गत दो हफ्ते से ज्यादा समय से मेरे मन में बार बार एक टिस चुभ रही है ! और यही लग रहा है ,की हमारी संवेदन शीलता थोथी होते जा रही हैं ! आज साने गुरुजिकी 74 वीं पुण्यतिथि है ! आजही के दिन 74 साल पहले उन्होंने 11 जून 1950 के दिन आत्महत्या कर ली थी ! क्योकिं आजादी को तिन साल हो गये थे ! लेकिन आज भी दलितोके,आदिवासियो एवं महिलाओ के ऊपर होनेवाले अत्याचार कम होनेकी जगह बढते जा रहे हैं ! दलितोके के साथ वही छूआछूत बदस्तूर जारी है ! मंदीर में कुत्ते,बिल्लियाँ अरामसे जा सकती है ! लेकिन दलितोको मनुष्य होने के बावजूद प्रवेश निषिद्ध है !
1947 को आजादी तो मिली, लेकिन देश का बटवारे के साथ मीली ! और दूनियाकी सबसे बड़ी त्रासदी, दो करोड़ से भी अधिक लोगों को विस्थापन का शिकार होना पड़ा ! और लाखो की संख्या में मारे गए ! और उसिमे महात्मा गाँधी की हत्या कर दी गयी ! यह सब पीडा साने गुरूजी जैसे विलक्षण संवेदनशिल व्यक्तित्व के लिए असहनीय हो गई थी ! इसलिए वो इन्सोमिनीया के शिकार हो गए थे ! और इसी लिए सोनेके लीये नींद की गोलियां खाकर सोनेका प्रयास करते थे! और 11 जून 1950 को ज्यादा गोलियां खाकर अपने आप को समाप्त कर लिया !


आज उनके मृत्युको 74 साल हो गए हैं ! 74 सालोमे देश और दुनिया की तस्वीर को देखकर लगता है कि, यह तो पहले से भी ज्यादा बिगड़ गई है ! अमेरिका हो या भारत वंशवाद के कारण कितने लोगों की जाने ली गई हैं ? कोरोना के कहरमे अमेरिकन हो या भारतीय मरने वाले लोग कौन हैं ? साने गुरूजी जैसे संवेदनशील लोग यह सब नहीं देख सकते हैं ! हमारी अपनी संवेदनशीलता एक तो मर गई ,या हमारे मन को यह सब देखकर भी अनदेखा करने की आदत हो गई है ! हालाकि आत्महत्या यह मार्ग समस्या सुलझाने का नहीं है ! लेकिन कुछ लोग यह सब देख नहीं सकते सह नहीं सकते ! हालाकि साने गुरुजिका जन्म 24 दिसम्बर 1899 को याने 19 शती खत्म होने के एक हप्ते पहले और बीसवीं शताब्दी के आरंभ में हूआ है !
शुरुआत के 20-25 साल की जिंदगी जो पढाई के लिए छोडकर बाकी बची हुई 11 जुन 1950 तक का एक- एक क्षण देश दुनिया के लिए व्यतीत हूआ है ! साडे सात साल तो आजादीके आन्दोलन में भाग लेने के कारण जेल में गये और शिक्षण-प्रशिक्षणमे 25 साल याने 51सालों के जीवन में लगभग 20 साल का जीवन संम्पुर्ण सार्वजनिक काम करने में गया ! जिसमे मजदूर-किसान आन्दोलन और सबसे महत्वपूर्ण देशकी आजादी को समर्पित !
उनका व्यक्तिगत जीवन जैसा कुछ भी नहीं था ,उन्होँने शादी नहीं की थी, इसलिए वो कम्युन में अपने सथियोके साथही रहते थे ! उनकी खुद की प्रॉपर्टी जैसे कोई बात ही नही थी ! और इसीलिये विनोबा भावे खुद संत रहते हुए साने गुरूजी को संत कहते थे !
इसलिए महाराष्ट्र के जन मानस पर शिवाजी महाराज,ज्योतिबा फुले,और बाबा साहब आम्बेडकर के बाद ,एक साने गुरुजी ही है, जिनका प्रभाव रहा है ! बाकायदा एक पीढी उनके कारण महाराष्ट्र के सार्वजनिक जीवन में तैयार होकर निकली है ! 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में तो साने गुरुजिके केंद्रबिंदुमे शेकडो की संख्यामे लोगों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए भाग लिया है ! वह साने गुरुजिके जिवन का बहुत बड़ा पराक्रमपर्व रहा है ! एक तो काफी समय तक वे भूमिगत रहने में कामयाब रहे ! और उस समय उन्होँने अपनी पूरी ताकत झोककर अपने अनुयाइयों की मदद से बहुत बढ़िया काम किया है !

1941 में राष्ट्र सेवा दल की स्थापना की गई ,और 1950 में गुरुजी की मृत्युतक लगभग 9 वर्ष उन्होँने राष्ट्र सेवा दल को मजबूत करने के लिए भी बहुत काम किया ! वे “सेवा दल मेरा प्राण वायु हैं!” ऐसा कहा करते थे ! आज भी राष्ट्र सेवा दलके गीतोंकी संख्यामे आधेसेभी अधिक गीत गुरुजिके ही है ! मृत्युको गले लगाने के पहले 1947 गाँधी-विनोबाजिने मना करने के बावजूद पंढरपुरके विठ्ठल मंदीर में दलितोको प्रवेश दिलानेके लीये 1947 में साने गुरुजीने सबसे पहले ,पूरे महाराष्ट्र में राष्ट्र सेवा दलके कलापथक के द्वारा लोक जागरण कीया ! और उसके बाद अपना अनशन 1मई 1947 को शुरू किया ! और मंदीर के पुजारियों (मराठिमे बडगे बोलते हैं!)को गुरुजी की बात 10 दिनोके बाद माननी पड़ी ! और पंढरपूरका प्राचीन विठ्ठल मंदीर सभिके लिये मुक्त किया गया ! लेकिन इस आंदोलन में काफी नुख्ताचीनी हुई थी ,जिस कारण गुरुजी अहात हुये थे ! और गुरुजी के निराशा में एक कारण यह भी रहा होगा ! क्योंकि वह स्वतंत्र भारत में बहुत कुछ उम्मिद कर बैठे थे ! उन्हें लगता था ,की अब अंन्ग्रेज चले गये हैं ,हमारे अपने ही लोग देश का राजकाज चला रहे हैं ! तो उन्हे सच्चे मन से अपनी सरकार अपने नागरिकों को हर तरह का न्याय दिलाने में कोई भी कोताही नहीं बरतेगी ! लेकीन साल- दो -साल पहले ही से उनका मोहभंग होना शुरू हो गया था ! इस बिचमे उन्होने कर्तव्य नामका अखब़ार शुरू किया ,और जल्द ही पैसोके अभावमे फिर पहले स्वतंत्रता दिवस पर साधना नामका साप्ताहिक शुरू किया ! पर अपेक्षित परिणाम नहीं निकल रहे थे ! कर्तव्य तो बंद कर दिया ,पर साधना आज भी निकल रही है ! गुरुजिको व्यक्तिगत जीवन के सवालो की परवाह नहीं थी ! लेकिन देश,दुनिया और उसे बेहतर बनाने के लिए जो प्रयास वो कर रहे थे ! उसमे उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं दिखाइ दे रहे थे ! और यह सब कुछ उनकी सहनशीलता के लिये असहय्य हो गया होगा ! और उन्होने अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय लिया होगा !
हालाकि इस तरह के सार्वजनिक जीवन में कोई साथी अपने आप को समाप्त करता है, तो मेरी व्यक्तिगत राय है की, उसको हम लोग भी जिम्मेदार हैं ! क्योंकि हमारे साथ रहने वाले मित्र के मानस को समझने में हम कहीतोभी कम पड़ गये हैं ! हमारे सम्बंध काम- एक- काम के हो जाते हैं ! हमारे साथ जुड़ें लोगों के मन की वेदना जानना समझना हम शायद क्रांतीविरोधी समझते हैं ! इसलिए व्यक्तिगत संबंध बहुत ही केजुअल हो जाते है ! एक दूसरे के सुख-दुःख का हमे अपने क्रांतीकी धुन में मगन रहनेके कारण मस्त रहते हैं ! और साने गुरुजी जैसे बहुमोल साथी खोना पडता है ! मैं भला गुरुजिके मृत्युके तिन साल बाद पैदा होनेके बावजूद ,अपराध बोध से ग्रसित हूँ ! और यह बात आज प्रथम बार ही मैं अभिव्यक्त करने की कोशिश की है ! सार्वजनिक जीवन में और भी लोगों ने आत्महत्या की है ! और मेरी मान्यता है, की भारत का क्रिमिनल प्रोसीजर कोड कुछ भी हो, लेकिन उन आत्महत्याओ के लिए हम लोग भी जिम्मेदार हैं ! जिसमे गुरुजिकी आत्महत्या सर्वोच्च हैं ! हमने दुनियाके सबसे बेहतर लोगो में से एक को खोनेकी गलती की है !


अगर किसी साथी को मेरी बात ठीक नहीं लगी हो तो मैं माफि चाहूँगा ! लेकिन यह बोध मुझे होश आया तब से मेरे मन में चल रहा है ! मेरे वरिष्ठ मित्र वसंत पल्शीकर,गौर किशोर घोष,प्रो अम्लान दत्ता,प्रो शिव नारायण राय और बंगला नाट्यजगत के मशहूर नाटककार बादल सरकार से इस मामले में काफी विस्तार से चर्चा की है ! क्योकिं हमारे इन सब दोस्तोके आसपास ऐसी घटनाओं के होनेके कारण हमे इसपर विचार विमर्श करना पड़ा था ! और मेरी वजह से उस चर्चा में साने गुरुजिकी आत्म हत्या पर भी काफी खुलकर चर्चा हुई है !
गुरुजी कवी,लेखक,पत्रकार से लेकर समाजिक,राजनैतिक नेतृत्व देने वाले लोगों मेसे एक रहे हैं ! समाजवाद,लोकतंत्र,समतामुलक समाज के सपनो को पूरा करने की कोशिश करने वाले लोगों में से एक थे ! और इसिलिए हर तरह की विषमता को दूर करने के लिए सतत प्रयास अपनी वाणी,लेखनी का उपयोग किया, और इसी लिये उन्होने विश्व के साहित्य से लेकर भारतीय अभिजात साहित्य को मराठी भाषा में लाने का प्रयास किया है ! और उसी कारण उन्होनें आंतरभारतीकी कल्पना की थी ! हमारे इतने बड़े देशमे कितनी भाषायें हैं ! और हम लोग अपने ही देश की अन्य भाषाओं से परिचित नहीं है ! तो उनकी कोशिश रही थी की हमे हमारे देश की हमे कम्सेकम एक दो भाषाये आनी चाहिए ! और उसी लिये आन्तरभारती की कल्पना की थी ! उनके पस्चात कुछ लोग कोशिश कर रहे हैं !


मराठी भाषा में भी कवी लेखकोकी कमी नहीं है ! लेकिन हमारे आसपास की दुनिया से बेखबर अपनी अलग-अलग दुनिया बनाकर रहनेवालेही ज्यादा है ! कला के लिए कला वाली पुरानी चर्चा है ! लेकिन साने गुरुजी बहुत अच्छे कवी,लेखक के साथ बहुत अच्छे नागरिक थे !और उन्होंने अपनी प्रेरणा से और अच्छे लोगों को जिवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है ! जिसमें मधु लिमये,मधु दंड वते एस. एम. जोशी,नाना साहब गोरे,यदुनाथ थत्ते ,वसंत बापट,भाई वैद्य,डॉ. बाबा आढाव,बगाराम तुल्पुले,वसंत नगरकर प्रो. सदानंद वर्दे,सुधा वर्दे,मृणाल गोरे,प्रमिला दंडवते,जी. पी. प्रधान और महाराष्ट्र के सार्वजनिक जीवन से लेकर साहित्य जगत को समृद्ध करने में साने गुरुजिकी भुमिका बहुत बडी रही है ! आज उनकी 74 वीं पुण्य तिथि पर विनम्र अभिवादन करते हुए, जिस बेहतर दुनिया की कोशिश उन्होने की थी, उसे पूरा करने का संकल्प ही उनको सही श्रधान्जली होगी !

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