गाजियाबाद के मुरादनगर श्मशान घाट में छत गिरने से 25 लोगों से ज्यादा की मौत हो गई और लगभग सौ लोग बुरी तरह से घायल हो गए। यह छत कोई 100-150 साल पुरानी नहीं थी। यह अंग्रेजों की बनाई हुई नहीं थी। इसे बने हुए अभी सिर्फ दो महिने हुए थे।
यह नई छत थी, कोई पुराना पुल नहीं, जिस पर बहुत भारी टैंक चले हों और जिनके कारण वह बैठ गई हो। इतने लोगों का मरना, एक साथ मरना और श्मशान घाट में मरना मेरी याद में यह ऐसी पहली दुर्घटना है। सारी दुनिया में शवों को श्मशान या कब्रिस्तान ले जाया जाता है लेकिन मुरादनगर के श्मशान से ये शव घर लाए गए।
सारी दुर्घटना कितनी रोंगटे खड़े करनेवाली थी, इसका अंदाज हमारे टीवी चैनलों और अखबारों से लगाया जा सकता है। जिस व्यक्ति की अंत्येष्टि के लिए लोग श्मशान में जुटे थे, उसका पुत्र भी दब गया। उसके कई रिश्तेदार और मित्र, जो उसके अंतिम संस्कार के लिए वहां गए थे, उन्हें क्या पता था कि उनके भी अंतिम संस्कार की तैयारी हो गई है। जो लोग दिवंगत नहीं हुए, उनके सिर फूट गए, हाथ-पांव टूट गए और यों कहें तो ठीक रहेगा कि वे अब जीते जी भी मरते ही रहेंगे। मृतकों को उत्तरप्रदेश की सरकार ने दो-दो लाख रु. की कृपा-राशि दी है।
इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है ? किसी परिवार का कमाऊ मुखिया चला जाए तो क्या उसका गुजारा एक हजार रु. महिने में हो जाएगा ? दो लाख रु. का ब्याज उस परिवार को कितना मिलेगा ? सरकार को चाहिए कि हर परिवार को कम से कम एक-एक करोड़ रु. दे।
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने हताहतों के लिए शोक और सहानुभूति बताई, यह तो ठीक है लेकिन उन्हें उनकी जिम्मेदारी का भी कुछ एहसास है या नहीं ? श्मशान-घाट की वह छत मुरादनगर की नगर निगम ने बनवाई थी। सरकारी पैसे से बनी 55 लाख रु. की यह छत दो माह में ही ढह गई।
इस छत के साथ-साथ हमारे नेताओं और अफसरों की इज्जत भी क्या पैंदे में नहीं बैठ गई ? छत बनानेवाले ठेकेदार, इंजीनियर तथा जिम्मेदार नेता को कम से कम दस-दस साल की सजा हो, उनकी निजी संपत्तियां जब्त की जाएं, उनसे इस्तीफे लिए जाएं, उनकी भविष्य निधि और पेंशन रोक ली जाए। उन्हें दिल्ली की सड़कों पर कोड़े लगवाए जाएं ताकि सारा भारत और पड़ौसी देश भी देखें कि लालच में फंसे भ्रष्ट अफसरों, नेताओं और ठेकेदारों के साथ यह राष्ट्रवादी सरकार कैसे पेश आती है।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक