रिश्तों की माला का टूटना भी जरूरी था
जो कमजोर थे रूठ कर टूट गए
जो हल्के थे वह दूर छीटक् गए
जो बचे थे उनको समेटना भी जरूरी था
रिश्तों की माला का टूटना भी जरूरी था

बस अब एक प्रेम रूपी डोर मेरे हाथों में था
जो सच्चे थे वह समझ कर रुक गए
जो डोर से अलग हुए बिना टिक गए
उस डोर में उनको पिरोना भी जरूरी था
रिश्तों की माला का टूटना भी जरूरी था

अब फ़िर समेटा पिरोया खुला हुआ एक संसार है
जरा सी छोटी हैं किन्तु मजबूत मोतियों का हार हैं

इस खुली बाहों समान हार को फिर से
बांध ही दिया तुमने ने प्यार की गांठ से

सभी मोतियों को फ़िर बांधना जरूरी था
रिश्तों की माला का टूटना भी जरूरी था

ऐसा गिरना, टूटना, बिखरना, छिटकना
समेटना, जोड़ना, पिरोना, और बाँधना

हमें बार बार, हर बार ये समझा रहा था
रिश्तों की माला का टूटना भी जरूरी था

लेखक
जी वेंकटेश
भोपाल

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