महात्मा गाँधी, विनोबा भावे तथा जयप्रकाश नारायण के नाम से अपने आपको अनुयायी कहने वाले साथियों के नाम खुला पत्र !
साथियों लगभग आजसे पचहत्तर साल पहले इन्हीं तारीखों मे (11-15 मार्च 1948 ) से महात्मा गाँधी जी के हत्या के बाद “कल तक बापू थे ! आज रहनुमाई कौन करेगा ? सोचते हैं
नेहरू, प्रसाद, आजाद, विनोबा, कृपलानी, जेपी, और अन्य, सेवाग्राम मार्च 1948
गाँधी जी की हत्या के कुल छ हप्तो बाद सेवाग्राम में कुछ जन, पुरुष और महिलाएं एकत्र होकर अपने सुनें दिलों और भटकते दिमागों के अंदर इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढते है :जब भी शंकाएं हमें घेर लेती थी हम बापू की ओर मुडते ; अब बापू नहीं रहे अब किसकी ओर देखे, क्या करें ?
यह आत्म – परीक्षा पांच दिनों तक चलती है ! बातें बिल्कुल खुले दिल से होती है और बात करने वाले अपनी परीक्षा स्वयं लेते हैं !
यह सर्व सेवा संघ की जन्म की बैठक का इतिवृत है ! जिसे आज मुझे दोहराने के लिए पिछले कुछ दिनों से चल रहे आपसी विवाद को देखते हुए देने का मन कर रहा है ! सभी गुटों को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं किसी के तरफ या खिलाफ नहीं हूँ ! सभी तरफ मित्र ही मीत्र है ! इसलिए यह निस्पक्ष मन से लिखने का प्रयास है ! अगर किसी को भी मेरे इस लेख से दुख हुआ ! तो वह मेरे अभिव्यक्ति की गलती मान कर माफी चाहता हूँ !
अभि मैं इस सिलसिले में चल रहे विवाद में किसी का भी पक्ष या विपक्ष मे नहीं हूँ ! और सबसे अहं बात मै तकनीकी रूप से इन संस्थाओं से संबंधित नहीं हूँ ! और न ही कभी था ! ( जिसे लोक सेवक कहा जाता है ! मै न कभी था ! और न ही हूँ ! और न ही होने की इच्छा है ! हालांकि मैं पचास वर्षों से भी अधिक समय से सार्वजनिक जीवन में हूँ वह बात अलग है !! ) लेकिन तरुण शांति सेना में, कुछ मित्रों के कारण सत्तर के दशक में, कभी-कभी बैठक या संमेलनो में झांकने का मौका मिला है ! और 1973 – 74-75 और शायद आपातकाल की घोषणा के बाद भी ! विनोबा के मौन व्रत टूटने के अवसर पर शामिल होने की याद है ! और आपातकाल में एस. एम. जोशी और एन. जी. गोरे इन दोनों समाजवादी नेताओं के साथ विनोबा को मिलने के समय उनके साथ रहा हूँ ! इसलिये एक बिरादर का अहसास है !


इसलिए अभी कुछ दिनों से सर्व सेवा संघ तथा सर्वोदय के भीतर जो भी कुछ वाद – विवाद जारी है ! और वह आज इस संमेलन के समय और उफान पर आया हुआ ! देखकर मुझे सिर्फ पचहत्तर साल पहले आजही के दिन विनोबाजी ने तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ में (जिससे बदतर आज की परिस्थिति है !) उस समय क्या कहा था ? सिर्फ मै सभी गुटों के साथीयो को सिर्फ स्मरण दिलाने हेतु पुनः दे रहा हूँ !


यह है, आचार्य विनोबा भावे का पचहत्तर साल पहले की सेवाग्राम के बैठक का बोला हुआ मजमून जिसे मैं हूबहू दे रहा हूँ “मै कुछ कहना चाहता हूँ ! मै उस प्रांत का हूँ जिसमें आर. एस. एस. का जन्म हुआ ! जाति छोड़कर बैठा हूँ ! फिर भी भूल नहीं सकता कि उसकी जाति का हूँ ! जिसके द्वारा यह घटना हुई ! कृपलानीजी और कुमारअप्पाजी ने फौजी बंदोबस्त की बात के खिलाफ परसों सक्त बातें कहीं ! मै चुप बैठा रहा ! वे दुःख के साथ बोलते थे ! मै दुःख के साथ चुप था ! न बोलने वाले का दुःख जाहिर नहीं होता ! मैं इसलिए बोला नहीं था कि मुझे दुःख के साथ लज्जा भी थी ! पौनार में मै बरसों से रह रहा हूँ ! वहाँ पर भी चार – पांच आदमियों को गिरफ्तार किया गया है ! बापू की हत्या से किसी न किसी तरह का संबंध होने का उनपर शुबह है ! वर्धा में गिरफ्तारियां हुई, नागपुर में हुई, जगह-जगह हो रही है ! यह संगठन इतने बड़े पैमाने पर बड़ी कुशलता के साथ फैलाया गया है ! इसके मूल बहुत गहरे पहुंच चुके हैं ! यह संगठन ठीक फैसिस्ट ढंग का है ! उसमे महाराष्ट्र की बुध्दी का प्रधानतया उपयोग हुआ है ! चाहें वह पंजाब में काम करता हो या मद्रास में ! सब प्रांतों में उसके सालार और मुख्य संचालक अक्सर महाराष्ट्रियन, और अक्सर ब्राम्हण, रहे हैं ! गुरुजी भी महाराष्ट्रीयन ब्राम्हण है ! इस संगठन वाले दुसरो को विश्वास में नही लेते ! गाँधी जी का नियम सत्य का था ! मालूम होता है कि इनका नियम असत्य का होना चाहिए ! यह असत्य इनकी टेक्निक – उनके तंत्र – और उनकी फिलॉसफी का हिस्सा है !


एक धार्मिक अखबार में मैंने उनके गुरुजी का लेख या भाषण पढा उसमे लिखा था कि ” हिंदू धर्म का उत्तम आदर्श अर्जुन है, उसे अपने गुरुजनों के लिए आदर और प्रेम था, उसने गुरुजनों को प्रणाम किया और उनकी हत्या की, इस प्रकार की हत्या जो कर सकता है वह स्थितप्रज्ञ है !” वे लोग गीता के मुझसे कम उपासक नहीं है ! वे गीता उतनी ही श्रध्दा से पढते होंगे जितनी श्रध्दा मेरे मन में है ! मनुष्य यदि पूज्य गुरुजनों की हत्या कर सके तो वह स्थितप्रज्ञ होता है, यह उनकी गीता का तात्पर्य है ! बेचारी गीता का इस प्रकार उपयोग होता है ! मतलब यह कि यह सिर्फ दंगा-फसाद करने वाले उपद्रवकारीयो की जमात नही है ! यह फिलॉसाफरो की जमात है ! उनका एक तत्वज्ञान है और उसके अनुसार निश्चय के साथ वे काम करते हैं ! धर्मग्रंथों के अर्थ करने की भी उनकी अपनी तकनीक अपनी एक खास पद्धति है !
गाँधी जी की हत्या के बाद महाराष्ट्र की कुछ अजीब हालत है ! यहां सब कुछ आत्यंतिक रुप में होता है ! गाँधी हत्या के बाद गांधीवालो के नाम पर जनता की तरफ से जो प्रतिक्रिया हुई वह भी वैसी ही भयानक हुई है, जैसे पंजाब में पाकिस्तान के निर्माण के वक्त हुई थी !


नागपुर से लेकर कोल्हापूर तक भयानक प्रतिक्रिया हुई ! सानेगुरुजी ने मुझे आवाहन दिया कि मै महाराष्ट्र में घुमू ! जो पौनार को भी न सम्हाल सका, वर्धा – नागपुर के लोगों पर असर नहीं डाल सका, वह महाराष्ट्र में घुमकर क्या करता ? मै चुप बैठा रहा !
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की और हमारी कार्यप्रणाली में हमेशा विरोध रहा है ! जब हम जेल जाते थे, उस वक्त उनकी नीति फौज और पुलिस में दाखिल होने की थी ! जहाँ हिंदू – मुसलमानों का झगडा खडा होने की संभावना होती, वहां वे पहुंच जाते ! उस वक्त की सरकार इन सब बातों को अपने फायदे की समझती थी ! इसलिये उसने भी उनको उत्तेजन दिया ! नतीजा हमको भुगताना पड रहा है !
आजकी परिस्थितिमे मुख्य जिम्मेदारी मेरी है, महाराष्ट्र के लोगों की है ! यह संगठन महाराष्ट्र में पैदा हुआ है ! महाराष्ट्र के लोग ही उसकी जडोतक पहुंच सकते हैं ! इसलिये आप मुझे सुचना करे, मै अपना दिमाग साफ रखूंगा और अपने तरीके से काम करुंगा ! मैं किसी कमेटी में कमिट नहीं हूँगा ! आर. एस. एस. से भिन्न, गहरे और दृढ विचार रखने वाले सभी लोगों की मदद लूंगा ! हमारा साधन – शुद्धि का मोर्चा बने ! उसमे सोशलिस्ट भी आ सकते हैं और दुसरे सभी आ सकते हैं ! हमको ऐसे लोगों की जरूरत है जो अपने आप को इन्सान समझते हैं !

साथियों यह है वर्तमान सर्व सेवा संघ के स्थापना की बैठक का इतिवृत ! जिसे गोपाल गाँधी जी ने पस्चिम बंगाल के राज्यपाल के पद पर कार्यरत रहते हुए ! संपादन करने के बाद ‘GANDHI IS GONE WHO WILL GUIDE US NOW ?’ PUBLISH BY – PERMANENT BLACK, RANIKHET के द्वारा 2007, में प्रकाशित किया गया है ! और इसका कॉपीराइट सर्व सेवा संघ वर्धा को दिया है !


उम्मीद है कि “वर्तमान और पूर्व के सर्व सेवा संघ के पदाधिकारियों ने इस किताब को अवश्य ही देखा होगा !” तो 30 जनवरी 1948 और आज की तुलना में आर. एस. एस. के संकट के बारे में जो आचार्य विनोबा भावे ने अपने संबोधन में कहा था ! “कि आर. एस. एस. फैसिस्ट संगठन है !” यह बात आज सौ साल के प्रवास के दौरान, और आज की तारीख में कोई छुपी हुई बात नहीं है ! लगभग जीवन के हर क्षेत्र में उन्होंने अपने लोगों को घुसपैठ करने के बाद, जिससे सर्व सेवा संघ की विभिन्न जगहों में ! राजघाट से लेकर साबरमती तक ! सिर्फ अपने लोगों को बैठाकर ‘अंतिम जन’ जैसे पत्रिका का सावरकर विशेषांक निकालकर !

वैचारिक हत्या करने का प्रयास कर रहे हैं ! और एक आप लोग हो कि ! इस संकट का मुकाबला करने की जगह, उन्हें अपने घर के झगड़े में खिंच कर ! उन्हें ही कह रहे हो कि आप लोग न्याय करो ! अन्यथा हमारे सभी संस्थानों को कब्जे में कर लो ! और उपर से गोडसेवादी जैसे जुमले इस्तेमाल कर रहे हों ? मतलब गाँधी – विनोबा और जेपी की विरासत को संघ परिवार के हाथों सौपना ही एक मात्र उपाय है तो ! कौन किस ओर है ? यह बात स्पष्ट होती है !


आप मे से काफी सारे लोग जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में से निकल कर आज सार्वजनिक क्षेत्र में सक्रिय हो और आपातकाल के समय जेल में बंद रहे हो ! क्या आपको लगता नहीं की आज आपातकाल की घोषणा नहीं और न ही सेंसर शिप है ! लेकिन उससे भी अधिक खराब स्थिति है ! और संघ के लोग जीवन के हर क्षेत्र में जिस तरह से जर्मनी में स्टॉर्म स्टुपर्स (एस. एस. ) के लोगो ने कब्जा कर लिया था ! और सांप्रदायिकता सर चढकर बोल रही है कल ही आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में हिंदू पूजा पाठ करने का फैसला सरकारी अधिकारियों को दिया है ! और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ कैसे व्यवहार किया जा रहा है यह जेएफ रिबोरो जैसे पुलिस अफसर सार्वजनिक रूप से अखबारों में लिख रहे हैं ! आज महात्मा गाँधी होते तो क्या किए होते ? सिर्फ इतना भी अपने जेहन में लाने का कष्ट करेंगे तो आपको समझ में आयेगा !


कांग्रेस के लोगों को सर्व सेवा संघ के मंच पर बुलाना ठीक नहीं है ! इससे हमारी निर्दलीय होने की बात शंकास्पद होती है ! हालांकि इस मंच पर किसी भी राजनीतिक दल के लोग नही आने चाहिए इस विचार का मै हूँ ! रहा सवाल भ्रष्टाचार के आरोपों का तो उसके बारे में जांच करके ! कौन अपराधि है ? उसे उस के गुनाह की सजा अवश्य देना चाहिए ! लेकिन वर्तमान समय में भारत की सरकार या महाराष्ट्र के सरकारों को हस्तक्षेप करने के लिए कहना ! और प्रशासक की मांग करना ! यह हमेशा – हमेशा के लिए, इस समस्त विरासत को खत्म करने की कृती को क्या कहेंगे ? मुझे लगता है, कि हमारे मित्र आपसी मनमुटाव के कारण अंधे हो गए हैं ! जरा आखे खोलकर देखेंगे तो पता चलेगा कि आप जाने-अनजाने में संघ परिवार के हाथ खेल रहे हो ! एक वर्‍हाडी कहावत लिखने के बाद समाप्त करता हूँ ! “मले न तूले घाल कुत्र्याले” (मतलब मुझे नहीं तो तुझे भी नही तो कुत्ते को ! संघ परिवार को !! )
डॉ सुरेश खैरनार 16 मार्च 2023, नागपुर

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