कभी-कभी हिंसा जरूरी. इस शिर्षक से आज के दैनिक नवभारत के प्रथम पृष्ठपर खबर देख कर उत्सुकता हुई, इसलिए पूरी खबर पढकर यह पोस्ट लिखने का प्रयास कर रहा रहा हूँ.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने गुजरात विश्वविद्यालय के मैदान में आयोजित हिंदू अध्यात्मिक सेवा मेला के उद्घाटन समारोह में गुरुवार 23 जनवरी को उन्होंने कहा कि “अहिंसा के विचार की रक्षा के लिए हिंसा कभी-कभी जरूरी होती है. उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को शांति के रास्ते पर सभी को साथ लेकर चलना होगा आगे चलकर उन्होंने कहा कि” हिंदू हमेशा अपने धर्म की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. अपने धर्म की रक्षा के लिए हमें हमे वे काम भी करने होंगे जिन्हें दुसरे लोग अधर्म करार देंगे. ऐसे काम हमारे पूर्वजों ने भी किए थे. महाभारत के युद्ध का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पांडवों ने अधर्म को खत्म करने के लिए युद्ध के नियमों को ताक पर रख दिया. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि हिंदू धर्म में अहिंसा का तत्व निहित हैं, लेकिन कभी-कभी हमें अहिंसा के विचार की रक्षा के लिए हिंसा का सहारा लेना पड़ता है. अन्यथा अहिंसा का विचार कभी सुरक्षित नहीं रहेगा .


इस भाषण पर किसी वरिष्ठ पत्रकार ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर उनका नाम लिए बगैर मंदबुद्धि के लोग कह कर रुक गए . मुझे नहीं लगता कि आर. एस. एस. मे मंदबुद्धी के लोग हैं . वे पर्याप्त मात्रा में बुद्धिमान है. सवाल उन्होंने हिटलर तथा मुसोलिनो को अपना आदर्श माना हुआ है, और उसी दिशा में काफी मुस्तैद होकर सौ वर्षों से वह सक्रिय हैं .ऐसे ही आज की उनकी ताकत नहीं बढी है. उन्होंने सौ वर्षों में अपने आपको परिस्थितियों को देखते हुए काफी बदलाव कीया है. अन्यथा महाराष्ट्रियन ब्राम्हणों ने शुरू किया हुआ संगठन ने आज भारत के (अल्पसंख्यक समुदाय के लोग छोडकर ) अन्य सभी समुदायों में अपनी पैठ बनाने का काम किया है. अन्यथा आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के देश पर राज करने का और क्या कारण हो सकता है ? और इन्हें बुद्धिहीन बोलकर खुली छूट देने की गलती कर रहे हैं .


वर्धा में 1948 मार्च के 11 से 15 तारीख तक महात्मा गाँधी की हत्या के बाद एक बैठक हुई थी. जिसमें डॉ राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आझाद, आचार्य विनोबा भावे, आचार्य कृपलानी, आचार्य दादा धर्माधिकारी, तुकडोजी महाराज जयप्रकाश नारायण, काकासाहेब कालेलकर इत्यादी लोग शामिल थे. और “अब बापू हमारे बीच नहीं रहे आगे क्या करना ?” इसि शिर्षक की किताब उस बैठक के मिनिट्स को लेकर पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल श्री. गोपालकृष्ण गांधी ने संपादित की है. जिसमें उन्होंने पन्ना नंबर 176 से 178 तक आचार्य विनोबा भावे ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में क्या कहा है ? यह मै देने जा रहा हूँ. आचार्य विनोबा भावे ने कहा कि “मै उस प्रांत का हूँ जिसमें आर. एस. एस. का जन्म हुआ. जाति छोड़कर बैठा हूँ. फिर भी भूल नहीं सकता कि उसकी ही जाति का हूँ जिसके द्वारा महात्मा गाँधी की हत्या हुई है . पवनार में मै बरसों से रह रहा हूँ वहां पर भी चार-पांच आदमियों को गिरफ्तार किया गया है. बापू की हत्या से किसी न किसी तरह का संबंध होने का उन पर शुबाह है. वर्धा में भी गिरफ्तारियां हुई, नागपुर में हुई. जगह – जगह हो रही है. यह संगठन इतने बड़े पैमाने पर बड़ी कुशलता के साथ फैलाया गया है. इसकी जडे काफी गहराई तक पहुंच चुके है . यह संगठन ठीक फैशिस्ट ढंग का है . उसमे महाराष्ट्र की बुद्धि का प्रधानतया उपयोग हुआ है . चाहे वह पंजाब में काम करता हो या मद्रास में . सब प्रांतों में उसके सिपहसलारों में मुख्य संचालक अक्सर महाराष्ट्रियन और अक्सर ब्राम्हण रहे हैं . और वर्तमान संघप्रमुख श्री. माधव सदाशिव गोलवलकर भी महाराष्ट्रियन ब्राम्हण है. इस संगठन वाले दुसरों को विश्वास में नहीं लेते. गांधीजी का नियम सत्य का था. मालूम होता है इनका नियम असत्य का होना चाहिए . यह असत्य उनकी टेक्निक – उनके तंत्र – और उनकी फिलॉसफी का हिस्सा है .


एक धार्मिक अखबार में मैंने उनके प्रमुख गोलवलकर का एक लेख या भाषण पढा. उसमे लिखा था कि “हिंदू धर्म का उत्तम आदर्श अर्जुन है, उसे अपने गुरुजनों के लिए आदर और प्रेम था, उसने गुरुजनों को प्रणाम किया और उनकी हत्या की, इस प्रकार की हत्या जो कर सकता है वह स्थितप्रज्ञ है . वे लोग गीता के मुझसे कम उपासक नही है. वे गीता को उतनी ही श्रध्दा से रोज पढते होंगे जितनी श्रध्दा मेरे मन में है . मनुष्य यदि पूज्य गुरुजनों की हत्या कर सके तो वह स्थितप्रज्ञ होता है, यह उनकी गीता का तात्पर्य है . बेचारी गीता का इसप्रकार इस्तेमाल होता है. मतलब यह कि यह सिर्फ दंगा-फसाद करनेवाले उपद्रवकारियो की जमात नही है. यह फिलॉसफरो की जमात है. उनका एक तत्वज्ञान है, और उसके अनुसार निश्चय के साथ वे काम करते हैं . धर्मग्रंथों के अर्थ करने की भी उनकी अपनी खास पद्धति है .


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की और हमारी कार्यप्रणाली में हमेशा विरोध रहा है. जब हम जेल जाते थे, उस वक्त उनकी नीति फौज और पुलिस में दाखिल होने की होती थी . जहाँ हिंदू – मुसलमानों का झगड़ा खडा होने की संभावना होती वहां वह पहुंच जाते. उस वक्त की सरकार इन सब बातों को अपने फायदे की समझती थी . इसलिए उसने भी इसे इनको उत्तेजन दिया. नतीजा हमको भुगतना पड़ रहा है .
आज की परिस्थिति में सब से प्रमुख जिम्मेदारी मेरी है. महाराष्ट्र के लोगों की है . यह संगठन महाराष्ट्र में पैदा हुआ है. महाराष्ट्र के लोग ही इसकी जडों तक पहुंच सकते हैं.


यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में आचार्य विनोबा भावे ने 77 वर्ष पूर्व ही कहीं थी जब आर. एस. एस. की उम्र 23 वर्ष की थी. और इस वर्ष आर. एस. एस. अपनी शताब्दी मनाने जा रहा है . और आज भारत में आर. एस. एस. ने जबरदस्त सांप्रदायिक ध्रविकरण करने में कामयाबी हासिल की है . भैयाजी जोशी ने वह भी गुजरात की भूमि पर जहां आर. एस. एस. ने आजसे 23 वर्षे पहले भैयाजी जोशी के अनुसार 27 फरवरी 2002 के बाद हिंसा का जो तांडव किया है, और उम्र के 17 वे वर्ष से स्वयंसेवक बने हुए व्यक्ति गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान थे. और उन्होंने भी इस हिंसा को बढ़ाने के लिए जो भुमिका निभाई है, वह भैयाजी जोशी के कथन के अनुसार ही है . भले ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा हो कि “आपने राजधर्म का पालन नहीं किया.”
और जिस व्यक्ति के पास पिछले दस सालों से इस देश की कानून- व्यवस्था की जिम्मेदारी है, वह भी गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार में “दंगे चिरशांती के लिए आवश्यक थे”. यह बोला है . इसलिए 77 वर्ष पहले गोलवलकर के आदर्श अर्जुन की बात हो, या कल भैय्याजी जोशी द्वारा गुजरात विश्वविद्यालय में दिया गया भाषण हो, या फिर अमित शाह ने गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार में दिया हुआ भाषण हो सभी आर. एस. एस. के फासिस्ट चरित्र को उजागर करने वाले ही है. इतना स्पष्ट है.

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