सियासी व सामाजिक उदासीनता किस तरह विरासत का बंटाधार करती है, इसका ताजा उदाहरण है, मोतिहारी का रोईंग कल्ब. कभी भारतीय किसानों के शोषण का केंद्र रहे निलही कोठी की जगह पर बनाया गया रोईंग क्लब आज अपने हाल पर आंसू बहा रहा है. कभी गुलजार रहने वाला रोईंग क्लब इन दिनों जुआरियों का अड्डा बना हुआ है. बिहार में शराबबंदी के पूर्व यह जगह शराबियों के लिए मुफीद स्थल हुआ करती थी. शराबबंदी के बाद अब भी यहां लोगों को छुप कर मोतीझील की सीढ़ियों पर शराब पीते देखा जा सकता है.
5 मई 1956 को रोईंग क्लब की स्थापना भवानीपुर जिरात मोतिहारी में नवसृजित प्रखंड कार्यालय के परिसर में की गई थी. तत्कालीन प्रखंड विकास पदाधिकारी एल एन सिंह, इनके कुछ विभागीय सहयोगियों और श्री ईश्वरी प्रसाद साहू के संयुक्त प्रयास से रोईंग क्लब स्थापित हुआ. इसके विकास कार्य चल ही रहे थे कि एल एन सिंह का चयन पुलिस विभाग में हो गया और वे नई नौकरी में चले गए. इसके साथ ही क्लब के कार्यकलापों में ठहराव सा आ गया. 1957 में आए नए बीडीओ पीके बनर्जी की सक्रियता से कुछ सार्थक सहयोग मिला. इसी दौरान जिले में नए डीएम के रूप में सीआर वैद्यनाथन ने कार्यभार ग्रहण किया.
वैद्यनाथन कला और खेलप्रेमी थे. एक दिन प्रखंड कार्यालय में निरीक्षण के दौरान उनकी नजर रोईंग क्लब में बैडमिंटन और वालीबॉल खेल रहे कुछ लोगों पर पड़ी. इन्होंने इसकी जानकारी ली, तो उन्हें रोईंग कल्ब के बारे में पता चला. उन्होंने इसके विकास का बीड़ा उठाया. डीएम सीआर वैद्यनाथन ने यहां टेबल टेनिस के लिए अपनी ओर से ग्रान्ट भी दिया.
दिनोंदिन क्लब के साथ लोग जुड़ते गए और इसके क्रियाकलापों में तेजी आने लगी. इसे देखते हुए सदस्यों ने विचारोपरान्त क्लब के लिए भवन बनवाने का प्रस्ताव डीएम वैद्यनाथन के समक्ष रखा. डीएम ने प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए मोतीझील के किनारे कोई सरकारी जमीन तलाशने को कहा. खोजबीन के उपरान्त मोतीझील के किनारे बड़े-बड़े गड्ढों से भरे एक भूखंड का चयन किया गया, जहां शहर का मैला व कचरा फेंका जाता था. वह स्थल निलही कोठी के रूप में जाना जाता था. यह वही जगह थी, जहां कभी नील तैयार की जाती थी. बड़े-बड़े पत्थर व पक्का प्लेटफार्म निलही कोठी द्वारा चम्पारण के किसानों के शोषण की गवाही देते थे.
डीएम बैद्यनाथन ने उक्त भूमि पर क्लब के लिए भवन निर्माण की स्वीकृति दे दी. साथ ही भवन निर्माण के लिए पांच हजार रुपए की सरकारी राशि सहायता स्वरूप प्रदान की. 14 जनवरी 1958 को डीएम बैद्यनाथन ने रोईंग क्लब के भवन का शिलान्यास किया. सबसे बड़ी समस्या थी भूखंड के गड्ढों को भरना. इसी वर्ष प्राकृतिक आपदा से पूरा बिहार जूझ रहा था. सूखा से चारो तरफ हाहाकार मचा था. सूखा पीड़ितों की सहायता के लिए सरकार द्वारा काम के बदले अनाज देने की योजना लाई गई. जिलाधिकारी बैद्यनाथन के सहयोग से इसी योजना द्वारा गड्ढों को भरने का कार्य पूरा कराया गया. काम के बदले अनाज योजना और पांच हजार रुपए के सरकारी सहयोग के साथ जिलावासियों से प्राप्त चन्दे की राशि से कुल 9 माह में भवन निर्माण व परिसर समतल करने का कार्य पूर्ण हुआ.
इसमें कुल 9,500 रुपए की राशि व्यय हुई और इसके बाद रोईंग क्लब अपने पूर्ण अस्तित्व में आ गया. इसके बाद यहां बैडमिंटन, वालीबॉल, शतरंज, कैरम, टेबल टेनिस जैसे खेलों के अलावा विशेष रूप से नौकायन शुरू किया गया. प्रतिवर्ष इन खेलों की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाने लगी. यहां पर प्रखंड की ओर से एनइएस कप उच्च विद्यालय फुटबॉल प्रतियोगिता भी कराई जाती रही. 1959 में पहली बार यहां क्लब स्तर पर क्रिकेट शुरू हुआ. रोईंग क्लब की 19 सदस्यीय क्रिकेट टीम नेपाल के निमंत्रण पर काठमांडू भी गई और विजयी होकर लौटी.
1961 में क्लब परिसर में एक औद्योगिक एवं कुटीर उद्योग पर आधारित प्रदर्शनी के आयोजन का शुभारम्भ किया गया, जो कई वर्षों तक चलता रहा. क्लब परिसर में संगीत शिक्षण की भी व्यवस्था की गई थी, जिसमें नगर के संगीत प्रेमी बच्चे संगीत की शिक्षा लेने आते थे. संगीत शिक्षा के लिए क्लब में हारमोनियम, तबला, वायलिन, सितार आदि विभिन्न वाद्य यंत्र खरीदे गए. स्वर्गीय गजाधर प्रसाद सिंह की प्रेरणा से क्लब में गांधी स्वाध्याय केन्द्र की स्थापना हुई. जिसका उद्घाटन 30 अप्रैल 1963 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल महामहिम एमएस अयंगर ने किया था. स्वाध्याय केन्द्र में गांधी जी से सम्बन्धित पुस्तकों का संग्रह किया गया था. स्वास्थ्य क्षेत्र में भी क्लब द्वारा कई कार्य किए गए, जिसमें मोतियाबिन्द का मुफ्त ऑपरेशन शिविर मुख्य था. समय-समय पर क्लब की ओर से देश के विशिष्ट व्यक्तियों को भी आमंत्रित किया जाता रहा.
महामहिम राज्यपाल श्री अयंगर, मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह, उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम, बिहार सरकार के मंत्री दीपनारायण सिंह सरीखे बड़े राजनीतिज्ञ और विद्वानों के आने से क्लब की प्रतिष्ठा तो बढ़ी ही, कई प्रकार के लाभ भी हुए. इतनी अच्छी विरासत होने के बावजूद, रोईंग क्लब का वर्तमान दीनहीन दशा में है. हालांकि संस्था रूप में अब भी ये जीवित है, वर्तमान में विजय कुमार अग्रवाल इसके सचिव हैं, लेकिन जिन उद्देश्यों को लेकर इसाकी स्थापना की गई थी, वो आज फलीभूत होता नहीं दिख रहा. बीते दिनों स्थानीय विधायक और बिहार सरकार के पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार और जिलाधिकारी रमण कुमार ने रोईंग क्लब और मोतिझील का निरीक्षण किया. मंत्री श्री कुमार ने रोईंग क्लब और मोतीझील दोनों के संरक्षण के लिए योजना बनाने की बात कही. अब देखने वाली बात ये होगी कि मंत्री जी का वादा रोईंग क्लब के लिए कितना कारगर होता है.