महान साहित्यकार प्रेमचंद जी ने कहा था कि लेखक का कद सबसे बड़ा होता है ।इस कद की गरिमा की रक्षा कीजिए ।
हम लोग प्रेमचंद जी को तो नहीं देख सके ,लेकिन हरिशंकर परसाई जी को देखा ,सुना और समझा है ।लेखक का कद क्या होता है ,लेखक की हस्ती क्या होती है ,यह परसाई जी के रूप में आज भी महसूस होता है ।
होश संभालते ही परसाई जी को पढ़ते रहे ,उनके बारे में सुनते रहे ।परसाई जी से लगभग 7 बार मिलना जीवन की कुछ उपलब्धियों में शामिल है ।पांच बार तो परसाई जी से जबलपुर में उनके घर पर ही भेंट करने का अवसर मिला ।उनसे घर में मिलते समय कभी परसाई जी के अभिन्न मित्र प्रोफेसर अक्षय कुमार जी जैन तो कभी मायाराम सुरजन जी साथ होते थे ।हम तो प्रायः श्रोता और दर्शक के रूप में इन मित्रों की बातें बड़े ध्यान से सुनते थे ।इन मित्रों की बातचीत से उनके समय को जाना और समझा ।गजानन माधव मुक्तिबोध जी से जुड़े कितने ही प्रसंग सुनने को मिले ,जो अभी तक अप्रकाशित हैं ।
परसाई जी जो लिखते थे ,वह सहज ही उनकी बातचीत में अभिव्यक्त होता था । उस समय देशबंधु अखबार में प्रति सप्ताह पूछिए परसाई से नामक स्तंभ प्रकाशित होता था ।तत्कालीन स्थितियों और परिदृश्य को लेकर पाठकों के प्रश्नों के जवाब परसाई जी जिस सहजता से समझते हुए देते थे , उससे हम सब की समझ विकसित हुई । परसाई जी अपने समय के प्रतिनिधि थे ।साहित्यिक , सांस्कृतिक परिदृश्य के साथ ही राजनीति ,प्रशासन ,पुलिस ,रोजमर्रा के जन जीवन में अर्थात हर जगह परसाई जी का कद महसूस होता था ।
पूरे जबलपुर शहर को यह मालूम था कि परसाई जी का घर कहां है ।रिक्शे वाले से सिर्फ यह कहना ही पर्याप्त होता था कि परसाई जी के घर जाना है ।रिक्शे वाला बहुत सम्मान के साथ परसाई जी के घर पहुंचा देता था । सांप्रदायिकता ,कट्टरपंथी उन्माद ,जातिवाद ,पूंजीवाद ,भ्रष्टाचार ,मौकापरस्ती जैसे कितने ही मुद्दों पर परसाई जी ने प्रतिरोध करते हुए अभिव्यक्ति के खतरे उठाए ,उससे हम आज भी सीखते हैं ।उनके अवदान के पुनर्पाठ से हमें ऊर्जा मिलती है ।प्रतिरोध मजबूत होता है ।हम आज भी परसाई जी को याद करते हुए उनसे सीखते हैं ।