भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह गाज़ियाबाद के सांसद हैं, लेकिन इस बार वह यहां से नहीं, बल्कि लखनऊ से चुनाव लड़ेंगे. राजनाथ के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी ने इस बार पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन जनरल की उम्मीदवारी का विरोध पार्टी कार्यकर्ता ही कर रहे हैं. उनका आरोप है कि स्थानीय कार्यकर्ताओं को नज़रअंदाज़ कर किसी बाहरी को टिकट देना उचित नहीं है. हालांकि, भाजपा नेताओं को यकीन है कि चुनाव से पहले क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं की नाराज़गी दूर हो जाएगी.
लोकसभा चुनाव में टिकटों के वितरण, स्थानीय और बाहरी उम्मीदवारों को लेकर विवाद वैसे तो सभी पार्टियों में देखा जा रहा है, लेकिन अन्य दलों के मुक़ाबले भारतीय जनता पार्टी में यह समस्या कुछ अधिक है. पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी ने तमाम कयासों पर विराम लगाते हुए पूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल वी के सिंह को गाज़ियाबाद से उम्मीदवार घोषित कर दिया. हालांकि, गाज़ियाबाद सीट पर भाजपा की ओर से कई दावेदारों की चर्चा हो रही थी. ख़ासकर मुजफ्फरनगर दंगे में आरोपी और सरधना से भाजपा विधायक संगीत सोम, बालेश्वर त्यागी एवं अतुल गर्ग उनमें प्रमुख नाम थे. बालेश्वर त्यागी गाज़ियाबाद से विधायक भी रह चुके हैं. उनके समर्थकों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से उन्हें टिकट न देकर जनरल वी के सिंह को टिकट देना न्यायोचित नहीं है.
गाज़ियाबाद सीट को लेकर भाजपा में जारी उठापटक और कार्यकर्ताओं में नाराज़गी की असल वजह मौजूदा सांसद एवं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह का इस सीट से लड़ने से इंकार करना है. जैसी उम्मीद की जा रही थी कि राजनाथ सिंह गाज़ियाबाद की बजाय लखनऊ से लड़ेंगे, यह बात टिकट की घोषणा के बाद साबित भी हो गई. गाज़ियाबाद में 10 अप्रैल को चुनाव होने हैं. यहां भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जनरल वी के सिंह का मुक़ाबला कांग्रेस के उम्मीदवार राज बब्बर, समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधन रावत, आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार शाजिया इल्मी और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार मुकुल उपाध्याय से होगा. भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि कांग्रेस विरोधी छवि वाले जनरल सिंह गाज़ियाबाद में कांग्रेस के राज बब्बर और आम आदमी पार्टी की शाजिया इल्मी समेत सभी विरोेधी पार्टियों पर भारी पड़ेंगे. गाज़ियाबाद लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण की बात करें, तो यहां क्षत्रिय, त्यागी, वैश्य और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक है. कांग्रेस ने आगरा के मौजूदा सांसद राज बब्बर को गाज़ियाबाद सीट से लड़ाने का ़फैसला शायद पंजाबी मतदाताओं के मद्देनज़र लिया है. पार्टी को उम्मीद है कि राज बब्बर की वजह से पंजाबी मतदाताओं का रुझान उसकी तरफ़ बढ़ेगा. हालांकि, इसकी अधिक संभावना फ़िलहाल नज़र नहीं आती. सियासी जानकारों की मानें, तो गाज़ियाबाद सीट से राज बब्बर को खड़ा करने के पीछे उनकी पुरानी छवि रही है. ग़ौरतलब है कि राज बब्बर दादरी आंदोलन से जुड़े रहे हैं. रिलायंस कंपनी के ख़िलाफ़ यह आंदोलन उन दिनों काफी सुर्खियों में रहा था, लेकिन देशव्यापी भ्रष्टाचार और महंगाई की वजह से चौतरफ़ा घिर चुकी कांग्रेस को राज बब्बर की इस छवि से विशेष फ़ायदा होगा, ऐसा नहीं लगता. वहीं, आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार शाजिया इल्मी को लेकर पार्टी का मानना है कि उनके पक्ष में मुस्लिम मतदाता गोलबंद होंगे. शाजिया आम आदमी पार्टी की प्रमुख नेता हैं. दिल्ली विधानसभा चुनाव में शाजिया आरके पुरम सीट से चुनाव लड़ी थीं, लेकिन महज कुछ सौ वोटों से हार गई थीं. शाजिया की उम्मीदवारी को लेकर भी पिछले दिनों आम आदमी पार्टी में काफ़ी घमासान मचा था. आम आदमी पार्टी शाजिया को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ रायबरेली से चुनाव लड़ाना चाहती थी, लेकिन शाजिया रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने पर राजी नहीं हुईं. इस बाबत मीडिया में भी उनकी नाराज़गी खुलकर सामने आ गई. सूत्रों की मानें, तो शाजिया इल्मी दिल्ली की किसी सीट पर चुनाव लड़ना चाहती थीं.
कुल मिलाकर गाज़ियाबाद संसदीय सीट पर इस बार बेहद रोचक मुकाबला होने की संभावना है. ऐसे में क्या जनरल वी के सिंह गाज़ियाबाद सीट पर अपना दखखम दिखा पाएंगे, क्या राज बब्बर को चुनाव में दादरी आंदोलन का फ़ायदा मिलेगा, क्या शाजिया इल्मी को अपनी तेज़तर्रार छवि का लाभ मिलेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार पूरे देश की निगाह गाज़ियाबाद सीट पर भी रहेगी.
जनरल सिंह और उनकी उम्मीदवारी
गाज़ियाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे भाजपा उम्मीदवार और पूर्व थलसेना प्रमुख जनरल वी के सिंह कुछ दिनों पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए. हालांकि, उनके बारे में काफ़ी पहले से यह कयास लगाए जा रहे थे कि वह भाजपा में शामिल होंगे. पार्टी ने जनरल सिंह को भले ही गाज़ियाबाद की सीट से मैदान में उतारा हो, लेकिन उनकी उम्मीदवारी की चर्चा राजस्थान के झुंझनू और जोधपुर के लिए भी हो रही थी. जनरल वी के सिंह सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े रहे हैं और राजस्थान में भारतीय सेना में शामिल लोगों की संख्या अधिक है. इसके अलावा जनरल वी के सिंह एक ईमानदार छवि के व्यक्ति रहे हैं. सैन्य प्रमुख रहते हुए उन्होंने सेना के सवाल पर यूपीए सरकार पर जिस तरह निशाना साधा, उनके उस साहस की चर्चा पूरे देश भर में हुई थी.