जी वेंकटेश

सब्र करना हमने चंचल नदिया से सीखा है,

सब्र करना हमने अविरल नदिया से सीखा है,

उछलती भी रही, चलती भी रही

कभी विचलित हिरण की तरह,

कभी लंबी सदियों की तरह,

कभी ऊपर से शांत, लेकिन अंदर से बहती भी रही

उसको पता था, विशाल समंदर भी शांत है

किनारों पर कई बार उसने लहरों से दस्तक दी है

बरसों  के बिछड़े, पिया को उसने ने आज देखा है

बेसुध अपने पिया की बाहों में हमने पिघलते देखा है

बरसों बाद समंदर से नदी को मिलते देखा है।

आज समंदर को नदीया की प्यास बुझाते देखा है।

सब्र करना हमने चंचल नदिया से सीखा है।

आज समंदर को नदीया की प्यास बुझाते देखा है।

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