महिला सशक्तिकरण या लैंगिक समानता के किसी भी पैमाने पर यदि कोई विकासशील देश सबसे आगे है तो यह हैरानी की बात है और यदि वह देश वर्षों तक गृह युद्ध की आग में जलता रहा हो तो हैरानी में कई गुना इजाफा हो जाता है. जी हां, महिलाओं की सत्ता में भागीदारी के मामले में सबसे अग्रणी देश कोई पश्चिमी यूरोपीय देश या कोई अन्य विकसित देश नहीं, बल्कि पूर्वी मध्य अफ्रीकी देश रवांडा है. रवांडा में पिछले संसदीय चुनावों में 63 फीसद महिलाओं ने जीत का परचम लहराया. ़िफलहाल बोलीविया के साथ यह दुनिया का दूसरा देश है, जहां संसद में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है. रवांडा की इस शानदार उपलब्धि का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह देश 1990 के दशक में भयानक नस्लीय हिंसा की चपेट में था. उस हिंसा में कम से कम आठ लाख लोग मारे गए थे. वर्ष 2003 में यहां नया संविधान लागू हुआ था, जिसमें देश की संसद में महिलाओं के 30 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रखा गया था. उसी वर्ष हुए चुनावों में वहां 48.8 फीसद महिलाएं चुन कर संसद पहुंची थीं. उसके बाद 2013 के चुनाव में यह आंकड़ा 64 फीसद तक पहुंच गया. इसकी वजह यह बताई गई कि वहां एक दशक तक चले गृह युद्ध में अधिकतर पुरुष मारे गए थे. नतीजा यह हुआ कि यहां महिलाओं की संख्या 70 फीसद हो गई. इतनी बड़ी संख्या के बावजूद संसद में महिलाओं की भागीदारी केवल 10 से 15 फीसद तक सीमित रही. लिहाज़ा इस लैंगिक असमानता को मिटाने के लिए रवांडा सरकार ने 1990 के दशक के आखिर में एक कानून बनाया, जिसके तहत महिलाएं भी जायदाद में हिस्सेदार हो सकती थीं. इस कानून ने वहां महिलाओं को एक दबाव समूह (प्रेशर ग्रुप) की तरह खड़े होने के लिए प्रेरित किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि आज वहां संसद में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या अधिक है. यही नहीं, लैंगिक समानता ने देश के विकास में भी अहम्‌ भूमिका निभाई है. आज रवांडा अपनी अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण में जुटा है. गरीबी और नाबराबरी की खाई कम करने में रवांडा सरकार की कामयाबी के लिए विश्व बैंक ने भी उसकी तारीफ की है. ज़ाहिर है इस कामयाबी में उस देश की महिलाओं का भी बहुत बड़ा योगदान है.

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