भीष्म साहनी और विचारधारा ।
महान साहित्यकार और प्रगतिशील आंदोलन के अग्रणी योद्धा भीष्म साहनी जी का अवदान आज भी प्रेरक तथा मार्गदर्शक है ।अपने रचनात्मक दायित्व का निर्वहन कर जन विरोधी ,प्रतिगामी , फासीवादी प्रवृत्तियों का प्रतिरोध करने हेतु रचनाकारों ,संस्कृति कर्मियों को भीष्म साहनी जी के प्रेरक अवदान से ऊर्जा मिलती है। समझ और चेतना भी विकसित होती है ।
भीष्म साहनी जी का अवदान विचारधारा के महत्व को प्रतिपादित करता है ।विचारधारा के बिना भीष्म साहनी जी का स्मरण निरर्थक है ।भीष्म साहनी जी विचारधारा के लिए हमेशा सजग और प्रतिबद्ध रहे ।
साहित्य में विचारधारा के महत्व को प्रतिपादित करते हुए भीष्म साहनी जी ने कहा था ,
विचारधारा यदि मानव मूल्यों से जुड़ती है तो उसमें विश्वास करने वाला लेखक अपनी स्वतंत्रता खो नहीं बैठता ।विचारधारा उसके लिए प्रेरणा स्त्रोत होती है ,उसे दृष्टि प्रदान करती है ,उसकी संवेदना में ओजस्विता भरती है ।साहित्य में विचारधारा की भूमिका गौण नहीं है ,महत्वपूर्ण है ।विचारधारा के वर्चस्व से इंकार का सवाल ही कहां है ।विचारधारा ने मुक्तिबोध की कविता को प्रखरता दी । ब्रेख्त के नाटकों को अपार ओजस्विता दी ।यहां विचारधारा की वैसी ही भूमिका रही है ,जैसी कबीर की वाणी में , जो आज भी लाखो लाख भारत वासियों के होंठो पर है ।
भीष्म साहनी जी का यह कथन अविस्मरणीय और प्रेरक है ।विचारधारा के बिना कोई भी सृजन निरर्थक है ।