पीलीभीत के डीएम अखिलेश कुमार मिश्र ने जब मां गोमती के उद्घोष के साथ फावड़ा चलाकर ऐतिहासिक श्रमदान का शुभारम्भ किया, तो लोग बड़ी संख्या में अभियान से जुड़ते गए. उन्होंने स्थानीय जनता से आह्वान किया तो आसपास की तमाम ग्राम पंचायतें इस कार्य में समय और श्रमदान के लिए सहर्ष तैयार हो गईं. जिलाधिकारी के सामने आज कोई गोमती उद्गम स्थल को आकर्षक रूप देने के लिए कोई पंचशील वाटिका बनाने की मांग कर रहा है, तो कोई तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के लिए इंतजामात कराने का अनुरोध कर रहा है.
नदियों के किनारे अनगिनत सभ्यताएं पुष्पित-पल्लवित हुई हैं. जल से ही जीवन है, इसे समझना जिंदगी के लिए जरूरी है. पीलीभीत के डीएम डॉ. अखिलेश कुमार मिश्र नदी के उसी प्राणतत्व के भाव को जगाने का काम कर रहे हैं, ताकि गंगा की सहायक गोमती नदी का प्रवाह सुनिश्चित कर उसे पुनर्जीवित किया जा सके.
किसी भी नदी के अविरल प्रवाह में ही जीवंतता होती है. नदी के किनारे बसने वाले लोग न सिर्फ उस मधुर संगीत को बेहतर तरीके से सुन पाते हैं, बल्कि उसके साथ गाते और गुनगुनाते भी हैं. नदी तीरे मनाए जाने वाले तीज-त्यौहार से हमारी परंपरा और संस्कार सुसज्जित हैं. हमारी संस्कृति नदी को मां कहना सिखाती है. लेकिन आज मां गोमती खुद प्यासी हैं. एक दौर था जब गोमती किनारे-किनारे जंगल की हरियाली थी. लेकिन स्वार्थी मनुष्यों ने हरियाली को नष्ट कर दिया. भूमाफियाओं ने नदी के किनारों पर कब्जा जमा लिया. कल-कारखानों का जहरीला कचरा नदी में गिराकर जीवनी शक्ति नष्ट कर दी. गंगा की तरह ही उसकी सहायक नदी गोमती भी मृतप्राय होकर रह गई.
लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन का आधार गोमती केवल लखनऊ में ही नहीं, बल्कि अपने उद्गम स्थल पर भी विलुप्त अवस्था में ही है. जिस नदी में कभी बच्चे गोते लगाया करते थे, महिलाएं पूजा करती थीं, संतजन पावन मंत्रों के साथ आचमन किया करते थे और न जाने कितने लोगों के रोजी-रोजगार के साथ वह तमाम प्रकार के जलीय जीव-जंतुओं का बसेरा हुआ करती थी, आज वह भ्रष्टाचार और इंसानी स्वार्थ के चलते नाले में तब्दील हो गई है. जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोमती नदी जाकर भ्रष्टाचार की परते उधेड़नी शुरू की, तो लोगों की उम्मीद जगी कि शायद गोमती जी उठे.
अभी हम बात करते हैं, प्रदेश की राजधानी से तकरीबन 250 किलोमीटर दूर गोमती के उद्गम स्थल माधोटांडा की. यहां इन दिनों काफी चहल-पहल है. पौ फटते ही आसपास के गांवों से लोगों की भीड़ इस पावन स्थान पर जुटने लगती है. यहां पर कोई गोमती के भीतर कचरा साफ करता हुआ, तो कोई उसके किनारे हो रहे सौंदर्यीकरण के लिए, तो कोई गोमती के अविरल प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए हो रही खुदाई कार्य के लिए श्रमदान करता नजर आता है. श्रम और सेवा के इस समागम में पीलीभीत के जिलाधिकारी डॉ. अखिलेश कुमार मिश्र स्थानीय जनता से बातें करते हुए तो कभी लापरवाह सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को हिदायत देते नजर आते हैं. उनकी कोशिश लोगों की जिंदगी और आस्था से जुड़ी पावन गोमती को पुनर्जीवित कर इसे धार्मिक पर्यटन के नक्शे पर जगह दिलाने की है.
काम कर गई डीएम की अपील
पीलीभीत के डीएम अखिलेश कुमार मिश्र ने जब मां गोमती के उद्घोष के साथ फावड़ा चलाकर ऐतिहासिक श्रमदान का शुभारम्भ किया, तो लोग बड़ी संख्या में अभियान से जुड़ते गए. उन्होंने स्थानीय जनता से आह्वान किया तो आसपास की तमाम ग्राम पंचायतें इस कार्य में समय और श्रमदान के लिए सहर्ष तैयार हो गईं. जिलाधिकारी के सामने आज कोई गोमती उद्गम स्थल को आकर्षक रूप देने के लिए कोई पंचशील वाटिका बनाने की मांग कर रहा है, तो कोई तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के लिए इंतजामात कराने का अनुरोध कर रहा है. इस पावन तीर्थ का कायापलट करने के लिए लोगों ने खुद ही अपने लिए काम बांट लिए हैं. किसी ने आस-पास के गांवों में नदी को पुनर्जीवित करने के लिए जन-जागरण की जिम्मेदारी संभाली है, तो किसी ने यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कराए जा रहे काम में हाथ बंटाने का जिम्मा उठाया है.
यहां आने वाला तीर्थयात्री भी यह सब देख कर इस नेक काम में कुछ न कुछ आर्थिक मदद देकर जा रहा है. गोमती किनारे स्थित दुर्गानाथ मठ में सन 1989 से पूजा-पाठ करा रहे महंत रतनगिरि कहते हैं कि जैसे ही झील में जमी रेत-मिट्टी हट जाएगी, वैसे ही उद्गम स्थल के बाकी जल स्रोत भी खुल जाएंगे और नदी में पानी की कमी नहीं रहेगी. वहीं पूर्व प्रधान धनीराम कश्यप कहते हैं कि सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन किसी ने यहां की सुध नहीं ली. लेकिन मुख्यमंत्री ने गोमती नदी को लेकर एक्शन लिया है, इससे उम्मीदें जगी हैं. धनीराम को विश्वास है कि योगी आदित्यनाथ संत होने के नाते इस जगह कायाकल्प कराने के लिए जरूर आएंगे.
कहानी सुना कर समझा रहे हैं अपनी बात
माधोटांडा में आमजन से मुखातिब होते हुए जिलाधिकारी अखिलेश कुमार मिश्र उन्हें कहानी के जरिए समझाने की कोशिश करते हैं. वे सुनाते हैं कि एक बार आग लगने पर सभी अवाक देख रहे थे, पर एक चिड़िया अपनी चोंच में एक-एक बूंद जल लाकर आग पर डाल रही थी. एक कौए ने कटाक्ष किया कि इतनी पानी से क्या आग बुझेगी? चिड़िया ने कहा कि आग भले न बुझे, लेकिन जब आग बुझाने का इतिहास लिखा जाएगा तो उसका नाम भुलाया नहीं जाएगा. डीएम बार-बार लोगों से एकजुट होकर गोमती की सफाई में मदद करने का आह्वान कर रहे हैं. वे आम लोगों को मिशन का उपहास करने वालों की उपेक्षा करके पावन कार्य में जी-जान से जुटने की अपील करते हैं. डीएम गोमती नदी के किनारे बसे ग्रामीणों से अधिक से अधिक पौधे लगाने की अपील भी कर रहे हैं.
सरकारी मदद की नहीं है दरकार
माधोटांडा में बड़ी संख्या में जुटे लोगों को देखकर यह आसानी से समझा जा सकता है कि गोमती को लेकर जनमानस अब जाग गया है और उसके पुनरुद्धार को लेकर चारों ओर चर्चा हो रही है. गोमती पर ढाए गए जुल्म के खिलाफ अब लोग मुखर भी हो रहे हैं और उसके पुनर्जीवन के लिए आगे भी आ रहे हैं. सहभागिता का ही नतीजा है कि गोमती के उद्गम स्थल के पुनरुद्धार का कार्य तेजी से हो रहा है. फुलहर झील से जलकुंभी साफ कर दी गई है. अब मुख्य उद्गम स्थल पर गोमती का पानी साफ दिखने लगा है. साथ ही इस पावन तीर्थ स्थल पर मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ रंगाई-पुताई का कार्य जारी है.
साथ ही सर्वमंगल की कामना लिए दैनिक पूजा पाठ एवं आरती भी हो रही है. माधोटांडा क्षेत्र में गोमती उद्गम स्थल पर भगवान शिवशंकर के मंदिर के अलावा यज्ञशाला भी है. यहां हर साल गंगा स्नान के मौके पर मेले का आयोजन भी किया जाता है. गोमती उद्गम स्थल की फुलहर झील में काफी तादाद में कछुए मौजूद हैं. पीलीभीत जनपद के माधोटांडा कस्बे के पास (गोमत ताल) फुलहर झील से शुरू होकर गोमती नदी शाहजहांपुर, लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, जौनपुर होते हुए 960 किमी का सफर तय करके वाराणसी के पास गंगा में मिलती है.
हैलो हाय छोड़िए, जय गोमती मइया बोलिए
पीलीभीत के डीएम अब स्थानीय लोगों को हैलो हाय छोड़ कर जय गोमती बोलने की अपील कर रहे हैं. उनकी यह अपील कारगर हो रही है. लोग फोन पर आम बातचीत से पहले बिल्कुल वैसे ही जय गोमती मइया बोलने लगे हैं, जैसे ब्रजमंडल में अभिवादन के लिए राधे-राधे कहते हैं. अभी यह शुरुआत है, लेकिन सोशल मीडिया के कमेंट बॉक्स में भी लोग जय गोमती बोल कर लोगों का अभिवादन कर रहे हैं. इस अभियान की खास बात यह है कि इसमें सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं ली जा रही है. सब कुछ जन सहयोग से चल रहा है. स्थानीय लोगों का विश्वास है कि यदि ऐसी ही प्रगति रही, तो एक बार फिर उन्हें गोमती के बहते जल का कल-कल संगीत सुनने को मिलेगा.
सोलह श्रृंगार से सुशोभित होगी गोमती, बहेगी निर्मल अविरल : अखिलेश
कोई उन्हें गोमती पुत्र तो कोई उन्हें गोमती का भागीरथ बताता है. पीलीभीत के लोगों की उम्मीद बन कर उभरे जिलाधिकारी डॉ. अखिलेश कुमार मिश्र ने गोमती उद्गम स्थल के पुनरुद्धार का जो संकल्प लिया है, वह सरकार की आर्थिक मदद के बिना साकार हो रहा है. उनके साथ हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं…
प्रश्नः गोमती नदी को लेकर आपने क्या पहले से ही कोई योजना बना रखी थी?
तकरीबन दो साल पहले मैं पीलीभीत आब्जर्वर बनकर आया था. उस समय मैंने सोचा भी नहीं था कि मैं यहां कभी डीएम बन कर आउंगा. यहां आने पर जब मैं गोमती नदी के उद्गम स्थल पर एक कार्यक्रम में भाग लेने गया तो वहां के लोगों में उस पवित्र स्थान के प्रति काफी उत्साह पाया. उसी उत्साह को मैंने आधार देने का काम किया. अब यहां की जनता चाहती है कि गोमती नदी का उद्धार हो और वह अविरल बहे.
प्रश्नः आपको क्या चुनौतियां मिलीं?
सबसे पहले तो गोमती के उद्गम स्थल पर जल की कमी और गंदगी से सामना हुआ. साथ ही ग्रामीणों को जागरूक करना भी बड़ा काम था. उन्हें नदी की पवित्रता और घर की पवित्रता समझाई गई. उन्हें पेड़ों को बचाने के लिए प्रेरित किया गया. यहां गोमती नदी का 40 किलोमीटर का ट्रैक लगभग पूरा बंद पड़ा था, उसे खाली कराने के आह्वान पर आमजन ने साथ दिया और जिनका कब्जा था वे स्वेच्छा से हट गए. लोगों ने खुद ही अपनी फसल कटवा दी और तकरीबन 10 हजार लोग नदी का पाट खोलने के लिए आगे आए. इसी तरह गोमती उद्गम स्थल पर जो मठ है, उस पर भी लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा था. उसे भी खाली कराया गया. इसके बावजूद गोमती पुनरुद्धार के अभियान को सुव्यवस्थित करने का बड़ा प्रश्न बरकरार है. अभी एक छोटी सी समिति बनाई गई है, जो धीरे-धीरे आकार ले रही है. जिस दिन लोगों को गोमती की पवित्रता बनाए रखने का स्वाभाविक एहसास हो गया, उसी दिन इस स्थान का विकास हो जाएगा.
प्रश्नः कार्य की मौजूदा स्थिति और गति क्या है?
गोमती के पुनरुद्धार का काम अच्छा चल रहा है और शीघ्र ही हम शारदा नहर से यहां तक पानी लाने में सफल हो जाएंगे. उद्गम स्थल पर जल के जो स्रोत बंद पड़े हुए हैं, उन्हें वैज्ञानिकों की मदद से दोबारा खोलने का प्रयास कर रहे हैं. आम लोगों का अच्छा सहयोग मिल रहा है. जबकि सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं ली जा रही है.
प्रश्नः सरकार से आर्थिक मदद न लेने का कारण?
सरकारी मदद तो है, लेकिन आर्थिक मदद नहीं ली जा रही है. नहर खोदने का काम सरकार की तरफ से ही हुआ. कुछ काम हमने मनरेगा के तहत करवाया. गोमती की सफाई के लिए अलग से धन की मांग सरकार से नहीं की गई है. सम्बद्ध सरकारी विभागों और कुछ गैरसरकारी माध्यमों की मदद से काम हो रहा है. सरकार गोमती पुनरुद्धार में आर्थिक मदद भी करना चाहती है, लेकिन हम स्वेच्छा से इस कार्य को मिलजुलकर कर रहे हैं. सरकार पैसा लगा भी दे, तब भी जनसहयोग न मिले तो योजना सफल नहीं होगी.
प्रश्नः अभियान के जरिए इस स्थान को पर्यटन से जोड़ने की भी कोई योजना है?
राजधानी लखनऊ में गोमती महोत्सव की शुरुआत मेरे द्वारा ही की गई थी. यहां भी कुछ ऐसे कार्यक्रम शुरू करने की योजना है. यहां दैनिक आरती का कार्यक्रम शुरू किया जा चुका है. जिसमें हर रोज बड़ी संख्या में महिलाएं व बच्चे शामिल होते हैं. इसका प्रचार-प्रसार भी हो रहा है. यहां पर धार्मिक संस्कार कराए जाने की व्यवस्थाओं में सुधार किया जा रहा है. स्कूल के बच्चों को भी जागरूक किया जा रहा है, ताकि वे अपने अभिभावकों के साथ गोमती उद्गम स्थल पर आएं और यहां का महत्व समझें. हम इससे जुड़ी फिल्म भी बनवा रहे हैं, जो स्कूल-कॉलेजों में मुफ्त में दिखाई जाएंगी. धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हमने यहां बसें शुरू करा दी हैं. टाइगर रिजर्व की गाड़ियां भी अब इस स्थान से होकर गुजरेंगी. साथ ही हमने सरकार से इसे धार्मिक पर्यटन स्थल घोषित करने के लिए भी कहा है.
प्रश्नः सामाजिक संगठन किस तरह मदद कर रहे हैं?
मेरे पास सिखों का एक गुट आया था, वे भी इस कार्य में हमारी मदद करना चाहते हैं. वे स्वेच्छा से नदी के किनारे पेड़-पौधे लगाना चाहते हैं. मैंने यहां के 16 ग्राम पंचायतों को पेड़-पौधे लगाने की जिम्मेदारी सौंपी है. जिस तरह देवी मां को सुशोभित करने के लिए सोलह श्रृंगार किया जाता है, उसी तरह मां गोमती को संवारने के लिए सोलह राजस्व ग्राम मिलकर काम करेंगे. नदी किसी धर्म की नहीं होती है. वह सभी के लिए समान रूप से बहती है, जीवन प्रदान करती है, लोगों की प्यास बुझाती है. उसे बचाने की जद्दोजहद सबको मिल कर करनी चाहिए.