किसी ने सही कहा कि जो आपका काम नहीं है, वह काम न करे, वर्ना बर्बादी के लिए उतना ही काफी है. इस सरकार ने यही किया है. साढ़े चार साल में जहां सरकार को कारगर कदम उठाने चाहिए थे, उसने नहीं उठाए और बेकार के कामों की लिस्ट इतनी लंबी होती गई कि अब स्थिति संभाले नहीं संभल रही है. जवाहरलाल नेहरू सत्रह साल प्रधानमंत्री रहे. फिर भी उन्होंने कभी वह काम नहीं किया जो उन्हें नहीं करना चाहिए था. हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ऐसे हैं जो प्रधानमंत्री के काम के अलावा जितने काम है, सब करते हैं. स्वच्छता एक ऐसी चीज है, जिसे प्रधानमंत्री के भाषण की जरूरत नहीं हैं. हर आदमी अपना घर साफ रखता है. आप कहते हैं मोहल्ला को साफ रखो, गली को साफ रखो. ठीक बात है, पर ये काम पंचायत का है, नगर पालिकाओं का है. इसमें प्रधानमंत्री का लालकिले से बोलने का कोई काम नहीं है.
आरएसएस चाहती है कि अयोध्या में एक मंदिर बने, क्योंकि रामायण में माना जाता है कि वहां राम का राज था. रामायण की अयोध्या वही है, जो आज की अयोध्या है. रामायण कोई इतिहास नहीं, माइथोलॉजिकल गाथा हैं. ऐसी किसी गाथा को इतिहास में परिवर्तित करना आसान काम नहीं है और करना भी नहीं चाहिए. लेकिन उनकी मंशा यह है कि राम का एक भव्य मंदिर बने, क्योंकि हिन्दुओं के दिल में राम बसे हुए हैं. लेकिन भाजपा चाहती है कि राम का नाम ले कर हम सरकार में आ जाएं. दोनों का उद्देश्य उल्टा है. वे हर पांच साल में राम को जिंदा कर देते हैं फिर पांच साल तक राम को भूल जाते हैं. अब सुप्रीम कोर्ट पर दबाव डाल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट को इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहिए. पहले से ही हाजी अली दरगाह और सबरीमाला जैसी दो मुसीबतें सुप्रीम कोर्ट ने अपने सर पर ले रखी हैंै. सुप्रीम कोर्ट का धर्म से कोई मतलब नहीं है.
इस सरकार ने सीबीआई, सीवीसी जैसी संस्थाओं की हालत खराब कर दी है. रिजर्व बैंक सरकार का कहना नहीं मान रहा है. आम धारणा ये है कि सरकार ने ही रिजर्व बैंक को इस हालत में पहुंचाया है. जाहिर है, सीबीआई और सीवीसी जैसी जांच एजेंसी में सरकार की दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए, लेकिन सरकार दखलंदाजी कर रही है. रिजर्व बैंक आर्थिक नीतियों को लागू करने का काम करता है. इस काम में सरकार के साथ चर्चा होना दखलंदाजी नहीं है. वहां तक तो सरकार का हस्तक्षेप बिल्कुल जायज है. लेकिन सरकार इससे आगे बढ़ कर हस्तक्षेप कर रही है, जो ठीक नहीं है.
किसी ने सही कहा कि जो आपका काम नहीं है, वह काम न करे, वर्ना बर्बादी के लिए उतना ही काफी है. इस सरकार ने यही किया है. साढ़े चार साल में जहां सरकार को कारगर कदम उठाने चाहिए थे, उसने नहीं उठाए और बेकार के कामों की लिस्ट इतनी लंबी होती गई कि अब स्थिति संभाले नहीं संभल रही है. जवाहरलाल नेहरू सत्रह साल प्रधानमंत्री रहे. फिर भी उन्होंने कभी वह काम नहीं किया जो उन्हें नहीं करना चाहिए था. हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ऐसे हैं जो प्रधानमंत्री के काम के अलावा जितने काम है, सब करते हैं.
स्वच्छता एक ऐसी चीज है, जिसे प्रधानमंत्री के भाषण की जरूरत नहीं हैं. हर आदमी अपना घर साफ रखता है. आप कहते हैं मोहल्ला को साफ रखो, गली को साफ रखो. ठीक बात है, पर ये काम पंचायत का है, नगर पालिकाओं का है. इसमें प्रधानमंत्री का लालकिले से बोलने का कोई काम नहीं है. सरकार ने कहा कि शौचालय बनना चाहिए, बिना समझे कि हमारे गांव के लोग शौचालय कैसे इस्तेमाल करेंगे, यदि पानी ही नहीं है. पीने के पानी की कमी है तो शौचालय का पानी कहां से आएगा.
इसमें बुद्धि लगाने की जरूरत नहीं है. सरकार ने कह दिया कि शौचालय बनना चाहिए, पैसा आवंटन कर दिया. सरकार ने कहा कि एलईडी बल्ब इस्तेमाल कीजिए. मैं ये बिल्कुल नहीं कह रहा हूं कि ये सारी चीजें नहीं होनी चाहिए. मैं ये कह रहा हूं कि ये प्रधानमंत्री का काम नहीं है. एलईडी बल्व नॉर्मल बल्व की जगह लगे, उससे बिजली बचती है और कीमत अगर कम हो तो लोग उसका इस्तेमाल करेंगे ही. इसमें प्रधानमंत्री की क्या भूमिका है? बाकी लोग क्या कर रहे हैं? मुख्यमंत्री क्या कर रहे हैं? इसका मतलब कोई काम नहीं कर रहा है. सिर्फ प्रधानमंत्री काम कर रहे हैं. तो फिर बर्खास्त कीजिए सबको.
क्या पूरा देश अकेले प्रधानमंत्री चलाएंगे? क्या उन्हें देश पर एकाधिकार चाहिए? असल में ये सरकार भारत के संविधान को ही लागू करने में नाकामयाब रही है. सरकार का काम है कि वह आर्थिक स्थिति ठीक रखे, कीमत को नियंत्रण में रखे ताकि गरीबों को राहत मिले. ऐसा कोई काम ये सरकार नहीं कर रही है. पेट्रोल का मूल्य सौ रुपए पहुंच रहा है, खाद्यान्न की कीमत आसमान छू रही है. लेकिन किसान को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है. क्योंकि बिचौलिए पैसा खा जाते हैं. मैं नहीं कहता की ये सिस्टम इसी सरकार ने शुरू किया. ये शुरू से चल रहा है. लेकिन, इस सरकार ने भी इस सिस्टम को ठीक करने का काम नहीं किया.
अब अमित शाह का भाषण सुनिए. वे बोलते हैं कि कांग्रेस के राज में ये हुआ, वो हुआ. प्रधानमंत्री ने खुद बोला है कि विपक्ष का काम है झूठ बोलना. जबकि प्रधानमंत्री खुद एके-47 की गति से झूठ बोलते हैं. भारत एक ऐसा देश है, जहां रिजेक्ट होने के बाद दोष निकाला जाता है. इंग्लैंड में या अमेरिका में 300 साल की डेमोक्रेसी है. वहां आज का राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की गलती नहीं निकालता है. हां, हल्के से डेमोक्रेटिक पार्टी का जिक्र करता है. आप भी कांग्रेस पार्टी की आलोचना कीजिए, इसमें कोई आपत्ति नहीं है.
लेकिन भाजपा की और मोदी जी की सारी समस्या नेहरू जी से शुरू होती है. पटेल और बोस इनके लिए खुदा हो गए. कैसे हो गए? इनका पढ़ने-लिखने से कोई वास्ता तो है नहीं. नेताजी बोस की थ्योरी थी कि ब्रिटिश को भारत से हटाने के लिए हिटलर की मदद ली जाए. हिटलर इस सरकार को सूट करता है क्योंकि इनका भी मिजाज वही है. कोई भी आदमी नेताजी से सहमत नहीं हो सकता कि एक बुरी चीज हटाने के लिए उससे भी बड़ी बुरी चीज की मदद लें. ये बातें तर्कसंगत नहीं है. मैं भी नेताजी का प्रशंसक हूं.
उन्होंने बहादुरी दिखाई. आजाद हिंद फौज शब्द उर्दू और हिन्दी का मिश्रण है. भाजपा वालों को समझना चाहिए कि नेताजी क्या थे? वे सूरज थे और भाजपा वाले उनको दीया दिखाने की कोशिश कर रहे हैं.
कभी विपक्ष की शान हुआ करते थे आडवाणी जी और अटल जी. मैं कभी आडवाणी जी से सहमत नहीं था, क्योंकि उनको मंदिर बनाना था. लेकिन उनका संयम, सभ्यता, भाषा पर नियंत्रण उन्हें एक बेहतर नेता बनाता था. आडवाणी जी कहते थे कि अगर हमको कम वोट मिलते हैं तो हम विपक्ष में बैठेंगे. मोदी जी को ये बर्दाश्त नहीं होता है. ये पैसा देकर, डरा कर, धमका कर विधायकों को अपने पाले में ला कर किसी तरह सरकार बनाने में यकीन करते है. आज भाजपा ने साबित कर दिया कि वे भले दीन दयाल उपाध्याय या श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम लेंगे लेकिन आचरण ठीक उसके उलट करेंगे.
भारत पूंजीपतियों का देश नहीं है. इस देश का इतिहास पढ़िए. यहां किसी राजा-महाराजा, सामंतों की पूजा कभी नहीं हुई है. यहां फकीरों की पूजा हुई है. चाहे नानक हों, कबीर हों, तुकाराम हों, ज्योतिबाफुले हों. जयप्रकाश नारायण नहीं होते तो इंदिरा गांधी चुनाव नहीं हारती. कुछ तो सीखिए इतिहास से. इस देश में विनम्रता, सादगी, खुद पर कम खर्चा करना, उदार होना, गरीबों को ऊपर उठाना, यही सब इस देश की ताकत है. लेकिन भाजपा तो आज कांग्रेस से भी आगे निकल गई है. ये तो बिजनेसमैन को भी लाइसेंस नहीं दे रहे हैं.
तीन या पांच घरानों को ही लाइसेंस मिल रहा है. भाजपा, अंबानी, अडानी और तीन-चार और घराने मिलकर सब कर रहे हैं. भाजपा ने साढ़े चार साल में भय का वातावरण बना दिया है. हाल ही में वीर सांघवी एक इंटरव्यू ले रहे थे. उसमें उन्होंने कहा कि आम आदमी की आर्थिक हालत खराब है, लेकिन डर का वातावरण है. इस वजह से उद्योगपति, व्यवसायी बोलने को तैयार नहीं है कि उनके कामकाज की हालत खराब है. वे सब अमित शाह से डरते है.
अब तो साफ हो गया है कि अमित शाह सीधे सीबीआई को नियंत्रित करना चाह रहे थे. सीबीआई के जरिए वे सबको डरा-धमका रहे थे, कहां आ गए है हमलोग? यूगांडा या जिम्बाम्बे से ज्यादा दूर नहीं है हम.
मैं कहता हूं कि जनता को आप जानते नहीं हैं. यहां पर क्रांति हो जाएगी, जिम्बाम्बे की तरह इलेक्शन से छेड़खानी मत करिए. भाजपा के लिए मेरी राय आज भी यही है कि हारना-जीतना लगा रहता है. अगर हार गए तो फिर मेहनत करके जनता का विश्वास जीतिए और सत्ता में आ जाइए. लेकिन आपने (भाजपा) जिस तरह गोवा, मणिपुर में सरकार बनाया, वैसे ही अगर दिल्ली में बनाने की कोशिश करेंगे तो गंभीर नतीजा भुगतना होगा.
ऐसा कर के भाजपा, आरएसएस के 93 साल की मेहनत पर पानी फेर देगी. मुझे पता नहीं है कि मोहन भागवत जी क्या सोच रहे हैं. 93 साल इन्होंने मेहनत की ताकि कुछ संस्कार ला सके, कुछ परंपरा बना सके. लेकिन, ये सरकार इनकी मेहनत और सोच पर पानी फेर रही है.
आरएसएस चाहती है कि अयोध्या में एक मंदिर बने, क्योंकि रामायण में माना जाता है कि वहां राम का राज था. रामायण की अयोध्या वही है, जो आज की अयोध्या है. रामायण कोई इतिहास नहीं, माइथोलॉजिकल गाथा हैं. ऐसी किसी गाथा को इतिहास में परिवर्तित करना आसान काम नहीं है और करना भी नहीं चाहिए. लेकिन उनकी मंशा यह है कि राम का एक भव्य मंदिर बने, क्योंकि हिन्दुओं के दिल में राम बसे हुए हैं. लेकिन भाजपा चाहती है कि राम का नाम ले कर हम सरकार में आ जाएं. दोनों का उद्देश्य उल्टा है.
वे हर पांच साल में राम को जिंदा कर देते हैं फिर पांच साल तक राम को भूल जाते हैं. अब सुप्रीम कोर्ट पर दबाव डाल रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट को इस पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहिए. पहले से ही हाजी अली दरगाह और सबरीमाला जैसी दो मुसीबतें सुप्रीम कोर्ट ने अपने सर पर ले रखी हैंै. सुप्रीम कोर्ट का धर्म से कोई मतलब नहीं है. सुप्रीम कोर्ट सेकुलर है. क्या सुप्रीम कोर्ट बताएगा कि राम कहां पैदा हुए.
मैं हिन्दू हूं और मैं इस पर सख्त आपत्ति जता रहा हूं. मुझे कोई बताने की कोशिश न करे कि राम कहां पैदा हुए और कृष्ण कहां पैदा हुए. मुझे ज्यादा मालूम है आपसे. मैंने जितना हिन्दू ग्रन्थों का अध्ययन किया है, उतना शायद इन्होंने नहीं किया होगा और मोदी जी ने तो हरगिज नहीं किया होगा. 18 प्रतिशत हिन्दू (कट्टर), जो भाजपा के समर्थक हैं, वो अचानक कहते हैं कि राम का अपमान हो रहा है. किसने कहा कि राम का भी अपमान हो सकता है. अपमान तो उसका हुआ जिसने राम के खिलाफ कुछ बोला. मान-अपमान छोटे लोगों की बात है.
राम और कृष्ण का भी मान-अपमान हो सकता है, मैं नहीं मानता. ऐसे ही लोग हिन्दुज्म को कमतर बनाएंगे. मोदी जी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि हिन्दूज्म एक धर्म, वे ऑफ लाइफ की जगह एक मजहब बन जाए. जैसे इस्लाम, क्रिश्चिएनिटी या पारसी है. हम मजहब नहीं हैं, हम मत नहीं हैं, मत निरपेक्ष देश है. धर्मनिरपेक्ष शब्द गलत है लेकिन प्रचलित है. हमलोग सनातन देश हैं. चिरस्थायी, हजारों साल से चल रहा है और हजारों साल चलेगा.