नई दिल्ली। गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में जो हादसा हुआ, उसकी परते अब वक्त के साथ उधड़ती जा रही है। हिंदुस्तान के इतिहास में शासनिक और प्रशासनिक स्तर पर शायद इससे बड़ी लापरवाही देखने को नहीं मिली। 60 बच्चों की गई जान के मामले में बीआरडी अस्पताल के डॉ कफील का नाम खुलकर सामने आया। पहले तो मीडिया ने उन्हें हीरो की भूमिका के रुप में दिखाया। और उनके दामन पर लगे दागों पर फोकस किया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वो कौन हैं… हीरो या विलेन।
डॉ कलीफ से जुड़े नए तथ्य सामने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि जब हादसा हुआ तो कलीफ अस्पताल में नहीं बल्कि अपनी निजी क्लिनिक में बैठे थे। वो इन्सेफेलाइटिस विभाग के चीफ नोडल अधिकारी थे लेकिन मेडिकल कॉलेज से ज्यादा वो अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस के लिए ही जाने जाते थे।
शुरुआत में कहा गया कि ऑक्सीजन की कमी के दौरान डॉ कलीफ ने अपनी जेब से पैसे देकर ऑक्सीजन के सिलेण्डर मंगाए, अब जानकारी मिल रही है कि डॉ कलीफ ने हादसे के बाद आनन फानन में सिलेण्डर अपने क्लिनिक से मंगाए। आरोप है कि अस्पताल के सिलेण्डरों की हेरा-फेरी करके अपने क्लिनिक पर इस्तेमाल करते थे। चूंकि उनकी सांठ-गांठ प्रिसिंपल राजीव मिश्रा से थी तो उन्हें किसी प्रकार के रोक-टोक की परवाह नहीं होती थी।
जानकारी के मुताबिक हादसे के बाद डॉ कलीफ ने अपने पत्रकार दोस्तों की मदद से अपनी छवि चमकाई। जब ये घटना हो रही थी तो कलीफ ही मीडिया से रुबरु हो रहे थे जबकि वो इसके लिए अधिकृत नहीं थे। अब तक की जांच पड़ताल में कलीफ के खिलाफ कई और चौंकाने वाले खुलासे हुए। जिसमें सामने आया कि कलीफ और राजीव मिश्रा, अस्पताल की हर डील में मोटा कमीशन लेते थे। ऑक्सीजन प्रोवाइडर कंपनी के बकाये को लेकर भी ये सामने आया, कंपनी के बकाये में अधिकारी अपने-अपने कमीशन से संतुष्ट नहीं थे जिसकी वजह से पेमण्ट नहीं की गई थी।
पिछले दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ के दौरे के दौरान वो डॉ कफील, मुख्यमंत्री के इर्द गिर्द दिखाई दे रहे थे लेकिन उन्होंने इस मामले के बाबत कोई जानकारी नहीं दी थी।