कबाडख़ाना कब्रस्तान मामले में यथास्थिति को बताया जा रहा स्थगन

भोपाल। शहर के हाथों से कब्रस्तान चले जाने का दर्द अभी ताजा ही है, लोग उस दर्द को भूले भी नहीं हैं, जैसे-तैसे हालात सामान्य होने की तरफ बढ़ रहे हैं, ऐसे में चंद मतलब परस्तों ने अदालत के एक आदेश को गलत तरीके से पेश कर फिर इस मामले को हवा देना शुरू कर दिया है। जबलपुर हाईकोर्ट से आए यथास्थिति आदेश को स्थगन का नाम देकर शहरवासियों को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। इस हालात से आने वाले दिनों में शहर में नए सिरे से कोई बवाल होने की उम्मीदें बढऩे लगी हैं।

जानकारी के मुताबिक जबलपुर हाईकोर्ट ने गुरूवार को कबाडख़ाना कब्रस्तान मामले से जुड़े प्रकरण 539/2015 में यथास्थिति बनाने के आदेश जारी किए हैं। जिसके मायने यह हैं कि यहां अब कोई निर्माण कार्य नहीं किया जाएगा और विवादित स्थान जिस हालात में है, उसी स्थिति में रखा जाएगा। लेकिन इस मामले को लेकर शहर के दो एडवोकेट अफवाह फैला रहे हैं कि अदालत के आदेश के बाद कब्रस्तान की जमीन वापस वक्फ बोर्ड को सौंप दी जाएगी। जबकि आदेश में ऐसी किसी बात का उल्लेख नहीं है।

गौरतलब है कि पिछले माह कबाडख़ाना स्थित वक्फ कब्रस्तान को लेकर प्रशासन ने एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए इसका आधिपत्य एक निजी ट्रस्ट को सौंप दिया है। आधिपत्य दिलाने की कार्यवाही के दौरान शहरभर में कर्फ्यू लगाया गया था और राजदेव ट्रस्ट ने विवादित स्थान पर बाउंड्री वॉल बनाने की काम प्रशासन की निगरानी में शुरू कर दिया था। मामले को लेकर मोहम्मद सुलेमान और मोहम्मद इमरान ने मप्र वक्फ ट्रिब्यूनल में अर्जेंट हियरिंग का आवेदन किया था, जिसमें पिछली तारीख के दौरान ट्रिब्यूनल ने फैसला सुरक्षित करते हुए हाईकोर्ट से आने वाले फैसले के आधार पर अपना निर्णय सुनाने की बात कही थी।

चली थी कब्रस्तान बचाने की मुहिम

प्रशासन द्वारा लिए एक पक्षीय निर्णय के बाद शहर के कुछ बुद्धिजीवियों ने कब्रस्तान बचाने के लिए मुहिम शुरू की है। कुछ एडवोकेट, शहर के बुद्धिजीवी, सियासी लोग समेत शहरभर इस मुहिम में शामिल है। इस मामले को लेकर राज्यपाल से लेकर कई स्तर पर ज्ञापन सौंपे गए थे और शहरभर की मस्जिदों से इससे संबंधित पर्चे भी वितरित किए गए थे।
असर में मसाजिद कमेटी भी आई हालांकि मामला मप्र वक्फ बोर्ड और प्रशासन से जुड़ा हुआ है, लेकिन कब्रस्तान बचाव मुहिम में जुटे लोगों ने इस मामले को अपनी मंशा पूरी करने का हथियार बना लिया।

इस मामले को मसाजिद कमेटी की बर्खास्तशुदा कमेटी से जोड़कर मौजूदा प्रभारी सेकेट्री पर उनके दफ्तर में जानलेवा हमला किया गया। इस दौरान जमा हुई भीड़ को गुमराह किया गया कि कब्रस्तान की जमीन मसाजिद कमेटी के प्रभारी सचिव की वजह से निजी हाथों में चली गई है। हालांकि असल मामला मसाजिद कमेटी से बर्खास्त किए गए ओहदेदारों द्वारा अदालत के एक आदेश की गलत व्याख्या करने से पैदा हुआ है।

अदालत द्वारा दिए गए यथास्थिति आदेश को उन्होंने कमेटी बहाली के आदेश मानते हुए पुन: पद पर काबिज होने की मांग करते हुए यह हंगामा किया था। मसाजिद कमेटी मामले की तरह कब्रस्तान मामले के अदालती आदेश की भी गलत व्याख्या करते हुए लोगों को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। जिससे आने वाले दिनों में शहर में विवाद के हालात बन सकते हैं।

एक और आदेश पर बवाल

जबलपुर हाईकोर्ट से चले एक और आदेश को लेकर शहर में चर्चा का दौर है। यह याचिका मप्र वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष शौकत मोहम्मद खान ने लगाई थी, जिसमें उन्होंनें समय पूर्व उन्हें पद से हटाए जाने को लेकर आपत्ति दर्ज कराई थी। उन्होंने आपत्ति का आधार मप्र वक्फ बोर्ड के तत्कालीन प्रभारी सीइओ मोहम्मद अहमद खान के कमेटी भंग करने को बनाया था।

शौकत की तरफ से लगाई गई याचिका में तर्क दिया गया है कि मूलभूत नियम 49 के अनुसार कोई भी प्रभारी अधिकारी नीतिगत निर्णय लेकर किसी कमेटी को भंग नहीं कर सकता। शौकत की याचिका पर अदालत द्वारा गुरूवार को स्थगन आदेश जारी कर दिया गया था, लेकिन ऐन वक्त पर औकाफ-ए-आम्मा की मौजूदा कमेटी ने अपना पक्ष रखने की गुहार अदालत के सामने रख दी।

औकाफ-ए-आम्मा द्वारा अदालत को तर्क दिया गया है कि शौकत मोहम्मद खान की कमेटी को बर्खास्त करने वाले सीइओ प्रभार के रूप में काम कर रहे थे, तो उनके नियुक्ति के आदेश करने वाले तत्कालीन सीइओ दाऊद अहमद खान भी प्रभारी के रूप में ही बोर्ड में मौजूद थे। ऐसे में जिस तरह प्रभारी अधिकारी को कमेटी भंग करने का अधिकार नहीं है, उसी तरह किसी प्रभारी को कमेटी गठन का अधिकार भी प्राप्त नहीं है। अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 22 फरवरी तय की है।

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