बीते दस साल में सेना के 14415 जवान शहीद हो चुके हैं. इनमें से कुछ दुश्मनों का मुकाबला करते हुए, तो कुछ रक्षा ड्यूटी पर शहीद हो गए. इन बीते दस सालों में बड़ा हिस्सा कांग्रेस के शासन का रहा, जबकि नरेंद्र मोदी की सरकार ने अभी तीन वर्ष ही पूरे किए हैं. सबसे ज्यादा जवानों की शहादत 2008 में हुई. यह भी खुलासा हुआ है कि इस साल, यानि 2017 के एक नवम्बर तक सात वायु सैनिक शहीद हुए. वहीं पिछले साल यह संख्या स़िर्फ एक थी. इसके मुक़ाबले, यूपीए सरकार के पिछले सात सालों में आठ वायु-सैनिक क़ुर्बान हुए थे. नौसेना के शहीदों का आंकड़ा नहीं मिल पाया है.
देश में वर्ष 2008 से लेकर इस साल बीते 01 नवम्बर तक बैटल कैजुअल्टी में 1228 और फिजिकल कैजुअल्टी में 13187 जवान शहीद हो चुके हैं. इस तरह पिछले 10 सालों में 14415 जवान देश की सेवा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर चुके हैं. यह जानकारी आरटीआई के तहत सामने आई है. रक्षा मंत्रालय के तहत एकीकृत मुख्यालय पीआरओ लेफ्टिनेंट कर्नल एडीएस जसरोटिया ने लखनऊ के आरटीआई एक्टिविस्ट संजय शर्मा द्वारा मांगी गई सूचना पर यह जानकारी सार्वजनिक की है. संजय ने पिछले 10 सालों में सेना के तीनों अंगों के ऑन ड्यूटी शहीद हुए सैनिकों की वर्षवार सूचना मांगी थी. थल सेना और वायुसेना ने यह सूचना दे दी, लेकिन नौसेना की ओर से सूचना नहीं मिली है. सेना ने बताया है कि पिछले 10 साल के दरम्यान सबसे अधिक शहादत वर्ष 2008 में हुई. इस एक साल में सबसे ज्यादा 311 जवान शहीद हुए. वर्ष 2013 में सबसे कम शहादतें दर्ज हुईं, फिर भी यह संख्या 74 रही.
वर्ष 2017 में (खबर लिखे जाने तक) 81 जवान बैटल कैजुअल्टी में अपनी जान गवां चुके हैं. 10 साल में फिजिकल कैजुअल्टी में सबसे ज्यादा 1530 जवान वर्ष 2010 में शहीद हुए और 2015 में सबसे कम 1250 जवान शहीद हुए. इस प्रकार पिछले दस साल में प्रतिवर्ष औसतन 123 जवान बैटल कैजुअल्टी और 1319 जवान फिजिकल कैजुअल्टी की वजह से शहादत को प्राप्त हुए. इस प्रकार कुल 1442 जवान ऑन ड्यूटी शहीद हुए. इन आंकड़ों को देखने से यह स्पष्ट होता है कि 2016 को छोड़ कर साल 2012 से अब तक प्रतिवर्ष शहीद होने वाले कुल सैनिकों की संख्या पिछले 10 सालों के औसत से कम रही है.