफे के बाद फुटबॉल की दुनिया में लोगों ने राहत की सांस ली है. फुटबॉल को ब्लाटर के चंगुल से मुक्ति मिली है. चार दशक तक फीफा को हर रूप में प्रभावित करने वाले ब्लाटर का इस्तीफा फुटबॉल के भविष्य के लिए अच्छा है. उनके इस्तीफे के बाद फीफा को खोई हुई विश्वसनीयता का एक अंश वापस मिल गया है और यह उम्मीद जगी है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ केवल बोलने का समय समाप्त हो गया है. फीफा में अक्सर पारदर्शिता की बात की जाती है, लेकिन ब्लाटर की सारी कार्यप्रणाली अंधेरे में रही है. यहां फेयरप्ले के नाम पर अब तक केवल लफ्फाजी हो रही थी. फीफा में नई शुरुआत का रास्ता अब खुल गया है. फीफा एक बार फिर से अपनी खोज कर सकता है, पुराने नियमों को ताक पर रख सकता है और भ्रष्ट अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखा सकता है.
इस पूरे मामले का सकारात्मक पहलू भी है. बुरी तरह बंटे यूरोपीय फुटबॉल संगठनों के इर्द-गिर्द जमा विपक्ष एक बार फिर से इकट्ठा हो सकता है. उसे अब इस बात की जिम्मेदारी लेनी होगी और दिखाना होगा कि बेहतर फीफा कैसा हो सकता है. सभी को ईमानदारी से यह स्वीकार करना होगा कि आखिरकार फीफा है. यह स्वीकार करना होगा कि फीफा स्विस कानूनों के मुताबिक छोटा और गैर मुनाफे वाला संगठन नहीं है, बल्कि अरबों कमाने वाली एक बड़ी कंपनी है. यह स्वीकार करना भी एक बड़ी शुरुआत होगी. उम्मीदें लगाई जा रही हैं कि ब्लाटर का इस्तीफा फीफा क्रांति की शुरुआत है, लेकिन यह तो समय ही बताएगा. फिलहाल फीफा को एक ऐसे शख्स की जरूरत है, जो मौके की नज़ाकत को समझे, फीफा को इस चक्रव्यूह से बाहर निकाले और उसका कायाकल्प कर दे.
फीफा के ब्लाटर युग का अंत
पांचवी बार फीफा का अध्यक्ष चुने जाने के मात्र चार दिन बाद ही सेप ब्लाटर ने पद छोड़ दिया. ब्लाटर से मुक्ति पाने की कोशिश कर रहे यूरोपीय बिना दांत के शेर साबित हुए और ब्लाटर पांचवीं बार फीफा अध्यक्ष बनने में कामयाब हुए. सन 1975 में फीफा में ब्लाटर के प्रवेश के पहले भी वह कई खेल संस्थानों में महत्वपूर्ण पद संभाल चुके थे. एडीडास कंपनी के मालिक एडोल्फ डासलर की मदद से ब्लाटर ने फीफा में एंट्री की और 1981 में महासचिव चुने गए. 17 सालों तक ज्वाओ आवेलांजी की अध्यक्षता में महासचिव की भूमिका निभाने के बाद ब्लाटर ने फीफा अध्यक्ष का पद संभाला.
सन 1998 के चुनाव में आवेलांजी के पद का उत्तराधिकारी बनने के लिए उन्होंने तत्कालीन यूईएफए अध्यक्ष और अग्रणी दावेदार लेनार्ट जोहान्सन को पिछाड़ा. इसके बाद अफवाहें उड़ीं कि ब्लाटर ने अपने पक्ष में मत खरीदे थे. ब्लाटर पर आर्थिक प्रबंधन में गड़बड़ी के आरोप लगातार लगते रहे. अध्यक्ष पद पर चुने जाने के एक साल बाद ही उनके सहकर्मी फीफा के महासचिव मिशेल जेन-रुफिनेन ने उन पर मार्केटिंग खर्च में करीब 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर के नुकसान का आरोप जड़ा, लेकिन ब्लाटर न केवल आंतरिक जांच और स्विस कोर्ट में लॉ-सूट से बच निकले, बल्कि उन्होंने जेन-रुफिनेन को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया. साल 2000 में जर्मनी को फुटबॉल विश्व कप की मेजबानी दिलाने में ब्लाटर का अहम योगदान माना जाता है. इस बीच ब्लाटर संगठन में अपनी जगह और पक्की करने के लिए समर्थन जुटाते रहे. 2002 में उन्हें फिर से अध्यक्ष चुन लिया गया. इस दौरान कतर से फीफा के कार्यकारिणी सदस्य मोहम्मद बिन हम्माम उभरे. 2007 में ब्लाटर को लगा कि बिन हम्माम अध्यक्ष की गद्दी के लिए उनके प्रतिद्वंद्वी हो सकते हैं, लेकिन जब साल 2011 में बिन हम्माम ब्लाटर के खिलाफ अध्यक्ष की कुर्सी के लिए मुक़ाबले में खड़े हुए, तो अचानक उन पर घूसखोरी के कई आरोप जड़ दिए गए. इसके बाद न केवल उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ली, बल्कि फीफा से उन्हें हमेशा के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया.
कौन होगा ब्लाटर का उत्तराधिकारी
अमेरिका इस बार फीफा अध्यक्ष के लिए दिलचस्पी ले रहा है. रिकॉर्ड तीन बार से अमेरिकी फुटबॉल महासंघ के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहे भारतीय मूल के अमेरिकी सुनील गुलाटी फीफा अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हो सकते हैं. उन्होंने पिछले कुछ दशक में अमेरिकी फुटबॉल के विकास में अहम योगदान दिया है. हाल ही में संपन्न हुए अध्यक्ष के चुनाव में गुलाटी ने राजकुमार अली का समर्थन किया था. गुलाटी और अमेरिका ने ब्लाटर का विरोध किया था. उनके अलावा यूरोपीय फुटबॉल संघ (यूएफा) के अध्यक्ष माइकल प्लैतिनी शामिल हैं. इनके अलावा दक्षिण कोरिया के चुंग मोंग जून भी फीफा अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हो गए हैं. वह फीफा उपाध्यक्ष पद पर रह चुके हैं. इन सभी के अलावा हाल ही में फीफा अध्यक्ष पद के चुनाव में ब्लाटर को चुनौती देने वाले प्रिंस अली भी अध्यक्ष पद की दौड़ में एक बार फिर शामिल हैं.
क्यों की अमेरिका ने जांच
साल 2022 के फीफा विश्व कप की मेजबानी की वोटिंग में अमेरिका कतर के सामने पिछड़ गया था. वोटिंग के चौथे और अंतिम दौर में अमेरिका को कुल 22 में से 8 वोट हासिल हुए थे, जबकि कतर को 14. एक व्हिसिल ब्लोअर फेड्रा अलमजीद ने दावा किया कि कतर के पक्ष में वोट डालने के लिए फीफा की कार्यकारी समिति को पैसे दिए गए. इसके बाद अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने इस मामले की अलग जांच की. अमेरिकी एजेंसी ने अपनी जांच में इन आरोपों को सही पाया और 14 लोगों को चिन्हित किया है, जिनमें नौ फीफा ऑफीशियल, पांच स्पोट्र्स मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव शामिल हैं, जिनके खिलाफ षड़यंत्र, रैकेटिंग और मनी लाउंड्रिंग के आरोप लगे हैं. कुछ लोग गिरफ्त में आ चुके हैं, जो पकड़ में नहीं आए हैं, उनके खिलाफ इंटरपोल ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर दिया है.
कौन हो सकता है वैकल्पिक आयोजक
ब्लाटर के अचानक इस्तीफे और अमेरिका तथा स्विस अधिकारियों द्वारा 2022 विश्व कप की मेजबानी दिये जाने की प्रक्रिया की जांच के बाद से कतर की मेजबानी वापस लिये जाने तक की मांग उठने लगी है. इंग्लैंड फूटबाल के प्रमुख ग्रेग डाइके ने कहा कि फीफा पर 17 सालों तक राज करने वाले ब्लाटर के इस्तीफ के बाद कतर को नर्वस हो जाना चाहिए. लेकिन कतर विश्व कप के आयोजकों ने सभी आरोपो का निराधार बताते हुए कहा कि विश्वकप की दावेदारी प्रक्रिया पर उसके पास छिपाने के लिये कुछ भी नहीं है. लेकिन इस संबंध में ब्रिटेन के हाउस कॉमंस में उठे सवाल पर सरकार ने कहा कि यदि फीफा इसकी मेजबानी के लिए हम पर गौर करता है तो हमारे पास सुविधाएं है. हमने 2018 विश्व कप के लिए बहुत प्रभावशाली दावेदारी की थी हालांकि हमें सफलता नहीं मिली. जबकि 2022 के विश्वकप की मेजबानी के लिए अमेरिका तैयार दिख रहा है.