छत्तीसगढ़ में कैम्पा के पैसों से बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का पता चला है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद बने इस फंड से सर्वाधिक पैसे 471.24 करोड़ रुपए छत्तीसगढ़ को मिले, लेकिन धरातल पर इन पैसों से एक भी काम नहीं हुआ. 2009-10 से 2012-13 तक छत्तीसगढ़ को 123.21 करोड़, 134.11 करोड़, 99.54 करोड़ और 114.38 करोड़ रुपए दिए गए थे.
कैम्पा फंड से वनीकरण में महज कुछ लाख रुपए ही खर्च किए गए हैं, बाकी करोड़ों रुपए अधिकारियों ने मुख्यमंत्री की मर्जी से अन्य कार्यों में खर्च कर दिया. जंगल सफारी, वाहनों की खरीदी, डीएफओ रेंजर के बंगले और सैर सपाटे में ही वनीकरण के लिए आई रकम को खर्च किया गया है. कैग ने अपनी पिछली ऑडिट रिपोर्ट में इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी, लेकिन इसका असर राज्य सरकार पर नहीं पड़ा. केंद्र सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगने के बाद राज्य का फंड रोक दिया है. 2012-13 के बाद एमओईएफ ने राज्य सरकार को कोई राशि नहीं दी है.
राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कैम्पा के रुके पैसों के लिए दिल्ली में प्रयास तो कर रहे हैं, लेकिन अब तक मिले पैसों का हिसाब नहीं दे पाए हैं. कैम्पा फंड के तहत अगले पांच सालों में छत्तीसगढ़ को 3000 करोड़ की राशि मिलनी थी. राज्य सरकार ने कैम्पा के पैसों से भ्रष्टाचार की शुरुआत स्टेयरिंग कमिटी बनाकर की थी. कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों से परे जाकर दूसरे मद में कैम्पा के पैसों को खर्च किया.
कैम्पा के पूर्व प्रभारी बोवाज व वर्तमान प्रभारी सिन्हा सहित कई आला अधिकारियों ने मिलकर अपनी मर्जी से पैसों की बंदरबांट की. कैग की रिपोर्ट ने इस भ्रष्टाचार की सारी परतें खोल कर रख दी. इसके बावजूद रमन सिंह कैम्पा के पैसों से छत्तीसगढ़ के जिलों में करोड़ों की सौगात देने की घोषणाएं करते रहे. वन-विभाग ने अपने मंत्रियों और अफसरों के लिए 2010-11 और 2011-12 में 23 बड़े वाहनों अम्बेसडर, टाटा मांजा, टोयटा कार और टाटा सफारी की खरीदी की. इस खरीदी में डेढ़ करोड़ खर्च किये गए. इसी तरह सैकड़ों बोलेरो वाहनों की खरीदी की गई.
इस तरह की खरीदी की साफ़ मनाही होने के बावजूद मनमाने तरीके से कैम्पा के पैसों का दुरुपयोग किया गया. डीएफओ के बंगले, हॉस्टल के लिए भी करोड़ों रुपए फूंके गए, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी. कैग ने अपनी रिपोर्ट में इस पर टिप्पणी की है. बड़े पैमाने पर हुए इस भ्रष्टाचार में राज्य सरकार और उनके अधिकारियों ने भारत सरकार की अनुमति के बिना वनीय जमीन का उपयोग, गैर वनीय कार्यों के लिए किया है. वन-विभाग का पथरोहण/नहर रोपण, नदी तटबंध ऑक्सीजन रोपण और शहरी वनीकरण योजना फाइलों में ही बंद पड़ा है.
नंदन वन जू के नया रायपुर में व्यवस्थापन को राज्य में जंगल सफारी के रूप में प्रचारित किया गया और कैम्पा के पैसों को इस मद में लगाया गया, जबकि सुप्रीमकोर्ट के दिशा-निर्देशों में इस पैसे से इको टूरिज्म आदि गतिविधियों की मनाही थी. नया रायपुर के जंगल सफारी में भी करोड़ों रुपए खर्च किए गए, जिसमें सर्वे, बाउंड्रीवाल जैसे खर्चे भी शामिल हैं. इंटरप्रीटशन सेंटर, चैन लिंक फेंसिंग, लामिनी पार्क में भी करोड़ों खर्च किये गए. 2012 में ही इको टूरिज्म में वन-विभाग ने लगभग 2 करोड़ रुपए खर्च किए. बारनवापारा के निवासियों के व्यवस्थापन में भी कैम्पा से मिले पैसों का उपयोग किया गया, जबकि केंद्र सरकार ने इस कार्य के लिए प्रति परिवार 10 लाख स्वीकृत किया था.
हरियर छत्तीसगढ़ योजना के नाम पर फ़र्ज़ीवाड़ा
छत्तीसगढ़ राज्य में हरियर छत्तीसगढ़ योजना के नाम पर करोड़ों रुपयों का फर्जीवाड़ा हुआ है. हरियर छत्तीसगढ़ योजना के तहत प्रदेश-भर में आठ करोड़ पौधे लगाये गए हैं. वन-विभाग द्वारा बारिश के शुरुआती मौसम में राजधानी में जगह-जगह पौधरोपण किए जाने के दावे किए गए. मगर हरियाली पखवाड़ा खत्म होते ही इस पूरे खेल का पता चला.
पौधरोपण के बाद प्रशासन ने दावा किया कि राजधानी के विभिन्न इलाकों में तीन करोड़ की राशि खर्च कर 1.80 लाख पौधे लगाए गए हैं, लेकिन जिन स्थानों पर पौधे लगाने की बात विभाग ने कही, वहां सिर्फ गड़्ढे खोदकर छोड़ दिया गया है, तो कहीं सिर्फ खाली मैदान ही है. वन-विभाग के अनुसार डब्लूआरएस खमतराई में 5500 पौधे लगाए गए हैं, लेकिन हकीकत यह है कि डब्लूआरएस में स्कूल परिसर व मैदान और मंदिर प्रांगण में एक भी पौधा नहीं लगाया गया है.
रेलवे अस्पताल में 38, डब्लूआरएस की मुख्य सड़क से क्रॉस सड़क तक 216, केंद्रीय विद्यालय से सामुदायिक भवन तक सड़क पर 185 और परिसर की कुछ और सड़कों पर 100 पौधे लगाये गए हैं. डब्लूआरएस कॉलोनी में खाली जमीन पर एक भी पौधा नहीं लगा है. इस इलाके के निवासियों ने बताया कि वन-विभाग जिन स्थानों पर पौधरोपण का दावा कर रही है, वहां कोई पौधरोपण नहीं हुआ है. इसी तरह टिकरापारा के सिद्धार्थ चौक के नरैया तालाब के किनारे बड़े पैमाने पर पौधरोपण किए जाने का दावा किया गया है, लेकिन इसके उलट वहां तालाब के चारों ओर सिर्फ गड़्ढे ही खोद कर छोड़ दिए गए हैं.
वन-विभाग की नर्सरी में 100 से 125 रुपए में तैयार होने वाले पौधों को विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से 400 रुपए में खरीदा गया है. वन-विभाग ने हरियर छत्तीसगढ़ योजना के तहत प्रदेश भर में आठ करोड़ पौधे लगाने की बात कही, जिसमें से अधिकतर पौधे हैदराबाद से मंगाए गए हैं. राज्य में वन-विभाग के पास कई बड़ी नर्सरी है, जहां पर पौधे तैयार कराए जा सकते हैं. मगर राज्य शासन ने राज्य की नर्सरी का उपयोग नहीं कर बाहर से पौधों को मंगाया है. हैदराबाद से मंगाए गए इन पौधों को 400 रुपए में खरीदा गया हैं. इनमें फूलदार, फलदार सहित छायादार पौधे शामिल हैं.
वन-विभाग के आंकड़ों के अनुसार
नया रायपुर में -1.43 लाख
डब्लूआरएस परिसर – 5500
सेजबहार कॉलोनी – 600
धरसिवा – 2200